भिंडी की उन्नत एवं वैज्ञानिक तरीके से खेती | Bhindi (lady finger) ki kheti

भिंडी की उन्नत एवं वैज्ञानिक तरीके से खेती

सब्जियों में सबसे लोकप्रिय सब्जी भिंडी को माना जाता है और यह पूरे देश के सभी राज्यों में उगाया जाता है खास करके आंध्र प्रदेश पश्चिम बंगाल गुजरात उड़ीसा एवं झारखंड में इसकी मुख्य रूप से खेती की जाती है। भिंडी का उपयोग सिर्फ सब्जी बनाने के लिए ही नहीं किया जाता है बल्कि इसके तने एवं जड़ों का भी प्रयोग किया जाता है तने एवं जड़ों का रस एक के रस को साफ करने में काम आता है। पेचिश के रोगियों के लिए इसका सूप लाभदायक है।ज्वर एवं जननांगों के रोगों में भी काफी गुणकारी होता है।भिंडी का आहार मूल्य इस प्रकार है प्रति 100 ग्राम खाने योग्य भाग में निम्न प्रकार के प्रोटीन वसा खनिज पदार्थ सोडियम पोटैशियम कॉपर सल्फेट विटामिन ए थाइमिन ,पोटैशियम, निकोटीन,मैग्नीशियम, विटामिन सी इत्यादि पाया जाता है जिसका विवरण इस प्रकार है:-

प्रोटीन 1.9 ग्राम वसा 0.2 ग्राम
 खनिज पदार्थ 0.7 ग्रामअन्य कार्बोहाइड्रेट 6.4 ग्राम
रेशा 1.2 ग्राम   कैलोरी 35.0 ग्राम
कैल्शियम 66.0 मिलीग्राम  मैग्नीशियम 43.0 ग्राम
फास्फोरस 56.0 मिलीग्राम  सोडियम 6.9 मिलीग्राम
पोटेशियम 103.0 मिलीग्राम  कॉपर 0.1 9 मिलीग्राम
 सल्फर 30.0 मिलीग्राम विटामिन ए 88.0
 थिएमिन 0.07 मिलीग्रामविटामिन सी 13.0 मिलीग्राम
रेबोफ्लोवीन  0.1 मिलीग्राम 
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भिंडी में इतने गुण होने के कारण इसका उपयोग सब्जी के रूप में सबसे ज्यादा होता है और इसे लोग खाना ज्यादा पसंद करते हैं तो ऐसे सब्जियों का उत्पादन वैज्ञानिक तरीके से कर कर किसान भाई लाखों की आमदनी प्रत्येक माह कर सकते हैं। आइए हम बताते हैं कि भिंडी का खेती वैज्ञानिक एवं तकनीकी तरीके खेती कर कैसे अच्छी आमदनी प्राप्त की जा सकती है?

भिंडी उत्पादन के लिए उपयुक्त जलवायु या मौसम।

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जलवायु उच्च एवं नाम जलवायु

तापमान 20 से 25 सेंटीग्रेड

मिट्टी हल्की दोमट मिट्टी

मिट्टी का पीएच मान 6 से 6.8 होना चाहिए।

भिंडी उत्पादन के लिए उपरोक्त जलवायु की आवश्यकता होती है। भिंडी के लिए तापमान 17 सेंटीग्रेड से कम होने पर बीज का अंकुरण नहीं हो पाता है एवं गर्मी में 42 सेंटीग्रेड से अधिक तापमान होने पर फूलों के गिरने की समस्या होती रहती है इसलिए यह तापमान में खेती नहीं किया जा सकता है और इसके लिए जो दोमट मिट्टी उपयुक्त मानी जाती है इसमें पर्याप्त मात्रा में कार्बनिक तत्व पाए जाते हैं यदि इस मिट्टी में पीएच मान 6 से कम हो जाए तो चूना का प्रयोग कर मिट्टी को सुधार कर सकते हैं इसकी खेती करने के पूर्व मिट्टी की जांच कर लेना आवश्यक होता है ताकि आप अच्छी फसल प्राप्त कर सकते हैं ।

भिंडी की उन्नत किस्में।

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                                 photo pixaboy

भिंडी की अच्छी फसल प्राप्त करने के लिए वैज्ञानिकों ने कुछ उन्नत किस्म के बीज तैयार किए हैं जिसका प्रयोग कर अच्छे उत्पादन कर सकते हैं। भिंडी के उन्नत किस्म इस प्रकार हैं –

पूसा A4:-

भिंडी की उन्नत किस्में है जो हल्के गहरे हरे रंग का होता है।पौधा बारह से 15 सेंटीमीटर लंबी होती है फसल लगभग 45 दिन में तैयार हो जाता है या प्रति हेक्टर इसके ऊपर लगभग 120 से 150 क्विंटल की जा सकती है । पूसा A4 खरीफ एवं जायद दोनों के लिए उपयुक्त माना जाता है।

आर्का अनामिका:-

आर्का अनामिका का पौधा 120 से 150 सेंटीमीटर ऊंचा होता है और इसके फल 20 सेंटीमीटर लंबे होते हैं। इसका उत्पादन प्रति हेक्टर 120 से 150 क्विंटल अनुमानित है।

परभणी क्रांति :-

परभणी क्रांति के पौधे लंबे होते हैं फल गहरे हरे रंग के होते हैं। इस फसल की पहली चौड़ाई 55 दिन में प्रारंभ हो जाती है। और प्रति हेक्टर इसका उत्पादन 90 से 100 क्विंटल अनुमानित है।

वर्षा उपहार:-

भिंडी का यह केसु गहरे हरे रंग का होता है इसके पौधे 18 से 20 सेंटीमीटर लंबे होते हैं और इसका प्रथम चौड़ाई लगभग 46 से 47 दिन बाद प्रारंभ हो जाता है और प्रति हेक्टर 100 क्विंटल उत्पादन होने का अनुमान लगाया जाता है।

भिंडी के उपरोक्त  के अलावे कुछ संकर किस्म भी हैं जिसक उत्पादन जिस का उत्पादन कर अच्छे आमदनी की जा सकती है।जो निम्न है-

सोनल सरिका वर्षा विजय नाथ शोभा सनग्रो 35 इत्यादि

भिंडी की बुवाई

बसंत कालीन फसल की बुवाई

फरवरी से मार्च तक

गरमा फसल बुवाई के लिए बीज को रात भर पानी मे फूलने देते हैं तथा खुले हुए बीच को कपड़ा के पोटली में रखकर ताजे गोबर के ढेर में 2 से 3 दिन तक रख कर अंकुरण करा लेना होता है। अंकुरण होने के बाद बीज की बुवाई किया जाता है। खेत में बुवाई के समय नवी का होना अति आवश्यक है बसंत कालीन फसल के लिए  पंक्ति की दूरी 45 सेंटीमीटर तथा पौधे को एक दूसरे पौधे के बीच की दूरी 20 सेंटीमीटर रखा जाता है।

बरसाती फसल की बुवाई

मई से सितंबर तक

बरसाती फसल के लिए कतार से कतार की दूरी 50 सेंटीमीटर तथा को एक दूसरे पौधे की दूरी 25 सेंटीमीटर रखा जाता है।

खाद एवं उर्वरक

खाद तथा उर्वरक की मात्रा प्रति क्विंटल
गोबर खाद 80 से 100 क्विंटल
यूरिया 80 किलो
सुपर फास्फेट 120 किलो
पोटाश 40 किलो

उपरोक्त खाद एवं उर्वरक खेत तैयार करने के समय प्रति हेक्टर उपरोक्त मात्रा देना अनिवार्य होता है। उपरोक्त मात्रा का अनुपालन कर अच्छी फसल का उत्पादन किया जा सकता है।

फसल की सिंचाई

गर्मा में फसल की सिंचाई:- 5 से 6 दिनों पर सिंचाई करते रहना चाहिए।

बरसाती फसल की सिंचाई आवश्यकतानुसार किया जाना चाहिए

फसल के निकाई तथा गुडाई(ख़ुदाई)

बीज बोने के साथ ही खरपतवार निकल जाते हैं अतः अंकुरण के 8 से 10 दिन बाद फसल की निकाई तथा जड़ों के आसपस खुदाई कर देना चाहिए। गरमा फसल में दो बार एवं खरीफ फसल में तीन बार निकाय की आवश्यकता होती है अंतिम निकाय के बाद पौधे के जड़ों के पास मिट्टी चढ़ा देना चाहिए ताकि पौधा अच्छा से तैयार हो सके आंधी तूफान से पौधे नहीं गिरे इसलिए मिट्टी जड़ों के पास चढ़ाना आवश्यक होता है।

भिंडी के फसल में लगने वाले रोग तथा रोकथाम के उपाय

सफेद मक्खी:- यह किट बहुत ही छोटे होते हैं जो स्पर्श मात्र से उड़ जाते हैं यह मक्खियां विषाणु जनित रोग फैलाते हैं और फसल को काफी नुकसान पहुंचाता है अतः सफेद मक्खी से निजात पाने के लिए 17 पॉइंट 8 एस एल 055 मिली लीटर प्रति लीटर पानी के घोल कर 15 दिन के अंतराल पर छिड़काव करते रहना चाहिए।

पत्ती फुदका:- भिंडी के शिशु पत्तियो एवं वयस्क पतियों पर छोटे-छोटे धब्बे दिखाई देते हैं यह विषाणु भी फैलाते हैं। इस बीमारी से भिंडी के फसल को काफी नुकसान पहुंचता है और अच्छा फसल नहीं हो पाता है। अतःइस बीमारी से रोकने के लिए 5% का 1 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी के घोल छिड़काव करते रहना चाहिए।

पित शीरा मोजैक:- इस रोग के कारण भिंडी के फसल पीला पड़ जाता है जिसमें पूरी पति तथा फल भी पीले हो जाते हैं। इस रोग से निजात पाने के लिए पौधे को काट देना चाहिए या नष्ट कर देना चाहिए इसका एक ही विकल्प होता है।

पाउडरी मिल्डयू:- पतियों की निचली सतह पर सफेद मत मिले पाउडर नुमा भूखंड की उपस्थिति इस रोग के कारण हो जाती है। इस रोग से निजात पाने के लिए सल्फेक्स 2.5 ग्राम को 1 लीटर पानी के घोल में घोलकर पौधे के ऊपर छिड़काव करते रहना चाहिए।

फलो की तुडाई एवं उपज

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फलों की तोड़ाई बुवाई के 45 दिन में शुरू हो जाती है जब फल हरे मुलायम एवं रेशा रहित हो तब उसे तोड़ लेना चाहिए। गरमा फसल में हर तीसरे दिन भिंडी के फसल को तोड़ लेना चाहिए। समय पर तुड़ाई होने से उपज अच्छी मिलती रहती है।भिंडी फसल की उपज:- गरमा फसल की उपज प्रति क्विंटल 70 से 80 क्विंटल प्रति हेक्टेयर उत्पादन किया जाता है जबकि बरसाती फसल में प्रति हेक्टर 150 से 200 किमटल तथा संकर किस्म के पौधे में 250 क्विंटल प्रति हेक्टेयर उपज प्राप्त होता है।

उपरोक्त वैज्ञानिक एवं तकनीकी का प्रयोग कर भिंडी फसल को खेतों में लगाने से अच्छी आमदनी प्राप्त होती है।

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