खोरठा गद्य साहित्य का विकास | Khortha gady sahitya ke vikas

खोरठा गद्य साहित्य का विकास 20 वीं शताब्दी के पांचवें दशक से माना जाता है। इसका अर्थ हुआ कि नवयुग के कवि भुवनेश्वर दत शर्मा ‘ व्याकुल ‘ के खोरठा में लिखने के शुरूआती दौर में गद्य साहित्य का प्रारम्भ हुआ। इस संबंध में खोरठा भाष एवं साहित्य ( उद्भव एवं विकास ) में ‘ डॉ . भोगनाथ ओहदार ‘ ने खोरठा गइदेक विकास खंड में लिखा है – ” कोन्हों भाषा के पहिल काल के साहित गीत,कविता आदि पइदें ही पावल जा हे। कीले कि सभइता के शुरूआती घरी आदमी बइजकथ बोलथ नांजू विचकुन गावो हलथ। सइले संस्कृति , अंग्रेजी समेत गोटे दुनिआइ के साहित आरंभ गीत कवितांञ् से भेल हे । जोदि लोक साहित लोककथा , गइदे के ही रूप हकइ मकिन हमर अर्थ हिंया गइद के लिखित रूप से है । लेकिन खोरठा भाषा में गद्य लिखने की परम्परा श्री निवास पानुरी जी के नाटक : उदवासल कर्न और चाभी काठी नाटकों से माना जाता है। पानुरी जी के समय पर्व – त्योहारों और उल्लास उमंग के किन्हीं विशेष अवसरों पर नाटक का मंचन की परंपरा गाँवों में चलती थी। यह परम्परा आज भी गाँवों में देखने को मिलती है। सम्भवतः इसी परम्परा के अन्तर्गत लोकभाषा में नाटक खेलने की परम्परा शुरू हुई। होगी और खोरठा भाषा के नाटक लिखे गये होंगे। इसके बाद से कहानी, उपन्यास, निबंध, स्मरण, यात्रा वृतांत, शब्द चित्र आदि विधाओं में खोरठा भाषा – साहित्य का सृजन किया जाने लग । ध्यातव्य है कि गद्य लेखन परम्परा मन्द गति से प्रारम्भ हुई, किन्तु साठोत्तरी दशक में खोरठा गद्य साहित्य के सभी विधाओं की रचना प्रारम्भ हो गई। यहाँ गद्य साहित्य के विभिन्न विधाओं का संक्षिप्ति उल्लेख किया गया है

  1. उपन्यास
  2. नाटक
  3. कहानी
  4. निबंध
  5. संस्मरण
  6. आत्मकथा
  7. जीवनी
  8. यात्रा वृतांत

खोरठा उपन्यास का विकास

उपन्यास – खोरठा भाषा में उपन्यास लिखने की परम्परा की नींव श्री निवास पानुरी जी के ‘ रकतें रांगल पांखा ‘ से माना जाता है। उसी समय विश्वनाथ दसौंथी राज द्वारा ‘ तेतरी ‘ और विश्वनाथ प्रसाद नागर की ‘महुआ’ शीर्षक से उपन्यास लिखा गया था। ये तीनों उपन्यास साठोत्तरी दशक में ही लिखे गये थे, किन्तु अभी तक इन रचनाओं का प्रकाशन का काम अधूरा ही है। यह उपन्यास जिस समय लिखा गया था, उस समय जमींदारी प्रथा का उन्मूलन किया जा चुका था, किन्तु जमींदारों के अन्याय और शोषण के ऊपर हीं लिखे गये हैं।वर्ष 2004 में भगजोगनी उपन्यास का प्रकाशन किया गया। हलांकि यह उपन्यास विश्वनाथ दसौंधी राज द्वारा पहले ही लिखा जा चुका था। यह उपन्यास की कथावस्तु जमींदारी काल की ही है। दूसरा प्रकाशित उपन्यास ‘जिनगिक टोह’ चितरंजन महतो ‘चितरा’ की है। यह उपन्यास की कथा वस्तु विशुद्ध प्रेम कथा है। खोरठा गद्य साहित्य का विकास  में उपन्यास महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है। 

खोरठा नाटक का विकास

नाटक खोरठा भाषा में नाटक लिखने की परम्परा प्रभावी मंचन के मांग के आधार पर हुई होगी। गाँव – घरों में पर्व – त्योहारों के अवसरों पर नाटकों का मंचन किया जाता है। उसी को ध्यान में रख कर धांसू नाटक लिखने की परम्परा प्रारम्भ हुई होगी। ऐसे नाटकों के मंचन के बाद फिर इन्हें सुरक्षित रखे जाने के कार्य भी नहीं होंगे। सैकड़ो में इनकी संख्या होगी और कुड़े – कचड़े में पड़े ये विलख रहे होंगे। आवश्यकता है। इन्हें खोज निकालने की और कचड़ों से मुक्त कराने की। ये खोरठा गद्य साहित्य की अमूल्य धरोहर हो सकते हैं। श्री निवास पानुरी जी के उदवासल कर्न और चाभी काठी से खोरठा नाटक साहित्य और खोरठा गद्य साहित्य दोनों का प्रारम्भ माना जा सकता हैं। वर्तमान समय में प्रकाशित नाटक हैं

1. उदवासल कर्ज श्री निवास पानुरी द्वारा लिखित खोरठा भाषा का पहला नाटक है। इसकी कथा – वस्तु पौराणिक है, जो महाभारत के एक आख्यान पर आधारित है।

2. चाभी काठी – श्री निवास पानुरी जी द्वारा लिखा गया दूसरा नाटक है। इस नाटक में गाँव – घरों में उत्पन्न समस्याओं को दिखाया गया है। इसका केन्द्र बिन्दु गाँव की गरीबी, बेरोजगारी आदि है।

3. मेकामेकी ना मेटमाट- यह नाटक खोरठा के प्रगतिशील रचनाकार श्री अजीत कुमार झा जी के द्वारा लिखा गया है। इस नाटक मे अंग्रेजी काल में किसानों के शोषण को दिखाया गया है।

4. अगजर – श्री विश्वनाथ दसौंथी राज द्वारा लिखित नाटक का केन्द्रीय विषय सामाजिक शोषण और भ्रष्टाचार है। समाज में हो रहे सारे प्रकार के शोषण और परजीवी लोगों की ठगी प्रवृति को चित्रित किया गया है।

5. परासचित – मनपुरन गोस्वामी का खोरठा नाटक परासचित एक एकांकी नाटक है। इसमें नाटक के सभी तत्व, घटना, और उद्देश्य समायोजित हैं। सामाजिक समस्याओं को धर्म से जोड़ कर उसकी पोंगापंथी को उजागर किया है ।

6. डाह सुकुमार जी का डाह एक सामाजिक नाटक है। झारखण्डी समाज ही नहीं सारी दुनिया का समाज ईर्ष्या द्वेष (डाह) का शिकार है। इसी विषय को केन्द्रीत कर इस नाटक की रचना की गई है।

7 इंजोरिया नाटक संग्रह डॉ आनन्द किशोर दाँगी द्वारा लिखित 8 नाटकों का संग्रह है। इंजोरोरिया, आइखेक दान, खिलौना, उजाड़, प्रदुषण, मनरेगा, डाइन, महारैला हैं। ये सभी नाटक वर्तमान समाजिक समस्याओं के ऊपर लिखी गयी है। डॉ दाँगी की ये सभी नाटक रांची दूरदर्शन द्वारा टेलीफिल्म प्रसारित है। इनके द्वारा लिखीत नेत्र दान महादान काफी चर्चित हुई।

खोरठा कहानी का विकास

कहानी कहानी कहने और सुनाने की परम्परा खोरठा भाषा में प्राचीनकाल से चली आ रही है। अतः खोरठा भाषा में कहानी का प्रचुर भंडार है । खोरठा कहानियों में आदमी के , सियार – भालू , चिरय – चिरगुनी , बाभन भूत , भाउल बान्दर , राजा मंत्री और अन्य छोटे – बड़े ढंग की कहानियाँ हैं। लोक कहानियों के साथ – साथ शिष्ट साहित्य के कहानियों की भी कमी नहीं है, किन्तु यह भी सत्य है कि खोरठा शिष्ट साहित्य में शिष्ट कहानियों की जितनी अधिक संख्या होनी चाहिए, उतनी नहीं है। 20 वीं सदी के उतरार्थ तक खोरठा शिष्ट कहानियों का साक्ष्य अत्यल्प मिल पाता है, किन्तु साठोत्तरी दशक मे अधिक तेजी आई। साठोत्तरी के बाद श्री निवास पानुरी जी की मासिक पत्रिका ‘मातृभाषा’ , विश्वनाथ दसौंधी राज द्वारा संपादित पत्रिका ‘तितकी’ कहानियों की रचना प्रारम्भ हो गई। 21 वीं सदी के शुरू से ही कहानी विधा में अधिक कहानियाँ लिखी और प्रकाशित की जाने लगी हैं।

कुछ खोरठा कहानियों के नाम हैं-

  • महुआ – विश्वनाथ दसौंधी
  • श्री विनोद कुमार तिवारी , ढोलनाक बोसी राज
  • , घर जवाइक घेचाक ढोल गौरीशंकर प्रभाष ,
  • गजाधर महतो ‘ प्रभाकर ‘ जी का पुटुस फूल
  • कहानी संग्रह , फरीछ डहर पंचम महतो ,
  • छांहडहर चितरंजन महतो चितरा ,
  • सोंथमाटी में डॉ . विनोद कुमार की अनेक कहानियाँ संग्रहित है ।
  • ढरकल लोर- डॉ . डी.सी. राम ,
  • खटरस -जनार्दन गोस्वामी ‘ व्यथित
  • कुसमी  -श्री निवास पनुरी
  • मांझे – भुनेश्वर साहू
  • धरम कर्म  दिनेश दिनमणि
  • सोन्ध माटिक टाव  डॉ भोगनाथ ओहदार
  • विरखोद – डॉ आनन्द किशोर दाँगी
  • टुवर- डॉ आनन्द किशोर दाँगी
  • एक मुठी धान- डॉ आनन्द किशोर दाँगी
  • माइक लोर -डॉ विनोद कुमार
  • ओद दीदा-डॉ विनोद कुमार
  • सदगति-जनार्दन गोस्वामी
  • बदराज बाबा-मानपुरन गोस्वामी
  • दादी जी- पंचम महतो
  • हाइर गेलों तोर परेमें -विनय तिवारी
  • फरीछ डाहर-पंचम महतो
  • धुंगा-डॉ अरविंद कुमार
  • चेठा-गिरधारी गोस्वमी आकाश खूंटी

इत्यादि सैकड़ो कहानियाँ खोरठा भाषा में उपलब्ध हैं ।

खोरठा निबंध का विकास

निबंध – निबंध शब्द की व्युत्पति के संबंध में ‘ गणपतिचन्द्र गुप्ता ने लिखा है- “मूलतः निबंध शब्द का अर्थ रोकना या बांधना है तथा इसके पर्यायवाची के रूप में लेख, संदर्भ, रचना, प्रस्ताव आदि का उल्लेख किया जाता है, किन्तु आजकल इसका प्रयोग लैटिन के एग्जीजियर के अर्थ में होता है। आधुनिक साहित्य में निबंध की विधा का विकास भी बहुत कुछ पाश्चात्य साहित्य की प्रेरणा से हुआ है। निबंध के पाँच लक्षण हैं निबंध एक गद्य रचना के रूप में लिखा जाता है। निबंध में लेखक के निजीपन और व्यक्तित्व की छवि की झलक होती है। निबंध में अपूर्ण और स्वच्छंदता के होते हुए भी वह स्वतः पूर्ण होता है। निबंध में व्यक्ति के एक दृष्टिकोण का प्रतिपादन होता है, और निबंध साधारण गद्य की अपेक्षा अधिक रोचक और सजीव होता है। खोरठा भाषा मे समय – समय पर विभिन्न पत्र – पत्रिकाओं में अनेक खोरठा निबंध छप चुका है, कुछ का उदाहरण इस प्रकार है

  • खोरठा लिपि परिचय  -श्री नागेश्वर महतो,
  • खोरठा व्यंग्य रचना – गिरधारी गोस्वामी  आकाश खूंटी
  • अलग राइजे – झारखण्डी भाषा सहित लेखन प्रवृति डॉ . बी . एन . ओहदार ,
  • खोरठा एगो स्वतंत्र एवं समृद्ध भाषा, शिवनाथ प्रमाणिक ,
  • समाजेक सहिया – परितोष कुमार प्रजापति ,

साहित्य में निबंध साहित्य के अन्तर्गत अनेको रचनाएँ भरे पड़े हैं। फिर भी यह नहीं कहा जा सकता है कि निबंध साहित्य पूर्ण विकास का लक्ष्य प्राप्त कर लिया है। अभी भी पूर्ण विकास की ओर अग्रसर है। श्री बी. एन. ओहदार जैसे कुछ और निबंधकार जब अपने निबंधों को प्रकाश में लाने लगेंगे तो खोरठा साहित्य की इस निबंध विधा का विकास संभव हो सकेगा।

खोरठा संस्मरण का विकास

सस्मरण – “भावुक कलाकार जब अतीत की अनंत स्मृतियों में से रमणीय अनुभूतियों को अपनी कोमल कल्पना से अनुरंजित कर व्यंजनात्मक संकेत शैली में अपने व्यक्तित्व की विशेषताओं से विशिष्ट कर रोचक ढंग से यथार्थ रूप में व्यक्त कर देता है, तब उसे संस्मरण कहते हैं।खोरठा गद्य साहित्य में संस्मरण की अवधारणा को ‘डॉ. भोगनाथ ओहदार ने इस प्रकार व्यक्त किया है – “संस्मरण साहित्य के मोटा – मोटी माने ओकर नामे से फुरछा हे, संस्मरण माने सामान्य रूपे इयाद करा हवे हे। संस्मरण शब्द सम + स्मरण से बनइल है। ई संस्कृत शब्देक अरथ हवे हे सम्यक रूप से स्मरण करा। माने संतुलित भावे, बेस भावे इयाद करा साहितेक विधाक ई सवद के भाव के पुरछवल जाइ तो परिछ हव हे जे कोनो विसेसे घटना परसंग वा कोनो विसेस वेकइत वेकति वा कोनो परानी केर खास इयाद जखन इयाइद करवाइयाक अनुभूति आर संवेदना के रसे डुइब के आखर रूपे शब्द रूपे उखइर जाइ आर उटा सामाइनेक संवेदना आर अनुभूति के छुवे लागे तो संसरण साहित के रूपे जानइल जा हइ।

खोरठा गद्य साहित्य में संस्मरण विद्या की रचना का प्रारम्भ 1990 के दशक से प्रारम्भ हुई। अतः संस्मरण बहुत कम मात्रा में खोरठा गद्य साहित्य में उपलब्ध है। विभिन्न पुस्तकों और पत्र – पत्रिकाओं में प्रकाशित संस्मरणों की सूची निम्नवत है

  • बोरवा अड्डाक अखरा बोर – शांति भरत ,
  • उड्ड़ गेलक फुलवा रहइ गेलक बांस – गोविंद महतो जंगली
  • हंसमुख लोक कवि तितकी राय  -जनार्दन गोस्वामी ‘ व्यथित ’
  • मने परे से आवल खेड़ाक अधपुरवा जातरा -श्री पंचम महतो
  • उजरल खोंधा जनार्दन गोस्वामी ‘ व्यथित ‘
  • खोरठा के अनन्य उपासक पानुरी जी -विकल शास्त्री ,
  • कम्युनिष्ट विचारधाराक लोक पानुरी जी -शिवनाथ प्रमाणिक
  • विसुनपुरेक दुर्गा पूजा -जनार्दन गोस्वामी ‘ व्यथित ‘
  • रेला- डॉ आनन्द किशोर दाँगी

इस विधा में देर से रचना प्रक्रिया प्रारम्भ हुई ,किन्तु आशा है कि जब इस विधा में विकास प्रक्रिया चल पड़ी है तो सतत् प्रवाहशील होगी।

खोरठा आत्मकथा का विकास

आत्मकथा खोरठा शिष्ट साहित्य एक तरह से नवजात साहित्य है। यही कारण है कि साहित्य की सारी विधाओं में एक सा विकास नहीं हो पाया है। आत्मकथा लेखन कार्य अभी नहीं के बराबर ही माना जाना चाहिए, किन्तु इसके विकास कीअपरिमित संभावनाएँ हैं। आत्मकथा वैसे लिखी जाती है, जो समाज में किसी मायने में अति विशिष्ट हो और जिनके चरित्र समाज को एक नई दिशा मिल सके और मार्गदर्शन प्राप्त हो सके। साहित्य, राजनीति, संस्कृति, नैतिकता और अर्थक्षेत्र में से विशिष्टता प्राप्त व्यक्तियों के आत्मचरित्र से ही ऐसा दिशा – निर्देश मिलता है। खोरठा साहित्य अब तक इन तथ्यों से प्रायः अपरिचित – सा लगता है, हालांकि ऐसी विभूतियाँ इस साहित्य क्षेत्र में अनेक है.

जीवनी खोरठा साहित्य में जीवनी पर पर्याप्त रचना उपलब्ध नहीं है, फिर भी शून्यता से परे विकास गति को प्राप्त कर चुका है। जीवनी साहित्य से जुड़ी रचनाएँ, पत्र – पत्रिकाओं में प्रकाशित होती चल रही हैं। इससे जुड़ी सूची निम्नलिखित है। 

  • बोडाइल साहितकारक ध्रुवतारा पानुरी जी-प्रदीप कुमार ‘ दीपक
  • साहितेक उतराधिकारी पुत्र अर्जुन पानुरी,
  • खोरठा खुटा तितकी राय-मो सिराजउदीन सिराज
  • खोरठा विद्यपति भव प्रोतोनन्द- विश्वनाथ दसौंधी राज
  • बड़का बुज़ुर्ग विरसा -अजीत कुमार झा
  • शेख भिखारी -पारसनाथ महतो

इस प्रकार कहा जा सकता है कि इस विधा में खोरठा साहित्य धनी नहीं बन पाया है, किन्तु भविष्य में जीवनी लेखन के मामले में घनी होगा।

खोरठा यात्रा वृतांत का विकास 

यात्रा वृतांत खोरठा साहित्य में यात्रा वृतांत विधा में अनेक रचनाकारों ने रचना की है, किन्तु उतनी संख्या में नहीं है, जितनी होनी चाहिए। विभिन्न पत्र – पत्रिकाओं में प्रकाशित यात्रा वृतात निम्नवत है. 

  • गंगा सागर- पंचम महतो ,(प्रकाशित लुआठी , अंक -5 , दिसम्बर , 2000)
  • संकरी नदिक कछार – शिवनाथ प्रमाणिक ,(प्रकाशित तितकी , अंक – स्मारिका , अप्रैल , 2000)
  • अंडमान- मंचम महतो ,( प्रकाशितअंक- प्रवेशांक , जनवरी , 2009)
  • पानुरी जीक खोजे तीन दिन – प्रदीप कुमार ‘ दीपक ‘ , (प्रकाशित , अंक- पारी स्मृति अंक , मार्च , 2002)
  • दारजिलिंग आर गंगटोक जातरा – डॉ . चतुर्भुज साहू , (प्रकाशित खोरठा गइद – पइद , संग्रह , 1989)
  • छोटानागपुर , नैनीताल , नेतरहाट जातरा वृतांत – डॉ . बी . एन . ओहदार

         उपर्युक्त यात्रा वृतातों में क्षेत्रीय प्राकृतिक सौन्दर्य का वर्णन, कहीं अनुसंधान और खोज का वर्णन तथा कहीं धार्मिक आध्यात्मिक महत्व के इंगित प्रदर्शित हैं। यात्रा साहित्य खोरठा साहित्य की एक नवीन विधा है। इस विधा पर भी खोरठा गद्य साहित्य में कम काम हुआ है। इस साहित्यिक विधा के संबंध में ‘डॉ. बी. एन. ओहदार’ कहते हैं।  ” मोटाइल रचना गुला कोन्हों भासाक पहिल उर साहित नियर अनगढ़ आर स्तरहीन नांञ् भइके साहितेक पाइ – पाइनाई प्रायः खाटी डंडा हइ। “

खोरठा गद्य साहित्य का विकास की एक लम्बी यात्रा है। किसी भी भाषा का गद्य का विकासः लोक कहानी से माना जाता है। प्रारंभ में मनुष्य के पास मनोरंजन का साधन लोक कहानी थी। धीरे धीरे गद्य सहित्य के अन्य विधाओं का विकास होने लगा। आज खोरठा गद्य साहित्य के लगभग सभी विद्याओं में रचना मिलने लगी हैं। किंतु इस  इंटरनेट के युग मे पुस्तक लेखन में कमी आयी है। पुस्तक प्रेमियों की कमी आयी और ऑनलाइन पाठको की वृद्धि हुवी है। इसी को ध्यान में रख कर मैं अपने ब्लाग के माध्यम से रचनाओं को आप तक लाने का प्रयास किया हुँ।

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खोरठा भाषा का उद्भव और विकास

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