संथाली लोक कथा |बेझा की कथा: लोककथाएँ किसी समाज की आत्मा होती हैं — वे न केवल मनोरंजन करती हैं, बल्कि उस संस्कृति के नैतिक मूल्यों, परंपराओं और सामाजिक संबंधों को भी उजागर करती हैं। “बेझा की कथा ( bejha ki khatha): सांप के दांत और बहन की बुद्धिमत्ता” एक ऐसी ही संताल लोककथा है, जो प्रेम, विश्वासघात, न्याय और पारिवारिक संबंधों की गहराई को छूती है। संथाली लोक कथा |बेझा की कथा: एक साहसी राजा, उसकी रहस्यमयी रानी और बुद्धिमान बहन के इर्द-गिर्द घूमती है। रानी का सांप से गुप्त प्रेम और राजा की शिकार की आदतें एक ऐसे मोड़ पर पहुंचती हैं जहाँ जीवन और मृत्यु की शर्त लगाई जाती है। लेकिन इस कथा की सबसे प्रभावशाली कड़ी है — बहन की चतुराई और भाई के प्रति उसका प्रेम, जो पूरे समाज को एक नई परंपरा की ओर ले जाता है। इस कथा से जुड़ी ‘बेझा तुञ’ परंपरा आज भी संताल समाज में जीवित है, जो न्याय और बुद्धिमत्ता की जीत का प्रतीक है। यह कहानी न केवल एक रोमांचक लोककथा है, बल्कि सामाजिक चेतना और सांस्कृतिक गर्व का स्रोत भी है। आइए, इस कथा के माध्यम से संताल समाज की गहराइयों में उतरें।”बेझा की कथा ( bejha ki khatha): इस प्रकर है –
बेझा की कथा ” ( bejha ki khatha): सांप के दांत और बहन की बुद्धिमत्ता”
बहुत समय पहले की बात है। ‘चाय-चंपा गढ़’ नामक स्थान पर संताल जाति के एक राजा राज करते थे। वे निडर, न्यायप्रिय और अच्छे शिकारी थे। उनकी रानी अत्यंत सुंदर और चतुर थीं। दोनों का जीवन प्रेम और सुख-शांति से भरा हुआ था। राजा साहब को शिकार का बड़ा शौक था। वे अक्सर अपने सैनिकों के साथ आसपास के घने जंगलों में शिकार करने निकल जाते। उन्हीं जंगलों में एक विशालकाय सांप भी रहता था। किसी रहस्यमय कारण से रानी को उस सांप से प्रेम हो गया था। वह सांप चोरी-छिपे रानी से मिलने आता और रानी ने अपने प्रेम को छुपाए रखा। एक दिन रानी ने राजा से कहा, “आप जहां चाहें शिकार को जाएं, पर उस जंगल में मत जाना जहाँ वह सांप रहता है।”
राजा को यह बात खटक गई। उन्होंने सोचा, “आखिर उस जंगल में जाने से रानी क्यों रोक रही हैं?” संदेहवश राजा ने अगली सुबह उसी जंगल में शिकार करने का निश्चय किया। वहां उन्होंने उस सांप को देखा और उसे मार डाला।रानी को जब सांप के न आने का आभास हुआ, तो उन्होंने राजा से पूछा, “आप कल किस जंगल में शिकार करने गए थे?”
राजा ने कहा, “उसी जंगल में, जहाँ जाने से तुमने मना किया था।” रानी ने सैनिकों से पूछा, “कल क्या-क्या शिकार हुआ?” सैनिकों ने बताया, “एक बड़ा सांप भी मारा गया।”
रानी ने सांप के शव को मंगवाया, उसके दांत निकलवाए और उन्हें एक पोटली में बांध लिया। फिर राजा के पास जाकर बोली, “एक शर्त लगाते हैं। इस पोटली में क्या है, बताओ। अगर सही बताया तो मैं मरूंगी, नहीं तो आप मारे जाएंगे।” राजा ने शर्त स्वीकार कर ली। निर्णय के लिए पांच दिन का समय तय हुआ। राजा सोच में पड़ गए। उन्हें कुछ समझ नहीं आया। उन्होंने अपनी बहन को संदेश भेजा कि वह उनसे मिलने आए, क्योंकि शायद यह उनकी अंतिम भेंट हो। राजा की बहन, जो दूर अपने ससुराल में थी, चल पड़ी। रास्ते में एक विशाल सेमल के पेड़ के नीचे विश्राम करते हुए उसने कुछ चील-गिद्धों की बातें सुनीं। वे कह रहे थे, “रानी ने सांप के दांत पोटली में बांध रखे हैं। राजा नहीं बता पाएंगे, और मारे जाएंगे।”
बहन ने यह सुनते ही दौड़ लगाई और भाई के पास पहुंची। उसने रानी से कहा,”दुष्टा रानी! तुम मेरे भाई की जान लेना चाहती हो? देखती हूं, कैसे लेती हो!”फिर उसने राजा से कहा, “भैया, डरिए मत। पोटली में सांप के दांत हैं। यही उत्तर दीजिए।”निर्धारित दिन पर नगर में भारी भीड़ जमा हुई। रानी ने पूछा, “बताइए, इस पोटली में क्या है?”
राजा ने कहा, “इसमें सांप के दांत हैं।”पोटली खोली गई — और सचमुच उसमें सांप के दांत ही थे।रानी की हार हुई। जनता क्रोधित हो उठी। रानी को नगर के छोर पर ले जाकर तीरों से बिंधकर मार दिया गया।
सांस्कृतिक परंपरा की शुरुआत
उसी दिन से संताल समाज में ‘साकरात’ पर्व के अंतिम दिन ‘बेझा तुञ’ की परंपरा शुरू हुई — गांव की गली के छोर पर केले का खंभा खड़ा किया जाता है और उस पर तीर चलाकर लक्ष्य वेध किया जाता है। यह उस दुष्ट रानी के अंत की स्मृति है। ‘बेझा तुञ’ केवल एक खेल नहीं, बल्कि न्याय, बुद्धिमत्ता और भाई-बहन के प्रेम की प्रतीक परंपरा है। यह पर्व संतालों के सबसे बड़े त्योहार ‘सोहराय’ से जुड़ा हुआ है, और आज भी जंगलों में रात के शिकार के समय ‘बिर सेरेञ’ — यानी युद्ध के गीत — गाए जाते हैं।
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