Preamble of Indian Constitution | भारतीय सविंधान की उद्देशिका

प्रस्तावना ,भारतीय संविधान (Preamble of Indian Constitution) की आत्मा है। उद्देशिका शामिल करने का उद्देश्य है, की भारत का संविधान किस प्रकार कि सरकार की स्थापना करत तथा नागरिकों को किस प्रकार की स्वतंत्रता और अधिकार प्रदान करता है। संविधान का स्रोत क्या है ? तथा संविधान अंगीकृत करने की तिथि इत्यादि का उल्लेख प्राप्त होता है।भारतीय संविधान की उद्देशिका को केशवानंद भारती बनाम केरल राज्य के मामले में यह निर्णय लिया गया है, कि भारतीय संविधान के अनुच्छेद 368 के तहत उद्देशिका को संशोधन किया जा सकता है। किंतु उद्देशिका का जो भाग संविधान के मूल ढांचे के अधीन आता है उसका संशोधन नहीं किया जा सकता है। 42 वें संविधान संशोधन 1973 ईस्वी में संविधान की उद्देशिका में समाजवादी पंथनिरपेक्ष तथा अखंडता शब्द को जोड़ा गया है।

भारतीय संविधान की उद्देशिका (Preamble of Indian Constitution) इस प्रकार है

हम भारत के लोग, भारत को एक संपूर्ण प्रभुत्व संपन्न समाजवादी, पंथनिरपेक्ष, लोकतंत्रात्मक गणराज्य बनाने के लिए तथा उसके समस्त नागरिकों को ;

समाजिक,  आर्थिक और राजनीतिक न्याय, विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्म और उपासना की स्वतंत्रता, प्रतिष्ठा और अवसर की समता प्राप्त करने के लिए, तथा उन सब में व्यक्ति की गरिमा और राष्ट्र की एकता और अखंडता सुनिश्चित करने वाली बंधुत्व को बढ़ाने के लिए दृढ़संकल्प होकर अपनी संविधान सभा में आज दिनांक 26 नवंबर 1949 ई. (मिति मार्गशीर्ष शुक्ल सप्तमी संवत 2006 विक्रमी) को एतत  द्वारा इस संविधान को अंगीकृत ,अधिनियमित और आत्मा अर्पित करते हैं।

प्रस्तावना की संपूर्ण व्याख्या इस प्रकार की जा सकती है

हम भारत के लोग:-  संविधान में उल्लेखित हम भारत के लोग का अर्थ है, कि शासन की संपूर्ण सत्ता जनता में निहित है। अर्थात जनता का शासन और जनता के लिए शासन । दूसरे शब्दों में हम कह सकते हैं कि शासन की सर्वोच्च सत्ता जनता में  है।

संपूर्ण प्रभुत्व संपन्न:-भारतीय संविधान के उद्देशिक में उल्लेखित संपूर्ण प्रभुत्व संपन्न शब्द का अर्थ  होता है, कि संविधान  परिवर्तन के बाद भारत किसी बाहरी  शक्ति द्वारा नियंत्रित या शासित नहीं होगा।

समाजवादी:-भारतीय संविधान की उद्देशिका में उल्लेखित समाजवाद शब्द का अर्थ  राष्ट्रीयकरण ना होकर समान जनता के आय , प्रति स्थिति और जीवन स्तर के असमानता को दूर करना है।

पंथनिरपेक्ष :- भारतीय संविधान के 42 वें संशोधन 1976 के द्वारा पंथनिरपेक्ष शब्द को जोड़ा गया है। उद्देशिका में से जोड़ने का मुख्य उद्देश है कि भारत को धर्मनिरपेक्ष नहीं बल्कि पंथनिरपेक्ष राज्य घोषित किया गया। जिसका अभिप्राय है की राज अर्थात दे में प्रचलित सभी धर्मों के साथ समानता के आधार पर व्यवहार करेगा तथा किसी धर्म को न तो संरक्षण प्रदान करेगा और ना तो किसी धर्म को राष्ट्र धर्म की मान्यता देगा।

लोकतंत्रात्मक गणराज्य :- भारतीय संविधान में लोकतांत्रिक गणराज्य की स्थापना का उल्लेख है। लोकतंत्रात्मक राज्य का तात्पर्य ऐसे राज्य से है। जिसकी सरकार की स्थापना जनता द्वारा की जाती है और जनता द्वारा निर्वाचित जनप्रतिनिधि जनता के हित के लिए सरकार को चलाते हैं।

सामाजिक आर्थिक और राजनीतिक न्याय :- उद्देशिका में यह स्पष्ट किया गया है कि भारत के लोगों को न्याय प्रदान किया जाएग। यह अन्याय सामाजिक आर्थिक और राजनीतिक होगा।

सामाजिक न्याय का तात्पर्य है भारतीय जनता में सामाजिक स्तर पर विभेद नहीं किया जाएगा।

आर्थिक न्याय का तात्पर्य है कि नागरिकों के मध्य आर्थिक स्थिति के आधार पर किसी प्रकार का भेदभाव नहीं किया जाएगा।

राजनीतिक न्याय का तात्पर्य है कि भारतीय नागरिकों को राजनीतिक जीवन में स्वतंत्रता प्रदान किया गया है। संविधान द्वारा सभी नागरिकों को व्यस्क  मताधिकार प्रदान करके,  राजनीतिक न्याय व्यस्था को  सुनिश्चित  की गई है। 

स्वतंत्रता :- भारतीय संविधान में स्पष्ट उल्लेख किया गया है , कि भारतीय नागरिकों को विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्म और उपासना की स्वतंत्रता प्रदान की जाएगी। इन स्वतंत्रता को प्रदान करने के लिए भारतीय संविधान के भाग 3 में उल्लेखित मौलिक अधिकार प्रदान किए गए हैं ।

प्रतिष्ठा और अवसर की समता :- भारतीय संविधान की उद्देशिका में स्पष्ट उल्लेख है कि प्रतिष्ठा और अवसर की समता सभी नागरिकों को प्रदान की जाएगी। इसके लिए संविधान निर्माताओं ने संविधान के भाग 3 मौलिक अधिकार के तहत अनुच्छेद 14 से 18 तक समता के अधिकार के संबंध में व्यापक प्रावधान किए हैं।

व्यक्ति की गरिमा तथा राष्ट्रीय एकता और अखंडता :- भारतीय संविधान की उद्देशिका में व्यक्ति की गरिमा और राष्ट्र की एकता और अखंडता सुनिश्चित करने के बारे में स्पष्ट उल्लेख किया गया है। अखंडता शब्द 1976 के 42 वें संशोधन के द्वारा उद्देशिका में जोड़ा गया है।

संविधान को अंगीकृत अधिनियमित और आप अर्पित :- प्रस्तावना के अंतिम भाग में स्पष्ट रूप से कहा गया है, की दृढ़ संकल्प होकर अपनी इस संविधान सभा में आज दिनांक 26 नवंबर 1949 ईस्वी नीति मार्ग शुक्ल सप्तमी संवत 2006 विक्रम इको दत्त द्वारा इस संविधान को अंगीकृत अधिनियमित और आत्मा अर्पित करते हैं।

 

 

 

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