Baba Tanginath Dham jharkhand | विश्व विख्यात बाबा टांगी नाथ धाम का रहस्य

बाबा टांगी नाथ धाम (Baba Tanginath Dham jharkhand) झारखंड के घने जंगल पहाड़ो के  बीच ऐसे अद्भुत आश्चर्य चकित करने वाले प्राचीन पुरातात्विक स्थल स्थित है, जिस का रहस्य  आज तक नहीं सुलझाया जा सका है। उनमें से एक है, विश्व प्रसिद्ध टांगीनाथ धाम। झारखंड के गुमला जिला, डुमरी प्रखंड स्थित मंझगांव में भगवान परशुराम का तपस्थली बाबा टांगी नाथ धाम स्थित है।

एक मान्यता के अनुसार भगवान परशुराम ने अपने फारसे को इसी स्थल पर गाड़ दिया था। आश्चर्य की बात यह है कि खुले आसमान में इस फारसे पर कभी जंग नहीं लगते हैं। स्थानीय लोग इस फारसे को टांगी कहते हैं इसलिए इस स्थल का नाम टांगीनाथ धाम के रूप में प्रसिद्ध है।

 

टाँगीनाथ  वैष्णव और शिव – शक्ति – सूर्य समूह का प्रख्यात ऐतिहासिक धर्मस्थल है । यहाँ दोनों ही समूह की अगणित मूतियाँ प्राप्त हुई हैं। खुदाई के क्रम में विभिन्न प्रकार के अगणित शिवलिंग मिले   हैं ।मंझगाव की इस छोटी  पहाड़ी पर चारों ओर शिवलिंग बिखरे पड़े हैं । झारखण्ड  और छतीसगढ़  की सीमा पर स्थित  गाँव मझगाँव गुमला जिले के डुमरी प्रखंड के अंतर्गत आता है । इस छोटी पहाड़ी की ऊंचाई 300 फीट है जिसे ऊँचाई आसानी से चढ़ी जा सकती है.यह पहाड़ पर्यटकों के लिए आकर्धन का केंद्र है . सुन्दर चट्टानों से सजी इस पहाड़ी के सौन्दर्य को वन , पर्वत , नदी , झरने आदि  आकर्षित करता है। इस पहाड़ी के पूर्व में एक गुफा है, जो देवता झुमरा के नाम से प्रख्यात है। इससे सटे ही योगी टोंगरी है, जहाँ कई महत्त्वपूर्ण मूर्त्तियाँ प्राप्त हुई हैं। टाँगीनाथ की पहाड़ी तथा उसके आस – पास के क्षेत्रों में विभिन्न प्रकार के छोटे – बड़े ( 1 फुट से साढ़े चार फुट ऊँचाई के ) सैकड़ों शिवलिंग बिखरे पड़े हैं ।

टाँगीनाथ धाम में  आकर्षण का केंद्र :-

टाँगीनाथ मन्दिर

इस पहाड़ी  के पश्चिम भाग में   मुख्य मन्दिर का नाम टाँगीनाथ अथवा शिवमन्दिर है ।  टाँगीनाथ मन्दिर 11 फुट 4 इंच तथा 11 फुट आकर का  है । इसकी दीवारें ईंटों की बनी हुई हैं । प्रवेश द्वार के दो खंभे पत्थरों को कलात्मक ढंग से तराश कर बनाये गये हैं । मन्दिर के गर्भगृह में 5 फुट के अरधा में , जो समतल पत्थर पर रखा गया है .  मन्दिर एक विशाल शिवलिंग है तथा  अन्दर ही अन्य आठ शिवलिंग हैं । इस शिवलिंग को ही ‘ टाँगीनाथ ’ कहा जाता है ।

इस मंदिरके निर्माण के संबध में डा.भुनेश्वर अनुज अपनी पुस्तक में लिखे है ” टाँगीनाथ मन्दिर के समीप सतयुग में चन्दन का एक विशाल वृक्ष था । कलियुग को देखकर भगवान टाँगीनाथ विक्षुब्ध हो गये और इसी चन्दन वृक्ष में समा गये तथा वृक्ष का धड़ पत्थर में बदल गया , जो ‘ टाँगीनाथ ‘ के रूप में विख्यात हुआ । जशपुर राज के पूर्वजों ने इसी स्थल पर मन्दिर का निर्माण कराया था , जिसका जीर्णोद्धार मझगाँव के राजा ने कराया था । इन्होंने ही ईटों से चहारदीवारी बनवायी थी तथा फूस से छाया एक मन्दिर बनवाया था । इसके अतिरिक्त एक * झोपड़ीनुमा मकान बनवाया था जहाँ कुछ मूर्त्तियाँ रख दी गयी हैं । इसे देवी मन्दिर कहा जाता है ।”

भगवन परशुराम का गडा त्रिशूल/ फारसा / टांगी 

विश्वविख्यात त्रिशूल/ फारसा / टांगी  60 डिग्री कोण पर गड़ा हुआ है। इसकी  लंबाई पर मतभेद है , लेकिन 17 फुट लम्बाई होने की बात कही जाती है ।  त्रिशूल/ फारसा / टांगी  को किसी ने तीन स्थानों से काट दिया है ।एक दन्त कथा प्रचलित है की  मझगाँव के किसी लोहार ने कोई औजार बनाने के उद्देश्य से काट लिया था , किन्तु  दैवी प्रकोप के शिकार हो जाने के परिणामस्वरूप उसका उपयोग नहीं किया और  त्रिशूल के भाग को मूल त्रिशूल के समक्ष रख दिया था ।

मुख्य त्रिशूल/ फारसा / टांगी  का  आधार का व्यास 5 फुट है । त्रिशूल के बगल में 2 फुट लंबी तथा 11 इंच व्यास की एक छड़ है जो पहले त्रिशूल से जुड़ी थी । मूल त्रिशूल का केन्द्रीय लौह खण्ड 11 इंच परिधिवाला अष्ट्रकोण का है ।  त्रिशूल भी विगत सैकड़ों वर्षों से खुले आसमान में  पड़ा हुआ है और फिर भी इसमें जंग  नहीं लगा । इस त्रिशूल के किनारे के भाग तलवार के आकार के हैं । इसका ऊपरी भाग विशाल भाले के आकार का है । विश्वविख्यात त्रिशूल त्रिशूल के चारों ओर शिवलिंग स्थापित हैं । इसके इर्द – गिर्द भारी संख्या में विभिन्न देवी – देवताओं की मूर्त्तियाँ बिखरी पड़ी हैं । इसके निकट ईंटों से बना एक चौकोर जलकुंड है । जलकुंड 14 फुट 9 इंच लम्बा , 14 फुट 5 इंच चौड़ा तथा 8 फुट गहरा है । कुंड के एक भाग में कुंड में उतरने के लिए सीढ़ियाँ बनी हुई हैं । दक्षिण किनारे पर 2 फुट की गहराई से एक नाली है ।

योगीमठ

दक्षिण में योगीमठ है , जो पत्थरों के बड़े – बड़े टुकड़ों से बना छोटा सा मन्दिर है। पत्थर के बने दो छत – विहीन मन्दिर हैं जिसमें 6 फुट x 5 फुट का छोटा सा गर्भगृह है एवं उसके आगे छोटी ड्योढ़ी है । दोनों मन्दिर की ड्योढ़ी तथा चौखटों पर फूलों एवं अन्य कलाकृतियों की अति सुन्दर खुदाई है , किन्तु अब वर्षों तक वर्षा , गर्मी और सर्दी के थपेड़ों से घिस – पिट गई है । दोनों द्वारों के ऊपर शिलाखंडों में पूजा वेदिका में गणेश की मूर्तियाँ हैं । गर्भगृह के दो लिंगों से यह स्पष्ट है कि यही शिवमंदिर था ।

शिव – पार्वती की प्रतिमा

शिव – पार्वती की प्रतिमा में चारभुजी पार्वती शिव की बायीं जाँघ पर बैठी है । पार्वती के एक हाथ में त्रिशूल  है । शिव के दाहिने पैर के निकट बैल और पार्वती के पैरों के पास एक सिंह बैठा है ।

भगवान सूर्य की एक आकर्षक प्रतिमा है

सात घोड़ों के द्वारा खिंचे जा रहे रथ पर सदार भगवान सूर्य की एक आकर्षक प्रतिमा है । भगवान सूर्य के दोनों हाथों पर एक – एक सूर्यमुखी फूल सुशोभित है । प्रतिमा के दोनों ओर दो परियाँ हैं । बाँयी ओर अनेक देवी – देवताओं की विभिन्न प्रकार की मूर्त्तियाँ हैं ।

अन्य देवी देवताओ का प्रतिमा 

टाँगीनाथ पहाड़ पर शिवलिंग के अतिरिक्त दुर्गा , महिषासुरमर्दिनी , भगवती , लक्ष्मी , गणेश , अर्द्धनारीश्वर , विष्णु , उमा – महेश्वर , सूर्यदेव , हनुमान आदि मूर्त्तियाँ , सुन्दर – सुन्दर तथा मनोहारी वृषभ , सिंह , गज तथा अन्य देवताओं की पत्थरनिर्मित प्रतिमाएँ देखे जा सकते है

अन्य कलानात्मक स्मारक 

इस पहाड़ी पर  छोटी – छोटी ईटों के बने ढाँचे , पत्थर से निर्मित नालियाँ , पीसने की सिलवट , विभिन्न प्रकार के छोटे – बड़े मिट्टी के भाँड़ तथा पर्याप्त संख्या में पौराणिक चौड़ी – चौड़ी ईंटें , असुर कालीन ईटों से मिलती हैं ।

पवित्र कुंज तथा योगी टोंगरी

योगी टोंगरी के नाम से प्रख्यात एक पहाड़ी , जो टाँगीनाथ पहाड़ी से प्रायः एक मील की दूरी पर स्थित है। जंहा विभिन्न प्रकार की प्रतिमाएँ प्राप्त हुआ  हैं । इन मूर्तियों में से एक राधाकृष्ण की मूर्ति भी है । यहाँ प्राप्त मूर्त्तियों के संबंध में बताया जाता है कि ये मध्यकालीन हैं । यहाँ के खंडहरों में कोई शिलालेख नहीं है । इस टोंगरी की चोटी पर एक मन्दिर का भग्नावशेष  है इस मंदिर के सम्बन्ध में  कहा जाता है कि इसी मन्दिर में एक सिद्ध योगी रहा करते थे और इसीलिए इस पहाड़ी को योगी – टोंगरी कहा जाता है ।

झुमरा गड्ढा

मझगाँव के पूर्व स्थित  एक झुमरा गड्ढा के नाम से एक स्थल है , जंहा  शिवलिंग तथा बलराम की मूर्तियाँ मिलीं हैं । दोनों अलग – अलग ईंट की बनी वेदियों पर प्रस्थापित हैं । बलराम की प्रतिमा के अगल – बगल 4 मानव मूर्त्ति तथा साथ ही देव – दासों की मूर्त्तियाँ हैं । बलराम को दाहिने पैर को बाएं पैर की जाँघ पर रखकर बैठे दर्शाया गया है ।

खुदाई से प्राप्त अवशेष 

 1989 ई . में टाँगीनाथ मन्दिर क्षेत्र में खुदाई में अनेक  महत्वपूर्ण सामान मिला , जिनमें सोने का मुकुट , 21 नग ( पीले , उजले और लाल ) , चार कानों की बालियाँ ( सभी सोने के ) , मोहरें , सोने की अर्द्धचन्द्राकार छड़ , चाँदी के पाँच सिक्के , गोलाकार रिंग ( सोने का ) , लम्बी – चौड़ी एक डिबिया ढक्कन के साथ , एक ढाई इंच व्यास के ढक्कन के साथ डिबिया । ये सभी चीजें डुमरी थाना में जमा की गयीं ।

बाबा टांगी नाथ धाम निर्माण का एतिहासिक  स्रोत :- 

  •  टाँगीनाथ मन्दिर के निर्माण – काल का निर्धारण के सम्बद्ध में विद् मनो में मतभेद है इसका निर्माण का सही से पता नही लगाया जा सका है।  झारखण्ड के प्राचीन स्मारक पुस्तक में डॉ. भुनेश्वर अनुज ने लिखा है – ” एक अत्यन्त पुरानी फटी किताब के अनुसार ‘ नेतरहाट की तराई में टाँगीनाथ नामक एक विशाल , समृद्ध तथा प्रसिद्ध शिवमन्दिर था । इसका निर्माण महाभारत के बहुत पहले हुआ था । य दूर – दूर तक प्रसिद्ध था तथा दूर – दूर से यात्री यहाँ दर्शन करने आते थे , लेकिन भूकम्प के कारण यह नष्ट हो गया है । ‘ कल्याण के तीर्थांक में भी इसी प्रकार का उल्लेख है | इसका अर्थ हुआ कि इस मन्दिर का निर्माण 5 हजार वर्ष से भी पूर्व हवा होगा।”
  • प्रख्यात इतिहासकार आर . बी . भंडारी के अनुसार दूसरी शताब्दी में पाशुपत्य विद्यालय की स्थापना की गई थी । टाँगीनाव में अगणित शिवलिंगों तथा अनेक मन्दिरों के कारण संभव है पाशुपत्यों के विद्यालय के रूप में चला हो
  • पी . सी . राय ने अपनी रचना ‘ कास्ट , रेस एंड रिलिजियन इन इंडिया ‘ में लिखा है कि संस्कृति की दृष्टि से छोटानागपुर उतना ही पुराना है , जितनी सिन्धु घाटी।
  • बिहार थ्रु एजेज ’ में श्री आर . आर . दिवाकर ने उल्लेख किया है कि चौथी से छठी शताब्दी के मध्य छोटानागपुर ने गुप्तवंश का प्रभुत्व स्वीकार किया था ।  गुप्तों के शासन काल में अनेक मन्दिरों का निर्माण हुआ था । उन्ही में से टांगी नाथ मंदिर है।
  • झारखंड के घने जंगल पहाड़ो के  बीच ऐसे अद्भुत आश्चर्य चकित करने वाले प्राचीन पुरातात्विक स्थल   का निर्माण अत्यंत प्राचीन है। इस वैश्विक धरोहर को संरक्षित करने की आवशकता है ।

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