बेदिया जनजाति | Bediya tribe

बेदिया जनजाति | Bediya tribe:-  झारखंड की 32 जनजातियों में बेदिया एक महत्वपूर्ण जनजाति है । बेदिया जनजाति झारखंड के मुख्य रूप से हजारीबाग तथा रॉची जिले के जंगली तथा पठारी क्षेत्रों में पाये जाते हैं। इसके अलावे मध्यप्रदेश तथा छत्तीसगढ़ के कुछ क्षेत्रों में भी पाये जाते हैं। बेदिया जनजाति | Bediya tribe का मुख्य निवास स्थान हजारीबाग तथा राँची जिले के रामगढ़, गोला, पतरातु, माण्डु, बड़कागांव, ओरमांझी, अनगरा तथा सिल्ली आदि प्रखण्डों में माना जाता है है।  वर्त्तमान रहन-सहन,  संस्कार-संस्कृति आदि को देखकर  हिन्दू हिंदू जनजाति के रूप में देखा जाता है। वे हिन्दू की तरह रहते भी हैं और अधिकांश अपने को हिन्दू कहते भी हैं।

बेदिया जनजाति का  उत्पत्ति | Origin of Bediya Tribe 

डाक्टर चतुर्भुज साहु झारखंड की जनजातियां पुस्तक में बेदिया जनजाति (Bediya Tribe)के उत्पत्ति के संबंध में दंतकथा का जिक्र किया है-एक दंतकथा के अनुसार प्राचीन काल में आर्य जातियों के समय एक सभ्य जनजाति के रूप में जाना जाता था । इनका अपना ‘वेद’ था और इसलिए ये बेदिया कहलाए। इनका वेद आर्यों के वेद से भिन्न था, आर्य जाति एक  सभ्य जाति के रूप में जाने जाते थे , इनका वैदिक कर्मकांड अधिक थे वह यह नहीं चाहते थे की कोई अनार्पय रिवार उनके जैसा बने   जिसके कारण वेदिय जनजाति के वेद को नष्ट कर दिया। ऐसा भी कहा जाता है कि बिरहोर के साथ लड़ाई में परास्त हो भाग चले तो बिरहोरों ने इनका पीछा किया। एक स्थान पर कुछ लोग ‘दिया’ जला कर पूजा कर रहे थे। जब बिरहोर वहाँ पहुँच कर उनके विषय में पूछा। तभी दीया बुझ गया और वे चिल्लाने लगे ‘बे-दीया’, ‘बे-दीया’ (बिना दीपक के)। उसी समय से इन जाति का नाम बेदिया पड़ गया।  इनकी उत्पत्ति के संबंध में अनेक कहानियाँ बेदिया समाज में प्रचलित हैं जिनका कोई प्रमाणिक आधार नहीं है। जिस महूदीगढ़ गाँव की चर्चा इनकी कहानियों में हैं, वह बड़का गाँव (हजारीबाग) के पास ही स्थित है। महूदीगढ़ के पास महूदी पहाड़ है और महूदीगढ़ के रास्ते में मुसलमानों का गाँव है। इसकी भौगोलिक स्थिति संकेत करती है कि यह स्थान किसी जनजाति के बसाव के उपयुक्त है। इससे उस ऐतिहासिक तथ्य का भी संकेत मिलता है कि बाबर ने मुसलमानों का गाँव बसाया हो और बेदिया को इस क्षेत्र से पलायन करना पड़ा हो। महूदी पहाड़ पर गुफाएँ मिलती हैं जो एक ही चट्टान से काट कर बनाई गयी हैं। पहाड़ की तलहटी में भवन का खंडहर मिलता है जो राजा दलेल सिंह का बतलाया जाता है। एक गुफा पर राजा दलेल सिंह द्वारा निर्मित होने की बात खुदी हुई है। महूदी पहाड़ की गुफाओं और खंडहर में शिवलिंग स्थापित हैं तथा इसकी चोटी पर ‘बुढ़वा महादेव’ मंदिर है। बहरहाल, निश्चित जानकारी के अभाव में महूदीगढ़ में बेदिया के रहने की बात मानी जा सकती है।

 डॉ. नर्मदेश्वर प्रसाद ने अपनी पुस्तक ‘लैंड एंड द पिपुल ऑफ छोटानागपुर’ बेदिया को संथाल की 12 उपजातियों में से एक उपजाति माना है 

हंटर महोदय – ने बेदिया को मुंडा से मिलते-जुलते माना है। 

बेदिया  जनजातियों का शारीरिक संरचना-Physical structure of Bediya tribes

प्रजातीय दृष्टि से बेदिया जनजाति  को ‘प्रोटो-आस्ट्रेलायड’ समूह में रखा जाता है । बेदिया जनजाति सांवला या काले रंग के भी  होता है,  नाक चिपटी नहीं होती, बल्कि खड़ी होती है। होंठ सामान्य होते हैं, न मोटे, न पतले। बाल काले और लहरदार, कद मध्यम, चेहरा प्रायः गोल और डील-डौल सामान्य होता है। इनकी औसत ऊँचाई 5 फीट 1 इंच होती है। स्त्रियों की ऊँचाई कुछ कम होती है।  

बेदिया  जनजातियों की भाषा Language of Bediya tribes

विद्या जनजातियों की कोई अपना भाषा नहीं है बल्कि उनकी मातृभाषा जनजाति एवं क्षेत्रीय भाषा खोरठा है । विद्या जनजाति खोरठा भाषा भाषी क्षेत्रों में निवास करने के कारण लगभग 99.8 प्रतिशत खोरठा भाषाओं का प्रयोग करते हैं ।  मात्र 0.2 प्रतिशत मुंडारी बोलते हैं। अतीत में इनका मुंडा एवं संथाल के साथ निकट संपर्क रहने के बावजूद उनकी भाषाओं को नकारते हुए वे  स्थानीय भाषा भाषा खोरठा का प्रयोग करते हैं । पढ़े-लिखे  धड़ल्ले से और अच्छी हिन्दी बोल लेते हैं।

 झारखंड में भेजा जनजातियों का निवास स्थान- The place of residence of Bheya tribes in Jharkhand-

जनसंख्या के अनुसार झारखंड में बेदिया  जनजाति के तीन  प्रमुख संकेद्रित क्षेत्र हैंः एक पुराना हजारीबाग जिला जिसमें अब हजारीबाग, चतरा, कोडरमा, गिरिडीह, बोकारो जिले बन गए हैं। दूसरा पुराना राँची जिला जिसमें राँची, लोहरदगा, गुमला एवं सिमडेगा जिले हैं। तीसरा सिहभूम जिला जिसमें अब पं. सिंहभूम, पूर्वी सिंहभूम एवं सरायेकला जिले हैं। इन तीनों क्षेत्रों में 99 प्रतिशत से अधिक बेदिया पाये जाते हैं।

बेदिया  जनजाति का सामाजिक व्यवस्था -Social system of Bediya tribe

  • परिवार पितृसत्तात्मक एवं पितृवंशीय होता है। पिता की मृत्यु के बाद पुत्रों को उत्तराधिकार प्राप्त होता है। लड़का नहीं होने की स्थिति में लड़की को संपत्ति मिल सकती है, यदि दामाद ‘घर-जंवाई’ बन कर रहे। संतानहीन व्यक्ति की संपत्ति भाई-भयादों में बंट जाती है।
  • बेदिया समाज में स्त्रियों का सम्मानजनक स्थान है। महिलाएँ घरेलू कार्यों को निपटाने के अलावे कृषि-कार्यों में भी सहयोग करती हैं।
  • विवाह के लिए वधूधन का प्रावधान है। इसे ‘ढाली टक्का’ कहते हैं।
  • जलाये गये शव के पांच हिस्से की हड्डियों को दामोदार नदी में प्रवाह किया जाता है। दामोदार नदी संथाल के भांति इनकी पवित्र नदी है। अस्थि प्रवाह करने के लिए माण्डु के पास सोनधारा तथा रामगढ़ के पास कुन्दु स्थल सबसे अधिक पवित्र है               

 बेदिया जनजातियों का गोत्र व्यवस्था- Gotra system of Bediya tribes

बेदिया में अनेक गोत्र मिलते हैं- जो इस प्रकार है:- चिडरा (गिलहरी), 2. बड़वार (वट वृक्ष), 3. फेचा (सूअर), 4. काछिम (कछुआ), 5. आहेर (एक मछली), 6. बाम्बी (एक मछली), 7. महुआ (वृक्ष), 8. डाडी डिबड़ा (एक मछली), 9. सुइया (एक पक्षी), 10. महुकल (एक पक्षी), 11. सुड़ी (पक्षी), 12. शेरहार (एक पक्षी)।

एक ही गोत्र के लड़का-लड़की में विवाह वर्जित है। बेदिया अपने गण-चिलें (टोटेम) के प्रति आदर-भाव रखते हैं और उसे किसी प्रकार की क्षति नहीं पहुँचाते। इन बारह गोत्रों में कई में उपगोत्र भी पाये जाते हैं, जैसे ‘चिडरा’ में तीन उपगोत्र-सेंगा, साइठ एवं नेवला-मिलते हैं। उ पितृवंशीय समाज होने के कारण पिता का ही गोत्र बच्चों को मिलता है। विवाह के बाद स्त्रियों का गोत्र गौण हो जाता है और उससे उत्पन्न संतति की परिगणना पिता के वंश के आधार पर होती है।

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