रोहतासगढ़ का किला (Rohtasgarh fort ) कैमूर पर्वत श्रेणी के पठार पर समुद्र तल से 1490 फीट की उँचाई पर अवस्थित अति प्राचीनकिला है। यह किला बिहार राज्य के रोहतास जिले में अवस्थित है । इतिहासकारों मानना है कि इस किले का संबंध सतयुगी सूर्यवंशी राजा हरिश्चन्द्र के पुत्र रोहिताश्व के साथ है। उसके बाद उरांव जनजातीय ने यहां अपनी राजधानी बनाई जो ई. पूर्व 600 से ईस्वी सन् 1300-1400 तक शासन किया । हालांकि यहां निर्मित इस किले के निर्माण के संबंध में कोई विशेष जानकारी नहीं है । सन 1539 ईस्वी में शेरशाह ने एक हिंदू राजा से इस किले पर आधिपत्य स्थापित किया था । उसके बाद मुगलों का आधिपत्य रहा और मध्यकाल के आसपास पृथ्वीराज चौहान का संबंध इस किले से रहा है । मुगलों के शासनकाल में रोहतासगढ़ (Rohtasgarh fort ) किले का विस्तार होता गया और आज यह किला स्मारक के तौर पर जीर्ण शिर्ण अवस्था में सोन नदी के ऊपरी भाग पर कैमूर की पहाड़ी शोभ्यमान और पर्यटकों को अपने और आकर्षित कर रहा है ।
रोहतासगढ़ किला तक पहुंचने के रास्ते :-
How to reach Rohtasgarh Fort :-
यह किला बिहार राज्य के रोहतास जिले में अवस्थित है ।यंहा तक पहुँचने के लिए चार घाट या दरवाजे, रास्ते हैं –
1. राजघाट – यह पहाड़ी का दक्षिणी मार्ग है। घाट दीवार के समान खड़ा है। चढ़ने के लिए सीढ़ीनुमा रास्ते बने हुए हैं। चढ़ाई के ऊपर पहली चौकी बनी हुई थी, उसके बाद आगे जाने के लिए समतल जमीन है। यह राजघाट का शाही दरवाजा कहलाता है। यह दरवाजा बहुत ही सुन्दर, भव्य और मेहराबदार बना हुआ था।
2. मेढ़ा घाट – यह घाट तलहटी में बसे अकबरपुर ग्राम के पश्चिम में है। रोहतासगढ़ किले तक जाने का सीधा और सबसे नजदीक का रास्ता है। ऊपर में किला पहुँचने के पहले मेढ़ा घाट का दरवाजा था जिसमें किलाबन्दी थी। ये अभी टूट-फूट गये हैं। यहाँ पहरेदार सैनिक रहा करते थे। तोप तथा बन्दूक चलाने के लिए छेद बने हुए हैं। दरवाजे के ऊपर में पहरेदारों के लिए कमरे बने हुए है।
3. घोड़ घाट – गाजी दरवाजा के नाम से भी जाना जाता है ।यह पहाड़ी का उत्तरी दरवाजा है। इसी रास्ते से होकर शेरशाह ने किले पर चढ़ाई की थी। यह रास्ता सासाराम से नजदीक पड़ता है।
4. कठौतिया घाट – यह पश्चिम घाट है। यह कठौतिया दरवाजा कहलाता है। इसी रास्ते से होकर अधौरा पर्वत श्रेणी पर जाया जाता है। दोनों पर्वतों के बीच एक छोटी-सी जगह रेहल-रेहला के पास पर्वतें जुड़ी हुई हैं। अकबर के शासन काल में राजा मानसिंह ने सुरक्षा की दृष्टिकोण से इस दरवाजा को सुदृढ़ और सुरक्षित बनवाया था।
सभी दरवाजे की विशेषता
- दरवाजों पर चिकनाई पत्थरों से मजबूत किलेबन्दी की गई थीं।
- उसके ऊपर बुर्जियाँ बनी थीं।
- रक्षकों के लिए कमरे बने हुए थे।जहाँ से रक्षक दुश्मनों पर नजर रखा करते थे।
- मेहराबों में तोप तथा बन्दूक चलाने के लिए छेद बने हुए थे। ऐसी व्यवस्था के कारण दुश्मन सहज से किले तक पहुँच नहीं पाते थे।
- प्राकृतिक बनावट के कारण यह किला देश के अन्य किलों से बिल्कुल अलग है
रोहतासगढ़ किले में सोन नदी का महत्व :-
Importance of Son River in Rohtasgarh Fort :-
प्रकृति ने इस किले को और सुरक्षित और सुन्दर बनाने के लिए दक्षिण से पूरब सोन नदी है।पश्चिम उत्तर में नदी बहती है जो इस किले की सुन्दरता और सुरक्षा में चार चाँद लगा देती है। यह 138 मील पर महानदी तथा मध्य प्रदेश की अन्य-अन्य नदियों के जल को समेट कर गोमेत संगम के बाद कैमूर पर्वत के दक्षिणी तलहटी की और बहती है। इसके बाद मिर्जापुर होकर मध्यप्रदेश के क्षेत्र को छोड़कर पलामू प्रमंडल के रंका भवनाथपुर से जाकर सोनपुरा पहुँचती है जहाँ पर कोयल नदी मिल जाती है। जिसे सोनपुरा संगम के नाम सेप्रसिद्ध है। इसके बाद इसकी धारा किले के दक्षिणी एवं पूर्वी भाग में पहुँच कर किले की सुरक्षा कर शोभा बढ़ाती है।
रोहतासगढ़ किले का इतिहास : –
History of Rohtasgarh Fort in hindi : –
उरांव जनजातियों के ऊपर किए गए शोध के अनुसार शोधकर्ताओं के द्वारा रोहतासगढ़-रूइदासगढ़ में इनका शासन करीब 2000 वर्षों तक ई. पूर्व 600 से ईस्वी सन् 1300-1400 तक शान्तिपूर्ण रहा। यह समय इनका स्वर्ण युग था। वे प्रकृति पूजक होने के कारण इस किले पर अपना कोई स्पष्ट छाप नहीं छोड़ पाए हैं । कोई लिखित इतिहास और शिलापट्ट नहीं हैं। रूइदासगढ़ में इनके रहने का प्रमाण उस क्षेत्र में लगभग 85 गाँवों और 404 टोलों का होना, जिन में अभी तक वहाँ उराँव वास करते हैं। इसके अलावे गढ़ के प्रांगन में उनके लगाये गये पाँच करम के पेड़ों में अभी भी चार करम के विशाल पेड़ मौजूद हैं। बगल में इनके अखाड़े के पास एक इमली का पेड़ मौजूद है।
मुगल बादशाह अकबर के शासन काल में राजा मानसिंह ने इस गढ़ को बिहार, बंगाल और उड़ीसा की राजधानी बनायी थी ,जो 1580 से 1600 ईस्वी तक राजधानी रही इसी समय राजा मानसिंह ने गढ़ और चारों द्वारों में किले बंदी की थी। किला उँचे पहाड़ पर बना सुरक्षित है तब भी दुश्मनों के आक्रमण से बचने के लिए इसे और सुदृढ़ होने के लिए जगह-जगह पर मेहराबदार बुर्जियाँ बनवायी गई थीं। मुख्य महल के सामने खड़े पहाड़ों के किनारों को मजबूत पत्थरों से जोड़कर बीच-बीच में छेद रखा गया है। जहाँ से छिप कर दुश्मनों को देखते ही तोप और बन्दूकें चलायी जाती थीं।
रोहतासगढ़ किले का विशेषता :
Features of Rohtasgarh Fort :
रोहतासगढ़ का प्राचीन महल डॉ. श्याम सुन्दर तिवारी ग्राम बम्हौरा-मोहनिया जिला कैमूर-भभुआ के इतिहासकार “जनजातीय मुकुट रोहतासगढ़” में किले का वर्णन बहुत ही बारीकी और सुन्दर ढंग से किया है- ये इस प्रकार हैं-
1. किलेदार महल – यह महत्वपूर्ण महल राजघाट दरवाजे के पश्चिम में जीर्ण-शीर्ण अवस्था में है। यह दरवाजा 28.40 मीटर लम्बे इतने ही चौड़े और 3 मीटर उँचे एक आँगन में है, जिनमें तीन ओर कमरे बने हैं। कमरे भंडार गृह और रक्षकों के लिए बने थे। इसके अहाते के उत्तरी-पूर्वी कोने में एक दो मंजिला कक्ष बना है। इसके निचले कक्ष के दो ओर पश्चिम तथा दक्षिण की ओर बरामटें हैं जिनमें दोनों ओर कक्ष के दो दरवाजे हैं। बरामदों में दो-दो चौकोर स्तम्भ हैं। ऊपरी मंजिल पर भी एक कक्ष है, जिसकी छत शंक्वाकार है। इसके चारों ओर झरोखेनुमा दरवाजें हैं। ऊपर जाने के लिए उत्तर की ओर से सीढ़ी बनी है। इसके सामने पश्चिम में अहाते में ही सुरंगनुमा फाँसी घर है।
2 .पंच महल – किलेदार महल – से अलग दक्षिण-पूरब में एक तीन मंजिला महल 11 मीटर लम्बा, इतना ही चौड़ा तथा 13 मीटर ऊँचा है, वह एक अलग आँगन में है। इस महल में निचली मंजिल पर बीच में एक केन्द्रीय कक्ष बना हुआ है, जो 6 मीटर लम्बा और 5 मीटर चौड़ा है तथा 2.2 मीटर ऊँचा है। अंदर , बीच के कक्ष से होकर दक्षिण के एक छोटे से कक्ष में जाने के लिए एक दरवाजा है। वहाँ से बाहर निकलने के लिए दक्षिण में कोई दरवाजा नहीं है। केन्द्रीय कक्ष की छत अर्धगुंबदाकार है तथा उनमें मेहराबदार आकृतियाँ बनी हैं। इस महल को इसकी अधिक ऊँचाई के कारण “पंच महल” कहा जाता है।
2. राजभवन – यह रोहतास किले का मुख्य महल है जिसका अधिकांश हिस्सा मानसिंह द्वारा निर्मित कराये गये हैं। यह हिन्दू वास्तुकला का अनुपम उदाहरण है। इसकी ओर महल में प्रवेश के पूर्व इसके पश्चिम में बने विशाल प्रांगण की ओर 520 फीट लम्बा तथा पूरब से पश्चिम 274 फीट चौड़ा है। इस प्रांगण के तीन तरफ दक्षिण, पश्चिम और उत्तर सैनिकों के रहने के लिए कुल 74 मेहराबदार बैरक बने हुए हैं, जो एक मंजिला है, इनकी छत सपाट है।
पश्चिम और उत्तर में खुली हुई है। यह स्थान नौवातखाना या संगीत हॉल के रूप में प्रयोग होता था। दरवाजे के ऊपर दोनों ओर चार-चार खंभों पर बुर्जियाँ बनी हैं। मुख्य महल के इसी प्रांगण में उराँव राजाओं द्वारा पाँच करम के वृक्ष लगाये थे ताकि उनकी डालियों का करमा पर्व में उपयोग किया जा सके। इन पाँच करम वृक्षों में से आज भी चार विशाल करम वृक्ष खड़े हैं। उराँव भाई आज भी रोहतासगढ़ के इन करम वृक्षों का दर्शन करने के लिए आते हैं। इन्हें देखकर रोहतासगढ़ और पूर्वजों को धन्य मानते हैं। करम डालियों की पूजा करमा त्योहार में करके अपने जीवन में अच्छे कर्म करने की अभिलाषा रखते हैं।
चौकार तालाब- मुख्य महल के पश्चिमी दरवाजे के बाहर उसके उत्तर-पूरब भाग में एक बड़ा गहरा और चौकार तालाब है। इन्हें उराँव राजाओं ने नहाने, धोने, पशुओं को पानी पिलाने के लिए अपने शासनकाल में बनाया था जो अभी भी मौजूद है। इसी तालाब के पानी का व्यवहार राजभवन में होने लगा था। तालाब से लेकर राजभवन तक नालियाँ बनी हुई हैं। इस बड़े तालाब के ठीक नीचे और एक छोटा तालाब है। इसमें भी लबालब पानी भरा रहता है। बड़ा तालाब का पानी तो सुखता नहीं है
राजभवन का मुख्य दरवाजा – यह राजभवन का मुख्य दरवाजा हथिया पोल, के नाम से जाना जाता है । यह मेहराबदार दरवाजा मजबूत और सुन्दर पत्थरों से बना है। यह बहुत ही सुन्दर और भव्य है, जिसकी चौड़ाई तीन मीटर है। इसके ऊपर दोनों ओर कमल के फूल बने हुए हैं। दरवाजे को बाहर की ओर से एक अन्य मेहराब से सज्जित किया गया है। दरवाजे के ऊपर और इस मेहराब के बीच मे एक झरोखा है। नीचे दरवाजे के दोनों ओर पत्थरों को काटकर दो सुन्दर हाथी बनाये गये हैं। इसी कारण इसे हथिया पोल कहा जाता है।
इसी दरवाजे के ऊपर एक आयताकार शिला पट्ट पर फारसी और संस्कृत के शिलालेख में अंकित है कि इस दरवाजे को अकबर बादशाह के शासन काल में 1596 ई. में राजा मानसिंह द्वारा निर्मित कराया गया।
बारादरी – हथिया पोल के भीतर दक्षिण की ओर निकलने पर एक चौक के बाद बारादरी है चौक के पश्चिम भाग में आज जो चबूतरा है, पहले वहाँ गैलेरी थी। बारादरी बहुत ही सुन्दर तीन मंजिला भवन हैं। यह पूरब से पश्चिम 116 फीट तथा उत्तर से दक्षिण 91 फीट लम्बे-चौड़े तथा 2 फीट ऊँचे चबूतरे पर बना हुआ है। दोनों सिरों पर यह अर्धगुंबदाकार तथा कलात्मक है।
रोशन सिद्धि का चौक- हथिया पोल के दक्षिण और बारादरी से उत्तर में स्थित बीच के चौक को रोशन सिद्धि का चौक कहते हैं। महिला रक्षकों (हिजड़ों) का आवास तथा रंग महल, यह हथिया पोल से सटे उत्तर-पूरब में एक आँगन के बीच कुछ कमरों का समूह है। इसका रास्ता दक्षिण में रोशन सिद्धि का चौक के एक छोटे से आँगन होकर जाता है। भीतर आँगन के दक्षिण में तीन कमरे हैं। सबसे पूरब का प्रवेश द्वारनुमा कमरा सुन्दर है। इसके उत्तर और पूरब में गैलेरी है। इसके पश्चिम में भी एक कक्ष है। ये दोनों संगीत-नृत्य शिक्षा देने के कक्ष हैं।
राजा का महल तथा तख्तपादशाही – यह महल हिजड़ों के आवास से सटे उत्तर में है। इसका भी आँगन है जो चारों ओर से घिरा है। यह आवास चार मंजिला है। निचले तल पर आँगन से पश्चिम में उत्तर-दक्षिण की ओर 52 फीट लम्बा तथा 11 फीट 9 इंच चौड़ा और कम ऊँचाई की छत का एक कक्ष है, जिसमें छः मेहराबें हैं।
शीश महल या आइना महल – शीश महल या आइना महल रानी के रहने का महल है। यहाँ पर रानी के लिए सारी सुविधाओं का इन्तजाम था। स्नान घर, रसोई, कपड़ा थोने, सिंगार और अन्य-अन्य सेवा संबंधी सुविधायें थीं। गर्म और ठंढे पानी के लिए हौज बना था। नाच घर और दीवाने खास का भी प्रबंध था।
रोहतासगढ़ किले में स्थित मंदिर :-
Temple located in Rohtasgarh Fort :
हरिश्चन्द्र मन्दिर -यह रोहिताश्व मन्दिर से थोड़ी दूर पर उत्तर-पश्चिम में पाँच फीट पाँच ईंच ऊँचे तथा 38 फीट चौकोर चबूतरे पर स्थितहै। यह शायद विष्णु मन्दिर था। इसकी खंडित मूर्तियाँ यहाँ पड़ी हुई हैं। वर्त्तमान में यहाँ एक काले पत्थर की प्रतिमा है जो थोती पहनी हुई है। पावों में पायल है तथा कमर में तलवार लटकी हुई है। इसके उत्तर में गणेश की प्रतिमा है। यहाँ के लोग इसे देवी या पार्वती मन्दिर कहते हैं।
गणेश मन्दिर – यह मन्दिर महल सराय से लगभग 300 मीटर दक्षिण पश्चिम में राजघाट के रास्ते में एक ऊँचे अधिष्ठान पर स्थित है। मन्दिर के ऊपर सुन्दर और विशाल स्तंभ है। मन्दिर के गर्भगृह में गणेश जी की मूर्ति रखी हुई है।
महादेव मन्दिर – यह मन्दिर गणेश मन्दिर से लगभग 100 मीटर की दूरी पर उत्तर-पूरब में स्थित है। इसके गर्भगृह में शिवलिंग स्थापित है। यह एक साधारण मन्दिर है। गर्भगृह 2.6 मीटर लम्बा-चौड़ा है।
रोहतासगढ़ किले में स्थित मस्जिदे :-
Mosques located in Rohtasgarh Fort
जमी या शेरशाही मस्जिद- यह मस्जिद गढ़ के महल सराय से 2 मील पश्चिम नागा टोली उराँव बस्ती के पास उत्तर-पश्चिम में है। इस मस्जिद का निर्माण शेरशाह के शासन काल में 1543 ईस्वी सन् में हुआ था। इसके लिए शिलालेख में 990 हिजरी अंकित है।
हब्स खाँ की मस्जिद- यह मस्जिद महल सराय के उत्तर में गाजी दरवाजे के पास गाजी मैदान में स्थित है। इसका निर्माण अकबर के शासन काल में 1578 में हुआ था। इसके शिलालेख में हब्स खाँ द्वारा निर्मित हिजरी 986 दर्ज है।
मदरसा – हब्स खाँ की मस्जिद–इसी मस्जिद के पीछे पश्चिम में मदरसा है। इसका 42 फीट 6 इंच लम्बा और 20 फीट 3 इंच चौड़ा एक बड़ा हॉल है। यहाँ मुस्लिम लोग नमाज पढ़ते थे।
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