शिवनाथ प्रमाणिक मानिक (Shivnath pramanik “manik”) खोरठा भाषा साहित्य जगत में ओजपूर्ण भाषण ,दबंग व्यक्तित्व, एवं प्रख्यात साहित्यकार के रूप में जाने जाते हैं। दर्जनों हिंदी ,खोरठा साहित्य की विभिन्न विद्याओ में रचना कर अमिट छाप छोड़ी है।इनकी रचनाओं में यथार्थवाद मानववाद की झलक परिलक्षित होती है। झारखंड की स्थानीय भाषा खोरठा को भाषा साहित्य के रूप में स्थापित करने में श्री निवास पानुरी ,अजित कुमार झा जी के बाद तीसरा व्यक्ति है।
इनका जन्म बोकारो के बइदमारा गांव में 13 जनवरी 1949 को हुआ था। खेतीहर परिवार के शिवनाथ जी 1968 में सेकेंड्री पास करने के बाद बोकारो इस्पात में नौकरी करने लगे थे जहां से वे 2009 में सेवानिवृत हुए। खोरठा साहित्य जगत में उनकी पहचान एक सुघड़ और ओजपूर्ण कवि की थी। रूसल पुटुस (सं., कविता संग्रह), दामुदरेक कोरांय (महा काव्य) तातल आर हेमाल (कविता संग्रह), खोरठा लोक साहित्य (हिन्दी-खोरठा) मइछगंधा (खंडकाव्य) और माटीक संग (हिन्दी में) उनकी प्रमुख कृतियां हैं। खोरठा भाषा-साहित्य और झारखंड आंदोलन में उनका अवदान अप्रतिम है। खोरठा – हिन्दी के मूर्धन्य साहित्यकार शिवनाथ प्रमाणिक का लंबी बीमारी के बाद 27 फरवरी 2024 निधन हो गया।
सामान्य परिचय – |
नाम :- | शिवनाथ प्रमाणिक (Shivnath pramanik ) |
उपनाम:- | माणिक |
जन्म:- | 13 जनवरी 1949 |
माता:- | तिनकी देवी |
पिता:- | मुरलीधर प्रमाणिक |
जन्म स्थान:- | बैधमरा, बोकारो |
शिक्षा: | -स्नातक ,पत्रकारिता और लेबर वेलफेयर में डिप्लोमा |
रचना:- |
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जीवन परिचय:-
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श्री शिवनाथ प्रमाणिक (Shivnath pramanik ) जी का प्रारंभिक जीवन बहुत ही कष्ट मय बिता किन्तु इन कष्टो को अपने मेहनत के बदौलत सरल करते गए और अपने लिए रास्ता खुद निकलते चले गए।मेट्रिक पास करने के बाद बोकारो स्टील सिटी में नोकरी करली । नौकरी में रखते हुए स्नातक तक की उपाधि प्राप्त की साथी पत्रकारिता और लेवल वेलफेयर डिप्लोमा की भी शिक्षा हासिल की गृह मंत्रालय भारत सरकार के द्वारा अनुवादक में विशेष प्रशिक्षण भी उन्होंने प्राप्त की है। साहित्य में इनकी रूचि प्रारंभ से रही है जिस कारण उन्होंने पत्रकारिता में भी डिप्लोमा जिस से लेखन कला से इनका जुड़ा बना रहा।देखते देखे हिंदी ,खोरठा में कविता ,कहानी लिखने लगे। जो विभिन्न पत्र पत्रिका में समय समय पर चपटे रहा। कई संस्थाओं से जुड़कर अपनी प्रखरता की पहचान दे दे आए हैं जैसे साहित्य सृजन संस्थान जनवादी लेखन कला संघ मानववाद ई साहित्यकार संघ अर्जक संघ विस्थापन कल्याण समिति इत्यादि संस्थाओं से जोड़कर अपनी प्रखर व्यक्तिव का पहचान देने लगे । खोरठा भाषा भाषी क्षेत्रों में खोरठा भाषा विकास के लिए कवि सम्मेलन संगोष्ठी खोरठा भाषा मानकीकरण इत्यादि सम्मेलन आयोजित करने लगे। शिवनाथ प्रमाणिक इन सम्मेलनों के द्वारा श्री निवास पानुरी स्मृति सम्मान ,खोरठा रत्न सम्मान इत्यादि सामानों की शुरुआत । इन सम्मेलनों के परिणाम स्वरूप खोरठा भाषा का एक मानक हो तैयार होते चला गया साथी खोरठा भाषा भाषा बोलने वाले लोगों का लगाओ खोरठा भाषा साहित्य से होने लगा और लोगों का प्रेम इस भाषा से बढ़ता चला गया।
1984 ईस्वी में धनबाद से प्रकाशित आवाज पत्रिका में इनकी हिंदी रचना छपने लगा । आवाज में खोरठा मागधी की बोली लेख छपने के बाद डॉक्टर ए क झा जी काफी प्रभावित हुए और इनसे मिलने बोकारो पहुंच गए। एके झांसी श्री शिवनाथ प्रमाणिक (Shivnath pramanik )जी के संपर्क होने से खोरठा भाषा साहित्य के विकास में एक नई रोशनी का उदय हुआ। यहां से झारखंड में भाषा आंदोलन की रास्ते पर चल दिये-
चल डहरे चल रे
डहर बनायक चल रे
डहरे काट रे कांटा उठक चल रे
चल डहरे चल रे
भाषा आंदोलन की राह पर चलकर झा जी और शिवनाथ प्रमाणिक खोरठा भाषा को आगे बढ़ाने के लिए 8 जुलाई 1984 को बोकारो खोरठा कमेटी का गठन किया जिसमें जिसमें श्री शिवनाथ प्रमाणिक जी को इसका निदेशक बनाया गया। इन के निर्देशन में बोकारो खोरठा कमेटी की गतिविधियां संचालित होने लगी। शिवनाथ प्रमाणिक अपने परम सहयोगी शांति भरत और बंसी लाल बंसी जी के साथ मिलकर खोरठा भाषा को आगे बढ़ाने के लिए खोरठा भाषा के भीष्म पितामह या पुरोधा श्री निवास का नूरी से मिलने बरवाडा धनबाद पहुंच गए और इस प्रकार शिवनथ प्रमाणिक साहित्यकरो एव भषा आंदोलन कार्यों से जुड़ते चले गए और खोरठा भाषा को एक नई दिशा देने का काम किया। अपनी रचना को रांची,हजारीबाग आकाशवाणी,दूरदर्शन के माध्यम से गीत कविता वार्ता इत्यादि का प्रशारित करने लगे और अन्य साहित्य करो कोभी इस ओर प्रोतसाहित किया। इन योगदान के लिए अनेक सम्मान और पुरस्कार से नवाजे गये हैं।
सम्मान और पुरस्कार
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काव्यगत परिचय
श्री शिवनाथ प्रमाणिक (Shivnath pramanik ) जी का खोरठा साहित्यकारों से संपर्क होने के साथ ही खोरठा भाषा साहित्य में इनकी रूचि बढ़ने लगी और एक से बढ़कर एक खोरठा साहित्य की रचना विभिन्न विधाओं में करने लगे :-
उनकी प्रारंभिक रचना 1985 ईस्वी में खोरठा कविता संकलन के रूप में सामने आया जिसका नाम था रूसल पुटुस । |
दामोदर कोरांय 1987 :- श्री शिवनाथ प्रमाणिक (Shivnath pramanik ) जी का मौलिक प्रबंध काव्य दामोदर कोरांय पुस्तक छपा ।इस पुस्तक में 6 भाग है।खोरठा भषा साहित्य में यह मधुर काव्य के रूप में जाना जाताहै। |
तातल और हेमल 1998 – तातल और हेमाल शिवनाथ प्रमाणिक की 1900 ई . लेकर 1998 ई की रचित कविताओं के संचलन का रूप है । इस कविता संग्रह में काव्य विधा में प्रथम बार रीझा , रीवार ओर फुलगिनी ( चौपती , काव्या प्रयोग किया गया है। |
2004 में खोरठा लोक साहित्य पुस्तक प्रकाशित हुआ। यह खोरठ लोक साहित्य की मूल पुस्तक के रूप में जानी जाती है।इस पुस्तक में इन क्षेत्रों में जो लोग कथा कहावत मुहावरा पहेली मंत्र इत्यादि का विस्तृत संकलन किया गया है। शिवनाथ प्रमाणिक जी के द्वारा यह पुस्तक की रचना कर खोरठा भाषा साहित्य जगत में एक अनमोल साहित्य के रूप में जाना जाता है। इस साहित्य की रचना होने से जो हमारी पारंपरिक लोक साहित्य है उसके बारे में लोगों तक जानकारी लिखित रूप में उपलब्ध हुई। |
2013 मइछ गन्धा खोरठा भाषा साहित्य जगत में पहला महाकाव्य निकालने का श्री श्री शिवनाथ प्रमाणिक जी को जाता है। |
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खोरठा भषा के प्रखर ओजपूर्ण ,काव्य वक्ता थे।हालांकि उम्र होने के साथ उनकी स्वास्थ ठीक नही चल रही थी।19 अप्रेल 2022 को हमारी टेलीफोनिक बात हुवी थी खोरठा – हिन्दी के मूर्धन्य साहित्यकार शिवनाथ प्रमाणिक का लंबी बीमारी के बाद 75 वर्ष के उम्र में 27 फरवरी 2024 निधन हो गया। खोरठा भाषा-साहित्य और झारखंड आंदोलन में उनका अवदान अप्रतिम है।
आलेख:-
डॉ आनन्द किशोर दाँगी
जनजातीय एवं क्षेत्रीय भाषा (खोरठा) विशेषज्ञ
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