tiptipwa ke dar

खोरठा लोक कथा | टिपटिपियाक डर | Khortha lok katha tiptipya ke dar

खोरठा लोक कथा – टिपटिपियाक डर  (tiptipya ke dar) : कहानी एगो मजेदार लोककथा हइ, जे खोरठा में लिखल गेल हइ। कहानी बुधवा नामक एगो धोबी के जीवन के चित्रण करल गेल हइ, जे रोज गधिया पर लुग्गा लाद के धोवे जाए हइ। ओकर गधिया ओकर काम में मददगार हइ, लेकिन एक दिन गधिया गायब हो जा हइ। बुधवा ओकरा खोजे खातिर निकल जा हे । कहानी में पूस मास के ठंढ, टिपटिपिया पानी, बोन झार के डर आर एगो भूखल बाघ के वर्णन हइ। बाघ खुद टिपटिपिया नामक अनजाना डर से थरथराइ जा हे । बुधवा धोबी गलती से बाघ के गधिया समझ के ओकर पीठ पर चढ़ के डंडा से पीटे लगो हे । बाघ डर के मारे भाग जा हइ। खोरठा लोक कथा – टिपटिपियाक डर  (tiptipya ke dar कहानी हँसी-ठिठोली, ग्रामीण जीवन, लोक-विश्वास आर मजेदार घटनाक्रम से भरल हइ। एकर माध्यम से ई बतावल गेल हइ कि कई बेर अनजाना डर सबसे बड़ हो सकऽ हइ चाहे ऊ “टिपटिपिया” हो बा  मन के डर

खोरठा लोक कथा – टिपटिपियाक डर

एक गाँवें एगो बुधवा नाम के धोबी रह-हल। ओकर एगो लेपची गधी हलइ। आस-पासेक गाँवेक लोकेक लुगा-फाटा लइकें बुधवा धोबी आपन गधीक पीठें लादतल आर आहर चइल जितल। हुआँ गधीके चरे ले छोइड़ देतलइ आर लुगा-फाटा काँचे लागतल आर गधी हरिहर दुब-घाँस खाइकें आघाइ जितलइ। साँझेक समइ गधीक पीठें आपन गाँइठ-मोट लाइद देतलइ आर घार घुरतल ।

एहे ओकर रोइजेक काम रह-हलइ। जखन पोरब-तिहार अइतलइ तखन बुधवाक काम तनी जहत भइ जा हलइ। पुस पोरबेक समइ ! बुधवाक काम तनी बेसे जमक मुँहा भेलइ। रोइजेक रकम मोट-झोंट गधीक उपर लादल अर जोरिया बाँध चइल गेल। गधीक चरे ले छाइड़ देलइ आर आपन कामें लाइग गेल।  गधी कि करलइ जे चरइत-चरइत आहर बाँधेक पेंदा बाटे नांइभ गेलइ। साँइझेक बेरा भेलइ। मोट-झोंट बाँइध बुधवा थनवे हे, तो कहीं गधीक देखे हे नाँइ पावे। एतना बड़का-बड़का लुगाक मोट आनत कइसें ? एहे भाभनाँइ बुधवा गधीक टावानें सोझाइ गेल। खोजइते-खोजइते जाइकें खांघारें आपन गधीक पइलइ। एक तो दिन भइरेक खटल तकर बादे गधीक खोजबाइ। रागें तो बुधवाक गात लहरे लागलइ।

एखन चाहे ने चीतें एगो ढेलाक काचरा तोड़ल आर गधीक दिएक सुरू करलइ। गधीक मारते-मारते थकाइ देलइ। वइसने मारते-मारते कोन्हों रकम घाट पोहचल।

बिहान भेलइ तो बुधवा दाहोक मेला देखे चइल गेल। मेला-तेला देइख सुइन के हुँधीं आपन आपुस घार  चइल गेल। ढेइर दिन बाद घर से बाहराइल हल से ले सोंचल  – घर भेले

आइब। एहे रकम ओकर एक हाफता बित गेलइ ।

तकर बाद जखन घार घुरल तो गधीक नाँइ देइख के ओकर मने भाभना भइ गेलइ। आसें-पासें खोइज-खोइज देखलइ तो आर कहीं गधिक पाता नाँइ। नाँइ पाइकें दू चाइर दिन सलसँतों रहल। मेनेक गधी बिना बुधवा धोबिक काम नाँइ चले। खुब मनें भाइभ-गुइन देखलइ आर बिचार करलइ जे आइज साली गधियाक खोजिए लेबइ। काहाँ जितिक ! हामराँ घारें नाँइ देइख साली बहइक गेलहिक। भुइल गेलिक से दिनेक माइर टा। आच्छा पइबइ तब ना ओकरा सिखइबइ।

बुधवा आपन गधिक खोजाइरें बाहराइल आस-पासेक गाँवें खोजइत-खोजइत आर कहीं गधिक पाता नाँइ। साँइझ भइ गेलइ । तखन गारगा पारेक गाँव पुपुनकीं राइत रही गेल, एहे सोइच के कि आब एते खुन के जाहे। राइतो भइ गेल हइ। सोंचल कोन्हों तरि राइत काटब आर भिनसरें उठब आर खोजले-खोजले आपन घार घुरब।

बाघ और टिपटिपिया

पुस महिनाक राइत ! हाड़-कांपा जाड़। लोक भोरसी लइ-लइ के सुतल हथ आर टापाक-टिपिक पानीयो बइरसे लागलइ । अइसने रातीं एखन खांधार बाट ले बाघएगा जे उठल से माइन टॉइड़ भइ के पाता मोहवाक टॉइड़ चइल आइल। कोन्हों सिकार नाँइ पाइकें बाघवा एखन चलते-चलते भोगलु माहराक छाँछा तर जाइ के पाटाइ गेल। एहे आसराइँ कि कोन्हों सिकार-तिकार बहरइबथिन तो धरबइ। पुस मासेक जाड़ तकरो में टिप-टिपीया पानी! अइसने में बाघ छाँछा तर पाटाइ रहल।

आधा रातिक समइ। भोगलुवाक बेटा मंगरूवाइँ आपन बाप के कहलइ-

“ए बाप, हागबोउ ! ए बाप….” एक घरी रहइ आर मंगरूवा फइर कहलइ जे ए बाप हागबोउ। एखन नींद भांगल्हीं भोगलुवाँइ कहलइ-

“चुप साला! हामें डाइन से नाँइ डेराए, जोगिन से नाँइ डेराए भूत से नाँइ डेराए पेचास से नाँइ डेराए भालुक से नाँइ डेराए बाघ से नाँइ डेराए हाम ककरो से नाँइ डेराए एकाइ डेराए तो टिपटिपीया से।

एखन छाँछा तर पाटाइल बाघवा सोंचे लागल ई साला हमरो से नाँइ डेरा हे बाप। ई टिपटिपीया टकि चीज लागइ जकर ऊ डर करे हे। अइसने में एखन भिनसहर भइ गेलइ ।

ताले मंगरूवाञ फइर कहलइ फइर मंगरूवाक डाँइट के कहइक डेराए………एकाइ टिपटिपीया से डेराए।” “ए बाप, हागबोउ !” भोगलुवाँइ “चुप साला हाम बाघ से नाँइ

बाघवा सोचइ, साला ई टिपटिपीया टा की चीज रे बाप जकर ऊ डर करे। ताउ ले सइ बुधवा धोबी गधी खोजल-खोजल महरा कुल्ही आइ पोहचल। तखन सोंचल, काहे नाँइ भोगलुवाक तनी पुझ्छ देखियोक। एहे सोंइच के हाँक देलइ-

“भगलु मामु घारें हैं हो? भगलु मामु घारें हैं ?” साड़ा पाइ भोगलुवा माहरा कहलइ – “के रे साला! कि लागइ रे?”

“मामु हामें लागों बुधवा। हामर गधिया हेराइ गेल हिक। हिन्दे आइल होउ?” बुधना कहलइ तखन निंद भांगल्हीं भोगलुवाँइ कहलइ-

“केइजान साला छाँछा धाइर बाट देख, माँड़-ताँड़ खाइ ले आइल हतोउ तो।”

एखन बुधवा धोबी सइ भोगलुवाक घारेक पेछुवाइर धाइर जाइकें छाँछा तर बाट खोजे लागलइ ।

भिनसर-भिनसर बेराञ बाघेक आँइख लाइग गेल हलइ । बुधवा टोमरल-टोमरल आँधारें ओकर गोड़ सइ बाघेक उपर परलइ। बुधवाञ बुझल गधियाइ लागइ। चोंहँइक कें सइ बाघेक पीठें चढ़ल आर मार सोंटा! बाघ चेंहाइ उठल आर चोबका खाइ कें चोंहके लागल।” साली बहुत सँतवल हैं। आइज तोराँ हामें पानी पिआइ छोड़बोउ।” एतना

कइह कें बुधवा बाघ के मार सोंटा।

बाधें सोंचल आइज हामर उपाइ नाँइ, टिपटिपीया सें भेंट भइ गेल। ठीके साला भोगलुवाञ कह-कलइ”….हाम डेराए तो खाली टिपटिपीया सें।” टिपटिपीयाक डरें बाघेक जीउ उइड़ गेलइ आर खूब जोरें दउड़े लागल । जते रागें बाघ दोड़इ तते रागें बुधवाइँ मार सोंटा। बाधें टानइक खाँधार बाटें आ बुधवाँइ टाने भँडर गड़िया बाटें। एहे टाना-झिंकाइ एखन फरीछ भइ गेलइ । बुधवाँइ देखलइ तो ओकर पराने सुइख गेलइ। ‘बाप रे बाघेक पीठें बइसल हों’ ताउ ले बाघेक गातें माइर खाइ-खाइ लहइर फुइट गेलइ। बाघे टानइ खाधार बाटें आर बुधवाँइ टानइ भँडर गड़िया बाटें।

बाघेक पीठें आपन के पाइ के बुधवक गधीक निसा फाइट गेलइ आर सियार गाढ़ा देइखकें झुरपुट कें झाँप दइ देल हइ तइसहीं बाघ जे दउड़ल सें एके दउड़े नदीं झाँप देले बेड़ा बाट पार भइ गेल आर किरा खाइ लेल जे आर ई टिपटिपीयाक राइजें कयूँ नाँइ जाइब। बुधवा हुलइक के देखलइ तो आस-पासें केउ नाँइ। तखन गढ़वा से बाहराइल आर भँडर गड़ियाक टॉइड़ दइ कें बेरा उठइत-उठइल घार घुइर आइल ।

जइसीं घारेक दुवाइर आइल, तइसीं देखेहे जे गधिया दुरिया तर डाँड़ाइ के पोगराइ लागल ही। गधियाक पाइकें बुधवा बड़ी खुस भेल आर थपथपाइ के गधियाक कहलइ,” आर तोरा कधियो नाँइ मारबोउ। तोहूँ हामर से कम काम नाँइ करेहें आर बुधवा आंगना बाट ढुके लागल। पाछँइ-पाछँइ गधियो आंगना बाट ढुइग गेलिक। केजान बुधवाक बातें ओहो राजी भइ गेलिक ।

इसे भी पढ़े

खोरठा लोक कथा धनेक धधेनी | khortha Lok katha Dhanek Dhadheni

Leave a Comment

Your email address will not be published.