khortha kavita nach bandar nach re | नाँच बाँदर नाँच रे-श्री निवास पानुरी | झारखण्ड पीजीटी परीक्षा में शामिल कविता का हिंदी में व्याख्या
नाँच बाँदर नाँच रे : यह कविता एक प्रकार का संवाद और प्रतीकात्मक अभिव्यक्ति है, जहाँ “बाँदर” (बंदर) को नचाने की बात हो रही है। लेकिन यह सिर्फ बंदर के नाचने की बात नहीं है, बल्कि यह मनुष्य की स्वार्थपरता, अपेक्षा और लेन-देन के संबंधों की भी प्रतीकात्मक झलक देती है। यह कविता न सिर्फ …





