गौतम बुध के पूर्व जन्मो की प्रेरक जातक कथा | बुद्धि ही महान लोक कथा

झारखंड की सांस्कृतिक धरती पर रची गई यह प्रेरक कथा केवल जंगल की राजनीति नहीं, बल्कि जीवन की गूढ़ सच्चाइयों को उजागर करती है। “बुद्धि ही महान” एक ऐसी कहानी है जो शक्ति, स्वार्थ, निष्ठा और विवेक के बीच के संघर्ष को दर्शाती है — ठीक वैसे ही जैसे जातक कथाओं में गौतम बुद्ध के पूर्व जन्मों की कहानियाँ हमें नैतिकता, करुणा और आत्मबलिदान का पाठ पढ़ाती हैं।
जातक कथाओं में बुद्ध कभी शेर बनकर न्याय करते हैं, कभी हाथी बनकर सहनशीलता दिखाते हैं, तो कभी राजकुमार बनकर सत्य के लिए त्याग करते हैं। उसी परंपरा में यह कथा भी एक ऊंट के बच्चे अंशकर्ण के माध्यम से हमें सिखाती है कि—
• सच्चा बलिदान प्रेम से होता है, न कि भय से।
• बुद्धि का प्रयोग यदि धर्म और करुणा से जुड़ा हो, तो वह रक्षक बनती है।
• स्वार्थी मित्र संकट में साथ नहीं देते, पर सच्चा विवेक संकट को परास्त कर देता है।
इस कथा का अंशकर्ण — एक मासूम, भावुक और बुद्धिमान ऊंट — हमें बुद्ध के उन जन्मों की याद दिलाता है, जहां उन्होंने अपने शरीर तक का त्याग कर दिया, पर धर्म और करुणा की राह नहीं छोड़ी।
और शेर, भेड़िया, गीदड़ — वे इस संसार के प्रतीक हैं, जहां शक्ति, स्वार्थ और छल एक साथ चलते हैं। लेकिन अंततः जीत होती है उस बुद्धि की, जो सत्य और प्रेम से जुड़ी हो।
“बुद्धि ही महान” न केवल एक मौलिक जंगल कथा है, बल्कि जातक परंपरा की आधुनिक छाया है — जो आज के पाठक को आत्मचिंतन, नैतिकता और विवेक की ओर प्रेरित करती है

बुद्धि ही महान — गौतम  बुध के पूर्व जन्मो की प्रेरक जातक कथा

झारखंड के एक घने जंगल में एक शेर राज करता था — बलवान, पर अकेला। उसकी शक्ति से प्रभावित होकर दो चालाक जीव — एक भेड़िया और एक गीदड़ — उसके मित्र बन गए। वे मित्रता का मुखौटा पहनकर शेर की सेवा करते, लेकिन असल में उन्हें बस ताजा मांस और डर से झुके हुए छोटे जानवरों की सेवा चाहिए थी। शेर को यह सब समझ नहीं आता था, वह उन्हें अपना सच्चा साथी मानता था।

एक दिन शेर जंगल में घूमते हुए एक गर्भवती ऊंटनी से टकराया। वह अपने काफिले से बिछड़ गई थी और भयभीत थी। शेर ने उसे मार दिया, लेकिन उसके गर्भस्थ बच्चे को जीवित बचा लिया। उसे अपनी गुफा में ले गया और पालने लगा। समय के साथ वह ऊंट का बच्चा बड़ा हुआ और शेर ने उसे अपना पुत्र मान लिया — नाम रखा अंशकर्ण

अंशकर्ण सीधा-सादा, भावुक और बुद्धिमान था। वह शेर की सेवा करता, उसकी बातों को ध्यान से सुनता और जंगल के नियमों को समझता। शेर अब चार मित्रों के साथ रहता था — भेड़िया, गीदड़ और अंशकर्ण।

एक दिन शेर का एक हाथी से भयंकर युद्ध हुआ। हाथी ने उसे बुरी तरह घायल कर दिया। शेर अब चल-फिर नहीं सकता था। भूख से तड़पता शेर अपने तीन मित्रों को बुलाकर बोला, “मेरे लिए कोई ऐसा शिकार लाओ जिसे मैं यहीं लेटे-लेटे खा सकूं।”

भेड़िया और गीदड़ जंगल में घूमे, लेकिन उन्हें कोई शिकार नहीं मिला। वे लौटकर शेर से बोले, “राजा, इस संकट में एक ही उपाय है — अंशकर्ण को मारकर खा लिया जाए। वह तो ऊंट है, उसका मांस स्वादिष्ट होगा।”

शेर यह सुनकर स्तब्ध रह गया। वह अपने पुत्र को कैसे खा सकता था? लेकिन भूख और पीड़ा ने उसकी सोच को कुंद कर दिया। उसने अंशकर्ण को बुलाया।

अंशकर्ण ने सब समझ लिया। उसने मुस्कराकर कहा, “पिता, यदि मेरी मृत्यु से आपकी भूख शांत होती है, तो मैं तैयार हूं। लेकिन एक विनती है — मुझे नदी के किनारे ले चलिए ताकि मैं अंतिम बार सूर्य को प्रणाम कर सकूं।”

शेर ने अनुमति दी। अंशकर्ण नदी किनारे गया, वहां से एक पत्थर उठाया और जोर से चिल्लाया — “हे जंगल के देवता! यदि मेरी बुद्धि सच्ची है और मेरा मन पवित्र, तो यह पत्थर मेरे शत्रुओं को नष्ट कर दे!”

पत्थर भेड़िया और गीदड़ पर गिरा — दोनों वहीं ढेर हो गए।

शेर ने देखा कि उसका पुत्र न केवल बुद्धिमान है, बल्कि साहसी भी। उसने अंशकर्ण को गले लगाया और कहा, “बेटा, आज तूने मुझे सिखाया — शक्ति से बड़ा है विवेक। बुद्धि ही महान है।”

कथा की विशेषताएं

• बुद्धि और विवेक की विजय
• स्वार्थी मित्रता का पर्दाफाश
• आत्मबलिदान और नैतिकता का संदेश
• जातक परंपरा से प्रेरित आधुनिक रूपांतरण

नैतिक शिक्षा:

सच्ची मित्रता स्वार्थ से नहीं, समर्पण और बुद्धि से बनती है। संकट में वही साथ देता है जो मन से जुड़ा हो, न कि जो केवल लाभ चाहता हो।

 

 

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