भारतीय इतिहास में चेरो जनजाति (chero tribe ) का महत्वपूर्ण स्थान है । यह जनजाति लड़ाकू जनजाति के नाम से जाना जाता है तथा मुगल काल में बारह हजारी उपाधि से भी जाना जाता है, साथ ही झारखण्ड के आदिवासियों में राजतंत्र चलाने वाले पलामू के चेरो का गौरवमयी इतिहास रहा है। चेरो जनजाति (chero tribe ) का मुख्य निवास स्थान झारखण्ड के पलामू तथा लातेहार जिला है(chero tribe jharkhand) इसके अतिरिक्त बिहार तथा पश्चिम बंगाल में भी पाये जाते हैं।
चेरो जनजाति का उत्पत्ति (Origin of Chero Tribe)
दंत कथा के अनुसार चेरो जनजाति की उत्पत्ति मनु के छठे पुत्र करुर की संतान के रूप में हुआ है। यह जनजाति प्रारंभ से राजकाज में सन लिप्त रही है एक मान्यता के अनुसार जब इनका राज्य भोजपुर में स्थायी हो चुका था तो इस प्रदेश को ‘कुरुष’ देश कहा जाने लगा जिसका वर्णन पौराणों कई बार आया है-ग्रेट “कारुष च महावीरा…”। ऐसा माना जाता है कुरुष वंश से ही चेरो-खरबार की उत्पति हुई।
कांलातर में मथुरा के भोज यादवों के द्वारा युद्ध में पराजित हो जाने पर ये सोन पार कर गए। पौराणों में ऐसा वर्णन है कि इनकी लूट पाट, छापामार युद्ध और आतंक से रक्षा करने के लिए कभी महाराज हरिश्चन्द्र ने अपने पुत्र रोहिताश्व के नाम पर दुर्ग बनवाया था जो रोहतास गढ़ कहा गया। आज भी वह अवशेष के रूप में मौजूद है जिसके सिंहद्वार पर इसका उल्लेख उत्कीर्ण है।
बाल्मीकि रामायण में चेरोओं के दक्षिण-पूर्व भागने का उल्लेख है। साथ ही एतरेयोषनिषद में भी इनके प्रशंसनीय अस्तित्व का चिह्न अंकित है।
चेरो जनजाति का इतिहास (chero tribe in india)
17 वीं शताब्दी के प्रारम्भ तक चेरो भोजपुर के राजा थे तथा राजा का नाम शाहाबाद राय था। 1613 ई. में भागवत राय ने पलामू पर अपना अधिपत्य जमाया। पलामू में चेरो का शासन 1818 तक रहा।
छोटानागपुर के इतिहास में डॉ. बी. पी. केशरी ने लिखा है कि चेरो राज्य की स्थापना अकबर के समय में ही 1680 ई. में पलामू में हो गयी थी। चेरो-खरवार झारखंड में सबसे पीछे आए। इनके मूल के स्थान के बारे में कुछ भी नहीं कहा जा सकता, किन्तु चेरो परंपरा से संकेत मिलता है कि वे उप-हिमालय क्षेत्र, जिसे मोरंग कहा जाता था, में रहते थे जहां से कुमांयू चले गए और वहां से दक्षिण की ओर बढ़ भोजपुर चले आए। यहाँ अपने राज्य की स्थापना की और सात पीढ़ियों तक राज किया (राँची गजेटियर पृ.22 एवं पलामू गजेटियर पृ. 221)। ऐसा भी माना जाता है कि अतीत में कुछ काल के लिए कभी अरावली-बुंदेलखंड क्षेत्र में रहे थे किन्तु अफगानों द्वारा इस क्षेत्र को जीत लेने के बाद इन्हें इधर-उधर भटकने को तबतक विवश होना पड़ा जब तक कि ये शाहाबाद में न आ जमे जहां पहले से उरांव थे।
चेरो जनजातियों का वर्गीकरण (Classification of Chero tribes)
चेरो जनजाति दो वर्गों में विभक्त है 1. बारा हजारी तथा 2. तेरह हजारी। बारा हजारी के वंशज अपने आप को बबुआ कहते हैं तथा अन्य से उच्च कोटि का मानते हैं। दोनों ही वर्ग 12 वहिर्विवाही गोत्रों में बंटे हुए है जिसे वे संथाल जनजाति के समान पारिशकहते हैं। छोटका मवार, बड़का मवार, छोटका कौर, बड़का कौर, महतो, मंझिया, सामवत, रीतिया, सोहानैत आदि गोत्र अधिक प्रचलित है।
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