Damodar Korayan Poetry | दामोदर कोरांय खोरठा (खण्ड काव्य)

Damodar Korayan Poetry दामोदर कोरांय (खोरठा खंड काव्य ) की रचना शिवनाथ प्रमाणिक के द्वारा 1986 वर्ष में की गई थी। इस पुस्तक का प्रकाशन खोरठा साहित्य संस्कृति परिषद भातुआ ,बोकारो के द्वारा की गई। दामोदर  कोरांय पुस्तक में छह खंडों में  काव्य की रचना की गई है पहला खंडकाव्य मेला दूसरा  सरंची कमल  तीसरा राइज बईद  चौथा  हुन पांचवा अमर चटान और छठाहड़प्पा है।  इस खंड काव्य में झारखंड राज्य के बोकारो जिला अंतर्गत दामोदर नदी  के किनारे एक पुरानी सभ्यता का अवशेष है।इस खण्डहर को  आधार बनाकर कवि श्री शिवनाथ  प्रमाणिक  मानिक जी ने दामोदर  कोरांय नामक खंडकाव्य की रचना की है।

DAMODAR KORAYAN
DAMODAR KORAYAN
sri sivnath prmanin manik

दामोदर कोरांय पुस्तक का कहानी सारांश :- 

राजकुँवर बीर उमादित्य सेना लइ अइला

दामुदरेक धाइरे एक दिन मेला लगाइ देला ।

मेलाञ ठेलम – ठेला भेला , दुइयो बाटेक सेना

जँगले हुलमाइल भेल , भाभे बाघ , भालुक , मइना

आदिबासिक सुखेक राइज आइरजें लुइट लेला

जुग बीतल परे दिकुञ सहिया पाताइ लेला ।

एक समय की बात है मगध राजा उमादित्य झारखंड में सेना लेकर दामोदर नदी के किनारे आक्रमण कर दिया। राजस्थानी राजा को हराकर अपना राज्य स्थापित कर दिया। और दामोदर नदी के किनारे अकसर नामक नगर बसाया । यँहा से झारखंड क्षेत्रों में राजपाट चलाना प्रारंभ कर दिया। राजा ओम आदित्य के उत्तराधिकारी कालकेतु उसके उत्तराधिकारी कमल केतु हुवे ।कवि इन्ही राजाओ का स्थानीय लोगो से संघर्ष और प्रेम को कवि ने दिखाया है।

खंड 1:-  मेला :

मेला खण्ड में  झारखण्ड संस्कृति  और गैर झारखण्डी संस्कृ के मिलान एवं  झारखंड  की प्राकृतिक शोन्दर्य  का मनोहारी वर्णन है । मगध  राजा उमादित्य द्वारा दामोद नदी के किनारे साम्राज्य स्थापना और अंकसर गढ ; निमार्ण का वर्णन है । दशहरा में मेले का आयोजन किया गया है।जहां में बौद्ध साधुव सम्मान , राजा के द्वारा बौद्ध धर्म को स्वीकार कि जाना  आदि को दर्शाया गया है।उमदित्य के शासन काल मे वैदिक धर्म पनप नही सका किन्तु उसके उत्तराधिकारी कलकेतु के हांथो सत्ता आते ही कर्मकांडी धर्म कायम हो जाता है।कर्मचारियों द्वारा जनता का शोषण , बौद्ध साधु में अनाचार का प्रवेश आदि  होने का वर्णन है । इस खंड में किया गया है।

बीरान भेल राजाक घाट , घटवाहा छोइड़ देल

दामुदरेक घाटें घटवाहा , डेरा माइड़ लेल ।

राज के चलावे खातिर , तरवाइर घुइट गेल

फानसी चलावे खातिर , बाँस धइर लेल ।

ढंगराजु साइज देल , राजगढ़ेक सेना

मोदें – ताड़ीं माइत गेल , जइसन काड़ा रेना।

खखसे लागल राजाक कोठी , साधु – जोगिक भेसें ,

खण्ड 2:- सरंची और कमल:

इस खंड में शरण जी और कमल का प्रेम को दर्शाया गया है। संरक्षी झारखंड के सुंदर कन्या है और कमल केतु राजा कालकेतु का पुत्र । सोहराय पर्व के अवसर पर यहां की मूल निवासियों के द्वारा पारंपरिक पर्व सोहराय मनाया जा रहा होता है। सोहराय पर्व पर बरद खुटा खेल के आयोजन  किया जाता है और इस बार इस खेल में कड़ा भैसा को रखा गया है । भैसा मजबूत था वह खुटा तोड़कर भाग जाता है ।सरंची उस कड़ा को खोजने जंगल जाती है ।

दूसरी ओर आज कल एक आदमखोर बाघ इन क्षेत्रों में उतपात मैच रखा है ।राज काल केतु को इस से कोइए लेना देना नही है।राजा के इस रैवे से राजकुमार कमल केतु  नाखुश है।अपने पिता के जनविरोधी नीतियों का घोर विरोधी है ।राजमहल से बाहर जनता के बीच रहता है ।जनता की सुरक्षा के लिए वह अदम खोर बाघ को मारने जंगल चला जाता है।

दूसरी तरफ  संरची काड़ा को  खोज में जंगल जाती है। सरंची उसकी तलाश में जंगल में जाती है । आदम खोर बाघ कमलकेतु पर हमला करता है । संयोग से पास में ही सरंची पेड़ के नीचे  सुस्ता रही थी  , बाघ पर अपना भाला चला देती है । बाघ मर जाता है । कमलकेतु घायल हो जाता है । संरची उसकी सेवा करती है । उसे होश ओत है तो दोनों में प्यार का संचार होता है। कमलकेतु शरीर से तो घायल था किन्तु  मन से भी घायल हो जाता है । सरंची के मन मे घृणा के स्थान पर प्रेम पनपने लगता है। कमलकेतु के बिछड़े साथी उसे खोजते हुए  आते हैं और घायल कमलकेतु को घोड़े पर लादकर राजमहल ले जाते हैं ।

बाघेक आँइख अइसन चमके ,

आसाढ़ – सावन सासेक राइतें

बदरिक ठेर जइसन चमके ।

पारसनाथ – लुगु जे नियर

बलगरी देखावे ,पोडलमुँह बीर बांदर

दुगो धुरॉइ – माटीं होवे ।

छल – छल बोहे खुइन

तीनों जीवेक र्धेचा से ,

कल – कल झरना बोहे

पहारी कोचा सें ।

कलकेतुक छोइड़ बाघ

झपटे सरचिक ओर ,

फाइर देल गातेक पइरधन

खुइनहारा आदमखोर।

बिन पइथन के भइ गेलि

बोनेक बीर बाला ,

बज्जर – बलम माइर देली

वीर घटवाहा बाला ।

अँडराड़ के बाघ मोरल

जंगल चंडिक हार्थे

राजाक बेटा कमलकेतुक

हावा मिलल गातऐ।

खण्ड 3:- राजबईद :

धुमा  राजयवेद्य है। घायल कमलकेतु के इलाज का जिम्मा धुमा को दिया जाता है।वैद्य धुमा के इलाज से कुछ ही दिन में कमलकेतु के घाव ठीक हो जाते हैं। पर उसके मन का घाव समय के साथ और भी गहराते चला जाता है ।जब इस बात की जानकारी धुमा को हो जाती है । तो वह सरंची के  गांव चला जाता है। कमलकंतु के प्रस्ताव को सरंची के सामने रखता है । पर सरंची उस प्रस्ताव को यह कहकर ठुकरा देते है। एक घटवार के बेटी से राजा के बेटा से रिश्ता कैसे संभव है । धुमा वापस आकर कमलकेतु को सरंची के मनोभाव से अवगत कराता है। तब कमलकेतु अपने खून से पत्र लिखता है।

जबाब कमल लिखे लागल ,खुइनेक कारी बनाइके ।

भोज पातें उखरवे लागल ,निरबंध – छंद बनाइकें ।

परानइखी सरंची बाला ,गुचल हमर गातेक जाला ।

मेंतुक , बेंचा ले गुचल नाँय ,बनचंडिक फुलेक माला ।

सोनाक खाँचात्र रूपु रहे , मेंतुक खाँचा ‘ खाँचा ‘ लाइ 

आम कुजेक कोकिल ठिन , मन हमर उडल जाइ ।

जाइत ऊँचा न पाँइत ऊँचा , ऊँचा हवे बिचार

मानुस- मानुस ले भेद नाञ , मानुसे हमर स्वीकार ।।

कालकेतू हमर बाप काल अइसन उनखर करम ।

गेरुवाधारी पोगापंथी बिगाइड़ देला उनखर धरम ||

बुझ्थलग के कहल नाम माने , से बाप के छोइड़ देलों 

सोझ डहरें डहरवे खातिर , काँटाक डहर हम  अपनोलो।।

कालकेतु बेटे कमलकेतु की प्रेम कहानी को जानकर क्रोधित हो जाता है । इस कहानी में धूमा के सहयोग को वह बर्दाश्त नहीं करता है । धुमा को राजनिकाला का हुक्म देता है । स्वाभिमानी धुमा राजा को अनिष्ट का शाप देकर वहां से निकल जाता है ।

 

खण्ड 4:- हूण :

 

कहाँ ले अइला ” हुण “,मलेठ तस ओकर जाइत

मार काट छीना – छोरी ,ई बिदेसिक एहे भाँइत ।।

हमला बोलल हुणेक सेना कालकेतू अकबकाइल ।

आपन गाढ़ी डुबल देख बोनेक – बासी अकचकाइल ।

सावन माह में धान रोपने के बाद खेत लहलहा रही थी।भादो मास में  करम पर्व का समय आगया। कालकेतु के राज्य में पर्व के उल्लास का वातावरण था। इसी समय  हुण राजा मिहिर सेन अपनी सेना के साथ आक्रमण कर देता है । हूण सेना कालकेतु के राज्य में भीषण मार – काट और लूट – पाट मचाता है। सरांची अपने आदिवासी साथियों के साथ मिलकर हुण सेना से जबर्दस्त मुकाबला करती है।

गोंठाइके जनी मरद धरला धुनुक काँड़ ।

बजे लागल ढाक – ढोल घुटला जइसन साँड़ ।।

आदिबासी बीर जनिक सरंची भेली नइया ।

बोनेक बीर मरदइन के कामलकेतू खेवइया ।।

जगवे लागल कमलकेतू बोनेक पइत आदिवासिक

चोंख – चोंख काँड़ झलके पीठें बीर सचिक ।।

राजाघरेक मेढ़ाइल सेना एक बेर डाँड़ाइ गेला ।

निंझाइल पहिल दीया जेरंग एक बेर भभइक उठला

हूण लूटपाट करके अंततः चले जाते हैं । कालकेतु का राज्य आर्थिक तंगी से गुजरने लगता है। कमलकेतु कहता है कि अगर दिकू और आदिवासी में फूट नहीं होती एक होकर रहते हूण जैसे बाहरी  हमारे देश को लूट नहीं पाते। इसलिए हम लोगों को मिलकर रहना होगा।

खण्ड-5 अमर चाटान :

हूणों के आक्रमण के बाद राज्य में दहशत वातावरण है ।चारो ओर दहसत है।लुटे – पिटे लोग काफी  सदमें में हैं । राजा भी हताश निराश हो गया है। राज्य में सुरक्षा करने के लिए सरंची और कमलकेतु रात को पहरेदारी करने लगते हैं ।

हदकल लुआठी हाथें लइ— काजरी काठी अंधार राइतें ।

घोड़ाक उपर कमल – सरंची बोने आवथ गते ।।

सरंची और कमल घूम कर सुरक्षा करने लगते हैं । इसी दौरान जंगल में काला कलूटा , साधु से उनकी भेंट होती है जो जड़ी बूटी का लेप पीस रहा था। वह कोई और नही था वह धुमा वैद्य था। साधु बने धुमा बइद ने खुश होकर कमल और संरची को एक अवलेह खिलाता है। कमल – सरांची जिसके प्रभाव से बेसुध होकर वहीं सो जाते हैं। दोनों अजीब सुख सपनों के समंदर में गोते लगाने लगते हैं।

आइज अमाबासियाक रात पइलों हम अमर – बेल ।

जबाब दइ धुमा तखन बतर सिरें चाटान देला ।

मुँहें जइसे चाटान गेल दुइयोक गात सिहइर गेला ।

पानी डुबल साधनी आइज टुटल हामर अमर – चाटान बनल गेल ।

” सरंची – कमल हाथ पाइत अमर – चाटान मुँहे लेला ।।

करमे – करमें दुइयो पेरमी घोर नीदें नीदाइं गेला ।

दोनों की नींद टूटती है । दोनों एक ही सपना देखते हैं । यह जानकार वे एक दूसरे को देखकर मुस्कुराने लगते हैं ।

 

खंड -6 हाडपा :

गुरा फुटल दुख बिसरला दामुदरेक बनबासी ।

धन – जन पोहाइ लागला अछल – गछल बोनेक चासी ।।

बोनेक कुछ परसिनाहा लोकेक लागे लागल परपरी ।

परेमी दुइयोक छिनगवे खातिर करे लागला नडु रारी ।

इन क्षेत्रों में राज तंत्र की जगह प्रजातंत्र की स्थापना होने लगती है। । राजा – प्रजा , जाति – पाति का ऊंच – नीच भाव समाप्त हो जाता है । अंधविश्वास धार्मिक पाखण्ड का उन्मूलन हो जाता है । सामाजिक समरसता के साथ मानवतावाद की स्थापना हो जाती है ।अब दशहरा मेला के स्थान पर बौद्ध मेला लगने लगता सब कुछ ठीक – ठाक चल रहा था। जनता खुशहाल थी । किन्तु  हथिया नक्षत्र में कई दिनों तक लगातार बारिश के कारण दामोदर नदी  में भयंकर बाढ़ आ जती है।  उन दिनों मेला लगा हुआ था । अंकसर इलाका में पानी चढ़ जाने से लोगों में अफरा – तफरी मच जाती है । बहुत से लोग उफनती बाढ़ में डूबने लगते हैं । सरंची और कमल उन्हें बचाने के लिए । अपनी जान जोखिम में डालकर भी लग जाते हैं सरची औरतों को बचाती है और कमलकेतु पुरूषों ।सरंची बूढ़ी औरत को बचाने के दौरान बिजली चमकती है उस बज्रपात में सरंची  मर जाती है ।कमल केतु सरंची को देख अपना भी प्राण त्याग देता है ।इस प्रकार दामोदर नदी में दोनों प्राण त्याग देते है।

सइत – पंथ देखाइ देला सरंची आर कमलकेतू बोने ।

बोन – संस्कीरतिक रइखा खातिर डिहइर गेला आपन मने।।

टुटल – फुटल पथल – मार्टी कहत सरंची – कमलेक कथा ।

दामुदरेक कोराा एखनो अमर रहल अमर गाथा ।।

 

आलेख:-डॉ आनन्द किशोर दाँगी

जनजातीय  एवं क्षेत्री भाषा विशेषज्ञ।

 

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Shivnath pramanik | शिवनाथ प्रमाणिक

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