Importance of Khortha Folk Literature: खोरठा लोक साहित्य का महत्व

खोरठा लोक साहित्य का महत्व

(Importance of Khortha Folk Literature):

 देश, काल, परिस्थितियाँ, वातावरण, रीति-रिवाज एवं विधि-विधानों का स्वरूप वहाँ के लोक साहित्य में ही दिखाई देता है। अतीत की घटनाओं, आदिम मानव की प्राचीनतम रूपरेखाओं एवं उसके यथार्थ रूप को जानने में, जहाँ इतिहास के पृष्ठ भी मूक हो जाते हैं, शिलालेख खुदाई आदि से प्राप्त साधनों द्वारा मिलने वाले प्रमाण, खंडहर एवं सिक्कों, ऊँचे-ऊँचे स्तूपों के बीच बन्दप्राय हो जाते हैं, वहाँ लोक साहित्य तथा इसके सभी आवश्यक अंग ही दिशा ज्ञान कराते हैं।
लोक साहित्य की इस उपादेयता को देखते हुए इसके महत्व पर एक दृष्टि डालना अधिक समीचीन होगा। खोरठा लोक साहित्य के महत्व (Importance of Khortha Folk Literature)को निम्नलिखित रूप में देखा  जा सकता है –

 ऐतिहासिक महत्व:-

Nagar utari kila
Nagar utari kila

 लोक गीतों और गाथाओं में तत्कालीन इतिहास का गहरा नाता -गोता मिलता है, जिनके सम्यक अध्ययन और अनुशीलन से विलुप्त इतिहास पर पूरा-पूरा प्रकाश पड़ता है।
15वीं-16वीं शताब्दी में खोरठा क्षेत्रों में राजा-महाराजाओं के मनोरंजन के लिए लोक गीत, लोक गाथा गाये जाते थे। इस संबंध में ऐतिहासिक प्रमाण 17वीं सदी के आस-पास रामगढ़ राजा दलेल सिंह से मिलना प्रारम्भ होता है। इस संबंध में डाॅ0 बी0एन0 ओहदार अपनी पुस्तक खोरठा भाषा एवं साहित्य में लिखते हैं – ‘‘लागाइत दू-तीन सउ साल बाद मनेक बीसवी सदीक सुरू-सुरू दू चाइर गो रचनाकार के आर ओखनिक रचनाक पता चलो हइ्। ऊ सब रचनाकारेक नाम हइन तीतकी राय, गांगूराम, हाडीराम, आरो आरो इखनिक रचनाक पता नांय चलइ। किन्तु लोके ई सोभेक नाम ढेइर विख्यात हइ्। तितकी राय जातेक भाट हलथ आर लोक गीत, कविता आर चुटकुला व्यंग्य इनखर गीत कविताक सइली हलइन। इनखर ई व्यंग्य सइली टा लोके एतना प्रभाव छोडल हल कि जे कोन्हो लोक कोन्हो व्यंग्य फिगाठी बइजवेक चेष्टाव करथ तो ऊ सभेक नाम तितकी राय पइर जा हलइ। गंगूराम आर हांडीराम कृष्ण भक्ति धाराक सिंगार परक गीत जोइर जाइर के नचनी नचवेक आर सामंत जमींदार के खूस राखेक काम करो हलथ। मनेक खोरठा साहित से राजा-महाराजाक जानकारी भेटा लगलइ।’’

धार्मिक महत्व:-

लोकजीवन और धर्म का चोली-दामन का संबंधहोता  है। लोक जीवन का कोई कार्य धर्म के प्रतिकूल नहीं होता है। यह धर्म भी सामाजिक धर्म से बहुत कठोर और असीमित होता है। लोक धर्म की परिधि में आचार-विचार, शिष्टाचार और नीति सम्बन्धी सभी विधान आ जाते हें। देवी-देवताओं की पूजा, आराधना, बहु भांति उपायों और सामग्रियों से करने का उल्लेख लोक गीतों में मिलता है। धर्म के अनेकानेक गूढ़ भाव और रहस्य लोक विधानों तथा व्रतों में मिलता है।
खोरठा लोक साहित्य पर्व-त्योहारों से काफी प्रभावित है। प्रत्येक पर्व-तेहार में लोकगीत एवं धार्मिक लोककथाएँ भरी पड़ी हैं। झारखण्डी लोक साहित्य की सबसे बड़ी विशेषता है, कि किसी भी रीति को पुरा करने के लिए लोकगीत पंडित का कार्य करता है। अर्थात् किसी भी त्यौहार या संस्कार संबंधी कोई भी नेग बिना लोकगीत के सम्पन्न नहीं होता है। इस प्रकार देखा जाता है कि लोक मानव की निष्ठा कितनी गहराई तक जमी होती है, इसकी कल्पना तक नहीं की जा सकती है।

सामाजिक-सांस्कृतिक महत्व:-

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लोक साहित्य सामाज  का दर्पण होता जैसा सामाज वैसा साहित्य होता है। समाज का जितना सच्चा और स्वभाविक चित्रण लोक साहित्य में दिखाई देता है, उतना अन्यत्र नहीं। अतीत के समाज के ढाँचे को देखने का सुन्दरतम् साधन लोकगीत, लोक गाथा, कथा और कहानी आदि होती है। पारिवारिक, सामाजिक और धार्मिक बंधन ही नहीं, मनुष्य का उसके प्रत्येक संबंधियों से संबंध का उत्कृष्टतम रूप भी लोकगीतों के माध्यम से परिलक्षित होता है। इसका कारण यह होता है कि लोक कवि जैसा देखता है, उसका आदर्श ही उपस्थिति करना चाहता, अपितु यथार्थ रूप भी अपनी तुलिका से अंकित करता है।
लोक साहित्य में सांस्कृतिक महत्व के संबंध में महात्मा गाँधी ने कहा था – ‘‘लोक गीतों की प्रशंसा अवश्य करूँगा, क्योंकि मैं मानता हूँ कि लोकगीत समूची संस्कृति के पहरेदार होते हैं।’’

भौगोलिक महत्व:-

लोक साहित्य के भूगोल संबंधी बहुत सामग्री भरी पड़ी है। लोकगीतों में मिलनेवाले वादियाँ, नगरों और स्थानों के उल्लेख से वहाँ की स्थिति, प्राकृतिक बनावट आदि का अनुमान सहज रूप से लगाया जा सकता है। खोरठा लोक साहित्य में चाहे वह लोकगीत हो या लोककथा या फिर कहावत, मुहावरा या बुझवल सभी में यहाँ की भौगोलिक परिस्थिति की विषद जानकारी प्राप्त होती है।

राजनीतिक महत्व:-

राजनीतिक दृष्टिकोण से लोक साहित्य का महत्व अधिक है। किसी काल में वहाँ के समाज में राजनीतिक उथल-पुथल, किसी देश की आक्रमण नीति तथा दूसरे देश की अपनी सुरक्षात्क कार्यवाहियों को करने में किसी नीति रीति का पालन करना पड़ता है, इसका सही चित्रण वहाँ के साहित्यकारों की लेखनी द्वारा ही होता है। अतीत की आपसी फूट, मतभेद एवं देश की गुलामी तथा उस गुलामी की बेड़ियों को तोड़ने में प्रयोग की जानेवाली नीतियों का यथावत निरूपण लोकगीतों में सर्वत्र मिलता है।

शिक्षा विषयक महत्व:-

शिक्षा विषयक महत्व दृष्टिकोण से लोक साहित्य का अत्याधिक महत्व है। ग्रामों में साधनों की बहुत कमी होती है। परन्तु ऐसा नहीं है कि ग्रामीण बच्चे शिक्षा या नीति संबंधी नवीन बातों से अनभिज्ञ रह जाते हों। शिष्ट समाज में जहाँ साधन सम्पन्नता के कारण बच्चे किताबी ज्ञान ग्रहण कर लेते हैं, वहीं ग्रामीण बच्चे अपनी माँ, दादी, चाची, नानी और अन्य बुजुर्गों से लोक कथा और नीतिगर्भित कहानियाँ सुनते हैं, जिनमें ज्ञान, शिक्षा, नैतिकता और दर्शन संबंधी अनेक तत्व भरे होते हैं। ग्रामीण बच्चों के लिए माँ, दादी और नानी का समीप्य ही पाठ्शाला होता है, जिनके मुख से स्वभाविक गीत,कथा और लोकोक्तियाँ निकल कर बच्चों के मनोरंजन ही नहीं ज्ञानवर्धन में भी सहायक होती है।

मनोरंजन:-

लोक साहित्य मनोरंजन का एक साधन भी माना जाता है। लोकगीत हमारी जिन्दगी का नवीकरण करते हैं। पर्व-त्योहारों में लोकगीत एवं लोक संगीत की मधुर ध्वनि मानव के व्यस्त जीवन से त्राण दिलाती है। ये तनाव दूर करने में सहायक होते हैं। इस तरह लोक साहित्य न सिर्फ मानव रंजन करते हैं, अपितु मनोरंजन भी करते हैं।

खोरठा लोग गीत में देखा जा सकता है –

खोरि खोरि कांदइ, दइआ टुअर हो
दइआ कोने करतइ दुलार
आपन मइआ रहइ तलइ घुरा फिर कोरा लेतइ
एहो मोसि मइआ ठेलि पइठावे
ककर दुलारू बेटा दुइओ हाथे बेरवा हो
एहो ककर दुलारू दूधे भाते
बापा के दुलारू बेटा दुइओ हाथे बेरवा हो
एहो मइआ के दुलारू दूधे-भाते।|

भाषाशास्त्री महत्व:-

लोक साहित्य भाषाशास्त्री के लिए अमूल्य निधि है। लोक साहित्य में व्यवहृत शब्दों की उत्पत्ति का पता लगाने से अनेक भाषा संबंधी गुत्थियाँ सुलझायी जा सकती हैं। लोक साहित्य में ऐसे भी शब्दों का प्रचलन मिलता है, जिनके विकास परम्परा के इतिहास को देखने से ऐसा अनुमान होता है कि कदाचित इन शब्दों की व्युत्पत्ति वैदिक संस्कृति से हुई हो। उदाहरण के लिए बांझ व बन्ध्या बैल को वशा कहते हैं। वशा शब्द वैदिककालीन है। बांझ या बन्ध्या को खोरठा में बहिला कहते हैं। सिन्धु से हिन्द और हिन्द से हिन्दु की भाँति वशा से बहा और बहिला की निष्पति मानी जा सकती है। ऐसे शब्दों के क्रमिक विकास के संबंध में भाषाशास्त्रियों को लोक साहित्य के शब्दों से पर्याप्त सहायता मिलती है।

शिष्ट साहित्य के निर्माण में सहायक:-

लेखक : डॉ.आनंद किशोर दांगी

लोक कथा संसार के सामान कथा साहित्य का जनक है और लोकगीत सफल काव्य की जननी है। मेरा तो यह भी मत है कि जिस समाज या समुदाय का लोक साहित्य जितना समृद्ध होगा उसका शिष्ट साहित्य सृजन की संभावना उतना ही अधिक प्रबलता से मौजूद होगी। चूंकि भारतीय समुदाय का लोक साहित्य काफी समृद्ध है। यही कारण है, आज राष्ट्रभाषा हिन्दी विश्व के मंच पर अपना स्थान ग्रहण कर चुकी है। इसलिए संसार का वर्तमान शिष्ट साहित्य के निर्माण में लोक साहित्य की महता को नकारा नहीं जा सकता है।

                         आलेख : डॉ .आनन्द किशोर दांगी ( खोरठा भाषा साहित्यकार)

       

 

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