राजा दलेल सिंह
जन्म :-16 वी सदी
जन्म :- बादाम हज़ारीबाग़
पिता :- रामसिंह द्वितीय
राजा:- कर्णपुरा
राजा दलेल सिंह की रचना:- शिव सागर ,राम रसावन, राजा रहस्य, गोविंद लीला अमृत
राजा दलेल सिंह ( Raja dalel singh) खोरठा पद्य – साहित्य का विकास रामगढ़ राजा दलेल सिंह के रचनाओं से प्रारम्भ मानी जाती है । 16 वीं , 17 वीं शताब्दी में पूरे भारत में भक्ति आन्दोलन की बयार बहरही थी । ऐसे में झारखण्ड प्रदेश इस बयार से मुक्त नहीं था । वरन यहाँ भी भक्ति आन्दोलन की वह मोहक बयार मंद – मंद बह रही थी । सगुण और निर्गुण भक्ति की दोनों धारायें इस क्षेत्र को भी मजबूती से प्रभावित किये हुए थी । जिसका परिणाम है कि इस क्षेत्र में भी कई उत्कृष्ट साहित्यिक रचनाएँ रची गई और इसका गौरव रामगढ़ राज्य के पाँचवीं पीढ़ी के राजा दलेल सिंह ( Raja dalel singh) ( दल साह ) को जाता है । उन्होंने शिवसागर शीर्षक से एक महाकाव्य एवं अन्य रचनाएँ , राम रसार्नव , राजा रहस्य और गोविन्द लीलामृत काव्य की रचना की थी । वर्तमान भारत में अधिकाधिक प्रयुक्त होने वाली भाषाओं में से अधिकांश का जन्म मध्य युग में हुआ था । भक्ति आन्दोलन के जोर पकड़ने के फलस्वरूप क्षेत्रीय भाषाओं के विकास में सहायता मिली । क्षेत्रीय भाषाओं का विकास क्षेत्रीय तथा स्थानीय शासकों के द्वारा उन्हें दिये गये संरक्षण के कारण भी हुआ । राजा दलेल सिंह ( Raja dalel singh)प्रतापी राजा ही नहीं थे , बल्कि शिवभक्त और कवि भी थे । सात सौ पृष्ठों के इस शिवसागर महाकाव्य में बारह हजार दोहे और चौपाईयों हैं । इसमें उन्होंने शिव – पार्वती , लक्ष्मी – पार्वती , गणेश , गंगा , गणेश चन्द्रमा आदि समस् हिन्दू मिथकों को समावेषित किया है । शिवसागर का आरम्भ इन पंक्तियों में हुआ है
गुरूपद पदुम पराग लय , सिरधारी बारेवारा
दियो उदधि नर रूप जो विसनु संभु करतार ।।
मुख्य वृक्षावैवर्त लै कथा आरम्भ कीन्ह ,
श्रुति , स्मृति इतिहास से चुनि चुनि मत लीन्ह ।।
शिवसागर में राजा दलेल सिंह ने इसके रचना स्थल के बारे में उल्लेख किया है
शिव गाँठ बसे सुख पाई , ताही थल में रह कथा बनाई
शिव के चरित शिवय शिव धामा,राखेउ शिवसागर तासू नामा
मुनी हरमुख दिन चन्द लै संवत संख्या दीन्ह l
अक्षय तीज गुरूवार को , चरीत भीखीये लीन्ह।l
अर्थात् मुनि सात हैं हरमुख अर्थात् शिव के पाँच मुख हैं और दिन सात हैं । अगली पंक्ति में संवत संख्या दी गई है । अर्थात सात , पाँच , सात यानी संवत 1757 अक्षय बीज अर्थात् बैशाख का तीन दिन और दिन था गुरूवार । जब इस महाकाव्य की रचना प्रारंभ हुई।
शिवसागर का रचनाकाल हिन्दी साहित्य के भक्ति काल उतरार्ध का काल था । वस्तुतः भक्तिकाल एवं रीतिकालीन साहित्यिक प्रवृतियों के दर्शन होते हैं । भाषा में अवधि का प्रभाव है , किन्तु गहराई में जाने पर खोरठा भाषा के दर्शन बखूबी होता हैं । महाकवि दलशाह की अन्य रचनाओं में खोरठा भाषा विशुद्ध रूप में पाई जाती है ।
महाकवि दलशाह ने शिवसागर में ही अपने वंश के संबंध में लिखा है । हेमन्त सिंह सुमति सिर जाता , देश करन पुरा के राजा राम सिंह तिहकर सुत भयेउ , दान कृपाण , धर्म जस लयेउ तासु तनय हम सभ गुन , थोड़ा , नाम दलेल सिंह भी मोरा । शिवसागर का आरम्भ इन पंक्तियों में हुआ है राजा दलेल सिंह शिवसागर की रचना काल के संबंध में पहेलियों में गुरूपद पदुम पराग लय , सिरधारी बारेवारा दियो उदधि नर रूप जो विसनु संभु करतार । चौपाई- प्रणवो गनपति के पद दोउ , शिवदर्शन शिवदायक भेउ मंगल उदधि विधा के हर्ता , संतत भगत मनोरथ भर्ता ज्ञानी प्रवर ज्ञान के दायक , ज्ञान गम्य गुणनिधि गणनायका गजमुख एक रतन छवि पाई , मुख चम्बन सुरसरि जनु आई ।। भाल लाल सिन्दुर भरी , दीरग सुंड सुहाया
राजा दलशाल ( दलेल सिंह ) के पुत्र रूद्र सिंह भी कवि थे । उन्हें राजकाज मन नहीं लगता था । अतः पिता के अनुमति लेकर वृन्दावन में सन्यासी जीवन व्यतीत करने लगे थे । ‘ ज्ञान सुधाकर ‘ इनकी रचना कही जाती है , किन्तु उदाहरण उपलब्ध नहीं है ।
दरबारी कवि ,पद्मदास
राजा दलशाह के समय ही उनके दरबारी कवि पद्मदास , पिता दामोदर दास थे । इन्होंने राजा के आदेश से उनके पुत्र रूद्र सिंह के लिए हितोपदेश का खोरठा पद्यानुवाद किया था । इनकी दूसरी उपलब्ध पुस्तक ‘ काव्यमंजरी ’ है
इस प्रकार हम देखते है खोरठा भाषा जो झारखंड की एक प्रमुख क्षेत्रीय भाषा है।इस भाषा को शिस्ट रूप देने में राजा महाराजा भी आगे आये हैं।राजा दलेल शाह की रचना को नागपुरी भाषा में लिखे जाने का वर्णन नेट पर मिलता है ।वह सारा सर गलत है ,क्योंकि इनका राज पाठ खोरठा भाषा भाषी क्षेत्रो में था तो स्वभाविक है कि उसी क्षेत्रीय भषा बोलेंगे और लिखेंगे।इस प्रकार इनकी रचना में खोरठा भाषा का विशुद्ध रूप देखा जा सकता l
रामगढ राजाओ में प्रख्यात कवि को थे ?
राजा दलेल सिंह
राजा दलेल सिंह उप नाम?
दल साह
राजा दलेल सिंह की रचना का नाम क्या है?
शिव सागर ,राम रसावन, राजा रहस्य, गोविंद लीला अमृत
किस क्षेत्रीय भाषा का प्रभा इनकी रचना में है?
खोरठा भाषा
राजा दलेल सिंह का दरवारी कवि कौन थे?
दरबारी कवि ,पद्मदास