Palamu kila | पलामू किला

Palamu kila (पलामू किला ) झारखंड राज्य के पलामू जिला मुख्यालय मेदनीनगर से 23 किलोमीटर दूर  दक्षिण पूर्व की ओर घनघोर जंगलों के बीच उतरी कोयल नदी के सहायक नदी औरंगा नदी के तट पर स्थित है । इस स्थथल पर दो केले का अवशेष है , एक पुरानाा किला और दूसरा नया किला।

पुराना किला :- जो अति प्राचीन किला है यह किला एक ऊंची पहाड़ पर स्थित है। यह  समांतर चतुर्भुज आकार हैैं। इस किले की दीवार तलहटी सेे ऊंची पहाड़ी के ऊंची चोटी तक 7 से 8 फुट तक मोटी है इसकी दीवारों पर घोड़े दौड़ा करते थे किले की रक्षा के लिए रक्षक 24 घंटे दीवारों पर रखकर सुरक्षा करते  थे। यह किला 5 किलोमीटर के क्षेत्र में फैला हुआ है

किले के अंदर 5 फुट चौड़ा रास्ता है और इसी रास्ते पर घोड़ा दौड़ा करते थे मोर्चे की 3 दिशाओं मे तोप दागने के लिए स्थान बने हुए पुराने किले में 2 तल्ले के तीन फाटक है से द्वार मजबूत सुरक्षित एवं बड़ा है अंदर प्रवेश करने के लिए इसके ट्रेन बड़े-बड़े गेट को पार कर जाना पड़ता था जिसका विशेष आज भी देखने को मिलता हैइस किले का निर्माण में अनेक बार क्यों को ध्यान में रखकर किया गया हैइस तीन मिलकर विशाल घेरे के अंदर किले में ही दरबार मंत्रालय दरबारियों के लिए आवास मंदिर राजमहल रामनिवास पानी पहुंचाने के लिए नालियां पानी के लिए बावलिया विशाल को यह बनाए गएहैं जो आज भी देखा जा सकता है। शिवद्वार के अंदर के आंगन में तीन गुंबद जो का एक मस्जिद है इसके बाहर भी इसी तरह की कई मस्जिद अभी भी देखे जा सकते हैं

नया किला:

राजा मेदनी राय ने  किले की नीव 8 जनवरी 1634 ईसवी  अर्थात मार्ग पंचमी संवत 1619 में रखी थी।यह किला  पुराने किले से डेढ़ किलोमीटर दूर Palamu kila एक ऊंचे पहाड़ पर 2 मील के घेरे में  निर्माण किया गया है ।इस किले का निर्माण पुराने किले से मजबूत प्रतीत होता है दो मंजिलें प्रांगण में घिरे चारों और कई कमरे हैं। ऐसा अनुमान लगाया जाता है कि यह कमरे का निर्माण सैनिकों के आवास के लिए किया गया होगा। इस किले के दो फाटक है मुख्य फाटक जो अत्यंत ही बड़ा है और और कलात्मक है ।क्यों मुगल काल के पत्थरों तथा कलाकृतियों की एक धरोहर है फाटक के दोनों चौखट के खंभों पर दो शिलालेख है। एक शिलालेख संस्कृत और दूसरा फारसी में है। इस शिलालेख में लिखे गए है-” इस किले की नींव संवत 1699 के माघ कृष्ण पंचमी बुध के दिन च्यवन ऋषि कुलोदभव महिपति मेदनी राय के अपने पुत्र युवराज प्रताप राय के लिए ही दी गई थी।  इस किलेे में सर्वाधिक आकर्षक नागपुरी दरवाजा है। इस दरवाजे की ऊंचाई 40 फुट तथा चौड़ाई 15 फुट है। यह फाटक नवरत्न गढ़ से लाई गई थी । मेदनी राय नवरत्न गढ़ किला पर आक्रमण कर दिया था । मेदनी राय के द्वारा नवरत्न गढ़ के किले पर अचानक आक्रमण करने से नागवंशी राजा की हार हो गई इस आक्रमण में मेदनी राय काफी लूटपाट की और न रतनगढ़ के किले में लगे नागपुरी किला फाटक पलामू किले में ले आया इसी विजय के उपलक्ष में इस किले का नाम नागपुरी द्वार रखा गया था राजा मेदनी राय ने ने किले की नीव 8 जनवरी 1634 ईसवी  अर्थात मार्ग पंचमी संवत 1619 में डालीथी किंतु न्यू डालने के चार-पांच वर्षों के पश्चात उसकी मृत्यु हो गई । इस किले के दोनों कोने में सबसे ऊंचे स्थल पर गुंबा जाकर तीन मंजिला बना हुआ है।

किले का निर्माण 

किले के निर्माण के संबंध में विद्वानों में एकमत नहीं है किले के निर्माण के संबंध में कहा जाता है किले का निर्माण का प्रारंभ माहोर  राजा ने किया था जिसने रोहतासगढ़ की तराई से उतर कर पलामू में प्रवेश कर पलामू के किले के आसपास सुरक्षित स्थान को अपना निवास स्थान बनाया ।और  आगे चल कर किले का निर्माण कार्य प्रारंभ किया होगा । इतिहासकारों के अनुसार  रक्सेल राजा मानसिंह 16 वीं सदी के प्रारंभ में किले का जिम्मेदारी अपने चेरो  सरदार पुनमल ठाकुरई को सौंप कर अपने पुत्र के विवाह के क्रम में सुरगुजा चले गए थे ।इसी बीच चेरो सरदार के दल ने राज्य परिवार के लोगों की हत्या कर दी  और  रक्सेल राजा को पलामू घुसने नही दिया।  इससे स्पष्ट होता है कि किले का निर्माण माहोर ने की थी तथा रक्सेल ने इसका विकास किया आगे चलकर चेरो राजा भगवान राय ने किले को सुरक्षित बनाया।

किले से संबंधित राजाओं का इतिहास

ऐतिहासिक स्रोतों के अनुसार पलामू जिले में शासन करने वाले राजाओं का उल्लेख इस प्रकार मिलता है ।म्हारो और उरांव नामक जनजातियों की दो शाखाएं कर्नाटक की ओर से साथ साथ चली और नर्मदा नदी की तटवर्ती विभाग में बस गई। उसके बाद वहां से उत्तर पश्चिम के और आगे बढ़ गए उराव रोहतास की और जाकर बस गए तथा महरो पलामू में आकर बस गए। उराव जनजाति यों ने रोहतास में गढ़ रूईदास बनाया तथा मोहरों ने औरंगा नदी के किनारे मुनकेरी  गढ़ का निर्माण कराया। म्हारो द्वारा औरंगा नदी तट पर स्थित पलामू गढ़ के अतिरिक्त गढ़वा लखना मर हटिया तथा अमानत की घाटियों में अनेक गढ़ का निर्माण कराया जिसका अवशेष आज ही देखने को मिलता है। रक्सेल राजाओं ने म्हारो पर आक्रमण कर पलामू किले पर अधिकार कर लिया। रक्सेल राजपूतों की एक शाखा है जो राजपूताना से चलकर एक दल बुंदेलखंड की ओर से सुरगुजा तथा दूसरे दल ने बिहार के भोजपुर रोहतास होते हुए पलामू में प्रवेश किया। रक्सेल राजाओं  में पलामू किले से शासन करने वाले अंतिम राजा के रूप में मान सिंह का उल्लेख मिलता है। जिसे चेरो राजा भागवत राय उसे हराकर पलामू किले पर अधिकार कर लिया।

चेरो राजाओं में मेदनी राय सबसे शक्तिशाली राजा के रूप में जाना जाता है मेदनी राय का राज्यपाल 1658 स्पीड से 1674 ईस्वी तक माना जाता है मेदनी राय के संबंध में कहा जाता है मेदनी राय डोसा के नवरत्न गढ़ को तहस-नहस कर दिया था काफी लूटपाट मचाई और वहां की प्रसिद्ध नागपुरी दरवाजा उठाकर पलामू में ले आया जिसे पलामू के नया किले में लगवाया था। मेदनी राय एक महत्वकांक्षी राजा था वह मुगलों से स्वतंत्र होने के लिए ताक लगाए हुए बैठा था औरंगजेब अपने उत्तराधिकार के युद्ध में व्यस्त था उसी का लाभ उठाकर मेदनी राय मुगलों को कर देना बंद कर दिया। औरंगजेब गद्दी पर बैठते हैं 1660 ईस्वी में दाऊद खां को पलामू भेजा 5 मई 1660 ईस्वी को दावत खाने पलामू के किले पर अधिकार कर लिया। दाऊद खान के साथ इस अभियान में राजा बहरोज , शेख तातार, शेख हमद मोहम्मद जाहिद मुर्तजा खान तह बुर्खा आदि सेना के साथ है। औरंगजेब के फरमान के अनुसार मेदनी राय को धर्म इस्लाम अपनाने पर जोड़ दिया गया किंतु मेदनी राय ने इस्लाम धर्म कबूल नहीं किया। परिणाम स्वरूप 17 दिसंबर 1660 ईस्वी को पलामू राज्य पर आक्रमण कर दिया गया 20 दिसंबर 1660 ईस्वी को शेरों के नए और पुराने दोनों किलो पर मुगलों का कब्जा हो गया तथा चेरो राजा जंगल की ओर भाग गए।

दाऊद खान पलामू किले में ही रहने लगा और 1662 ईस्वी में पुराने किले के आंगन में एक मस्जिद का निर्माण कराया मस्जिद का निर्माण पलामू राज्य पर विजय चिन्ह के प्रतीक रूप  में स्थापित किया। औरंगजेब ने स्थानीय प्रशासन को नियंत्रित करने के लिए मनकाली खा को पलामू का फौजदार नियुक्त किया । दाऊद खान को पटना वापस बुला लिया गया। कहां जाता है कि दाऊद खान लौटते समय पलामू का सी दरवाजा अपने साथ लेते चला गया जिसे औरंगजेब को भेंट किया औरंगजेब इस दरवाजे को दाउदनगर की अपनी गाड़ी में लगवाया।

पलामू से मन कली खाक को लौटते ही मेदनी राय सुरगुजा से वापस आ गया और पलामू किला पर अधिकार कर लिया। अर्थात पलामू किले पर मुगलों का अधिपत्य 1660 से 1666 ईस्वी ताकि माना जाता है। मेदनी राय की मृत्यु 1674 ईस्वी में हो जाती है और इसके उत्तराधिकारी के रूप में रूद्र राय शासन किया। रूद्र राय 1674 से 1680 ईस्वी तक पलामू किले से शासन किया। मेदनी राय के अन्य वंशज दिगपाल राय 1680 ईस्वी से 1697 इसवी तक साहिब राय 1697 से 1706 ईस्वी तक राज्य किया।

चेरो जनजातियां

चेरो जनजातियां अपने को च्यवन ऋषि का वंशज मानते हैं । यह जनजाति सात किल्ली में बेटा हुआ है मोआर, कुँवर, संनवत, रोटीआ, मांझी ,सोहनेत, महतो। सेंडर के अनुसार शेरों की दो उपजातियां हैं 12000 और 13 हजारी 12 हजारी श्रेष्ठ होते हैं तेरा हजारी को वीर बगिया भी कहा जाता है। चेरो जनजातियों का विस्तार पलामू का संपूर्ण क्षेत्र रांची तथा हजारीबाग क्षेत्रों में देखा जाता है पलामू में इनक शासन 200 वर्षों तक रहा।

                                                                                                       आलेख:-डॉ० आनंद किशोर दाँगी

किले से सम्बंधित विडियो देखने के लिए क्लिक करें👇

 

पलामू किला स्थित है?

झारखंड राज्य के पलामू जिला मुख्यालय मेदनीनगर से 23 किलोमीटर दूर  दक्षिण पूर्व की ओर घनघोर जंगलों के बीच उतरी कोयल नदी के सहायक नदी औरंगा नदी के तट पर स्थित है

इतिहासकारो के अनुसार किले का निर्माण का नीव किस वंश के राजा ने रखा?

किले का निर्माण का प्रारंभ माहोर  राजा ने किया था

चेरो राजा किस राजा को हरा कर पलामू किले पर अधिकार किया?

चेरो राजा भागवत राय उसे हराकर पलामू किले पर अधिकार कर लिया।

चेरो जनजाति किसके वंशज मानते है?

च्यवन ऋषि का वंशज मानते हैं

चेरो राजाओ में शक्तिशाली राजा था?

मेदनी राय

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