झारखंड की एक प्रमुख जनजाति कोरा अपेक्षाकृत रूप से अधिक विकसित मानी जाती हैं। यह समुदाय न केवल झारखंड, बल्कि ओडिशा और पश्चिम बंगाल में भी निवास करता है। झारखंड के धनबाद, बोकारो तथा संथाल परगना क्षेत्र को इनका प्रमुख निवास स्थान माना जाता है।कोरा जनजाति को प्रोटो-आस्ट्रेलायड समूह से संबंधित माना जाता है। इनका नाम ‘कोरा’ उनके पारंपरिक पेशे से जुड़ा हुआ है, जिसमें वे भूमि की खुदाई का कार्य करते थे। ऐतिहासिक रूप से, यह जनजाति कृषि कार्यों, वन उत्पादों के संग्रहण और श्रम आधारित कार्यों में संलग्न रही
कोरा जनजाति की उत्पत्ति
कोरा जनजाति की उत्पत्ति और विकास को लेकर विभिन्न किंवदंतियाँ प्रचलित हैं। प्रसिद्ध मानवशास्त्री रिजले ने इन्हें मुंडा जनजाति का ही एक वंश कहा है। वहीं, संथाल परगना के कोरा लोग अपने पूर्वजों को नागपुर से आया हुआ मानते हैं। कुछ कोरा लोगों का विश्वास है कि उनका गोत्र ‘बरदा’ नामक वृक्ष से जुड़ा है, और वे उसी के वंशज हैं। इनकी भाषा ‘मुंडारी’ है, जो इस समुदाय की सांस्कृतिक पहचान को दर्शाती है।
कोरा जनजाति की सामाजिक व्यवस्था
कोरा जनजाति भारत के विभिन्न हिस्सों, विशेष रूप से झारखंड, ओडिशा, और पश्चिम बंगाल में निवास करने वाली एक प्रमुख आदिवासी जनजाति है। इनकी सामाजिक व्यवस्था मुख्य रूप से पितृसत्तात्मक एवं पितृवंशीय संरचना पर आधारित है। परिवार इनकी सामाजिक संरचना का सबसे महत्वपूर्ण घटक होता है। अधिकतर कोरा परिवार एकल होते हैं, जिनमें पति-पत्नी और अविवाहित बच्चे रहते हैं। संयुक्त और विस्तृत परिवार भी देखने को मिलते हैं, विशेषकर पारंपरिक ग्रामीण क्षेत्रों में।
उत्तराधिकार और संपत्ति व्यवस्था
कोरा जनजाति में संपत्ति का उत्तराधिकार पुरुष वंश में होता है। पैतृक संपत्ति का बंटवारा पिता की मृत्यु के बाद ही किया जाता है, जिसमें पुत्रों को समान अधिकार प्राप्त होते हैं। पहले बड़े पुत्र को अतिरिक्त संपत्ति देने की परंपरा थी, जिसे ‘जेठांश’ कहा जाता था, लेकिन अब समान बंटवारे की प्रवृत्ति बढ़ रही है।
विवाह और पारिवारिक संरचना
कोरा जनजाति में विवाह के बाद पुरुष अक्सर नया घर बसा लेते हैं, जबकि महिलाएँ विवाह के बाद अपने पति के परिवार में चली जाती हैं। विधवा को पुनर्विवाह से पहले भरण-पोषण का अधिकार प्राप्त होता है। परंपरागत रूप से कोरा जनजाति में विवाह संबंधों को सामाजिक नियमों और रीति-रिवाजों के अनुसार निभाया जाता है।
सामाजिक स्थिति और सांस्कृतिक विशेषताएँ
कोरा जनजाति की सामाजिक स्थिति मुख्यधारा के समाज की तुलना में अधिक पारंपरिक है। वे विभिन्न तरह के मांस और मछलियों का सेवन करते हैं, जिसमें सूअर का मांस और पक्षियों का मांस भी शामिल है। इनके भोजन, पहनावे, और सांस्कृतिक परंपराएँ इन्हें अन्य समुदायों से अलग पहचान देती हैं।
कोरा जनजाति की आर्थिक व्यवस्था
कोरा जनजाति का आर्थिक जीवन मुख्य रूप से शिकार, खेतीबारी और मजदूरी पर आधारित है। इनके पास सीमित कृषि भूमि होती है, जिसमें घर से जुड़ी बाड़ी भूमि भी शामिल होती है। बाड़ी में वे सब्जियाँ उगाते हैं और फलदार वृक्ष भी लगाते हैं, जिससे उनकी घरेलू आवश्यकताओं की पूर्ति होती है।
कृषि और भूमि का उपयोग
कोरा जनजाति की जोत-भूमि मुख्य रूप से दो प्रकार की होती है:
1. टाँड़ भूमि – इसमें मडुआ, मकई, मोटे अनाज और धान जैसी भदई फसलें उगाई जाती हैं।
2. दोन भूमि – यह अपेक्षाकृत अधिक उपजाऊ होती है और इसमें मुख्य रूप से धान की खेती की जाती है।
हालाँकि, कोरा समुदाय के किसान कृषि कार्यों में कुशल होते हैं, लेकिन भूमि की कमी और सिंचाई के अपर्याप्त साधनों के कारण उत्पादन सीमित रहता है। यही कारण है कि इनका जीवन अक्सर *सहायक आर्थिक गतिविधियों* पर निर्भर करता है।
वन संसाधन और पारंपरिक आजीविका
कोरा जनजाति का जीवन जंगलों से गहराई से जुड़ा हुआ है। वन क्षेत्र में निवास करने के कारण वे *जंगली फल-फूल, कंद-मूल, साग-पात जैसे खाद्य पदार्थों से अपनी आवश्यकताओं को पूरा करते हैं। इसके अतिरिक्त, वे मधु संग्रह का कार्य भी करते हैं।
आर्थिक गतिविधियों में अन्य प्रमुख कार्य शामिल हैं:
- सखुआ पत्तों से पत्तल-दोना बनाना
- सवाई घास से झाड़ू और रस्सी निर्माण
- बीड़ी पत्ते और दतवन का संग्रह व बिक्री
शिकार और पारंपरिक कौशल
कोरा जनजाति कुशल शिकारी मानी जाती है। वे वन्य परिवेश में पले-बढ़े होने के कारण अचूक निशानेबाज होते हैं। संथालों की तरह, कोरा जनजाति भी शिकार में अत्यधिक दक्ष होती है। आज भी ये लोग *विशेष अवसरों पर और पारंपरिक रीति-रिवाजो के अनुसार सामूहिक शिकार करने जाते हैं।
संस्कृति और परंपराएँ
कोरा जनजाति की संस्कृति बेहद समृद्ध और विविधतापूर्ण है।
भाषा: इनकी मूल भाषा कोरा है, जो ऑस्ट्रो-एशियाटिक भाषा परिवार से संबंधित है।
पारिवारिक संरचना: इस जनजाति का समाज पितृसत्तात्मक होता है, जहाँ निर्णय मुख्य रूप से पुरुष लेते हैं।
विवाह प्रथा: इनमें विवाह के दौरान पारंपरिक रीति-रिवाज निभाए जाते हैं, और समगोत्रीय विवाह निषिद्ध होता है।
गोदना (टैटू) प्रथा: कोरा जनजाति में गोदना का विशेष महत्व है, जिसे वे अपने सामाजिक और आध्यात्मिक पहचान का प्रतीक मानते हैं।
वर्तमान स्थिति और चुनौतियाँ
आधुनिकीकरण और शहरीकरण के बढ़ते प्रभाव से कोरा जनजाति की पारंपरिक जीवनशैली में बदलाव आ रहा है।शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाओं कोरा जनजाति भारतीय जनजातीय समाज का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। उनकी संस्कृति, परंपराएँ और जीवनशैली भारत की विविधता को दर्शाती हैं। इनकी पहचान और अधिकारों को सुरक्षित रखना आवश्यक है ताकि इनकी सांस्कृतिक धरोहर सहेजी जा सके और इनका सतत विकास हो सके।
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