खोरठा कविता “जोदी खोजा मान” गहरे भावबोध और सांस्कृतिक चेतना से ओतप्रोत है। यह कविता व्यक्ति के आत्मबोध, साधना, प्रकृति की सुंदरता और मातृभाषा के गौरव को एक साथ पिरोती है।जोदी खोजा मान करे होतो निज के दान तबे ऎते खोरठें जान.यह कविता श्रीनिवास पानुरी द्वारा लिखा गया है . कविता संकलन आंखीक गीत” (ANKHIK GEET) से लिया गया है . यह कविता संकलन 1964 ईस्वी के आस पास लिखा गया है .इस कविता संकलन में कुल 72कविता है जिसमे एक नाँच बाँदर नाँच रे भी सामिल है .इस कविता संकलन के सम्बद्ध में नारायण महतो भूमिका में लिखे है –आंखीक गीत” (ANKHIK GEET) माने मनेक भाव ऑइख द्वारा जाहिर करा। ऑइख बहुत कुछ कहे। कखनु खुशीक भावे अथवा मनेक दुःख ऑइख द्वारा जाहिर करल जाय। कवि हृदय श्रृंगार आर हुंकार से भरल रहे। पानुरी जी के विद्रोही स्वभाव के संगें-संगें शृंगारेक अनुभूति हलेय। उनकर कालीदासेक मेघदूत के खोरठा अनुवाद सेई बात से प्रमाण मिले है। पानुरी जी से हामर संगत स्कूल जीवन से। उनखर रचना से हम प्रभावित भाइके लगभग प्रतिदिन कुछ समय उनखर संगे काटहलों। 1964 के आस-पास पानुरी जी आंखीक गीत (ANKHIK GEET) के रचना कराहला। उ गीत गावेंक खातिर हमरा तथा नरेश नील कमल से कहे हला। हामनी उनखर गीत गावहली। नागर दा तो उ गीत से सस्वर गाव हला। आज “आंखीक गीत” संग्रह रूपें प्रकाशित होय रहल हैं। हामनीक उ बितल दिनेक याद कर आर एक बेर फैर रोमांचित भई उठल ही। श्री निवास पानुरी के पुत्र अर्जुन पानुरी कहते है – आंखीक गीत कोरसेक किताब। आसाकरी पढ़निहार सभेक बेस लागतय आर खोरठाक आदि कवि से परिचय होतय उनखर रचना से। हाँ! हम ऐतना जरूर कहे पारी जे श्री निवास पानुरी कविते हम कलम चलवे जानी नॉय। उ जैसन लिखला हम वैसनी लिखेक परियास करल ही। हिन्दी जगतेक महान कवि तुलसी, रहीम, व्यास, भारतेन्दु जैसन पोथीक उपरे कोन्हों साहित्यकार उनखर लिखल । कविता-टा कलम चलवे पारला नॉय। तो हम उनखर लिखल कविता-टा कैइसे कलम चलवे पारी। सैय खातिर पानुरीजीक कविताक उपरे हमें हिम्मत नॉय करे पारलो, हू-ब-हू उतारलो। “आंखीक गीत” चढ़ेक मोका देता दोसर संस्करण खातिर।
जोदी खोजा मान- खोरठा कविता -श्री निवास पनुरी
जोदी खोजा मान
जोदी खोजा मान
करे होतो निज के दान
तबे ऎते खोरठें जान
झुइम उठतै साधनाक खेतें
स्वर्ण शस्यें धान
लाल-लाल गुलाबेक फूल
आम-डारी मंजर
बाँसे नतून करील
हवाँय सुवास
हरिहर आस-पास सरैसा फूलें लहकल टॉइड
आर काते युग-पाँखीक गान
जोदी खोजा मान- कविता के मुख्य पंक्तियाँ और अर्थ
प्रस्तुत खोरठा कविता “जोदी खोजा मान” गहरे भावबोध और सांस्कृतिक चेतना से ओतप्रोत है। यह कविता व्यक्ति के आत्मबोध, साधना, प्रकृति की सुंदरता और मातृभाषा के गौरव को एक साथ पिरोती है।
कविता की शुरुआत एक शर्तीय वाक्य से होती है—
“जोदी खोजा मान करे होतो निज के दान तबे ऎते खोरठें जान”
अर्थात् यदि कोई अपने आत्मसम्मान की खोज में लगे और स्वयं को पूरी तरह से समर्पित कर दे, तभी वह खोरठा भाषा और संस्कृति की गहराइयों को जान सकता है। यहाँ “मान” केवल व्यक्तिगत अहं या सम्मान नहीं, बल्कि अपनी जड़ों, भाषा, परंपरा और अस्मिता की पहचान है। “निज के दान” से तात्पर्य आत्मोत्सर्ग से है — जब तक कोई व्यक्ति अपनी सुविधा या अहम को त्याग कर पूरी श्रद्धा से समर्पण नहीं करता, तब तक वह मातृभाषा की वास्तविक गरिमा नहीं समझ सकता।
इसके बाद के पंक्तियाँ —
“झुइम उठतै साधनाक खेतें, स्वर्ण शस्यें धान”
कविता साधना को खेत से तुलना करती है, जिसमें अथक परिश्रम से “झूमती हुई फसलें” उगती हैं — वह फसलें न केवल अन्न हैं, बल्कि आत्मिक और सांस्कृतिक उन्नति की भी प्रतीक हैं। “स्वर्ण शस्यें धान” यहाँ केवल कृषि का बिंब नहीं, बल्कि यह उस फल की उपमा है जो साधना और समर्पण से प्राप्त होती है।
फिर प्रकृति का अत्यंत मनोहारी चित्रण आता है —
“लाल-लाल गुलाबेक फूल, आम-डारी मंजर, बाँसे नतून करील, हवाँय सुवास”
यह पंक्तियाँ खोरठा भाषा की जीवंतता और उसकी मिट्टी की महक को प्रकट करती हैं। गुलाब की लालिमा, आम की डालियों में मंजर, बाँस में नई कोपलें, और हवा में सुवास — ये सभी खोरठा भूभाग की सुंदरता और समृद्धि का प्रतीक हैं। प्रकृति के यह चित्र उस भूमि की जीवंतता को दर्शाते हैं जहाँ खोरठा भाषा का उद्गम और विकास हुआ।
“हरिहर आस-पास सरैसा फूलें लहकल टॉइड”
यह पंक्ति हरियाली, शांति और सौंदर्य से युक्त परिवेश का चित्र खींचती है। “सरैसा फूल” और “लहकल टॉइड” यानी खिले फूल और लहलहाते खेत खोरठा संस्कृति के जीवनप्रेम, श्रम और उल्लास को दर्शाते हैं।
अंतिम पंक्ति “आर काते युग-पाँखीक गान” कविता को एक गहन दार्शनिक आयाम देती है। यह युगों-युगों तक उड़ते समय के पंखों पर सवार गीत की तरह है। खोरठा भाषा को एक ऐसा गीत माना गया है जो युगों से गूंजता आया है और भविष्य में भी अपनी ध्वनि से सभ्यता को प्रेरित करता रहेगा।
निष्कर्षतः, यह कविता खोरठा भाषा की आत्मा, उसकी संस्कृति, प्रकृति से संबंध और साधना के मूल्य को बड़े ही संवेदनशील एवं कलात्मक ढंग से प्रस्तुत करती है। यह पाठक को यह प्रेरणा देती है कि यदि वह सचमुच अपनी भाषा और मिट्टी को जानना चाहता है, तो उसे आत्मसमर्पण, श्रम और प्रकृति से जुड़ाव रखना होगा। यह सिर्फ एक कविता नहीं, बल्कि सांस्कृतिक चेतना का आह्वान है।
जोदी खोजा मान- कविता से जुड़े ऑब्जेक्टिव प्रश्न (MCQ) एवं उत्तर: (बहुविकल्पीय):
1. कविता का शीर्षक क्या है?
A) खोरठा गौरव
B) जोड़ी खोजा मान ✅
C) धान के खेत
D) गुलाब के फूल
2. ‘निज के दान’ का क्या अर्थ है?
A) दूसरों से लेना
B) खुद को अर्पण करना ✅
C) दान-पुण्य करना
D) पैसे खर्च करना
3. ‘खोरठें जान’ से क्या तात्पर्य है?
A) खोरठा स्थान
B) खोरठा व्यक्ति
C) खोरठा पहचान की समझ ✅
D) खोरठा गीत
4. कविता में खेत किससे झूम उठते हैं?
A) बारिश से
B) साधना/मेहनत से ✅
C) हल चलाने से
D) धूप से
5. ‘स्वर्ण शरियाँ धान’ का अर्थ है?
A) सोने से बने धान
B) हल्के पीले धान
C) चमकदार सुंदर धान ✅
D) सूखे धान
6. ‘बाँसे नूतन करींल’ का क्या अर्थ है?
A) पुराने बांस
B) बांस की टहनियों को काटना
C) नये बांस की कोपलें ✅
D) बांस से घर बनाना
7. ‘हरियर आस-पास’ किस चीज़ को दर्शाता है?
A) बंजर भूमि
B) शहरी दृश्य
C) चारों ओर हरियाली ✅
D) समुद्र तट
8. ‘युग-पाँखीके गान’ का क्या अर्थ है?
A) बच्चों की कविता
B) पक्षियों का गान ✅
C) युद्ध का गीत
D) वसंत ऋतु का आह्वान
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