Baiga tribe of Jharkhand | झारखंड की बैगा जनजाति : संस्कृति, जीवनशैली और सामाजिक पहचान

भारत विविधता से परिपूर्ण देश है, जहां विभिन्न जनजातियाँ अपनी अनूठी सांस्कृतिक परंपराओं, रहन-सहन, भाषा और विश्वास के साथ देश की पहचान को समृद्ध करती हैं। इन्हीं जनजातियों में से एक है बैगा जनजाति (Baiga tribe), जो मुख्य रूप से झारखंड, छत्तीसगढ़, उड़ीसा, मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र और पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों में निवास करती है। इनकी जीवनशैली, पारंपरिक ज्ञान और रहन-सहन की पद्धति इन्हें अन्य जनजातीय समूहों से अलग बनाती है।बैगा जनजाति (Baiga tribe) न केवल झारखंड बल्कि भारत की सांस्कृतिक विविधता का अहम हिस्सा है। इनकी जीवनशैली, पारंपरिक ज्ञान, धार्मिक आस्थाएँ और जंगल से जुड़ाव हमें यह सिखाता है कि प्रकृति के साथ सामंजस्यपूर्ण जीवन संभव है। आवश्यकता है कि इनके अधिकारों की रक्षा हो, पारंपरिक ज्ञान को संरक्षित किया जाए और इनके सामाजिक-आर्थिक उत्थान के लिए प्रभावी कदम उठाए जाएँ।सरकार, समाज और स्वयंसेवी संगठनों को मिलकर प्रयास करने होंगे कि बैगा जनजाति  (Baiga tribe)की सांस्कृतिक पहचान बनी रहे

झारखंड में बैगा जनजाति की स्थिति

झारखंड राज्य के रांची और गुमला जिलों में बैगा समुदाय की विशेष उपस्थिति है। 2001 की जनगणना के अनुसार, झारखंड में बैगा जनजाति की कुल आबादी 3551 थी, हालांकि इसके बाद इनकी संख्या में वृद्धि हुई है, परंतु यह जनजाति आज भी राज्य की पिछड़ी और अल्पसंख्यक जनजातियों में शामिल है। बैगा समुदाय, प्राचीन समय से जंगलों, पहाड़ों और प्राकृतिक संसाधनों पर आश्रित रहा है। जंगल इनके जीवन का अभिन्न अंग है, जहां से ये न केवल भोजन, औषधियां और अन्य आवश्यक सामग्री प्राप्त करते हैं, बल्कि उनकी धार्मिक आस्थाएँ और सांस्कृतिक परंपराएँ भी जंगलों से ही जुड़ी हुई हैं।

सामाजिक संरचना और पारिवारिक व्यवस्था

बैगा जनजाति में पितृसत्तात्मक व्यवस्था प्रचलित है, जिसमें वंशानुक्रम पिता के नाम और गोत्र से चलता है। परिवार में वरिष्ठजनों, विशेषकर वृद्ध पुरुषों का विशेष सम्मान होता है, जिन्हें परिवार और समुदाय में पूजनीय स्थान प्राप्त है। बैगा समुदाय में सामाजिक संबंधों को मजबूत बनाए रखने के लिए गोत्र प्रथा महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।यह जनजाति मुख्यतः खेरवार जनजाति के समरूप मानी जाती है और कई मामलों में इनकी रीति-रिवाज, परंपराएँ और सामाजिक संरचना एक-दूसरे से मेल खाती हैं।

भाषा और संचार

बैगा समुदाय की अपनी पारंपरिक भाषा बैगाई है, परंतु झारखंड में निवास करने वाले अधिकांश बैगा समुदाय के लोग संवाद हेतु सदानी भाषा (लोकप्रिय क्षेत्रीय भाषा) का प्रयोग करते हैं। यह भाषा उन्हें अन्य जनजातीय समूहों और बाहरी समाज से जोड़ती है।

धार्मिक विश्वास और आध्यात्मिकता

बैगा समुदाय का धार्मिक जीवन अत्यंत रोचक और जटिल है। इन्हें जंगल का संरक्षक और स्थानीय देवी-देवताओं का आराधक माना जाता है। प्रसिद्ध समाजशास्त्री रिजले ने बैगा समुदाय को ‘जादूगर’ और ‘इंद्रजाल करने वाला’ कहा है। दरअसल, बैगा समुदाय के लोग न केवल जादू-टोना, टोटका, झाड़-फूंक आदि में माहिर होते हैं, बल्कि ये जंगलों में पाई जाने वाली औषधीय वनस्पतियों और जड़ी-बूटियों के विशेषज्ञ भी होते हैं। बैगा समुदाय में धार्मिक आयोजनों, पूजा-पाठ, त्योहारों और स्थानीय देवी-देवताओं को प्रसन्न करने के लिए विशेष अनुष्ठान किए जाते हैं। इनके धार्मिक गुरु या वैद्य भी ‘बैगा’ कहलाते हैं, जो आध्यात्मिक उपचारक के साथ-साथ पारंपरिक चिकित्सक की भूमिका निभाते हैं। यही कारण है कि बैगा जनजाति के लोग अपने समाज में अत्यंत सम्मानित और पूजनीय माने जाते हैं।

जीविका और आर्थिक गतिविधियाँ

बैगा जनजाति मुख्यतः कृषि पर आश्रित है, परंतु इनकी खेती छोटी जोत की, परंपरागत और जीविका स्तर की होती है। अधिकतर बैगा परिवारों की आजीविका खेती से पूर्ण नहीं हो पाती, इसलिए जंगल इनके जीवन का महत्वपूर्ण सहारा है। बैगा लोग जंगल से कंद-मूल, फल-फूल, साग-सब्जी, लकड़ी और औषधीय पौधों का संग्रह करते हैं। यही जंगल उनकी भोजन व्यवस्था का प्रमुख स्रोत है। इसके अतिरिक्त वे वनोत्पादों को स्थानीय बाजार में बेचकर अपनी आजीविका चलाते हैं। इनकी पारंपरिक कृषि प्रणाली में ‘झूम खेती’ या स्थान परिवर्तन वाली खेती का भी उल्लेख मिलता है, परंतु आधुनिक वन कानूनों के कारण इस पद्धति में कमी आई है। फिर भी, बैगा समुदाय अपने प्राकृतिक परिवेश से पूरी तरह जुड़े हुए हैं।

पारंपरिक ज्ञान और औषधीय विशेषज्ञता

बैगा समुदाय की सबसे बड़ी विशेषता इनका पारंपरिक चिकित्सा ज्ञान है। यह जनजाति सैकड़ों वर्षों से जंगल में पाई जाने वाली जड़ी-बूटियों, औषधीय पौधों और प्राकृतिक उपचार विधियों का उपयोग विभिन्न रोगों के इलाज में करती आ रही है।बैगा वैद्य या ओझा, न केवल बीमारी का उपचार करते हैं, बल्कि समाज में ‘जड़ी-बूटी विशेषज्ञ’ और ‘अध्यात्मिक चिकित्सक’ के रूप में भी सम्मानित होते हैं। आधुनिक चिकित्सा सुविधाओं के अभाव वाले इलाकों में आज भी लोग बैगा चिकित्सकों पर विश्वास करते हैं।

सांस्कृतिक पहचान और परंपराएँ

बैगा जनजाति की सांस्कृतिक विरासत में नृत्य, लोकगीत, पारंपरिक वाद्ययंत्र और विशेष पोशाक का महत्वपूर्ण स्थान है। त्यौहारों के अवसर पर बैगा पुरुष एवं महिलाएँ पारंपरिक परिधानों में सजकर समूह में नृत्य-गान करते हैं।बैगा समुदाय में विवाह, जन्म, मृत्यु, फसल की बुवाई-कटाई आदि अवसरों पर धार्मिक अनुष्ठान और सामूहिक उत्सव मनाना आम बात है। इनके सामाजिक जीवन में सामूहिकता, सहयोग और प्राकृतिक संतुलन बनाए रखने की गहरी भावना देखने को मिलती है।

आधुनिक समय में चुनौतियाँ

आज का बैगा समुदाय कई सामाजिक, आर्थिक और शैक्षणिक चुनौतियों का सामना कर रहा है। वनों पर सरकारी नियंत्रण, आधुनिक विकास परियोजनाओं, शिक्षा की कमी और स्वास्थ्य सुविधाओं के अभाव के कारण इनकी पारंपरिक जीवनशैली प्रभावित हो रही है।सरकार द्वारा बैगा समुदाय को संरक्षित जनजाति  का दर्जा देकर इनके विकास के लिए योजनाएँ चलाई जा रही हैं, परंतु जमीनी स्तर पर इन योजनाओं का समुचित लाभ इन्हें पूरी तरह नहीं मिल पा रहा है।

बैगा जनजाति न केवल झारखंड बल्कि भारत की सांस्कृतिक विविधता का अहम हिस्सा है। इनकी जीवनशैली, पारंपरिक ज्ञान, धार्मिक आस्थाएँ और जंगल से जुड़ाव हमें यह सिखाता है कि प्रकृति के साथ सामंजस्यपूर्ण जीवन संभव है। आवश्यकता है कि इनके अधिकारों की रक्षा हो, पारंपरिक ज्ञान को संरक्षित किया जाए और इनके सामाजिक-आर्थिक उत्थान के लिए प्रभावी कदम उठाए जाएँ।सरकार, समाज और स्वयंसेवी संगठनों को मिलकर प्रयास करने होंगे कि बैगा जनजाति की सांस्कृतिक पहचान बनी रहे और वे विकास की मुख्यधारा से भी जुड़ सकें।

इसे भी पढ़ें

झारखंड की जनजातियां

संथाल जनजाति

उरांव जनजाति

मुंडा जनजाति

हो जनजाति

खरवार जनजाति

खड़िया जनजाति

भूमिज जनजाति

महली जनजाति

बेदिया जनजाति

चेरो जनजाति

करमाली जनजाति का सामान परिचय

Leave a Comment

Your email address will not be published.