नगर उंटारी का श्री बंशीधर मंदिर|Nagarutari ka sri bansidhar mandir

नगर उंटारी का श्री बंशीधर मंदिर(Nagarutari ka sri bansidhar mandir) झारखंड राज्य के गढ़वा जिला मुख्यालय से 40 किलोमीटर दूर पश्चिम दिशा में स्थित है। नगर उंटारी बिहार उत्तर प्रदेश एवं मध्य प्रदेश के त्रिकोण आत्मक सीमा पर अवस्थित है ।बाँकी  नदी पर स्थित इस नगर से 16 किलोमीटर दूर  कनहर नदी के पार मध्य प्रदेश तथा 6 किलोमीटर पश्चिम मतिया  नदी के पार उत्तर प्रदेश की सीमा प्रारंभ होती है । नगर उंटारी मुरी- अंबिकापुर रेलखंड पर अवस्थित है ।नगर उंटारी का श्री बंशीधर मंदिर(Nagarutari ka sri bansidhar mandir)  की स्थापना 1885 ईस्वी में की गई ।मंदिर में अष्टधातु निर्मित श्री कृष्ण भगवान के साढे 32 मन जन तथा साढे 4 फुट ऊंची प्रतिमा स्थापित है ।यह प्रतिमा उत्तर भारत की सर्वश्रेष्ठ कला कृतियों में से एक है।

मूर्ति की विशेषता:-

sri banshidhar

अष्टधातु निर्मित श्री कृष्ण की शरीर पर पितांबर, गले में रुद्राक्ष की माला शोभित है। श्री कृष्ण के कानों में चमकते हुए कुंडल, सिर के बालों के ऊपर कारण्ड, भुजाओं में भूजबन्ध,  कलाई में वलय ,माथे पर मणि युक्त  आरनूत, कमर में करधनी तथा उंगली में अंगूठी धारण किए हुए हैं। कमल पुष्प पीठिका पर बहुभंगासन  मुद्रा में खड़े श्री कृष्ण अपने हाथों से  बांसुरी वादन करते हुए ध्यान की मुद्रा में खड़े हैं। बगल में अष्टधातु निर्मित राधा जी की भी प्रतिमा स्थापित की गई है।

श्री बंशीधर मंदिर निर्माण की कहानी

श्री बंशीधर मंदिर के मूर्ति की स्थापना तथा मंदिर का निर्माण नगर उंटारी राज्य के राजा भवानी सिंह की धर्मपत्नी रानी शिवमणि कुंवर ने कराई थी। रानी शिवमणि कुंवर बाल विधवा तथा निसंतान थी 1778 ईस्वी में जब देश में मुगलों का साम्राज्य था तथा अंग्रेजों द्वारा संपूर्ण देश में सत्ता स्थापित करने का संघर्ष चल रहा था। उसी समय रानी शिवमणि  नगर उंटारी राज्य की रानी बनी ।

    रानी कुशल राज्य  संचालिका के रूप में मानी जाती है ।कुशल प्रशासक के साथ-साथ धर्मनिष्ठ दान शील, दयालु तथा श्री कृष्ण की अनन्य भक्त थी । वाह श्री कृष्ण के भजन कीर्तन में सदा लीन रहती थी। एक समय कृष्णा जन्माष्टमी के अवसर पर श्री कृष्ण नाम का जाप करते करते बेहोश होगई। इस बेहोशी की हालत में ही श्री कृष्ण भगवान ने उनको दर्शन दिए। भगवान श्री कृष्ण की अद्भुत प्रकाश से रानी की आंख से अश्रु धारा अविरल बहने लगी ।यह दर्शन पाकर भगवान श्री कृष्ण के चरणों पर गिर पड़ी ।श्री कृष्ण  रानी से प्रसन्न हो होकर रानी से कहा “आज मैं तुमसे बहुत प्रसन्न हूं , हे रानी  तुम मुझसे वर मांग सकती हो और तुम्हें बिना वरदान दिए हुए यहां से वापस नहीं जा सकते हैं। यह सुनकर रानी  भगवान से   कही हे “श्री कृष्ण ,हे मुरलीधर यदि आप हमसे खुश हैं एक ही वरदान मांगती हूँ ”  तुम्हारी यही छवि निरंतर निहारती  रहुँ । भगवान ने कहा ” कनहर नदी के इस पार शिव पहाड़ी की चोटी पर मैं  पडा हूँ। तुम मुझे वहां से लाकर अपने राज्य में स्थापित करो, इसी से तुम्हारी मनोकामना पूर्ण हो जाएगी ।  वरदान देकर श्री कृष्ण भगवान अंतर्ध्यान हो गए।

प्रातः होते ही रानी अपने कुछ विश्वसनीय कर्मचारियों पंडितों ब्राह्मणों स्वजनों एवं अपने सैनिकों के साथ हाथी और गाजे-बाजे के साथ श्री कृष्ण द्वारा बताए गए स्थल की ओर चल पड़े स्वप्न में देखे स्थल पर पहुंचकर दंडवत प्रणाम किए एवं दोनों हाथों से मिट्टी हटाने लगी कुछ देर में ही एक अद्भुत ध्वनि कि सुनाई पड़ी भगवान श्री बंशीधर का शीर्ष भाग प्रकाश मय  हो गया। मंत्रोचार के साथ खुदाई प्रारंभ की गई। कुछ ही देर में  कृष्ण भगवान के साढे 32 मन वजन तथा साढे 4 फुट की  प्रतिमा बाहर निकाली गई। यह देखकर रानी भाव विभोर हो गई । राधा की मूर्ति के खोज के लिए आसपास खुदाई की गई किंतु कोई दूसरी मूर्तिति यहां नहींं मिली।

नाग के फन पर कमल फूल पर विराजमान श्री बंशीधर की भव्य मूर्ति  मूर्ति को राज दरबार लाने के लिए हाथी के होज पर रखा गया। नगर तक लाने के लिए रास्ते में कई हाथियों को बदलना पड़ा। अंतिम हाथी रानी किले के पीछे जहां अभी मंदिर स्थित है आकर बैठ गया।लाख प्रयत्न करने के बाद भी हाथी वहां से नहीं उठ सका। यह देख कर सभी ने भगवान की इच्छा मानकर उसी स्थल पर मूर्ति स्थापित कर दी गईं ।उस समय से इसी स्थल पर मंदिर में मूर्तियां स्थापित की गई है। किसी भी मंदिर में सिर्फ बंशीधर की मूर्ति स्थापित नहीं की जाती है इनके साथ राधा जी की भी मूर्ति स्थापित की जाती है । अतः रानी ने शीघ्रता शीघ्र काशी से राधा की अष्ट धतु निर्मित की मूर्ति बनवा कर श्री कृष्ण की मूर्ति के बगल में स्थापित कराई गई है।

kila Gate

एक जनश्रुति के अनुसार श्री बंशीधर की प्रतिमा शिवपुरी पहाड़ पर 120 वर्षों तक भूमि में दबी पड़ीरही। इसका तात्पर्य हुआ की इस प्रतिमा का निर्माण संभवत 1765 ईसवी के पूर्व हुआ होगा ।यह काल मुगलों, मराठों तथा पलामू के शेर राजाओं का शासन काल था। इन्हीं दिनों मराठा शिवाजी जिनके नाम से इस पहाड़ी का नाम शिवपहरी  पड़ा होगा। मराठा के दो सरदार रूद्र शाह तथा  बडियार साह नगर उंटारी के समीप उत्तर में डेमा पहाड़ तथा राजा पहाड़ी पर रहकर सिंगरौली के मार्ग की रक्षा करते थे। तथा मुगलों को मध्यप्रदेश में प्रवेश करने से रोकते रोकने का काम करते थे, ताकि ताकि मराठा प्रशासन सही से चलाई जा सके। इसी मार्ग से मुगलों का शाही खजाना आया जाया करता था जिसे लूट लिया करते थे। मुगल बादशाह इसे नियंत्रण करने में असफल रह रहे थे। ऐसा माना जाता है कि इन सरदारों ने वृंदावन के एक संत के संपर्क में आकर श्री कृष्ण के अनन्य भक्त बन गए और उन्हीं की प्रेरणा से मुगलों के द्वारा लूटेंगे बहुमूल्य आभूषणों से श्री बंशीधर के मूर्ति का निर्माण कराया था।

श्री बंशीधर की मूर्ति शिव पहरी पहाड़ी में कैसे आया।

हवलदार राम गुप्त हलधर ने अपनी किताब पलामू का ऐतिहासिक अध्ययन में लिखा है कि मुगल राजा का सरदार  अहमद शाह दुर्रानी पलामू पर विजय प्राप्त करने के उद्देश्य भारी संख्या में  फ़ौज़ लेकर आगे बढ़ा चला आ रहा था। अहमद शाह दुर्रानी तथा उसके सैनिक रास्ते में समस्त मंदिरों तथा मूर्तियों को तोड़ते हुए तेजी से आगे बढ़ रहे थे दिल्ली का तत्कालीन बादशाह शाह आलम ने उसे रोकने में असमर्थ रहा। अहमद शाह दुर्रानी की बर्बरता से घबराकर उस मूर्ति को  शिवपहरी की पहाड़ी में छिपाकर भाग खड़े हुए।उस समय से मूर्ति  वँहा दबा रहा और शिवमणि कुंवर द्वारा 1885 ईसवी  बाहर निकाला गया।

श्री बंशीधर मंदिर के निर्माण कर्ता शिवमणि कुँवर  और राज घराना

 

Nagar utari kila

सोनपुर के राजा के वंशज उत्तम सिंह नगर उंटारी में अपना निवास बनाया जिसे भैया जी के नाम से जाना जाता है 1960 ईस्वी में  तीसरे भैया साहेब को नगर उंटारी को कर मुक्त जागीर के रूप में मुगल बादशाह ने दे दिया। इसके पूर्व चेरो जमीदार रुद्र शाही नगर उंटारी के जमीदार हुआ करते थे। जिन्हें शहंशाह औरंगजेब काफी नाराज थे । इतिहासकारों के अनुसार नगर उंटारी के वर्तमान भाइयों ने मुगल शासकों का सहयोग किया था तथा शिवाजी के दोनों सरदार  शिव पहरी से मार भगाया था। और इस क्षेत्र में संता इस क्षेत्र में शांति स्थापित की जिस कारण मुगल बादशाह औरंगजेब प्रसन्न होकर पूर्व में पहले नदी पश्चिम में बिछी नदी उत्तर में सोन नदी तथा दक्षिण में कनहर नदी तक का संपूर्ण भूभाग कर रहे जागीर के रूप में भाई साहब को दे दिया साथी मुगल बादशाह के द्वारा देव की उपाधि के द्वारा सम्मानित किया गया। इन्हीं भाई साहब की कई पीढ़ी के बाद भवानी देव नगर के अधिकारी हुए और उनकी ही धर्मपत्नी शिवमणि कुंवर ने श्री बंशीधर के मंदिर का निर्माण 1885 ईस्वी में कराई थी।

श्री बंसीधर मंदिर विडियो देखने के लिए इस लिंक क्लिक कर देख सकते है

                 https://youtu.be/dub1_NNyOps

https://anandlink.com/tamasin-jalprapat-chatra/

श्री बंशीधर मंदिर का निर्माण किसने कराया

नगर उंटारी के राजा भवानी देव की धर्मपत्नी शिव मणि कुँवर ने कराई थी

बंशीधर मंदिर किस राज्य में स्थित है

श्री बंशीधर मंदिर झारखंड राज्य के गढ़वा जिले में स्थित है

श्री बंशीधर के मूर्ति किस पहाड़ी से प्राप्त हुआ

शिव पहरि पहाड़ी

शिवमणि कुंवर किस राजघराने से संबंधित है

नगर उंटारी के राजा भाई साहब राजघराने से संबंधित है

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