झारखंड राज्य के दक्षिणी भाग में स्थित खूंटी जिला,(Khunti district) न केवल भौगोलिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और आदिवासी चेतना का भी जीवंत प्रतीक है। यह जिला 12 सितम्बर 2007 को राँची से अलग होकर एक स्वतंत्र प्रशासनिक इकाई बना, लेकिन इसकी पहचान सदियों पुरानी है — जहाँ प्रकृति, परंपरा और प्रतिरोध की त्रयी एक साथ बहती है। खूंटी का नाम स्थानीय मुंडारी शब्द “खुट्टू” से लिया गया है, जिसका अर्थ होता है “स्तंभ” या “केन्द्र”। यह नाम अपने आप में इस क्षेत्र की केंद्रीय भूमिका को दर्शाता है — चाहे वह आदिवासी आंदोलनों का केंद्र हो या सांस्कृतिक पुनर्जागरण का। यहाँ की भूमि ने बिरसा मुंडा जैसे महानायक को जन्म दिया, जिन्होंने ब्रिटिश सत्ता के खिलाफ जनजातीय अस्मिता की अलख जगाई। उलिहातु गाँव, डोम्बारी पहाड़ और एटके डीह जैसे स्थल आज भी उस क्रांति की गवाही देते हैं। भौगोलिक रूप से खूंटी जिला छोटा नागपुर पठार पर स्थित है, जहाँ साल, पलाश और महुआ के जंगलों के बीच से दक्षिण कोयल, कारो, और कांची जैसी नदियाँ बहती हैं। यहाँ की मिट्टी उपजाऊ है, और जलवायु समशीतोष्ण। कृषि यहाँ की प्रमुख आजीविका है, लेकिन वनोत्पाद, हस्तशिल्प और कुटीर उद्योग भी स्थानीय अर्थव्यवस्था को संबल देते हैं। जनसंख्या की दृष्टि से खूंटी एक आदिवासी बहुल जिला है, जहाँ मुंडा, उरांव, खड़िया और अन्य जनजातियाँ निवास करती हैं। इनकी भाषा, लोककला, नृत्य और पर्व जैसे सरहुल, करम, और टुसू इस क्षेत्र की सांस्कृतिक विविधता को दर्शाते हैं। यहाँ की लोककथाएँ और पारंपरिक ज्ञान आज भी पीढ़ियों को जोड़ते हैं। प्रशासनिक रूप से खूंटी (Khunti district) में छह प्रमुख प्रखंड हैं — कर्रा, तोरपा, मुरहू, खूँटी, रनिया और अड़की। इन क्षेत्रों में विकास की चुनौतियाँ हैं, लेकिन साथ ही संभावनाएँ भी हैं — विशेष रूप से शिक्षा, स्वास्थ्य, पर्यटन और सांस्कृतिक संरक्षण के क्षेत्र में। बेलवा दाग में बौद्ध बिहार के अवशेष और असुर सभ्यता के लोहा गलाने वाले स्थल इस क्षेत्र को पुरातात्विक दृष्टि से भी समृद्ध बनाते हैं। आज खूंटी जिला (Khunti district) एक ओर अपनी ऐतिहासिक विरासत को सहेज रहा है, तो दूसरी ओर आधुनिक विकास की ओर भी बढ़ रहा है। यह जिला झारखंड की आत्मा है — जहाँ जंगलों की गूंज में इतिहास बोलता है, और हर पर्व, हर गीत में एक पहचान गूँजती है।
खूंटी जिला (Khunti district): झारखंड की सांस्कृतिक और ऐतिहासिक धरोहर
भौगोलिक विस्तार
- क्षेत्रफल: 2611 वर्ग किलोमीटर
- स्थिति: पूर्व में राँची जिले का अनुमंडल था; 12 सितम्बर 2007 को जिला का दर्जा प्राप्त हुआ
- प्रखंड: कर्रा, तोरपा, मुरहू, खूँटी, रनिया, अड़की (तमाड़)
- पंचायत: 76
- गाँव: 768
खूंटी जिला (Khunti district): ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
- 1899 ई. में राँची जिला अस्तित्व में आया, जिसमें खूंटी क्षेत्र भी शामिल था
- 1905 में खूंटी को अनुमंडल का दर्जा मिला
- 2007 में इसे स्वतंत्र जिला घोषित किया गया
- प्राचीन अवशेष:
- ईंटों से बने भवनों के अवशेष
- लोहा गलाने के अपशिष्ट ढेर (संभावित असुर सभ्यता)
- बेलवा दाग गाँव में बौद्ध बिहार का टीला
खूंटी जिले (Khunti district) के तोरपा में मिला असुर सभ्यता का मंदिर अवशेष: एक ऐतिहासिक खोज
झारखंड के खूंटी जिले के तोरपा प्रखंड अंतर्गत फटका पंचायत के सिरही टोला गाँव में हाल ही में एक अत्यंत महत्वपूर्ण पुरातात्विक स्थल की पहचान हुई है। यह स्थल कारो और बनई नदियों के संगम पर स्थित है और लगभग 200 वर्ग फुट क्षेत्र में फैला हुआ है। यहाँ पत्थर की नक्काशीदार मूर्तियाँ, ग्रेनाइट के स्तंभ, शिवलिंग और नदी की प्राचीन प्रतिमा जैसे अवशेष पाए गए हैं, जो इसे एक संभावित मंदिर स्थल के रूप में चिन्हित करते हैं।स्थानीय मान्यता के अनुसार, कई वर्ष पूर्व असुर जनजाति के एक समूह ने इस स्थान पर एक ही दिन में मंदिर निर्माण का संकल्प लिया था। किंवदंती कहती है कि यदि वे उस दिन निर्माण कार्य पूर्ण नहीं कर पाए, तो वे इस स्थान को सदा के लिए छोड़ देंगे। यह कथा न केवल जनजातीय विश्वास को दर्शाती है, बल्कि क्षेत्र की सांस्कृतिक गहराई को भी उजागर करती है।इस स्थल पर हर वर्ष जून माह में अच्छी वर्षा की कामना के लिए पूजा और अनुष्ठान आयोजित किए जाते हैं। ग्रामीणों का विश्वास है कि यदि समय पर पूजा न की जाए, तो वर्षा नहीं होती और खेती प्रभावित होती है। यह परंपरा आज भी जीवित है और स्थानीय जीवनशैली से गहराई से जुड़ी हुई है।इस ऐतिहासिक स्थल की महत्ता को देखते हुए खूंटी जिले के कल्याण विभाग ने जनजातीय शोध संस्थान के निदेशक को पत्र लिखकर इसके संरक्षण और पुनर्स्थापन की मांग की है। विभाग का मानना है कि इस स्थल के वैज्ञानिक अध्ययन से असुर सभ्यता, प्राचीन स्थापत्य और जनजातीय इतिहास पर प्रकाश डाला जा सकता है। साथ ही, यह क्षेत्र पर्यटन की दृष्टि से भी विकसित हो सकता है, जिससे स्थानीय अर्थव्यवस्था को बल मिलेगा।
फिलहाल इस स्थल और इससे जुड़ी असुर कला, मूर्तिकला और स्थापत्य के बारे में व्यापक जानकारी उपलब्ध नहीं है। लेकिन यह खोज खूंटी जिले को एक नई ऐतिहासिक पहचान देने की क्षमता रखती है। यह स्थल न केवल पुरातत्व प्रेमियों के लिए आकर्षण का केंद्र बन सकता है, बल्कि झारखंड की सांस्कृतिक विरासत को भी वैश्विक मंच पर प्रस्तुत कर सकता है।
लोहा गलाने के अपशिष्ट ढेर (संभावित असुर सभ्यता)
प्रमुख स्थल:
तोरपा प्रखंड, विशेष रूप से फटका पंचायत के सिरही टोला गाँव में —
• यह स्थल कारो और बनई नदियों के संगम पर स्थित है
• यहाँ पर लोहा गलाने के अपशिष्ट, राख, जली लकड़ी, और लौह अयस्क के टुकड़े पाए गए हैं
• यह क्षेत्र लगभग 200 वर्ग फुट में फैला हुआ है और स्थानीय लोग इसे “असुर स्थल” कहते हैं
क्या हैं ये अपशिष्ट ढेर?
• ये ढेर लोहे को पारंपरिक भट्टियों में गलाने के बाद बचा हुआ अपशिष्ट है
• इसमें काले रंग की राख, जली लकड़ी, और धातु के अंश होते हैं
• यह संकेत करता है कि यहाँ असुर जनजाति द्वारा लौह निर्माण की प्रक्रिया अपनाई जाती थी
बेलवा दाग गाँव का बौद्ध टीला: खूंटी की प्राचीन बौद्ध विरासत
• बेलवा दाग गाँव, खूंटी जिला, झारखंड
• यह गाँव खूंटी के ग्रामीण क्षेत्र में स्थित है और स्थानीय रूप से “बौद्ध टीला” के नाम से जाना जाता है
क्या मिला है यहाँ?
• एक ऊँचा टीला, जिसमें पुराने ईंटों के अवशेष, दीवारों के ढांचे, और मूर्तिकृत पत्थर पाए गए हैं
• स्थानीय लोग इसे बौद्ध भिक्षुओं का प्राचीन आश्रय स्थल मानते हैं
• यह स्थल संभवतः एक बौद्ध विहार था — जहाँ ध्यान, शिक्षा और सांस्कृतिक गतिविधियाँ संचालित होती थीं
ऐतिहासिक संकेत:
• ईंटों की बनावट मौर्य या गुप्तकालीन स्थापत्य शैली से मेल खाती है
• यह स्थल झारखंड में बौद्ध धर्म के प्रभाव और विस्तार का प्रमाण है
• स्थानीय परंपराओं में इसे “ध्यान स्थल” या “पुराना मठ” कहा जाता है
खूंटी जिला (Khunti district):महापुरुष:
बिरसा मुंडा:
बिरसा मुंडा एक महान आदिवासी नेता, स्वतंत्रता सेनानी और जननायक थे, जिनका जन्म 15 नवंबर 1875 को झारखंड के उलिहातु गाँव में हुआ था। उन्होंने ब्रिटिश शासन के खिलाफ मुंडा जनजाति को संगठित कर “उलगुलान” आंदोलन चलाया। उनका उद्देश्य आदिवासियों को जमीन, संस्कृति और अधिकारों की रक्षा करना था। वे ईसाई धर्म से प्रभावित होकर बाद में अपने मूल धर्म की ओर लौटे और जनजागरण किया। 25 वर्ष की उम्र में 9 जून 1900 को रांची जेल में रहस्यमय परिस्थितियों में उनका निधन हुआ। भारत सरकार ने उनकी स्मृति में कई संस्थानों और योजनाओं का नामकरण किया है
जयपाल सिंह:
जयपाल सिंह मुंडा एक महान आदिवासी नेता, शिक्षाविद, लेखक और राजनीतिज्ञ थे। उनका जन्म 3 जनवरी 1903 को झारखंड के खूंटी जिले में हुआ था। वे ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय से पढ़े और भारत के हॉकी टीम के कप्तान रहे, जिसने 1928 में ओलंपिक में स्वर्ण पदक जीता। उन्होंने आदिवासी अधिकारों के लिए संघर्ष किया और संविधान सभा में आदिवासियों की आवाज बने। उन्होंने झारखंड पार्टी की स्थापना की और आदिवासी समाज के सामाजिक, शैक्षणिक और राजनीतिक उत्थान के लिए कार्य किया। उनका निधन 20 मार्च 1970 को हुआ। उन्हें आदिवासी समाज का प्रेरणास्रोत माना जाता है
खूंटी जिला (Khunti district): जनसंख्या (2011 जनगणना)
- कुल जनसंख्या: 5,31,885
- अनुसूचित जाति: 24,037
- अनुसूचित जनजाति: 3,89,626
- साक्षर व्यक्ति: 2,84,575
- कुल श्रमिक: 2,59,984
- मुख्य श्रमिक: 1,53,087
- सीमान्त श्रमिक: 1,06,897
- अश्रमिक: 2,71,901
खूंटी जिला (Khunti district): प्रमुख नदियाँ
दक्षिणी कोयल नदी:
दक्षिणी कोयल नदी झारखंड राज्य की एक प्रमुख नदी है, जो प्राकृतिक संसाधनों, कृषि और सांस्कृतिक जीवन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
- रनिया प्रखंड की पश्चिमी सीमा बनाती है
- उद्गम स्थल: यह नदी लोहरदगा जिले के लावापानी जलप्रपात से निकलती है।
- प्रवाह दिशा: शुरू में पश्चिम की ओर बहती है, फिर दक्षिण दिशा में मुड़ती है।
- सीमा निर्धारण: रनिया प्रखंड की पश्चिमी सीमा इसी नदी से बनती है।
- संगम स्थल: ओड़िशा में शंख नदी से मिलकर ब्राह्मणी नदी का निर्माण करती है।
- सहायक नदियाँ: उत्तर कारो, दक्षिण कारो, कोइना आदि इसकी प्रमुख सहायक नदियाँ हैं।
- प्राकृतिक महत्व: यह नदी वन्यजीवों, जैव विविधता और पारिस्थितिकी तंत्र के लिए अत्यंत उपयोगी है।
- कृषि उपयोग: इसके जल से आसपास के क्षेत्रों में सिंचाई होती है, जिससे फसलें लहलहाती हैं।सांस्कृतिक भूमिका: नदी के किनारे पूजा-पाठ, मेले और धार्मिक अनुष्ठान होते हैं, जो स्थानीय संस्कृति को समृद्ध करते है
कारो नदी
कारो नदी: परिचय और विशेषताएँ
कारो नदी झारखंड राज्य की एक महत्वपूर्ण नदी है, जो विशेष रूप से गुमला और सिमडेगा जिलों में बहती है। यह नदी स्थानीय जीवन, कृषि और पारिस्थितिकी के लिए अत्यंत उपयोगी है।
• प्रवाह दिशा: कारो नदी दक्षिण दिशा की ओर प्रवाहित होती है।
• उद्गम स्थल: इसका उद्गम झारखंड के पठारी क्षेत्र में होता है, विशेष रूप से गुमला जिले के आसपास।
• सहायक नदियाँ: दक्षिणी कोयल नदी इसकी प्रमुख सहायक नदी है, जिससे यह आगे चलकर मिलती है।
• कृषि उपयोग: कारो नदी का जल आसपास के खेतों की सिंचाई में प्रयोग होता है, जिससे धान, मक्का और अन्य फसलें उगाई जाती हैं।
• प्राकृतिक महत्व: यह नदी वन्यजीवों और स्थानीय जैव विविधता के लिए जीवनदायिनी है।
• सांस्कृतिक भूमिका: नदी के किनारे बसे गांवों में धार्मिक अनुष्ठान, छठ पूजा और अन्य परंपराएं निभाई जाती हैं।
कांची और करकरी नदियाँ:
कांची नदी:
कांची नदी झारखंड राज्य की एक स्थानीय नदी है, जो पश्चिम से पूरब दिशा में प्रवाहित होती है। यह नदी मुख्य रूप से गुमला और सिमडेगा जिलों के बीच बहती है।
• प्रवाह दिशा: पश्चिम से पूरब की ओर।
• कृषि उपयोग: इसके जल से धान, मक्का जैसी फसलों की सिंचाई होती है।
• स्थानीय जीवन: नदी के किनारे बसे गांवों में यह जल आपूर्ति का प्रमुख स्रोत है।
• सांस्कृतिक महत्व: कई धार्मिक अनुष्ठान और परंपराएं इस नदी से जुड़ी हैं।
करकरी नदी:
करकरी नदी भी झारखंड की एक महत्वपूर्ण नदी है, जो कांची नदी की तरह पश्चिम से पूरब की ओर बहती है। यह नदी भी ग्रामीण जीवन और कृषि के लिए अत्यंत उपयोगी है।
• प्रवाह दिशा: पश्चिम से पूरब की ओर।
• जल स्रोत: वर्षा पर निर्भर, बरसात में जलस्तर बढ़ता है।
• कृषि योगदान: खेतों की सिंचाई में सहायक, खासकर खरीफ फसलों के लिए।
• सांस्कृतिक भूमिका: नदी किनारे पूजा-पाठ, छठ जैसे पर्व मनाए जाते हैं।
पश्चिम से पूरब की ओर प्रवाहित
खूंटी जिला (Khunti district): खनिज संसाधन
- इमारती पत्थर
- चूना पत्थर
- ईंट
- बालू
खूंटी जिला (Khunti district):उद्योग
- बड़े उद्योगों का अभाव
- स्थानीय उत्पादन: ईंट, बालू, वनोत्पाद, कृषि उत्पाद
- हस्तशिल्प और कुटीर उद्योग की संभावना
खूंटी जिला (Khunti district):पर्यटन स्थल
बौद्ध बिहार के अवशेष (बेलवा दाग)
बेलवा दाग झारखंड के गुमला जिले में स्थित एक ऐतिहासिक स्थल है, जहाँ बौद्ध धर्म के प्राचीन बिहार (मठ) के अवशेष पाए गए हैं। यह स्थल बौद्ध भिक्षुओं के ध्यान, शिक्षा और साधना का केंद्र रहा है। खुदाई में यहाँ से ईंटों की दीवारें, मूर्तियाँ और अन्य पुरातात्विक सामग्री मिली हैं, जो मौर्य और गुप्त काल की स्थापत्य कला को दर्शाती हैं। यह स्थान बौद्ध धर्म के प्रसार और झारखंड में उसकी उपस्थिति का प्रमाण है। बेलवा दाग आज भी इतिहास प्रेमियों और शोधकर्ताओं के लिए आकर्षण का केंद्र बना हुआ है।
असुर सभ्यता के लोहा गलाने वाले क्षेत्र
असुर जनजाति झारखंड की एक प्राचीन आदिवासी जाति है, जो लोहा गलाने की पारंपरिक तकनीक में माहिर थी। गुमला और लोहरदगा जिलों में इनके द्वारा उपयोग किए गए भट्ठियों के अवशेष मिले हैं। ये लोग पत्थर और लकड़ी से बने उपकरणों से लौह अयस्क को पिघलाकर औजार और हथियार बनाते थे। असुर सभ्यता की यह धातु विज्ञान तकनीक भारत की आदिम औद्योगिक संस्कृति का हिस्सा मानी जाती है। आज भी कुछ असुर परिवार पारंपरिक तरीके से लोहा गलाने की कला को जीवित रखे हुए हैं, जो सांस्कृतिक धरोहर के रूप में महत्वपूर्ण है।
बिरसा मृग बिहार
बिरसा मृग बिहार झारखंड के खूंटी जिले में स्थित एक वन्यजीव अभयारण्य है, जिसका नाम स्वतंत्रता सेनानी बिरसा मुंडा के नाम पर रखा गया है। यह वन क्षेत्र हिरण, नीलगाय, जंगली सूअर, तीतर और कई पक्षियों का प्राकृतिक आवास है। यहाँ की हरियाली और शांत वातावरण पर्यावरण प्रेमियों को आकर्षित करता है। यह अभयारण्य स्थानीय जैव विविधता को संरक्षित करने के साथ-साथ पर्यावरण शिक्षा का केंद्र भी है। पर्यटक यहाँ ट्रेकिंग, पक्षी दर्शन और प्रकृति के साथ जुड़ने का अनुभव प्राप्त करते हैं। यह क्षेत्र वन संरक्षण और पर्यटन के लिए महत्वपूर्ण है।
आम्रेश्वर धाम
आम्रेश्वर धाम झारखंड के खूंटी जिले में स्थित एक प्रसिद्ध शिव मंदिर है, जो धार्मिक आस्था का प्रमुख केंद्र है। यह मंदिर आम नदी के किनारे स्थित है और यहाँ भगवान शिव की प्राचीन मूर्ति विराजमान है। सावन और महाशिवरात्रि के अवसर पर यहाँ हजारों श्रद्धालु जलाभिषेक करने आते हैं। मंदिर परिसर में शांत वातावरण और प्राकृतिक सौंदर्य भक्तों को आध्यात्मिक अनुभव प्रदान करता है। आम्रेश्वर धाम स्थानीय संस्कृति, परंपरा और धार्मिक विश्वास का प्रतीक है। यह स्थल धार्मिक पर्यटन को बढ़ावा देने में भी अहम भूमिका निभाता है।
चलकद
चलकद झारखंड के खूंटी जिले का एक ऐतिहासिक गांव है, जो बिरसा मुंडा के आंदोलन से जुड़ा हुआ है। यह गांव आदिवासी संस्कृति, संघर्ष और स्वतंत्रता आंदोलन की याद दिलाता है। यहाँ बिरसा मुंडा ने ब्रिटिश शासन के खिलाफ जनजागरण किया था। चलकद में आज भी उनके विचारों और संघर्ष की छाप देखी जा सकती है। यह गांव पारंपरिक जीवनशैली, लोकगीतों और आदिवासी रीति-रिवाजों का जीवंत उदाहरण है। चलकद आदिवासी अस्मिता और इतिहास का प्रतीक स्थल है, जहाँ लोग उनके योगदान को श्रद्धा से याद करते हैं।
उलिहातु
उलिहातु झारखंड के खूंटी जिले का एक ऐतिहासिक गांव है, जहाँ बिरसा मुंडा का जन्म हुआ था। यह स्थान आदिवासी समाज के लिए गौरव का प्रतीक है। यहाँ बिरसा मुंडा की जन्मस्थली पर एक स्मारक बना है, जहाँ लोग श्रद्धा से उन्हें याद करते हैं। उलिहातु में आदिवासी संस्कृति, परंपरा और इतिहास की झलक मिलती है। यह गांव बिरसा मुंडा के विचारों और संघर्ष की प्रेरणा देता है। हर वर्ष यहाँ उनकी जयंती पर कार्यक्रम आयोजित होते हैं। उलिहातु आज भी आदिवासी चेतना और स्वतंत्रता संग्राम की भावना को जीवित रखे हुए है।
डोम्बारी पहाड़
डोम्बारी पहाड़ खूंटी जिले में स्थित एक ऐतिहासिक और पवित्र स्थल है, जो बिरसा मुंडा के आंदोलन का प्रमुख केंद्र रहा है। यहाँ उन्होंने ब्रिटिश शासन के खिलाफ विद्रोह किया था। यह पहाड़ आदिवासी संघर्ष और बलिदान का प्रतीक है। कहा जाता है कि यहाँ कई आदिवासी स्वतंत्रता सेनानियों ने अपने प्राणों की आहुति दी थी। आज भी डोम्बारी पहाड़ पर बिरसा मुंडा की स्मृति में श्रद्धांजलि दी जाती है। यह स्थल इतिहास, प्रकृति और संघर्ष की त्रिवेणी है, जो लोगों को प्रेरणा और गर्व का अनुभव कराता है।
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