भोलानाथ कुशवाहा (Bholanath kushwaha) का जीवन-वृत्तांत – हिंदी साहित्य के क्षेत्र में अनेक ऐसे साहित्यकार हुए हैं, जिन्होंने अपनी लेखनी से समाज को दिशा देने का कार्य किया, किंतु वे समय के प्रवाह में कहीं खो गए। भोलानाथ कुशवाहा(Bholanath kushwaha) भी ऐसे ही साहित्यकारों में से एक हैं, जिन्होंने कठिन परिस्थितियों में संघर्ष करते हुए न केवल शिक्षा प्राप्त की, बल्कि शिक्षण एवं साहित्य के क्षेत्र में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया।आज हिंदी साहित्य को ऐसे रचनाकारों की आवश्यकता है, जो न केवल समाज के यथार्थ को अभिव्यक्त करें, बल्कि आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा भी बनें। दुर्भाग्यवश, कई प्रतिभाशाली साहित्यकार उचित मंच और पहचान के अभाव में गुमनामी में चले जाते हैं। ऐसे साहित्यकारों को खोजकर, उनका सम्मान कर, और उनकी रचनाओं को प्रकाशित करके उन्हें उचित स्थान दिया जा सकता है।
भोलानाथ कुशवाहा (Bholanath kushwaha) का जन्म एवं पारिवारिक पृष्ठभूमि:
भोलानाथ कुशवाहा का जन्म 1 जुलाई 1944 ई. को हुआ। उनके पिता स्व नीरो महतो थे। इनका जन्म ग्राम- कोरिया डीह, पोस्ट- बरसोत, थाना- बरही, जिला- हजारीबाग (झारखंड) में एक अत्यंत गरीब कृषक परिवार में हुआ।
शिक्षा: इन्होंने प्राथमिक शिक्षा करियातपुर से प्राप्त की और फिर जिला स्कूल हजारीबाग से 1963 ई. में मैट्रिक उत्तीर्ण किया। इसके पश्चात, 1981 ई. में पी.के. राय कॉलेज, धनबाद से स्वतंत्र रूप से आई.ए की परीक्षा उत्तीर्ण की। 1990 ई. में हिंदी विद्यापीठ, देवघर से साहित्यालंकार की उपाधि प्राप्त की।
प्रशिक्षण: सन् 1965-67 में शिक्षक प्रशिक्षण विद्यालय, बगोदर से शिक्षक प्रशिक्षण प्राप्त किया। अतिरिक्त शिक्षा के रूप में एम.वी.ई.एच. (बैट) तथा एम.आर.एस.ई.एच. बिहार, आर.एम.पी. (पेट) की उपाधियाँ प्राप्त कीं।
सेवारत योगदान: इनकी सेवा 7 अगस्त 1971 ई. को हरिजन गोला मध्य विद्यालय, गोला में आरंभ हुई, जहाँ इन्होंने 21 जनवरी 1973 तक कार्य किया। 1973 से 1994 तक मध्य विद्यालय कल्हावाद, बरकठा में और 1995 से 2000 तक मध्य विद्यालय सक्रेज में शिक्षक के रूप में कार्यरत रहे। जून 2003 से 30 जून 2005 तक गृह अंचल बरही के मध्य विद्यालय बूढीडीह में प्रधान शिक्षक के रूप में कार्य किया और 1 जुलाई 2004 को इसी विद्यालय से सेवा निवृत्त हुए।
भोलानाथ कुशवाहा (Bholanath kushwaha) का संघर्षमय जीवन यात्रा:
इनका बचपन अत्यंत गरीबी में बीता। आर्थिक कठिनाइयों के कारण इन्हें गाँव में ही एक अन्य परिवार के यहाँ पाँच रुपये मासिक पर चरवाहे के रूप में रहना पड़ा। शिक्षा की लालसा ने इन्हें इस कठिनाई को सहने की शक्ति दी। इनके शिक्षक सिद्धिनाथ झा ने इन्हें अपने संरक्षण में लिया और उनकी सहायता से इन्होंने करियातपुर से सातवीं कक्षा उत्तीर्ण की। बाद में, जागेश्वर प्रसाद के संरक्षण में कौआकोल हाई स्कूल में शिक्षा प्राप्त की। यहाँ उन्हें जयप्रकाश नारायण का सान्निध्य प्राप्त हुआ, जिन्होंने उन्हें अत्यधिक स्नेह दिया। इस प्रकार, विभिन्न संघर्षों के बावजूद उन्होंने अपनी शिक्षा पूरी की।
भोलानाथ कुशवाहा (Bholanath kushwaha) का साहित्यिक यात्रा:
1965 ई. से इन्होंने कविता लिखना प्रारंभ किया, जो अब तक निरंतर जारी है। इनकी इस इस साहित्य की यात्रा में हिंदी साहित्य जगत में होने वाले संगोष्ठियों इत्यादि में भाग लेते रहे हैं । सन 1966 ईस्वी में विनोबा भावे के बगोदर आगमन पर उनका स्वागत गीत गाकर विनोबा भावे जी का मन मोह लिया था और उन्होंने कहा ” अपनी इस साहित्य की यात्रा को निरंतर जारी रखिएगा ” । उसके बाद साहित्यिक क्षेत्र में इनको संजीवनी मिल गई और साहित्य की यात्रा में निरंतर आज तक लगे हुए हैं। इसके अलावा देशभर में होने वाले हिंदी साहित्य के संगोष्ठियों में सेमिनारों में भाग लेते रहे हैं बापू सेवाग्राम आश्रम महाराष्ट्र में सर्वोदय पर काव्य पाठ किया । श्री भोलानाथ कुशवाहा जी के प्रमुख प्रकाशित एवं अप्रकाशित रचनाएँ निम्नलिखित हैं:
1. विद्यार्थी संगीत सुमन (प्रकाशित)
2. बालिकाओं के लोक प्रिय गीत (प्रकाशित)
3. रम्यस्थल काव्य (खण्डकाव्य) (अप्रकाशित)
4. प्रेरक काव्य (खण्डकाव्य) (अप्रकाशित)
5. काव्य सौरभ (अप्रकाशित)
6. झारखंड महिमा गीत (अप्रकाशित)
इसके अतिरिक्त, दिल्ली एवं अन्य स्थानों पर काव्य पाठ कर चुके हैं। सन् 2018 में सेवाग्राम आश्रम में “मनराव बहा” पर काव्य पाठ किया।
भविष्य में ऐसे साहित्यकारों को प्रोत्साहित करने के उपाय:
- इनकी रचनाओं को डिजिटल एवं प्रिंट मीडिया के माध्यम से अधिक से अधिक प्रकाशित किया जाए।
- साहित्यिक पत्र-पत्रिकाओं में इनके कार्यों पर चर्चा की जाए।
- स्थानीय एवं राष्ट्रीय स्तर पर संगोष्ठियों का आयोजन कर ऐसे साहित्यकारों को सम्मान दिया जाए।
- इनके जीवन संघर्ष और साहित्यिक योगदान को नई पीढ़ी के समक्ष रखा जाए।
- साहित्यिक कार्यशालाओं के माध्यम से युवाओं को इनकी रचनाओं से परिचित कराया जाए।
- विद्यालयों एवं विश्वविद्यालयों में इनके साहित्य को पाठ्यक्रम में शामिल करने का प्रयास किया जाए।
- सोशल मीडिया, यूट्यूब, पॉडकास्ट आदि के माध्यम से इनके साहित्य को व्यापक रूप से फैलाया जाए।
- साहित्यिक वेबसाइटों पर इनके लेख और कविताएँ प्रकाशित की जाएँ।
- साहित्यकारों के लिए विशेष अनुदान और पुरस्कार योजनाएँ चलाई जाएँ।
- साहित्यिक संस्थाओं द्वारा इनका उचित सम्मान किया जाए।
डॉ. आनंद किशोर दांगी ने भोलानाथ कुशवाहा के साहित्य को हिंदी साहित्य की मुख्य धारा में लाने हेतु प्रयास किया है। उन्होंने इनके जीवन संघर्ष एवं साहित्यिक योगदान को संकलित कर विभिन्न मंचों पर प्रस्तुत किया है।
निष्कर्ष: भोलानाथ कुशवाहा ने संघर्षों से जूझते हुए शिक्षा प्राप्त की और शिक्षण कार्य में योगदान दिया। साहित्य के क्षेत्र में भी इनका महत्वपूर्ण योगदान रहा है। समाज को जागरूक एवं प्रेरित करने हेतु इनकी कविताएँ एक प्रेरणास्रोत हैं। ऐसे साहित्यकारों को उचित पहचान और सम्मान देकर हिंदी साहित्य को और समृद्ध बनाया जा सकता है।
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