झारखण्ड के पर्यटक स्थलों में में विश्व विख्यात (Bhadrkali mandir itkhori chatra jharkhand ) भद्रकाली इटखोरी महत्व पूर्ण स्थान है। यह झारखण्ड राज्य के चतरा जिला अंतर्गत इटखोरी प्रखंड मुख्यालय में स्थित है। यंहा 12 सदी का माँ भद्रकाली की प्राचीन मंदिर है । मंदिर में एक ही विशाल शिलाखण्ड को तराश कर कलात्मक ढंग से माँ भद्रकाली की साढ़े चार फुट ऊँची , ढाई फुट चौड़ी और 30 मन वजन की भव्य प्रतिमा स्थापित किया गया है है । इतिहासकरो के अनुसार यह 12 शताब्दी के पालयुगीन प्रतीत होती है । माँ भद्रकाली की प्रतिमा की बायीं तथा दायीं ओर ध्यान मुद्रा में लीन अन्य प्रतिमाएँ भी हैं । प्रतिमा के दोनों ओर उसका वाहन ” सिंह ” सिंहनाद करता हुआ आगे बढ़ रहा है । कुछ का अनुमान है कि देवी महालक्ष्मी , महाकाली , महासरस्वती , क्रमशः उल्लू , सिंह तथा अश्व पर आरूढ़ हैं । मन्दिर की दीवारों पर छोटे – छोटे पत्थरों पर गौरी – शंकर तथा विभिन्न देवी देवताओं की सुन्दर – सुन्दर मूर्त्तियाँ उत्कीर्ण हैं। माँ भद्र कलि मंदिर इटखोरी (Bhadrkali mandir itkhori) मूर्ति कला का सुन्दर नमूना है ।
भद्रकाली मंदिर का फुल विडियो यंहा क्लीक कर देख सकते है
https://youtu.be/L1Df4PbReyc?si=Pu7iu6VlNSZOxXhg
भद्रकाली मंदिर (Bhadrkali mandir itkhori ) १९६ एकड़ में फैली विशाल क्षेत्र है के प्राचीन धर्मो का एक सगम स्थली है यंहा हिन्दू धर्म और जैन धर्म के मुर्तिया देखि जा सकती है ।इस स्थल की खास विशेषता है –
भव्य एवं स्थाई ” यज्ञशाला – मुख्यद्वार के आगे बायीं और भव्य एवं स्थाई ” यज्ञशाला जिसकी उचाई 52 फुट, लम्बाई 70 फुट एवं 50 फुट चोड़ा है। इस यज्ञशाला का निर्माण 1980 में किया गया एवं सहस्र चंडी यज्ञ के साथ 1981 में किया उद्गघाटन किया गया।
संग्रहालय – यज्ञशाला की पूरब दिशा में संग्रहालय स्थित है , जहाँ मन्दिर परिसर के उत्खनन से प्राप्त छोटी – बड़ी 418 मूर्तियाँ एवं भग्नावशेषों का संग्रह किया गया है जो बसाल्ट पत्थर का प्रयोग हुआ है। इतिहासकरो एवं पुरातत्त्व वेत्ताओं केअनुसार ये मूर्तियाँ आठवीं शताब्दी से बारहवीं शताब्दी के मध्य के हैं ।जो वैष्णव , शैव , बौद्ध और जैन धर्म के मुर्तिया एवं धार्मिक अवशेष संगृहीत किये गए है ।
माँ भद्रकाली की विशाल प्रतिमा –
मुख्य मंदिर में एक ही विशाल शिलाखण्ड को तराश कर कलात्मक ढंग से माँ भद्रकाली की साढ़े चार फुट ऊँची , ढाई फुट चौड़ी और 30 मन वजन की भव्य प्रतिमा स्थापित किया गया है है । इतिहासकरो के अनुसार यह 12 शताब्दी के पालयुगीन प्रतीत होती है । माँ भद्रकाली की प्रतिमा की बायीं तथा दायीं ओर ध्यान मुद्रा में लीन अन्य प्रतिमाएँ भी हैं । प्रतिमा के दोनों ओर उसका वाहन ” सिंह ” सिंहनाद करता हुआ आगे बढ़ रहा है । कुछ का अनुमान है कि देवी महालक्ष्मी , महाकाली , महासरस्वती , क्रमशः उल्लू , सिंह तथा अश्व पर आरूढ़ हैं । मन्दिर की दीवारों पर छोटे – छोटे पत्थरों पर गौरी – शंकर तथा विभिन्न देवी देवताओं की सुन्दर – सुन्दर मूर्त्तियाँ उत्कीर्ण हैं।
सहस्र शिवलिंग-
माँ भद्रकाली मन्दिर से प्रायः 200 फुट की दूरी पर सहस्रलिंग शिवलिंग है जिसकी की ऊँचाई लगभग तीन फुट तथा मोटाई 6 फुट 8 इंच है । यहाँ शिवलिंग इस बड़े शिवलिंग में 1008 छोटे – छोटे लिंग उत्कीर्ण हैं।
विशाल नन्दी –
सहस्र लिंगी शिव के सामने विशाल नन्दी स्थापित है ।नन्दी की प्रतिमा एक ही उजले शिलाखण्ड को तराश कर बनायी गयी है । लम्बाई साढ़े चार फुट तथा मोटाई चार फुट है । शिवलिंग और नन्दी के मध्य गोपुरम सा लगभग 12 फुट के दो स्तम्भों पर आठ फुट का बीम टिका था जो अब गिर गया है ।
हनुमान जी की सुन्दर मूर्ति –
माँ भद्रकाली मन्दिर से बाहर हनुमान जी की सुन्दर मूर्ति स्थापित है । प्रतीत होता है मानो गदाधारी हनुमान दुष्ट आत्माओं से रक्षार्थ तत्पर हैं ।
कोटेश्वरनाथ स्तूप-
कोटेश्वरनाथ स्तूप माहने नदी के नजदीक है। कोठेश्वरनाथ स्तूप का सम्बन्ध बौद्धों से है । कोठेश्वरनाथ स्तूप में चारों ओर भगवान बुद्ध की योगमुद्र में एक हजार आठ आकृतियाँ उत्कीर्ण हैं । स्तूप के शीर्ष को प्रायः 4 इंच लम्बे , 4 इंच चौड़े तथा 4 इंच गहरे गढ़ेवाले एक पत्थर से ढँक दिया गया है । गढ़े में लगभग 3 इंच पानी हमेशा रहता है । पानी को हटा देने के पश्चात् तीन – चार घंटों में पुनः उतना ही पानी जमा हो जाता है , यह वैज्ञानिको केलिए खोज का विषय है।
भद्रकाली इटखोरी का इतिहास (History of Bhadrkali mandir itkhori)–
नामकरण से सम्बधित
- भद्रकाली इटखोरी का इतिहास काफी पुराना है।पुराणों में भी इस स्थान का जिक्र भद्रपुरी ग्राम के रुप मे किया गया है । भद्रपुरी यही भदुली ग्राम है ।
- भदुली ग्राम का नाम भी संभवतः माँ भद्रकाली की मूर्ति की स्थापना के परिणामस्वरूप ही पड़ा है । यह नाम भद्रकाली का अपभ्रंश से भोदली हो गया ।
- जनश्रुति के अनुसार ईटखोरी का प्राचीन नाम इतखोयी ” अर्थात् “ यहीं खोयी ” है । जनश्रुति के उनुसार गौतम बुद्ध अपनी साधना में इसस्थान पर में लीन थे । उनकी माता उन्हें वापस कपिलवस्तु ले जाने के लिए यहाँ आयी थीं । किन्तु गौतम बुद्ध अपनी साधना में लीन ही रहे । उनकी माँ के मुह सेनिकला गौतम ने इत खोई तभी से इस स्थान का नाम ” इतखोयी ” कहलाने लगा जो कालान्तर में इसका नाम ” ईटखोरी ” हो गया ।
- इस स्थान पर ईंटो का बना खोरी अर्थात रास्ता बना हुवा था जिस करण इसका नाम ईटो का खोरी अर्थात इटखोरी नाम पड़ा होगा ।