karmali tribe in jharkhand | झारखंड के करमाली जनजातियों का सामान्य परिचय

झारखंड के जनजातियों में करमाली जनजाति (karmali tribe )परंपरागत तरीके से लोहे के कृषि औजार घरेलू उपकरण निर्माण के लिए जाना जाता है  लोहा गलाने का काम असुर, बिरजिया तथा लोहरा जनजाति भी करते हैं लेकिन करमाली उन लोहों से विभिन्न प्रकार के कृषि सम्बन्धी औजार के लिए विख्यात है। पुराने औजारों की मरम्मत करते हैं, घरेलू सामग्री बनाते हैं, लोहे से सम्बन्धित अन्य कार्य करते हैं।करमाली जनजाति झारखंड में सदनों  के साथ रहने के कारण इनका रहन-सहन सदनों  की  तरह हो गई है । करमाली जनजाति( (karmali tribe )  झारखंड के हजारीबाग संथाल परगना रांची बोकारो  इत्यादि जिलों में पाए जाते हैं ।

करमाली जनजाति का शारीरिक रचना (Anatomy of Karmali Tribe) 

करमाली जनजाति (karmali tribe ) ( प्रोटो-आस्ट्रेलायड प्रजाति समूह में रखा जाता है। इनकी शारीरिक रचना – छोटा/माध्यम कद, कृष्णवर्णी त्वचा, मध्यम-चौड़ी नाक, लहराते काले बाल, मध्यम होठ, गठीला शरीर आदि जो मुंडा से बहुत मिलते-जुलते हैं।

करमाली जनजातियों की देन (Contribution of Karmali tribes) 

  • करमाली ने चितरिया बालू को जलाकर लोहे का आविष्कार किया।
  • लोहा निष्कारण के लिए करमाली ने जो तकनीकी अपनाई थी वह तकनीकी आज के युग में अपनाई जा रही हेमेटाइट से लोहे की निष्कासन विधि के समान है।
  • लोहे से कृषि यंत्र बनाने का आविष्कार

करमाली जनजातियों का आर्थिक व्यवस्था-(Economic system of Karmali tribes)-

करमाली जनजाति का जीव को उपार्जन का मुख्य साधन लोहे से कृषि यंत्र का निर्माण करना है जैसे हंसुआ ,कुल्हाड़ी, कुदाल ,गेता इत्यादि । यह जनजाति पूरे वर्ष कृषि यंत्र बनाते हैं और इसके बदले वर्ष में एक बार कृषक के द्वारा कृषि उपज का एक भाग इन्हें दिया जाता है । जिसे जजमानी व्यवस्था कहते हैं इसके अलावे कृषि यंत्रों को बनाकर बाजार में बेचने का भी काम करते हैं । केतु यह व्यवस्था इस आधुनिक युग में समाप्त होने के कगार पर है । दुनिया को लोहे से परिचित करवाने वाले आदि वैज्ञानिक करमाली आज अपने पेशे को छोड़ने पर मजबूर हो रहे हैं। उनकी आर्थिक स्थिति बदतर होती जा रही है। उनके पुरातन पेशे एवं उद्योग धंधों पर प्रश्न चिन्ह लगता जा रहा है।

करमाली जनजातियों का पर्व त्यौहार-(Festivals of Karmali tribes)-

करमाली अन्य जनजातियों की तरह विशुद्ध प्रकृतिवादी होते हैं इसके  अलावा वे  भूत-प्रेतों तथा पूर्वजों की पूजा करते हैं।  ये अपने पूर्वजों से भी काफी डरते हैं और उन्हें खुश रखने के लिए हर धार्मिक अवसर तथा महत्वपूर्ण अवसरों पर इनकी पूजा की जाती है और बलि दी जाती है। इनके जीवन में हर क्षण देवी-देवताओं की बात आती है।

करमाली जनजाति धार्मिक तथा जादुई क्रियाओं पर पूरा विश्वास करते है इसलिए किसी विपत्ति के समय, किसी के बीमार पड़ने पर, पशु की बीमारी या गुम हो जाने, भांथी वगैरह की त्रुटि में वे किसी देव भूत का स्मरण करते है और मनौती मांगते है।

करमाली जनजातियों का राजनैतिक जीवन :(Political life of Karmali tribes)

करमाली जनजातियों के राजनीतिक व्यवस्था पंचायत प्रणाली पर आधारित है । प्रत्येक ग्राम स्तर पर  जातीय पंचायत होता है जिसका मुखिया का मुखिया ‘मालिक’ कहलाता है। यह पद  वंशानुगत होता है। यह विवाह गोत्र अनैतिक यौन-संबंध, शादी तलाक, पत्नी का भागना-भगाना आदि मामलों का निपटारा करता है। जटिल समस्याओं को सुलझाने के लिए प्रगना स्तर पर ‘सत गवइया’ पंचायत बैठती है। यह अन्तर-ग्रामीण मामलों का निष्पादन- निपटारा करती है। इसके प्रधान को ‘परगना मालिक’ कहते हैं। यह पंचायत जरूरत पड़ने पर यदा-कदा बुलायी जाती है। शिखर स्तर पर बाईसी’ पंचायत होती है। इसमें 17 से 22 गाँव शामिल रहते हैं। इसके मुख्य या प्रमुख को मुख्य मालिक कहा जाता है। पंचायत की बैठक की सूचना तथा पंचायत को संदेश लोगों तक पहुँचाने का काम ‘गोड़ाइत’

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