संथाली लोक कथा – बारे इतातू: भाई का धनुष, बहन की रक्षा” |संताल समाज की परंपरा पर आधारित एक प्रेरणादायक कहानी

भारत की विविध सांस्कृतिक विरासत में लोककथाएँ केवल मनोरंजन का माध्यम नहीं हैं, बल्कि वे समाज की परंपराओं, मूल्यों और ऐतिहासिक अनुभवों का जीवंत दस्तावेज भी हैं। ऐसी ही एक प्रेरणादायक लोककथा संताल समाज से जुड़ी है, जो एक भाई की वीरता, एक बहन की सुरक्षा और एक पिता की मजबूरी को उजागर करती है। यह कहानी न केवल एक रोमांचक घटना को दर्शाती है, बल्कि यह बताती है कि कैसे एक व्यक्तिगत अनुभव समाज की स्थायी परंपरा में बदल सकता है। ‘बारे इतातू’ — भाई को विवाह में दिया जाने वाला बैल — केवल एक उपहार नहीं, बल्कि उस भाई की बहादुरी का प्रतीक है जिसने अपनी बहन को मृत्यु के मुंह से बचाया।इस कथा में छिपा है एक गहरा संदेश: जब रिश्तों में त्याग, साहस और प्रेम होता है, तो वे समाज की नींव बन जाते हैं। आइए, इस लोककथा के माध्यम से उस परंपरा की जड़ों तक पहुंचें, जिसने संताल समाज को एक नई पहचान दी

एक मेहनती किसान और उसकी भूल की कहानी

एक समय की बात है, एक छोटे से गांव में एक मेहनती खेतिहर किसान रहता था। वह रोज सुबह अपने बैलों को जुए में जोड़कर पहाड़ की तराई में स्थित खेत में हल चलाने जाता। एक दिन, जब वह हल लेकर खेत की ओर जा रहा था, हल का फाल ढीला होने के कारण नीचे गिर गया। किसान ने उसे उठाकर अपनी कमर में खोंस लिया, लेकिन खेत पर पहुंचने पर वह यह भूल गया कि फाल उसके पास ही है। वह बेचैनी से उसे इधर-उधर खोजने लगा।
उसी समय, पास की झाड़ी में छिपा एक बाघ उसकी बेचैनी देख रहा था। बाघ ने पूछा, “क्या खोज रहे हो, किसान?”
किसान ने कहा, “मेरे हल का फाल खो गया है। बिना फाल के मैं खेत कैसे जोतूंगा?”
बाघ ने मुस्कराते हुए कहा, “अगर मैं तुम्हारा फाल खोज दूं तो तुम मुझे क्या दोगे?”
किसान ने कहा, “जो मांगोगे, वही दूंगा।”
बाघ बोला, “तो मुझे तुम्हारी बेटी चाहिए।”

बाघ की चालाकी और किसान की मजबूरी

किसान घबराया हुआ था, पर खेत जोतने की मजबूरी में उसने बाघ की शर्त मान ली। बाघ ने कहा, “तुम्हारा फाल तो तुम्हारी कमर में ही है।”
किसान को अपनी भूल पर पछतावा हुआ। उसने फाल को हल में लगाया और खेत जोतने लगा। जाते-जाते बाघ ने चेतावनी दी, “अगर तुम अपनी बेटी को नहीं भेजोगे, तो अगली बार मैं तुम्हें ही खा जाऊंगा।”
किसान घर लौटा, पर मन में डर समाया हुआ था। उसने बेटी से कहा, “आज गड़िए का पानी भर लाओ, कुएं का नहीं।”
बेटी घड़ा लेकर चल पड़ी। संयोग से उसका छोटा भाई, जो धनुष-बाण से चिड़ियों का शिकार करता था, उसे जाते देख पीछे-पीछे चल पड़ा।

भाई की वीरता और बहन की रक्षा

जैसे ही बहन पानी भरने को झुकी, झाड़ियों में छिपे बाघ ने झपटने की कोशिश की। लेकिन भाई ने झाड़ियों में बैठे बगुले को निशाना बनाते हुए दो तीर चलाए। बगुला तो उड़ गया, पर तीर सीधे बाघ की आंखों में जा लगे। बाघ दहाड़ता हुआ भाग गया।
बहन की जान बच गई। घर लौटकर उसने पिता को सब कुछ बताया और उलाहना दिया कि उन्होंने जान-बूझकर उसे खतरे में डाला।
कुछ समय बाद, जब उसका विवाह तय हुआ, उसने शर्त रखी: “जब तक मेरे भाई को वर-पक्ष की ओर से बाघ-जैसा बलवान बैल उपहार में नहीं मिलेगा, मैं विवाह नहीं करूंगी।”
सबको उसकी बात माननी पड़ी। तभी से संताल समाज में यह परंपरा शुरू हुई कि विवाह में भाई को एक बैल उपहार स्वरूप दिया जाता है। इसे ‘बारे इतातू’ कहा जाता है — भाई को दिया जाने वाला उपहार। सांकेतिक रूप से इसे ‘टेण्डार आक्-साग’ यानी ‘ओंठगाया धनुष-बाण’ भी कहा जाता है, जो भाई की बहन के लिए वीरता का प्रतीक है।

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