BHUMIJ TRIBE |भूमिज जनजाति

भूमिज जनजाति (BHUMIJ TRIBE): भरत  की जनजातियों में भूमिज  एक महत्वपूर्ण जनजाति है जो प्रोटो  ऑस्ट्रेलिया प्रजाति की जनजाति है ।  जो मुख्य रूप से झारखण्ड ,उड़ीसा तथा पश्चिम बंगाल मुख्य रूप से निवास करते हैं । झारखंड में भूमि जनजातियों की जनसंख्या  पश्चिमी सिंहभूम, पूर्वी सिंहभूम तथा सरायकेला खरसांवा, हजारीबाग, राँची, धनबाद जिलों में भी पाये जाते हैं। भूमिज जनजाति  (BHUMIJ TRIBE): मध्य-भारत की अन्य जनजातियों के समान प्रोटो आस्ट्रेलायड प्रजाति की है। इस प्रजाति के लोग श्री लंका तथा आस्ट्रेलिया की जनजातियों से मिलते हैं। प्रो. मजुमदार के अनुसार ये मध्यम व छोटे कद वाले, चिपटी नाक, काली चमड़ी तथा छोटी पर काली आंखों वाले होते हैं। इनकी भाषा आस्ट्रिक भाषा परिवार की है जिसे मुण्डारी या कोलेरियन कहा गया है।  भूमिज जनजाति (BHUMIJ TRIBE):लड़ाकू प्रवृत्ति होने के कारण स्वतंत्रता आंदोलन के महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है । अपने क्षेत्र में “चुआर” के नाम से भी जाने जाते हैं। जंगल महल क्षेत्र में वे सदा आतंक उत्पन्न करते रहे। प्रशासकों के द्वारा जब कभी भी जंगल महल पर अधिकार जमाने की कोशिश किया गया उस समय भूमिजों ने खुलकर विद्रोह किया। 1798 में पंचेत इस्टेट के बेचे जाने पर की भूमिजों का विद्रोह स्मरणीय है जिसके कारण बिक्री रद्द करना पड़ा था। गंगा नारायण के आन्दोलन में भी  भूमिज जनजाति (BHUMIJ TRIBE):का महत्वपूर्ण योगदान रहा है।

 भूमिज जनजाति (BHUMIJ TRIBE) की भाषा –

भूमिज जनजाति (BHUMIJ TRIBE) की भाषा कोलेरियन भाषा समूह के अंतर्गत है । इसके अलावे भारत की अन्य भाषा हिंदी उड़िया बांग्ला भी बोलते हैं ।

 भूमिज जनजाति (BHUMIJ TRIBE) का गांव

भूमिज स्थायी रूप से गांव में निवास करते हैं। घर की दीवालें मिट्टी की बनी होती हैं। छत  पुआल  या खपड़ों से छाये जाते हैं । एक घर में दो से पांच कमरे होते हैं। जिसमें शयन कक्ष के अलावे रसोईघर, गोहाल आदि का भी प्रावधान होता है। सभी कमरों में स्थायी दरवाजे होते हैं  सभी कमरों में लकड़ी के तख्तों बनाते हैं जिसमें घरेलू समान तथा कृषि उपकरणों को रखते हैं।

भूमिज जनजाति (BHUMIJ TRIBE) का शिकार के उपकरण

भूमिज जनजाति (BHUMIJ TRIBE) का शिकार के उपकरणों में कुल्हाड़ी तथा हसिया  धनुषबाण महत्वपूर्ण है। नदी के किनारे बसने के कारण मछली पकड़ना एक महत्वपूर्ण पेशों में से एक है। मछली पकड़ने के लिए उपयोग में लाये जाने वाले उपकरणों में से पट्टा, झिमरी, घोधी, गिरगिरा, कुमनी, कई तरह के जाल आदि हैं।

भूमिज जनजाति (BHUMIJ TRIBE) का समाज-

  • भूमिज समाज पितृसत्तात्मक होते हैं इस कारण परिवार, कुल समूह, गोत्र पितृपक्षीय है। विवाह के बाद भूमि से युवक अपनी पत्नी के साथ अलग रहने लगता है परन्तु महत्वपूर्ण निर्णय लेने के लिए पिता  से विचार विमर्श करता है।
  • विवाह योग्य लड़के के लिए उसके माता-पिता कन्या ढूँढते हैं। दोनों पक्षों के बीच सौहार्दपूर्ण बात-चीत होने पर वधू मूल्य तय किया जाता है। आजकल वधू मूल्य हजारों तक पहुंच गया है। वधू मूल्य के अतिरिक्त मायसारी, एक सालाधोती तथा वधू सारी दी जाती है। वधूमूल्य तय होने पर लड़के वाले लड़की के पिता के सामने लड़का देख लेने का प्रस्ताव रखते हैं और फिर कोई निश्चित तिथि तय की जाती है। लड़का पसन्द हो जाने पर विवाह की तिथि निर्धारित होती है। सामान्यतः विवाह वैशाख, आषाढ़, अगहन तथा फागुन महीने में की जाती है।
  • भूमिज समाज में युवागृह का प्रचलन नही है इसलिए बच्चों में सांसारिक गुण भरले दायित्व परिवार के सदस्यों पर ही केन्द्रित है।

भूमिज जनजाति (BHUMIJ TRIBE) समाज का गोत्र –

भूमिज के कई गोत्र हैं जिनक नामकरण टोटमिक वस्तुओं के आधार पर हुआ है।  गोत्रों के नाम है – पत्ती, जेवला (पक्षी) गोलचु (मछली), हेम्ब्राम (बादाम)। हर गोत्र के लोग अपने गोत्र चिन्ह का काफी आदर करते है  एक गोत्र के लोग आपस में नजदीक के सम्बन्धी माने जाते हैं इसलिए इनके बीच शादी वर्जित है।

भूमिज जनजाति (BHUMIJ TRIBE) समाज का धर्म, पूजा और पर्व :

भूमिज का धर्म जीवात्मवाद और हिन्दू धर्म का मिश्रित रूप है। इनका पुरोहित ‘लाया’ कहलाता है। सार्वजनिक पूजा लाया ही कराता है। इनके सर्वश्रेष्ठ देवता ग्राम ठाकुर और गोराई ठाकुर हैं।

अन्य देवी-देवता में डिहवार, देव, काली, शिव आदि हैं। हिन्दू-संपर्क के कारण मंदिरों में जाकर पूजा-पाठ करते हैं।

इनकी चार-पाँच मुख्य पूजाएँ हैं। चैत माह में शिव मंदिर में पूजा , वैशाख में धूला पूजा लाया द्वारा की जाती है। मिट्टी के हाथी-घोड़े की प्रतिमा बनाकर ‘लाया’, एक खस्सी और दो मुर्गियों की बलि चढ़ाता है। इसके अलावे ग्राम ठाकुर पर सिदूर, मिठाई, दूध, गांजा चढ़ाता है। कार्तिक महीने में काली पूजा होती है। इसी माह में गोराई ठाकुर की पूजा किया जाताहै

भूमिज जनजाति (BHUMIJ TRIBE) समाज का राजनीतिक व्यवस्था :

भूमिज की अपनी जातीय पंचायत होती है जिसका मुखिया प्रधान कहलाता है। यह पद वंशानुगत होता है। गाँव वालों के सारे विवादों का पंचायत करती है। इनके अपने परंपरागत नियम कानून हैं।  गाँवों में लोगों की सद्भावना बिगड़ी है। लोग थाना-कचहरी जाने लगे हैं।

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