राम किशुन सोनार (Ram Kisun Sonar)झारखण्ड के जाने माने खोरठा साहित्यकार , लोकप्रिय नाटक कलाकार, हारमोनियम वादक और गायक है। प्रारम्भ से अध्यन अध्यापन से जुड़े रहे है। शिक्षक पद से सेवानिवृत होने के बाद खोरठा भाषा के विकास के लिए लग गए है। उन्होंने कहा ” मैं ने अपने जीवन में अनुभव किया है कि सब कुछ नहीं मिल सकता है ,चाहे लाख प्रयत्न किया जाय और कभी कुछ अनायास भी मिल जाता है। सम्भव भी असंभव और असंभव भी सम्भव होते है “यह वाक्य मेरे जीवन पर चरितार्थ होता है।अपनी गरीबी संबंध में उन्होंने कहा – गरीबी ने मुझे खुब निचोड़ा है,खुब सीखाया- पकाया और खूब रूलाया । कहते हैं, किसी का दिन रखा नहीं रहता और ईश्वर हर किसी के पीछे रहते हैं । जीवन में भारी से भारी संकट आया लेकिन विकट परेशानी पर से आसानी से किनारे लगता चला गया । ईश्वर के प्रति आस्था, मिहनत कश होना, ईमानदारी, धैर्य और संतोष,प्रहसक प्रवृति का होना, गणित व संगीत से प्रेम, सहिष्णुता, लगनशीलता ये लक्षण मेरे जीवन के पूंजी थे ,जिनके बदौलत जीवन सफर आज तक नजाने कितने बिकटतम हाल-परिस्थितिं को झेलते हुए करीब -करीब सही सलामत आज यहां तक कट हीं गया ।चाहे मेरी परिस्थिति जो भी रही हो, समाज में हमेशा मुझे हर तबके से सम्मान, प्यार व सहानुभूति मिलता रहा जो मेरे दुःख निदान व सहन में कुरामीन बनता रहा ।अपने जीवन में मैं बडों का अच्छा आदेश पालक रहा, अतः कार्यालय सम्बन्धित कार्य का भी अनुभव प्राप्त भी कुछ है हीं । प्रायः मुझे हमेशा किसी न किसी वजह,बीते दिनों की घटनाएं व मुश्किलें स्मरित हो हीं जाती है और आत्मा कृतज्ञता पूर्ण एहसास करता है कि यदि मेरे जीवन में कुछ महान व्यक्तित्वों का कृपा न बरसता तो शायद मेरा जीवन सुख कर चरमरा जाता ।”
राम किशुन सोना (Ram Kisun Sonar)
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राम किशुन सोनार (Ram Kisun Sonar) का खोरठा साहित्य में प्रकाशित पुस्तकें
1 . रीझ रंग 2. रसेक धार 3. परासफूल
तीनों काव्य संग्रह प्रायः गीत माला है जिसमें भक्ति रस, देश प्रेम, श्रृंगार रस, हास्य एवं व्यंग्य,करूण रस,शिक्षा महत्व, नारी शोषण, भ्रूणहत्या, दहेज प्रथा,महंगाई,बिभीषिका, प्रेम रस, धरातली समस्या, भ्रष्टाचार, आजादी के मायने और दुरूपयोग,मानव स्वार्थ, प्रकृति सौन्दर्य,बन रक्षा तथा बन उजाड़ के परिणाम,कोरोना विभीषिका,पर्व त्योहार,ऋतु वर्णन,गीत के माध्यम से शिक्षण, राष्ट्रीय पताका एवं
झंडे की पुकार, सामाजिक व्यवस्था एवं समस्या आदि यथा सम्भव रस,विधा व विन्दु बिचार का समावेश किया गया है । प्रायः गीतो को हारमोनियम पर साध कर लिखा गया है, जिनमें सुर,लय,ताल का जगह है । रचनाओं में भाव सह गंभीरता को रखने का
यथा सामर्थ्य प्रयास किया गया है ।
राम किशुन सोनार (Ram Kisun Sonar) का गीत alphabet लागे रे,
Vowels and consonants तथा a एवं an का प्रयोग बताया गया है,जिसे राम किशुन सोनार ने प्रशिक्षण के दौरान प्रशिक्षण केन्द्र में प्रस्तुत किया तथा बताया कि इस तरह से गीत के माध्यम से बच्चों को व्याकरण की भी शिक्षा दी जा सकती है,एक शिक्षक महोदय ने इसी तरीके का अनुकरण करते हुए अपने विद्यालय में पढ़ाया,जिसे लगभग सभी टीवी चैनलों में प्रसारित किया गया और जिसकी प्रशंसा माननीय, फिल्मी सितारा महानायक अमिताभ बच्चन जी तथा सम्मानित विद्वान व महाकवि कुमार विश्वास जी ने भी भूरि – भूरि की ।
राम किशुन सोनार (Ram Kisun Sonar) का विद्यार्थी जीवन
- विद्यार्थी जीवन में भी प्रायः हर कार्य क्रमो में उन्हें पुरस्कृत व प्रोत्साहित किया गया ।।
दो सौ कविताऐं खोरठा तथा सौ से ऊपर गीत, कविता हिन्दी में लिखी गईं हैं । - गिरिडीह, हजारीबाग, धनबाद, जामतारा, बोकारो जिले केअनेक कवि सम्मेलनों व मुशायरों में भाग लेकर ताली बटोरने तथा प्रमाणन का अवसर प्राप्त हुआ ।
- किशोरावस्था से हीं विद्यालय या गांव में आयोजित नाटकों में भी भाग लेकर यश बटोरने का अवसर प्राप्त हुआ ।
राम किशुन सोनार (Ram Kisun Sonar) का जीवन्वृत
(हजारीबाग) जहां से मैं ने सत्र १९७२-१९७४ में शिक्षक प्रशिक्षण प्राप्त किया, प्रशिक्षण के दौरान तथा
जब तक नियुक्ति नहीं हुई मैं वहीं रह गया और ट्यूशन करके अपनी जीविका चलाता था, में हर सप्ताह मेरा सांस्कृतिक गोष्ठी व नाटक आदि आयोजनों में मेरा साहित्यिक, सांस्कृतिक वआयोजनात्मक योगदान रहता था । वहां मुझे सर्व सम्मति से सांस्कृतिक मंत्री चुना गया थाऔर प्रशिक्षण संस्था के अलावे ग्रामीणों ने भी अन्तर हिया सम्मान प्रदान किया ।जय शंकर स्मृति सम्मान समारोह२०२४ सम्मानित किया गया
परिवार व संतति
धर्म पत्नी —श्री मती शकुन्तला चंदन
प्रथम सुपुत्री —श्री मती संगीता चंचल
सहायक अध्यापिका, उ०म०वि०चेगरो
द्वितीय सुपुत्री —-श्रीमती अमिता मधुर
(खोरठा भाषा की प्रथम महिला , लोकगायिका जिन्हें खोरठा साहित्य संस्कृति परिषद , रामगढ़, झारखंड,भारत की ओर से खोरठा लोक विषयक गायन में प्रारम्भिक, महत्वपूर्ण योगदान के लिए खोरठा कला संस्कृति रत्न से सम्मानित किया गया है।
एकमात्र सुपुत्र——श्री राम पग विश्वास
(स्टेशन कन्ट्रोलर, दिल्ली मेट्रो कार्यरत)
तृतीय सुपुत्री—श्रीमती विजया भारती,
राम किसुन सोनार (Ram Kisun Sonar) जी का जन्म एक अत्यंत निहायत गरीब सीधा-सीधा पर सम्मान जनक सभ्य परिवार में हुआ था। समाज में स्थान गरीब पर एक आदर्श ,सहज एवं सर्वमान्य परिवार के रूप में था । मेरी जानकारी में हर किसी की आन्तरिक सहानुभूतिपूर्ण नजरिया मेरे परिवार के प्रति रहती थी ।उन्हों ने जीवन में किसी को भी अपने माता-पिता से लड़ते – झगड़ते नहीं देखा और न किसी को किसी तरह का आलोचना करते देखा,और ये हीं सब ईश्वरीय कृपा रही है कि रोते- हंसते अपने जीवन सफर को यहां तक तय कर लिया । जीवन की प्रचण्ड दुःख भरी ताप में भी अमन चैन आराम महसूस करते थे ।गांव में गणमान्य लोग राम किसुन सोनार (Ram Kisun Sonar)के पिताजी को प्यार से गांधीजी कहा करते थे ।राम किसुन सोनार (Ram Kisun Sonar) जी अपने पिता के बारे में कहते है की मेरे पिता अपने जमाने के लोकप्रिय नाटक कलाकार, हारमोनियम वादक और गायक थे। दूसरे से सुना है कि उन्होंने बनारस से डाक द्वारा पीतल की दो बांसुरी मंगवाई थी ।वे एक अच्छे सात्विक बिचार के समझदार , मिलनसार और ईमानदार व्यक्ति थे पर गरीबी दुर्भाग्य के मारे थे ।उनके पास मेरे हिसाब से या मेरी जरूरत के मुताबिक देने को जरूर कुछ था पर मैं समयाभाव ,साधनाभावऔर शिक्षण के दौरान घर से बाहर विद्यालय छात्रावास में रहने से दूरी के चलते कुछ न ले पाया ।एक बार की बात है,गप-शप के दौरान मैं ने उनसे अपनी लाचारी परक इच्छा जाहिर करी कि मैंअभी पढ़ हीं रहा हूं,और आपकी स्थिति दयनीय है, और मेरे ऊपर कोई है भी नहीं, मुझे भी हारमोनियम सीखने का शौक था,पर शायद यह कचट रह जायगी, उन्होंने हंसते हुए बड़ी सहानुभूति पूर्वक बताया कि चिन्ता की कोई बात नही है,अभी जो करना है करो,अभी पढ़ना जरूरी है,हम रहें या न रहें, कोई दिक्कत नहीं होगी और हारमोनियम स्वतः बज जाएगा,समय आने दो । मैंने समझा, मुझे समय और परिस्थिति की लाचारी समझ दिलासा दे रहें हैं,मैंने भी बात को मोड़ दिया,मगर जब मुझे पहली बार ट्रेनिंग स्कूल में,परम आदरणीय श्री हक साहब (श्री शमीमूल हक) से निवेदन पूर्वक दस मिनट के लिए कालेज का हारमोनियम मांग की,जो मुझे बहुत प्यार देते थे, हारमोनियम मिला,अपने चौकी पर लाया, ईश्वर साक्षी,ऊंगली रखते हीं गीत बजना शुरू हो गया, मैं आध-आध मिनट पर गीत बदलता गया और कुछ कट-कटकर सहजता से सब गीत बजता रहा,फिर न मैं ने हारमोनियम वायदे के मुताबिक वापस किया और न सर जीने मांगा। फिर क्या था, मैं रात -रात भर सप्ताह दिन तक अकेले बिना लाइट का,दूर बाहर एक बत्ती जलती थी, बाहर -भीतर होने का वही एक सहारा था ,हारमोनियम के साथ खेलता रहा ।
राम किसुन सोनार (Ram Kisun Sonar) एक और घटना का जीकर जिक्र किया है – दुर्भाग्य बस बुखार आ गया और हारमोनियम वापस कर घर आ जाना पड़ा । बात १९७४ की है,जब श्री जय प्रकाश नारायण आन्दोलन के चलते कालेज में हड़ताल था,सारे साथी घर चले गये थे, मैं अकेले भुरकुंडा से वापस आ गया था, चितरपुर ट्रैनिंग स्कूल से ट्रेनिंग कर रहा था, मैं ट्यूशन करके अपनी जीविका व खर्च चलाता था ,तब मैंने महसूस किया कि पिताजी ने मुझे क्या कहा था । मां एक सीधी-सादी, मिहनत कश, ईमानदार और मिलनसार हंसमुख महिला थी । गरीबी ने कभी साथ नहीं छोड़ा, गरीबी को अपनी बहन मानती थी । मुझे याद है,, अभाव में अधिकांश दिन मेरे यहां दिन को भोजन नहीं बनता था , मैं कक्षा तीन या चार में था,तब से ही मैं ट्यूशन पढाता रहा और यह क्रिया सेवा निवृत्ति के करीबन नौ-दस साल पहले तक चली ।अन्त में विद्यालयी प्रधानाध्यापकीय कार्य भार अत्यधिक बढ़-बढ़ जाने से इस कार्य से मुक्ति लेना पड़ा । वैसे तो आशीर्वादक
महान विभूतियों की गिनती कम नहीं है फिर भी कुछ मेरे ईश्वर यथा,स्व०घनश्याम महतो -मेरे मध्य विद्यालयी शिक्षक व ग्रामीण,स्व० अर्जुन प्रसाद दाराद प्रधानाध्यापक, लंगटा बाबा उच्च विद्यालय मिर्जागंज,श्री गिरिवर नन्दन प्रसाद,-विज्ञान शिक्षक , लंगटा बाबा उच्च विद्यालय मिर्जागंज,श्री ललन राय,श्री अलिजान अंसारी अधिवक्ता, डिस्ट्रिक्ट कोर्ट गिरिडीह, श्री शमशूल हक, प्राचार्य, पारसनाथ महा विद्यालय डुमरी
राम किसुन सोनार (Ram Kisun Sonar) पाठको को सन्देश दिया है की – सब कुछ नहीं मिल सकता है चाहे लाख प्रयत्न किया जाय और कभी कुछ अनायास भी मिल जाता है। सम्भव भी असंभव और असंभव भी सम्भव होते है ।