संथाली लोक कथा किसान और केकड़ा | santhali lok katha kishan or kekda |folk tale |folk story

santhali lok katha kishan or kekda :- किसी गांव में एक किसान रहता था । उसके यहां एक हरवाहा (हल चलाने वाला मजदूर) था।  हरवाहा ईमानदार और बहुत मेहनती था। जिसके कारण उसका मालिक बहुत खुश रहा करता था। एक बार बरसात के दिनों में हरवाहा (हल चलाने वाला मजदूर)खेतों में काम करने गया। खेत जोत लेने के बाद वह कुदाल से खेत की मेड़ पर मिट्टी चढ़ाने लगा। उसी समय मिट्टी काटते हुए उसे एक बड़ा-सा केकड़ा मिला। तब उसने सोचा कि उस केकड़े को घर ले जाकर पकाकर खाया जाए। ऐसा सोचकर उसने उस केकड़े को जिंदा ही पत्तों में लपेटकर, हल के जुए की एक ‘जोती’ (रस्सी) से बांधकर एक झाड़ी में रख दिया और अपने काम में लग गया; लेकिन काम समाप्तकर घर जाते समय उस केकड़े को ले जाना वह भूल गया।वह केकड़ा बंधन से छुटकारा पाने के लिए छटपटाता रहा; किंतु, कसकर बंधे रहने के कारण वह भाग नहीं सका । रात हो जाने पर वह केकड़ा  बहुत रोने लगा और  रो रो कर कहने लगा –

बाबा, मिट्टी काटते हुए हरवाहा ने, बाबा, कुदाल चलाते हुए हरवाहे ने,

बाबा, हरवाहे ने मुझे पकड़ा था; बाबा, हरवाहे ने मुझे बांधकर छोड़ दिया है, बाबा, मैं छूटने के लिए छटपटा रहा हूं।

संयोग से उसी समय वह किसान अपने खेत की ओर गया। तब उसे उस केकड़े का रुदन सुनाई पड़ा; वह समझ नहीं पाया कि रात में कौन वैसा रुदन कर रहा होगा ! आस-पास में तो कोई दिखाई नहीं पड़ रहा था। उसे लगा कि शायद उसे सुनने में ही गलती हुई हो। इसलिए वह किसान बिना कुछ खोजबीन किया किए घर लौट आया और सो गया।

सुबह हो गई। वह हलवाहा हल-बैल जोड़कर खेत पर जाने की तैयारी करने लगा। तभी उसने देखा कि हल के जुए की एक ‘जोती’ तो नहीं है। तब उसे याद आई कि उस ‘जोती’ से तो केकड़े को बांधकर उसने झाड़ी में रख दिया था।  हो सकता है , वह (‘जोती’) वहीं रह गई है। और, जब वह हलवाहा हल-बैल लेकर खेत पर पहुंचा तब उसने देखा कि उस ‘जोती’ से बंधा हुआ वह केकड़ा झाड़ी में ही है। तब तक वह केकड़ा मर चुका था। अतः, वह हलवाहा अपनी ‘जोती’ खोलकर अपने काम में लग गया।

कुछ समय के बाद उस हलवाहे का मालिक (किसान) जब खेत पर पहुंचा तब उसने हलवाहे से पूछा, “पिछली रात इस ओर से धीरे-धीरे किसी के रोने की आवाज आ रही थी; लगता था कि कोई ‘बाबा-बाबा’, ‘हलवाहा-हलवाहा’ कहते हुए बिसूर रहा हो ! परंतु, आस-पास में कोई दिखाई नहीं पड़ा। इसी से मुझे लगा कि संभव है मुझे सुनने में ही गलती हुई हो।” उस हलवाहे ने कहा, “कल मिट्टी काटते हुए मुझे यहां एक केकड़ा मिला

था। मैंने उसे जिंदा ही पत्तों में लपेटकर, हल के जुए की एक ‘जोती’ से बांधकर उस झाड़ी में रख दिया था। सोचा था कि घर जाते समय उस केकड़े को लेता जाऊंगा और पकाकर खाऊंगा; परंतु, घर जाते समय मैं उसे ले जाना भूल गया था। कहीं वही केकड़ा तो उस तरह बिसूरता नहीं था !”

किसान ने अपने हलवाहे से पूछा, “वह केकड़ा जिंदा ही है या मर गया ?” हलवाहे ने कहा, “नहीं, मालिक! वह जिंदा नहीं है, मर गया।”

किसान ने उस केकड़े को जाकर देखा तो सचमुच मर गया था । लेकिन केकड़े के बच्चे सब जिंदा थे यह देखकर किसान रोने लगा और अपने हरवाहे को कहा की ऐसी गलती जीवन में कभी मत करना । किसी को जिंदा पकड़ कर उसे बंद कर रख देना सबसे बड़ा पाप है,उसे नर्क मे भी जगह नही मिलता है। किसान और हरवाहे ने काफी पश्चाताप किया और उसके बच्चे को बगल के तालाब में जाकर छोड़ दिया। उसके बाद किसन के घर हल चलाने का कम छोड़ दिया और एक संन्यासी बन गया । यह रूप देखकर किसान ने अपने हरवाहे से कहा कि तुम ऐसा क्यों कर रहे हो तो उनको उसने कहा कि मैं तपस्या कर इस केकड़े को जिंदा करने का प्रयत्न करूंगा । इस पर किसान ने कहा की विधाता ने सभी का जीवन और मृत्यु लिखकर पृथ्वी लोक में भेजा गया है किसी को जीवन देना मरना ईश्वर के इच्छा से होता है । इसलिए ईश्वर के विरुद्ध या प्रकृति के विरुद्ध हम लोग कोई काम नहीं कर सकते हैं । इसलिए घर लौट चलो किंतु हरवाहे ने किसान के घर जाने से मना कर दिया और वह इस तालाब के किनारे सन्यासी के भेष में जीव जंतुओं की सेवा करने लगा ।

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