मशरूम उत्पादन की तकनीक

पिछले कुछ वर्षों से बिना खेत की खेती के जाने के परंपरा आरंभ हुए हैं और यह खेती है मशरूम (Mushroom) की खेती। मशरूम उत्पादन की तरफ ध्यान हर वर्ग के लोगों को गया है,खास करके गरीब तबके के लोग का जो गरीबी से निकलने के लिए मशरूम उत्पादन कर रहे हैं। मशरूम की हजारों किस में है किंतु खाने लायक कुछ कुछ पूछे हैं गिने-चुने मशरूम है। झारखंड बिहार जैसे राज्यो के क्षेत्रों में मशरूम उत्पादन के तीन प्रकार का व्यवसायिक उत्पादन के लिए बेहतर माना गया है। इसमें ओयस्टर मशरूम, बटन मशरूम और दूधिया या मिल्की मशरूम । ओयस्टर मशरूम का उत्पादन ठंड के दिनों में की जाती है। मार्च अप्रेल के बाद इसकी खेती नहीं के बराबर होती है। गर्मी के मौसम में मिल्की मशरूम या दूधिया मशरूम का उत्पादन किया जाता है। इसकी खेती ऊंचे तापमान में भी की जा सकती है। मशरूम में अति विशिष्ट प्रोटीन होता है साथ ही खनिज लवण विटामिन बी सी डी नियासिन पैंटोथैनिक अम्ल और फोलिक अम्ल की पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध होता है।
मशरूम उगाने के तरीके
मशरूम (Mushroom) उगाने के लिए जिस बीज का प्रयोग किया जाता है उसे तकनीकी भाषा में स्पॉन कहते है। इसे प्रयोगशाला में जीवाणु युक्त वातावरण में तैयार किया जाता है।तैयार करने में 15 से 20 दिनों का समय लगता है।
घरों में स्पॉन या बीज तैयार करने का निम्न तरीका है-
- धान, गेहूं ,मकई के स्वस्थ दाने (200 से 250 ग्राम प्रति थैली)
- कैल्शियम कार्बोनेट 6 ग्राम प्रति किलोग्राम के हिसाब से
- जिप्सम कैलशियम सल्फेट 13 ग्राम प्रति किलोग्राम सूखे अनाज की दर से
- ढक्कन के लिए पानी नहीं सूखने वाली रुई 5 ग्राम प्रति ठेला
- प्लास्टिक पाइप का टुकड़ा
- प्रेशर कुकर
- स्टैंडर्ड स्टील का छोटा चिमटा
- छलनी
- स्पिरिट लैंप
- पॉलिप्रोपिलीन की थैली
मशरूम के बीज उत्पादन करने की विधि
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बीज या स्पॉन बनाने के लिए गेहूं मकई या धान के स्वस्थ दानों का प्रयोग किया जा सकता है। अनाज के दानों को साफ कर लेना चाहिए उसमें धूलिया खरपतवार के बीच नहीं रहने चाहिए।इन्हें रात भर के लिए किसी बर्तन में पानी से भिंगा देना चाहिए और दूसरे दिन अच्छी तरह से साफ कर पानी में उबाल देना चाहिए। ध्यान रहे कि दाने फट ना पाए।दानों को छलनी से छान कर पानी हटा लें तथा किसी टेबल या फर्श पर साफ कपड़े की चादर बिछाकर पानी सूखने के लिए छोड़ देना आवश्यक होता है। जब पूरी तरह से सूख जाए तब इसमें 6 ग्राम कैलशियम कार्बोनेट और 13 ग्राम जिप्सम प्रति किलोग्राम सूखे दाने के हिसाब से अच्छी तरह मिला लेना चाहिए। इसके बाद इस मिश्रण को ताप रोधी पॉलिथीन की थैली में 200 से 250 ग्राम प्रति थैली की दर से भर देना चाहिए।थैलो के स्थान पर गुलशन की बोतल का भी प्रयोग किया जा सकता है।थैला या बोतल को भरने के बाद रुई से उसका मुंह बंद कर देना आवश्यकता है।गिला नहीं हो इसके लिए अखबार के कागज के टुकड़ा रबड़ बैंड सेट कर देना चाहिए.
प्रेशर कुकर में इतना ही पानी डालना चाहिए कि आधे घंटाआग पर रखने के बाद भी पानी नहीं सूख सके इसे ग्रीट को इतना ऊंचा रखें की थैलियां पानी की सतह के ऊपर रहे और डूबे नहीं । गिरिडीह ऊँची करने के लिए छोटे पत्थर के टुकड़े का भी प्रयोग किया जा सकता है।अब इसमें थैली या बोतल को डालकर कुकर का ढक्कन बंद कर आग पर चढ़ा दें। ढक्कन से हटाकर अंदर की हवा निकल जाने दे,जब तक भाप नही निकल जाए। कुकर ठंडा होने के बाद खेलिए और थैला या बोतल को बाहर निकाल लें।
अब कमरे के किसी एक कोने में एक टेबल रख दें और इसके ऊपर स्प्रिट से साफ कर हाथों को भी स्प्रिट से साफ कर लें। टेबल तैयार थैली को एक और रख दें। स्प्रिट लैंप जला लें तथा इसकी लौ के पास पैकेट का मुंह खोलें तथा इसी के पास बना बनाया दाने को थैला या बोतल में रखकर उसका मुंह रुई से बंद कर दें।स्पॉन या बीज के दाने को बैग या बोतल में हिला कर अन्य दान में मिला दे। इसी प्रकार हर थैले में 15 से 20 ग्राम बना बनाया स्पॉन के दाने डालकर उसका मुंह बंद करते जाए अब उन थैलियों को कमरे में ऐसे स्थान पर रखें जहां तापमान लगभग 25 डिग्री से रहता हो। लगभग 15 से 20 दिनों में स्पॉन तैयार हो जाएगा। शुद्ध और स्वक्ष तरीके से तैयार किए गए स्पॉन बीज का रंग सफेद होता है।
स्पॉन या बीज तैयार मैं सावधानियां
- तैयार स्पॉन को कमरे के तापमान पर 35 से 45 दिनों से अधिक नहीं रखना चाहिए
- मशरूम उगाने का मौसम तापमान को ध्यान में रखकर स्पॉन बनाना चाहिए
- स्पॉन बनाते समय पूर्ण साफ-सफाई का ध्यान रखना चाहिए
- आपर्याप्त स्ट्रेलाइजेशन या बीच स्पॉन का थैलियों में स्थानांतरण ठीक ना होने पर स्पॉन के थैलों में अन्य फफूंद तथा जीवाणुओं के उग जाने की संभावना रहती है।यदि दिखाई पड़े तो उसे हटा देना चाहिए।
मशरूम उत्पादन करने के तरीके
- मशरूम (Mushroom) की खेती जुलाई से अप्रैल के मध्य क्या जाता है इसके लिए 20 से 28 सेंटीग्रेड तापमान की आवश्यकता होती है तथा 80 से 85% सापेक्षिक आद्रता पर भी की जाती है।
- इसके तैयार करने के लिए धान गेहूं जौ बाजरा मक्का गन्नना खोई किसी एक का भूसा फसलों की सूखी खोइइ गन्ना या कोई इत्यादि पर उगाया जा सकता है।
- भूसे पर उगाने के लिए सबसे पहले उसे को स्वच्छ पानी से रात भर भिगो देना चाहिए अगली सुबह पानी से निकाल देने के बाद उबलते पानी में भूसे को डालकर फिर उसे ठंडा करने के बाद दो-तीन घंटे तक ढक कर रख देना चाहिए
- प्रति किलो गीला भूसा में 40 से 60 ग्राम स्पॉन अर्थात मशरूम के बीज को गिले भूसे में क्रमशः 4 परतो मैं मिलाकर रखना चाहिए यदि तापमान कम हो तो स्पॉन( बीच) की मात्रा 40 से 25% तक बढ़ा देना आवश्यक होती है। इस तरह स्पॉन मिले हुए को 40 गुने 30 सेंटीमीटर आकार के पॉलिथीन क्षेत्र युक्त थैली में दो तिहाई भरे तथा दबाकर मुंह बांध दें।
- इस थैले को अंधे अंधेरे छायादार कमरे में रख देना चाहिए इस कमरे का तापमान लगभग 20 से 25 सेंटीग्रेड के आसपास तथा आद्रता 80 से 85 सेंटीग्रेड होना चाहिए
- 2 से 3 सप्ताह के अंदर मशरूम तैयार हो जाता है।
- मशरूम निकालने के लिए कमरे में हल्की रोशनी और ताजी हवा की आवश्यकता होती है जरूरत पड़ने पर 3 से 4 घंटे ट्यूब लाइट जला देनी चाहिए पॉलिथीन हटाने के बाद लगभग 7 से 10 दिनों के बाद भूसे के खंडों से सीपी नुमा मशरूम निकलने लगते हैं और पूरी तैयार होने पर उनके किनारे भीतर की और मुड़ने लगते हैं या फटने लगते हैं इस अवस्था में उनके ढंडल को ऐड या मरोड़ कर उन्हें तोड़ लेना चाहिए
- पहली तोड़ाई लेने के बाद भी पानी छिटकते रहना चाहिए ताकि 7 से 10 दिनों के अंतराल पर मशरूम की दूसरी एवं तीसरी फसल उगाई जा सके।
- इस प्रकार डेढ़ माह में दो से तीन बार मशरूम की फसल ले सकते हैं उसके बाद इस्तेमाल किए गए भूसे को पशु आहार या खाद के रूप में प्रयोग किया जाता है।
मशरूम उत्पादन के लिए आवश्यक सामग्री
- एक अंधेरा कमरा
- स्पान या बीज
- भूसा कुर्ती या पुआल
- तापमान मापने के लिए है किलोमीटर
- स्प्रिंग मशीन
- वजन मापने के लिए मशीन
- कुट्टी काटने वाला मशीन
- स्ट्रीटक ड्रा एवं सेठ
- वेस्टिन एवं फॉर्मलीन
- पीपी बैग
- रबड़ बैंड इत्यादि.
मशरूम उत्पादन के विशेष तकनीकी सीखने के लिए प्रत्येक जिले में स्थापित कृषि विज्ञान केंद्र .जिला उद्यान पदाधिकारी से से संपर्क किया जा सकता है. वर्तमान समय में बहुत सारे स्वयंसेवी संस्थाएं इस तरह के प्रशिक्षण गांव के लोगों को प्रदान कर रहे हैं.
आलेख:-डॉ आनन्द किशोर दाँगी
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