The Oraon trible | झारखण्ड की उराँव जनजाति

उराँव ( ORAON )  जनजाति झारखण्ड, बिहार , पश्चिम बंगाल , उड़ीसा , छत्तीसगढ़ , आसाम तथा अंडमान निकोबार राज्य में भी पायी जाती है । झारखण्ड में इसका मुख्य निवास स्थान गुमला तथा लातेहार जिला है ।  उराँव ( ORAON ) जनजाति के सम्बद्ध में भाषा वैज्ञानिक के द्वारा अपने पुस्तक में बताया है  -‘ पीपुल ऑफ इंडिया ‘ में रिजले ने इनका उपयुक्त चित्र प्रस्तुत किया और द्रविड़ कहा । शरत चन्द्र राय की भी यही धारणा थी । एस . सी . राय ने उराँव ( ORAON ) जनजाति के टोटम कुंजर सांप की उत्पत्ति की खोज करने की चेष्टा की है । प्राप्त अध्ययनों के आधार पर यह माना जाता है कि उराँव छोटानागपुर के प्राचीन निवासी नहीं हैं । वे उत्तरी पश्चिमी और उत्तरी भागों में रहा करते थे । जिसमें नन्दनगढ़ , पिपरीगढ़ तथा हरीनगर आदि जगहों का पता चलता है । वहां से ये शाहाबाद जिले के रोहतास गढ़ के पठारी इलाकों में बहुत दिनों तक रहे । यहां पर उनकी बहुत ही विकसित संस्कृति थी । रोहतास गढ़ छोड़ते समय ये दो दलों में बंटे गये । एक दल गंगा के तटवर्ती इलाके से गुजरता हुआ राजमहल के पहाड़ी इलाकों में पहुंचा । उन्हीं के वंशज सौरिया पहाड़िया हुए । दूसरा दल कोयल नदी के तटवर्ती मैदानों से होता हुआ पलामू में प्रवेश किया । पलामू के बाद झारखण्ड के अन्य क्षेत्रों में उराँव ( ORAON ) बसने लगे ।

उराँव ( ORAON ) प्रजाति –

उराँव जनजाति की शारीरिक विशेषता प्रोटो – आस्ट्रेलायड प्रजाति समूह की विशेषतायुक्त है अर्थात इनका कद छोटा , सिर लम्बा , नाक चौड़ी , होठ पतले , रंग काले , बाल मोटे घुंघराले तथा जबडे उभरे हुए होते हैं

उराँव ( ORAON ) जनजाति में गोत्र –

पितृसत्तात्मक परिवार है इसलिए अन्य जनजाति में गोत्र को किली या गोतर कहते हैं । उरांव के बीच 50 से भी अधिक गोत्री का पता चला है जिनका नाम वृक्ष लता , पशु , के नाम पर ही पाया जाता है गोत्र के प्रत्येक सदस्य के लिए अनिवार्य  है  गोत्र से बाहर विवाह की अनुमति है । सगोत्र विवाह नहीं करते हैं ।

कुछ प्रमुख का नाम है । – एक्का ( कछुवा ) ,

मंखोएना ( जंगली कुत्ता ) ,

जनी ( एक लतर ) ,

टिरकी ( चुहिया ) ,

लकड़ा ( बाघ ) ,

वेक ( नमक ) ,

मिनकी ( मछली ) ,

टे ( हंस ) ,

थिरी ( गिलहरी ) ,

बलखस ( पास ) ,

कुजुर , टोप्पो व टोपनो ,

पन्ना ( धातु , केरकेटा (खेसचान )

, लिंडा , मि , रुण्डा , गारी , बांडी आदि ।

 

उराँव ( ORAON ) जनजाति का विवाह

विवाह की पहल लड़के की तरफ से शुरू होती है और वधू – धन की  पर तय होती है । आजकल वधूधन के अन्तर्गत नकद रूप में , चांदी के जेवर , कपड़े आदि स्वीकार किये जाते है । उराँव समाज में विधवा विवाह को सामाजिक मान्यता प्राप्त है । इस समाज में दोनों ही पक्ष के लिए विवाह विच्छेद या तलाक की अनुमति दी गई है ।गोत्र से बाहर विवाह की अनुमति है । सगोत्र विवाह नहीं करते हैं ।

उराँव ( ORAON ) जनजाति का आर्थिक प्रणाली

उराँव ( ORAON )कुशल  कृषक हैं ।  कृषि योग्य भूमि को दोन और टांड में वर्गीकृत किये हुए हैं । दोन वाली भूमि में धान की खेती करते हैं तथा टांड में विभिन्न प्रकार के अन्न उपजाते हैं । जिसमें गोड़ा धान भी एक है । बंजर तथा पत्थरीली भूमि में सुरगुजा तथा कुरथी की अच्छी फसल उपजा लेते हैं ।  कृषि कार्य के लिए हल तथा मवेशी का उपयोग करते हैं ।

उराँव ( ORAON ) जनजाति का सांस्कृतिक विशेषताएँ :-

  • उराँव ( ORAON ) की पैतृिक आत्माएँ पचबालर कही जाती हैं । दाह संस्कार की क्रिया के बाद की आत्मा पैतृक आत्माओं में मिल जाती है ।  उराँव टरबोरी उत्सव पैतृक आत्माओं के उपलक्ष में मनाते हैं ।
  • नये धान को प्रयोग में के पहले पूर्वजों के नाम अर्पित करना जरूरी होता है । इसके साथ एक मुर्गी की बलि दी ज है ।
  • दरहा अन्य देवता हैं जिनका निवास स्थान का वृक्ष होता है ।
  • घुमकुरिया के सदस्य जिन्हें धांगर ( Dhangar ) कहा जाता है
  • इसकी न्याय व्यवस्था गांव परिषद पर आधारित है ।
  • पंचायत तीन या पांच या सात ( कहीं – कहीं पर 12,21 ) गांवों को मिलाकर बनाया जाता है । परहा पंचायत का सर्वोच्च व्यक्ति ” परहा राजा ” कहलाता है । यह पद सर्वोच्च होता है इसलिए इसके निर्णय को मानना ही पड़ता है ।
  • ग्राम परिषद के द्वारा अधिकतर झगड़ों का निदान कर दिया जाता है ।
  • युवागृह ( Youth Dormitory ) युवागृह जनजातियों के सामाजिक जीवन की एक महत्वपूर्ण संस्था है
  • एस.ई.पील ने कहा कि युवागृह भूटान से न्यूजीलैंड तथा मोरक्कों से नाइजर तक पाया गया है ।
  • भारत में प्रायः सभी जनजातियों में युवागृह का प्रचलन है जो विभिन्न नामों से जाने जाते हैं ।
  • उराँव ( ORAON ) भाषा में युवागृह को जोखएरपा ( कुँवारों का घर ) कहा जाता है ।
  • हिन्दी में इसे धुमकुरिया ( Dhumkuria ) कहते हैं ।
  • युवागृहों के निर्माण के लिए वैसे तो कोई खास नियम नहीं है , लेकिन सामान्यतः गांव के एक कोने में शांत स्थान पर बनाये जाते हैं
  • इसमें प्रवेश के लिए एक ही दरवाजा होता है । खिड़कियाँ नही होती हैं ।
  • उराँव की पैतृिक आत्माएँ पचबालर कही जाती हैं । दाह संस्कार की क्रिया के बाद की आत्मा पैतृक आत्माओं में मिल जाती है ।  उराँव टरबोरी उत्सव पैतृक आत्माओं के उपलक्ष में मनाते हैं ।
  • नये धान को प्रयोग में के पहले पूर्वजों के नाम अर्पित करना जरूरी होता है । इसके साथ एक मुर्गी की बलि दी ज है । 
  • दरहा अन्य देवता हैं जिनका निवास स्थान का वृक्ष होता है ।घुमकुरिया के सदस्य जिन्हें धांगर ( Dhangar ) कहा जाता है 
  • इसकी न्याय व्यवस्था गांव परिषद पर आधारित है । 
  • पंचायत तीन या पांच या सात ( कहीं – कहीं पर 12,21 ) गांवों को मिलाकर बनाया जाता है । परहा पंचायत का सर्वोच्च व्यक्ति ” परहा राजा ” कहलाता है । यह पद सर्वोच्च होता है इसलिए इसके निर्णय को मानना ही पड़ता है । 
  • ग्राम परिषद के द्वारा अधिकतर झगड़ों का निदान कर दिया जाता है । 
  • युवागृह ( Youth Dormitory ) युवागृह जनजातियों के सामाजिक जीवन की एक महत्वपूर्ण संस्था है 
  • एस.ई.पील ने कहा कि युवागृह भूटान से न्यूजीलैंड तथा मोरक्कों से नाइजर तक पाया गया है । 
  • भारत में प्रायः सभी जनजातियों में युवागृह का प्रचलन है जो विभिन्न नामों से जाने जाते हैं । 
  • उराँव ( ORAON )भाषा में युवागृह को जोखएरपा ( कुँवारों का घर ) कहा जाता है । 
  • हिन्दी में इसे धुमकुरिया ( Dhumkuria ) कहते हैं ।
  • युवागृहों के निर्माण के लिए वैसे तो कोई खास नियम नहीं है , लेकिन सामान्यतः गांव के एक कोने में शांत स्थान पर बनाये जाते हैं

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