महली जनजाति (Mahali tribe) झारखंड, बिहार ,पश्चिम बंगाल और उड़ीसा की महत्वपूर्ण जनजाति है। जो एक शिल्पकार के रूप में जाना जाता है । बाँस की से निर्मित तरह-तरह के कलाओं में दक्ष और प्रवीण होते हैं। महली जनजाति (Mahali tribe) झारखंड में राँची, लोहरदगा, गुमला, सिमडेगा, सिहंभूम, संथाल परगना, हजारीबाग, धनबाद जिलों में निवास करते हैं।
महली जनजाति (Mahali tribe) की उपजातियां (Sub-tribes of Mahali tribe)
भाषा वैज्ञानिक रिजले ने महली जनजाति पांच उपजातियां बताएं हैं, जो इस प्रकार हैं-
- बाँस फोड़ महली– बाँस फोड़ महली बाँस से निर्मित टोकरी, सूप आदि बनाते हैं। बाँस के पेशे से जुड़े रहने के कारण इन्हें बाँस फोड़ महली की संज्ञा दी गयी।
- पातर महली – पातर महली बाँस के वस्तु बनाने के साथ- साथ खेती भी करते हैं
- सुलंकी महली
- तांती महली
- महली मुंडा
महली जनजातियों की उत्पत्ति (Origin of Mahali tribes)
- महिला जनजातियों की उत्पत्ति के संबंध में विभिन्न विद्वानों ने अलग-अलग मत दिया जो इस प्रकार है-
- रिजले महली के गोत्रों की तुलना के आधार पर इनका संथाल के साथ निकट साहचर्य की बात कहते हैं।
- रसेल और हीरा लाल महली को मुंडा जनजाति से संबंधित मानते हैं।
- डॉ. बी. पी. केशरी ने ‘महली’ शब्द की व्युत्पत्ति ‘महल’ से बताते हुए यह संकेत दिया है कि महली का संबंध कभी न कभी महलों से रहा है।
- नारायण राम महली ने एक रोचक प्रसंग बतलाया कि हर्षवर्द्धन के दरबार में महलियों का उल्लेख है।
- डॉ. रामप्रसाद महली को मध्य भारत की नाग जाति से जोड़ता है।
- डा. कुमार सुरेश सिंह ने एक चर्चा में बताया है कि नागवंशियों की तरह बस्तर के गोंडों के राजचिह में ‘नाग’ चिह्न अंकित है। महली में कुछ लोग ‘नाग’ गोत्र के पाये जाते हैं,
- सूर्य सिंह बेसरा ने एक किंवदंती का उल्लेख किया है कि एक संथाल युवती को उसके दोनी ने धोखा दिया जब कि वह गर्भवती थी। उस युवती से उत्पन्न संतान बाँस के उपकरणों के निर्माण से जीवन-यापन करने लगी। संथाली में बाँस के लिए ‘मदूत’ शब्द है। शायद उसी से महली शब्द की उत्पत्ति हुई है।
- (नोट – माही जनजातियों की उत्पत्ति के संबंध में डॉक्टर बिमला चरण शर्मा झारखंड की जनजातियां पुस्तक में उल्लेख किए हैं)
महली जनजातियों का शारीरिक लक्षण-(Physical characteristics of Mahali tribes)-
महली प्रोटो-ऑस्ट्रेलॉयड वर्ण (आग्नेय प्रजाति) में आते हैं जिसमें मुंडा, संथाल आदि भी हैं। इनकी त्वचा का रंग गाढ़ा सांवला से काला, कद नाटा से मध्यम, होंठ मध्यम, कपाल तम्बा, सुंदर नाक-नक्शा तथा काले लहरदार बाल आदि मुख्य शारीरिक लक्षण है। इनमें ‘बी’ रक्त-समूह की अधिकता है।
महली जनजातियों का गोत्र (Mahali clan of tribes)
इनके कुछ प्रमुख गोत्र हैं-
चारधगिंया, चरबेर (एक पेड़), करकेट्टा (पक्षी), मरी, मुरुमल (नील गाय), टोपवार (चिड़िया), ढिलकी, डुमरियार या डूंगरी (वन सूअर), बारला, सरुआ, बरवार, केसरियार, | तिर्की (साड़), गुंदली (अन्न), कठरगाछ (कटहल), हँसदा, हेम्बोम, खंगार, हेमरोम, खरियार, कटिपार, बधवार, नाग, भुजकी, |
चारधगिंया, चरबेर (एक पेड़), करकेट्टा (पक्षी), मरी, मुरुमल (नील गाय), टोपवार (चिड़िया), ढिलकी, डुमरियार या डूंगरी (वन सूअर), तिर्की (साड़), गुंदली (अन्न), कठरगाछ (कटहल), हँसदा, हेम्बोम, खंगार, हेमरोम, खरियार, कटिपार, बधवार, नाग, बारला, सरुआ, बरवार, भुजकी, केसरियार,
महली जनजातियों का देवी देवता (Gods and Goddesses of Mahali Tribes)
- सूरजी देवी -इनका सर्वोच्च देवता या भगवान ‘सूरजी देवी’ है हिन्दुओं के सूर्य देवता का समन्वय है। सूरजीदेवी पूजा सबसे महत्वपूर्ण माना जाता है और बारह वर्षों के बाद गाँव एवं गाँव के लोगों के कल्याण हेतु पुजारी द्वारा की जाती है। पूजा वैशाख महीने में होती हैं।
- ‘जाहेरचान- ये ‘जाहेरचान’ में बकरा, कबूतर, मुर्गी की बलि चढ़ाते हैं,
- बड़ पहाड़ी’ की पूजा- महली ‘बड़ पहाड़ी’ की पूजा करते हैं जो मुंडाओं के ‘मरंग बुरू’ उत्सव का सदानी संस्करण है।
- मनसा देवी- वस्तुतः नाग देवता है जिसकी पूजा स्थानीय हिन्दू भी करते हैं। यह पूजा प्रत्येक वर्ष होती है। एक या दो खस्सी, कबूतर, मुर्गी, चावल, मिष्ठान सिंदूर आदि सामग्री घर के कर्त्ता द्वारा अर्पित की जाती है। मकई-मडुआ की रोटी भी चढ़ाई जाती है। पूजा के चावल और बलि का मांस पका कर पुरुष, महिला, बच्चे सभी खाते हैं।
- ‘गोड़म साकी’ (बूढ़ा-बूढ़ी पर्व)-महली ‘पुरखों’ की पूजा ‘गोड़म साकी’ (बूढ़ा-बूढ़ी पर्व) के रूप में करते हैं।
- उतूर पूजा- सिल्ली प्रखंड क्षेत्र के महली ‘उतूर पूजा’ करते हैं जिसमें सूअर की बलि चढ़ाते हैं।
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