श्री निवास पानुरी | Sri nivash panuri Khortha Lekhak

श्री निवास पानुरी (sri nivash panuri) “ खोरठा भासाक धारदार बनवइआ , ठेठ सबदेक खेलाडी वा जादू “ श्री निवास पानुरी ” खोरठा भासा साहितेंक अकातें ध्रुव तारा रकम चमइक रहल हथ । बेतवा लोक भासाक शिष्ट भासा वनवें योगदान दइख के हिन्दी भासा साहित्य के साहित्यकार रामदयाल पंडित खोरठा भासाक बाल्मिकि संगिआ देलथ । इनखर खोरठा मासा हेतर आगमन के मेघदूत के ई ( पंक्ति ) डंडिल ने फरीछ भइ जा हे ।

तोर आगमने दरसन देसे

शुरू होते नूतन चहक पहल

पर होइ उठते उपवन के घोरना वोरन ।

 

 

जखन खोरठा भासांञ् पानुरी जीक आगमन हवों हइ तइसे भासांत्र चहल पहल सुरू भइ जा है आर सोसे- खोरठाचल भासाक आलोक फइल जा हइ।

श्री निवास पानुरी (sri nivash panuri) परिच:

  जन्म स्थान:-     25 दिसम्बर 1920 ,बरवाअडा , धनबाद

निधन:-     1986

माता:-     दुखनी देवी

पिता:-     सालिग्राम पानुरी

बेटा:-     अर्जुन पनुरी

शिक्षा:-     मैट्रिक

जीविका :- पान गुंगटी

पनुरी काल :-1950 ले 1986 बछर  तइक।

सहित रचना :-

मेघदूत ( अनुवाद ), रामकथा अमृत, बाल किरण, आँखिक गीत, रक्ते रांगल पांखा, मातृभाषा ( पत्रिका ) ,खोरठा ( पत्रिका ) ,चाभी काठी ( नाटक ) ,उदवासल कर्ण ( नाटक ) ,सवले बीस ( कविता संग्रह ).

इ वात सइत है कि साहित्कार बने खातिर बोड वा लंबा चौड़ा औपचारिक शिक्षा ” के दरकार नाञ् । श्री निवास पानुरी एगो बड पटतइर हथ की ले की ऊ अभाव जोगी मेट्रिक से उपर नोञ् जाइ पारला आर 1930 वछरे वापेक मरन आर 1944 वछरे माइक मरहेक वादे उनखर उपर परिवार चलवेक पारसनाथ जइसन वे आर गिरलइ आ परिवारेक पोसेक खातिर पानेक गुठ चलवे लगला माकिन सुसताइल नए। साहितेक साधना । पान वेचा आ साहित साधना लगस्तर चलते रहल । पान गुगटी बइस ई  छेतरके  नमाजइजका साहित्कार खोरठा रचना करो हेला। सुरु  में ई हिन्दी में फेर खोरठा में रचना करो लगला।1954 बछड़े दुबे छोट छोट पहेल खोरठा कविता संकलन छपल इ बाल किरण आर तकर बाद दिव्य ज्योति । खोरठा भाषक विकास खातिर  मातृ भाषा 1957  बछर ,खोरठा  पखवारी पत्रिका 1970 बछर ले बह रा ई लागल। ई पत्रिकाए खोरठा के रचना छापो लागला आर खोरठा भाषा के विकास में गति आ गएल। इ करमजोगिक 40 तइक लगातार साहितेक साधना करते रहला । ई मांझे ऊ साहितेक भिन्नु -भिन्नु विधा कविता , कहानी , उपनिआस नाटक आर  गइगो रचना करल हथ ।उकरेम सबले बेस हे मेघदूत के खोरठा अनुवाद।अनुवाद एकदम अपन खोरठा ठेठ सबदेक परजोग कर अपन रचना बना लेलक ।खोरठा अनुवाद देखा –

कुंती:- ओह ! ई बालक के कहां राखी ? ई पाप के कहां नुकवी ? की कहता लोक हमरा ? कोन आँखीं देखता ? ओह । दुनियां कते बोड़ , किंतु आइझ हमरा नुकाय खातिर कोनो ठिन , कोनो गाढ़ा नाय सुरूजदेव ! सुरुजदेव !! ई की करला तोहें । तोहें जे धन देला , ओकरा हम आइझ राखे नाय पारी । तोहें हमरा पुत देला ! हम जे कुँवारी ! हमर जे विहा नाय भेल । लोक हमरा कुलटा कहता , पापिन कहता , अंधकहता । ओह ! आइझ हम समाजे मुँह नाय देखवे पारी हाय , कहा जाय की करी ! …. रेखा करा सुरुज देव ! रैखा (रक्षा) करा । नारीक लाज राखा प्रभु । आइझ नारीक लाज राखा ई अपयश की सहे पारे कोमल हिरदयेक नारी !

(आकाशवाणी)

आकाशवाणी   :- कातर नाय हो कुंती । कातर नाय होव , कुंती तोहर पुत दुनियाक श्रेष्ठ , बीर , दानी यशसी हे सबसे पहिल सोनाक पेर्टी एकरा भइरके निहचित मने गंगे बोहाय दे ! .. एकर मिरतु नाय ।

कुंती :  ओह ! आइझ हमरा आपन करजिक टुकड़ा के फेंके होत । समाजेक डरे , लोक लाजेक डरे , जोदियो पराय – पराय एहे धनधे होवें । ( शिशु देइख के ) छमा करिहें बेटा ! आइझ हम लाचार , आइझ हम बिबस । ( आवेशें ) ना – ना ई नाय होवे पारे । आइग लागुक समाजेक मुंहें । हाम माय आदि शक्ति दुर्गा , वीर परसविनी जगत जननी । सनेहे डुबल , पियारे भरल , हामर हिरदय हाम कइसे निठुर होब ! ना ना , फेंकब । ( घर दिगे जाइक चेस्टे लाइत बढ़वो ही , हटाते आँखी दुगो समाजेक आँइख देखे पाव – ही ) ई की , समाजेक बाघेक ऐसन दुगो आँइख , एकरा नाय सहे पारब , एकरा सहे नाय पारब । ( कैह के शिश के ई धन के नाय पेटी में भइरके बोहाय देही )

मेघदूत के ई अनुवाद देखे से पता चलो हइ की इ खोरठाक अपन रचना बनइ देलका। वइसने उनखर चाभी काठी नाटक हइ ।श्री निवास पनुरी जीक बेटा अर्जुन पनुरी अपन बपे ले कहला बा लिखल हथ”हमर बाबूजी कर मोरल कइ बच्छर भइ गेल । पानुरी ठीक सम्बन्धे जेकरा जे बुझाइल से लिखल हम आपन ऑइख , कान मुइन्द सब सहलों एकर बादू हम ककरो कुछ नाय कहली आर नाय ककरे सम्बन्धे दू लाइन लिखली जखन गोध होवत तखन दूध आर पानीक पता चइल जीतय हमू आपन आदि कविक पथे चइल रहल ही देखल जाय जे हम घोरठाय कते पारय – ही । ‘ खोरठा कालम ‘ हम शुरू करली जेटा” आईना ‘ में छपल , एखन ‘ प्रभात खबर ( धनबाद ) में छइप रहल हे । बड़का – बड़का विद्वानों कहल हथ जाव तक समय नाँय आवे चुप रहेक चाही जोदी तोर साहित्ये दम हो तोरा कोय रोके नाय पारतो । जकर शिष्ठ साहित्य रहत ओकर नाम इ जगते रहवे करत चाहे केतनो- हवा – पानी आवे ओकरा ऊ उड़वे  नंए पारत । आरो एगो बात हे जे विधिक बात हे , जे मानुष करे सेटाहों आलोचना खूब होवे – किन्तु ‘ आलोचको कखनु – कखनु फेल भय जा हथ।  जोदी सुरूज के कोय ओलोचना करे तो ओकरा कि । स्व ० पानुरी जी कते निराश भेय गेल हला जे आपन कविताक भावे कहल हला :

बढ़ाई के छोटानागपुरेक गउरब

हम्हीं परली मलीन बाह रे !

राजनीत तोर गाय लाज

तोंय गंधे पारे

कुकरेक माथे पाग

काल पारे

महाकविक हाँथ

गनेशेक कलम छीन “

आइझ नाय तो काइल माने होतो

गोड़ेक काँटा दाँते धइर टाने होतो ”

सेले हम बालीडीह खोरठा कमिटी आर ‘ लुआठी ‘ संपादक श्री ‘ आकाशखूँटी ‘ जीक धइनबाद दे हिये , जे श्री निवास पानुरीजीक एतना दिन से नुकाइल चपताइल साहित के उजाआर केलका।(अर्जु नपनुरी)

ई सच है कि श्री निवास पनुरी जी के पांडु लिपि  कईगो रचनाक संकलन आकाश खूंटी केलका आर खोरठा भाषक प्रेमी ठीन ला के रखलका। 07 अक्टूबर 1986 ई ० के अचक्के हिरदय गति रूकेक सिराइ गेला । मेंतुक आइज खोरठा साहितेक बोड़ गाछ बराइल – पसराइल देखा हे सेटा पानुरी जीक रोपल – पटवल आज हम उकर फल तोड़ रहल ही ।

 

खोरठा भाषा की लिपि | खोरठा भासाक लिपि | Khortha bhasha ki lipi

श्रीनिवास पानुरी खोरठा भाषा साहित्य में किस काल को कहा जाता है

पनुरी काल :-1950 ले 1986 बछर  तइक।

श्रीनिवास पानुरी का जन्म झारखंड के किस जिले में हुआ है

बरवाअडा , धनबाद

श्रीनिवास पनुरी का जन्म कब हुआ है

25 दिसम्बर 1920

श्रीनिवास पनुरी जी का मृत्यु कब हुई थी

  पनुरी काल :-1950 ले 1986 बछर  तइक।

श्रीनिवास पनुरी जी द्वारा खोरठा भाषा में कौन-कौन सी रचना की है

मेघदूत ( अनुवाद ), रामकथा अमृत, बाल किरण, आँखिक गीत, रक्ते रांगल पांखा, मातृभाषा ( पत्रिका ) ,खोरठा ( पत्रिका ) ,चाभी काठी ( नाटक ) ,उदवासल कर्ण ( नाटक ) ,सवले बीस ( कविता संग्रह ).

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