Kharwar tribe| खरवार जनजाति | KHARWAR JANJATI KA SAMANYA PARICHAY

खरवार जनजाति (KHARWAR JANJATI) भारत के झारखंड बिहार छत्तीसगढ़ उड़ीसा पश्चिम बंगाल इत्यादि राज्यों में बहुलता के साथ पाई जाती है । झारखंड में इस जनजाति की  आबादी सबसे अधिक है और यह झारखंड के गढवा ,पलामू ,लातेहार, रांची ,लोहरदगा , इत्यादि क्षेत्रों में मुख्य रूप से निवास करती है । इतिहासकारों के अनुसार खरवार जनजाति का मूल निवास रोहतासगढ़ रहा है।ये अपना वंशज सूर्यवंशी हरिश्चंद्र के पुत्र मानते हैं ।

खरवार जनजाति का उत्पत्ति  – KHARWAR JANJATI ORIGIN IN HINDI 

खरवार शब्द को तीन अलग-अलग स्तंभों में प्रयुक्त किया जाता है झारखंड के पलामू जिलों में निवास करने वाले खिरवार अपने को 18 हजारी कहते हैं और अपना संबंध सूर्यवंशी राजपूत से स्थापित करते हैं. दूसरी मान्यता के अनुसार यह अपने को संथाल जनजाति का एक वर्ग मानते हैं । और तीसरी मान्यता के अनुसार यह लोग अपने को कभी सोन घाटी में निवास करने वाले खरवार जनजाति का मानते हैं क्योंकि इन क्षेत्रों में व्यापक पैमाने पर खेर का पेड़ पाया जाता है  और उसका उपयोग प्राय कथा बनाने में प्रयोग करते थे . खेर के लकड़ी से कथा निकालने का जो काम करते थे जिसके कारण इनका नाम खरवार पड़ गया

खरवार जनजाति का इतिहास  -KHARWAR JANJATI  HISTORY

विद्वानों का मानना है की खरवार द्रविड़ मूल की जाती है.  इनके पूर्वज  वृंदावन उत्तर प्रदेश में कथा बनाने का काम करते थे और वहां से वे कैमूर आकर बस गए और खेर के पेड़ से कथा निकालने का काम करने लगे जिसके कारण इनका नाम खरवार पड़ गया ।

पूर्व वैदिक काल में खारवाल सभ्यता के विकास की चर्चा हेंब्रम ने की है उन्होंने मोहनजोदड़ो हड़प्पा एवं कालीबंगा में मिले अवशेषों को घरवाली सभ्यता का अवशेष माना है ।

इतिहासकार SANDAR ने  खरवार (KHARWAR JANJATI) की 6 उप जातियां बताई है-सूर्यवंशी ,दौलतबांदी, घर बंदी खेई, भोक्ति या गंझु , मांझी। उन्होंने यह भी कहा है सोन घाटी में बसने वाले एक जन समूह अपने आप को खरवार जनजाति कहते हैं .

एक मान्यता यह भी है की उड़ीसा के कटक के आसपास खैरागढ़ में छतरिया खरवार रहते थे और वे वहां से झारखंड आने के बाद अपने को खरवार कहने लगे ।

पलामू क्षेत्र में शेरो राजाओं का शासन चलते आ रहा था और यह चेरो  राजाओं का एक वफादार सैनिक के रूप में काम करते थे ।  राजाओं का इनका भरपूर सहयोग रहा और चेरो  राजाओं के द्वारा उनके सहयोग के बदले में जागीर प्रदान किया गया था .

खरवार की भाषा – KHARWAR JANJATI LANGUAGE

  • खरवार जनजाति की भाषा आस्ट्रिक  भाषा परिवार की है. इस भाषा की सात उप भाषाएं हैं-मुंडारी, संथाली ,हो , खड़िया, आसुरी ,बिरहोरी एवं थारो.
  • खरवार जनजाति लोग व्यावहारिक रूप में हिंदी भाषा बोलते हैं और अपने घरों में खोरठा का प्रयोग करते हैं और इस भाषा में मगही  भोजपुरी का मिश्रण देखने को मिलता है. लेकिन मूल रूप से खोरठा भाषा का प्रयोग करते हैं.
  • जे. टी.  ब्लेंट ने कुछ खेरवाड़ी शब्द का उदाहरण दिया है जैसे मिंका=नमक , चर्गुर = बकरी ,करोना=  बाघ ,
  • खरवार जनजाति झारखंड की जिस क्षेत्र में बसे हैं वहां बोले जाने वाले सदनी परिवार की भाषा का मिश्रण बोलते हैं जैसे गढ़वा, पलामू लातेहार में खोरठा , लोहरदगा क्षेत्र में नागपुरी ।

खरवार जनजाति की सामाजिक व्यवस्था (KHARWAR JANJATI) 

खरवार जनजातियों की सामाजिक व्यवस्था राजपूत जातियों की सामाजिक व्यवस्था से मिलता जुलता हैं किंतु खरवार जनजातियों की अपनी सामाजिक व्यवस्था अपनी पहचान है । पलामू खरवारों की खरवार की 6 उप जातियां है-सूर्यवंशी ,दौलतबांदी, घर बंदी,शतबंदी खेरी , भोक्ता  या गंझु , इसी प्रकार दक्षिणी छोटा नागपुर में निवास करने वाली खरवार चार इकाइयों में बटी हुई है-देश वाली, भोक्ता ,रावत और मंझिया ।

खरवार जनजाति का गोत्र (KHARWAR JANJATI KA GOTRA) 

खरवार जनजाति पितृ सत्तात्मक परिवार होते हैं जिसके कारण गोत्र पिता के वंश से आगे बढ़ता है । इतिहासकार रिजले इस जनजाति के 75 प्रकार के गोत्र की चर्चा की है-। कांशि (झाड़ी फूल), सम्दुवार, सिन्दवार (पेड़), बहेरवार (बहेरा पेड़), नुनीयार (भोजन के साथ उपरी नमक नहीं खाता है), कौडीयार (कौड़ी गला में नही पहनता है), कछुआ, वरेवा (जानवर जो शेर से भी भिड़ जाता है), बधवार (बाघ), केरकेटा (पक्षी), इंदुवार (मछली जो नदी के दह में रहता है, इसका वजन 30 किग्रा. से भी अधिक हो सकता है), बादुल (चमगादड़), मोहकल (गोले रंग की चिड़िया जो बहुत कम मिलता है और चिड़िया जैसा तुरंत नहीं उड़ सकता है तथा ज्यादा दूर भी नहीं उड़ पाती है), दुंदुं (रात में बोलने वाली चिड़िया) आदि मुख्य है। उपरोक्त गोत्रों में कांशि गोत्र प्रधान है।

विवाह– खरवार जनजातियों में विवाह का प्रस्ताव वर पक्ष की तरफ से कन्या पक्ष की ओर जाता है । विवाह का कार्यक्रम सोहराय पर मनाने के बाद शुरू हो जाती है फिरवार जनजातियों में विवाह के कई प्रकार हैं -सेवा विवाह अपहरण विवाह गोलात  विवाह एवं प्रेम विवाह । पुनर्विवाह अथवा विधवा विवाह का भी प्रचलन है प्रोग्राम

धार्मिक जीवन (KHARWAR JANJATI  RELIGION) 

खिरवार जनजातियों की धार्मिक व्यवस्था हिंदू एवं जनजातियों की धार्मिक व्यवस्था का मिश्रण रूप देखने को मिलता है खरवार जनजातियों की मुख्य देवता दुहाई है । देवियों में -बूढी माता ,तिकैती माता , इकसो देवी, बाईसो बहिन ,कमला माता ,कलि माता ,रही माता ,सुर्जाही माता. पुजारी के रूप में बेगा कार्य करता है .

राजनीतिक प्रणाली- KHARWAR JANJATI POLITICAL SYSTEM

खिरवार जनजातियों की अपनी पारंपरिक राजनीतिक व्यवस्था है  । ग्राम स्तर में प्रमुख के रूप में मांझी कार्य करता है तथा इसके कार्यों को सहायता प्रदान करने के लिए महतो ,बैगा ,पूजार ,भंडारी होते हैं । चट्टा पंचायत के भी परंपरा देखने को मिलता है यह 6 गांव से लेकर 16 गांव मिलकर बनता है ।

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