गोंड जनजाति ( Gond tribe ) मूलतः गोंडवाना क्षेत्र के निवासी हैं, गोंडवाना क्षेत्र में निवास करने के कारण इसे गोंड जनजाति कहा जाता है। यह भारत की दूसरी बड़ी जनजाति है। यह भारत के विभिन्न राज्यों में पाए जाते हैं ,जिनमें प्रमुख है- झारखंड ,मध्य प्रदेश, आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र, गुजरात, कर्नाटक, उड़िसा, तथा पश्चिम बंगाल है। गोंड़ अपनी मातृभाषा गोंडी बोलते हैं। भाषा वैज्ञानिक रिजले इन्हें भाषाई आधार पर द्रविड़ माना है। वही विलियम कुक ने गोंड को मध्य भारत का मूल निवासी बताया है। गोंड जनजाति( Gond tribe ) भारतीय राज्यों में सबसे अधिक मध्य प्रदेश में पाई जाती है और वहाँ की सबसे बड़ी जनजाति है। मध्य प्रदेश के मंडला जिले में इनका सर्वाधिक संकेद्रण है।
गोंड जनजाति की उत्पत्ति के संबंध में विद्वानों का मत (origin of Gond tribe)
गोंड जनजाति के उत्प्रपति के संबध में मानवशास्त्री अपना मत दिया है जो इस प्रकार
- रिजले – पौराणिक कथाओं के अनुसार मध्य भारत के गोंडवाना प्रदेश से स्थानांतरित होकर भरत के अन्य प्रदेशों में आ बसे । रिजले ने इन्हें गैर-आर्यजाति का और भाषाई आधार पर द्रविड़ माना है।
- विलियम कुक ने गोंड को मध्य भारत का मूल निवासी बताया है।
- पौराणिक ग्रंथो- गोंड जाति का वर्णन पौराणिक ग्रंथो, वेदों तथा अन्य ग्रंथों में मिलता है जिसमें रावण को गोंड वंशीय माना जाता है।
- हिस्लोप (Hislop) ने कहा है कि ‘गॉड’ शब्द की उत्पत्ति तेलगु भाषा के ‘कोड’ शब्द से हुई है। ‘कोड’ का अर्थ ‘पर्वत’ होता है। अतः प्रारम्भ में ये पर्वतवासी थे। गोंडी भाषा में वर्णित कुछ कथाओं से पता चलता है कि ‘गोंडो’ की उत्पति ‘बोरादेव’ अर्थात ‘महादेव’ से हुई है। चूंकि ये अशुद्ध थे अतः महादेव ने इन्हें एक गुफा में बन्द कर दिया। परन्तु बाद में ‘लिंगदेव’ इन्हें आजाद करके जंगल में ले गये जहां इन्हें अनेक गोत्रों में विभाजित किया। धीरे-धीरे ये अन्य स्थानों पर जाकर बसने लगे।
गोंड जनजाति शारीरिक विशेषताएँ- Gond Tribe Physical Characteristics
गोंड जनजाति प्रोटो ऑस्ट्रेलाइड की प्रजाति के है। इनका शारीरिक विशेषताएँ हैं – काला रंग, काले तथा सीधे खड़े होने वाले केश, बड़ी तथा भारी नासिका, गोलाकार सिर, छोटे होंठ, मुंह चौड़ा आदि।
गोंड जनजाति का वर्गीकरण -Classification of Gond tribe
गोंड जनजाति कार्य के आधार पर तीन वर्गो में विभक्त किया गया हैं-
- राज गोंड (Raj Gond) : राज गोंड के पास पर्याप्त भूमि है और कृषि कार्य में लगा हुआ है । कुछ राज गोंड परिवार जमीदार भी है।
- धुर गोंड (Dhur or Dust Gond): धुरगोंड को साधारण गोंड कहा जाता है।
- श्रमिक गोंड (Labourer Gond): श्रमिक गोंड कृषक परिवार के यहां कमिया (Kamia) के रूप में मजदूरी करते है।
टोटम (totem) के आधार: टोटम के आधार पर इनके वर्ग इस प्रकार है- (i) नेतम (कुत्ते का नाम), (ii) बाकरा (एक जंगली बिल्ली), (iii) टीकम (टीक पेड़), (iv) इरापत्री (महुए का पेड़), (v) मरकम (आम का पेड़), (vi) तुमरची (टेड्डु का पेड़)।
इतिहास के पन्नों में गोंड जनजाति (Gond tribe in the history)
भारतीय इतिहास में गोंड जनजाति का महत्वपूर्ण स्थान है । मुगल काल एवं अंग्रेजों के काल में गोंड जनजाति के लड़ाकू प्रवृत्ति सामने आया । जब मुगल प्रशासक एवं अंग्रेजों के द्वारा इनका शोषण प्रारंभ हुआ । इस काल में राजा की सेना में नौकरी करते थे। धीरे-धीरे शासन प्रणाली का गठन कर लिया और अपने क्षेत्र में राजा घोषित हो गए । गोंड शासकों के मुख्यालय पहाड़ों से घिरे और नदियों से सुरक्षित स्थान में होते थे और उनसे लगी थी उपजाउ भूमि जहाँ धान्य-शस्य प्रचुर होता था। अनेकों विशाल एवं मजबूत किलों का निर्माण हुआ जिसमें कुएँ-तालाब से पेय-जल की सुविधा उपलब्ध थी। गोंडों के शासन में समृद्धि बढ़ी, पशुधन बढ़ा। खजाना भरा रहा। 15 वीं सदी तक खंडेला के राजा व गढ़ मंडली की रानी दुर्गावती इतिहास में विख्यात रहीं। जबलपुर के पास का ‘रानी तालाब’ दुर्गावती ने ही बनवाया था।रानी दुर्गावती गोंडों के राजा दलपति शाह की पत्नी थीं। 1504 ई. में जब अकबर के सेनापति ने चौड़ा गढ़ किले पर कब्जा कर लिया तो उन्हें जो हाथ लगा, उसमें सोने-चाँदी क मोलाची, जवाहरात, अन्य मूल्यवान चीजें, सोने के सिक्कों से भरे सैकड़ों पड़े और हार हाथी मिले थे। इसी से गोंड राज्य की संपन्नता का अंदाज लगाया जा सकता है। 18 वीं शताब्दी में मराठ शासको की नजर गोंडवाना के क्षेत्र की संपन्नता पर नजर गड़ गई । और उन्होंने गोंडवाना क्षेत्र पर अधिकार कर लिया , हालांकि कुछ मजबूत किलों पर कब्जा नहीं कर पाये, तब भी गोंडों को तंग करते रहे और सालाना चौथ देने पर उन्हें मजबूर कर दिया।
गोंड जनजातियों की सामाजिक संस्कार (Social customs of Gond tribes)
- जब कोई स्त्री प्रथम बार रजस्वला होती है बिल्कुल ही अलग रहती है। पांचवे दिन स्नान करती है और देवी-देवताओं को स्मरण करके अन्य दिनों के जैसा अपनी गतिविधियों में आ जाती है।
- गोंड जनजातियों में ऐसा विश्वास माना जाता है जो की गर्भ धारण की इच्छा रखने वाली स्त्री शुद्धीकरण के बाद अपने पति के साथ नग्नावस्था में साज वृक्ष (Saj tree) के नीचे जाती है तो यह अवश्य गर्भवती हो जायेगी।
गर्भधारण करने के बाद गर्भवती स्त्री को अपने तथा भावी बच्चे के स्वास्थ्य के लिए कुछ सिषेधों का पालन करना पड़ता है। - शिशु जन्म के पांच दिन बाद स्त्री शुद्ध हो जाती है। लेकिन बदरी-कहीं स्त्रियों 21 से 30 दिनों तक अशुद्ध रहती है और इन दिनों उन्हें खाना पकाना तथा अन्य घरेलू कार्य नहीं करने दिया जाता है इ जोसके बाद ही शिशु का नामकरण संस्कार तथा उसका मुण्डन होता है।
- किसी की मृत्यु होने पर ड्रम बजाकर सूचित किया जाता है। सगे सम्बन्धियों को आने के लिए एक दिन बाद जलाने या गाड़ने के लिए ले जाते हैं। मृत परिवार में साधारणतः तीन दिन का छूत रहता है। इस अवधि में कोई भी नया काम नहीं करते हैं। तीसरे दिन घर की सफाई की जाती है और मृत व्यक्ति के सम्मान में गांव वालों को भोज दिया जाता है।
- गर्भवती स्त्री की मौत होने पर उसके पेट से बच्चा निकालकर एक ही साथ जलाया या गाड़ा जाता है। कोई दूध पीता बच्चा मरता है तो उसे महुए के पेड़ के नीचे गाड़ते हैं। मृतक को जलाने या गाड़ने के पहले मृतक को मोक्ष दिलाने के उद्देश्य से उसके शरीर को नहलाकर उस पर महुए का तेल और इमली का लेप लगाते हैं।
- गोंड लोग बड़े बुजुर्गो की याद को जीवित रखने के लिए उनकी मौत के बाद अपनी सुविधानुसार सड़क के किनारे पत्थर गाड़ते हैं। कोई व्यक्ति अपने गांव से कहीं दूसरी जगह रहता है और वहां किसी व्यक्ति की मौत हो जाती है तो उसके यादगार के रूप में पत्थर गाड़ने का काम पैतृक गांव में ही करता है।
गोंड जनजाति धर्म एवं पर्व-उत्सव (Gond Tribe Religion and Festivals) :
गोंड जनजाति अनेक देवी-देवताओं में विश्वास रखते हैं। इनके प्रमुख देवता ‘ठाकुर देव’ और ‘ठाकुर देई’ (देवी) हैं जो सूर्य और धरती के प्रतीक हैं। ठाकुर देव को गोंड ‘बूढ़ा देव’ भी कहते हैं। इन्हें दो छोटे पत्थर के टुकड़े के रूप में किसी पेड़ के नीचे मिट्टी की दूह पर निरुपित कर दिया जाता है। इनका पुजारी ‘बैगा’ कहलाता है। ‘मति’ उसका सहायक होता है।
अन्य देवी देवता है- गोंड जनजातियों में अन्य देवी देवताएं हैं -जैसे वागदिया, भतुआ, टोडादिया, कूदोपेन, भस्मासुर, धार आदि देवताओं की पूजा की जाती है।
गोंड जनजातियों का पर्व त्योहार (Festival of Gond Tribes)
‘मेघनाथ’ त्योहार- ‘मेघनाथ’ नामक त्योहार गोंड जनजातियों में काफी प्रसिद्ध है जो मार्च के आस-पास मनाया जाता है। इस त्योहार में लोग पांच फीट ऊँची मेघनाथ की मूर्ति बनाकर उस पर बकरे और मुर्गे आदि की बलि चढ़ाते हैं। नारियल, नांरगी, इमली आदि से भी मूर्ति की पूजा करते हैं। बलि चढ़ाने का काम अधिकतर स्त्रियाँ ही करती हैं।
बिदरी त्योहार – गोंड जनजातियों में दूसरा महत्वपूर्ण त्यौहार बिदरी त्योहार है ,जो जनवरी माह में मनाया जाता है। इस त्योहार में भीमसेन देवता की पूजा की जाती है।
गोंड जनजाति पेंटिंग : Gond trible painting in hindi
गोंड जनजातियों की चित्रकला विश्व में काफी प्रसिद्ध है । इस चित्रकला को गोंड पेंटिंग के नाम से जाना जाता है । अभी हाल के वर्षों में 15 में ब्रिक्स शिखर सम्मेलन के दौरान माननीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के द्वारा ब्राजील के राष्ट्रपति लुला दी सिल्वा को सुंदर गोंड पेंटिंग की भेंट की जिससे इनके चित्रकला को काफी प्रसिद्धि मिल है ।
गोंड जनजातियों (Gond painting) की चित्रकला उनके इतिहास से जुड़ा हुआ है । गोंड जनजाति प्रकृति के साथ रखते रहते प्रकृति के साथ जुड़ते चले गए और मनोरंजन के उद्देश्य से चित्रांकन करने लगे और यह चित्रांकन गन जनजातियों की पहचान बन गई । यह चित्रकला पीढ़ी दर पीढ़ी चली आ रही है । जो घर के दीवारों पर चित्रांकन किया जाता रहा है । गोंड पेंटिंग में प्रकृति के विभिन्न रूप पशु पंछी पेड़ पौधे मानव के क्रियाकलाप एवं विचित्र जीव जंतुओं का चित्रांकन दीवारों पर दिखाई पड़ता है ।
गोंड जनजाति (Gond tribe)के पेंटिंग में रंग का प्रयोग–
इन जनजातियों के द्वारा पेंटिंग बनाने में पारंपरिक रंगों का प्रयोग करते हैं और यह कला अन्य जनजातियों में दिखाई पड़ता है । काला रंग का प्रयोग जले हुए लकड़ी के कोयले से करते हैं लाल , भूरा मट मेला ,सफेद इत्यादि कलरों का प्रयोग मिट्टी से किया जाता है । हरे रंग का प्रयोग पेड़ पौधों के रस एवं पत्तियों से करते हैं । विभिन्न रंगों का प्रयोग विभिन्न प्रकार के पेड़ पौधों के फूलों एवं पतों से करते हैं ।
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