Story of Jainism in hindi maans ka mulya जैन धर्म की कहानी मांस का मूल्य |

Story of Jainism:-एक मनुष्य ही क्या, प्राणिमात्र में जीने की इच्छा कितनी प्रबल होती है! कोई भी प्राणी अपनी मृत्यु नहीं चाहता।” फिर अपनी जिह्वा की लोलुपता के कारण मनुष्य किसी के प्राणों को लूटकर उन्हें सस्ता कैसे कह सकता है ! इसे संबधित जैन धर्म की कहानी मांस का मूल्य को बतया गया है। यह कहानी जैन धर्म छठी शताब्दी ईस्वी पूर्व से लेकर वर्तमान की संस्कृति में किसी ने किसी रूप से प्रभावित किया है । लगभग दो ढाई हजार वर्ष पूर्व भगवान महावीर तथा जैन तीर्थंकरों ने सर्वसाधारण को  दार्शनिक शैली में ही नहीं बल्कि कथा कहानी और रूपकों की सीधी साधी शैली में गूढ़  रहस्यों को समझाया जिससे जीवन निर्माण तथा बौद्धिक आनंद की प्राप्ति होती है जो आज भी लोक कथाओं  (Story of Jainism)के रूप में देश के विभिन्न हिस्सों में प्रचलित है । आज उसी कड़ी में जैन धर्म की कहानी Story of Jainism)  मांस का मूल (Story of Jainism maans ka mulya) इस प्रकार है-

Story of Jainism in hindi

मांस का मूल्य ( maans ka mulya)

 मगध नरेश श्रेणिक ने राज्यसभा में अपने सामंतो से एक प्रश्न किया, राजगीर में अभी सबसे सस्ती और सुलभ खाद पदार्थ क्या है जिसे सर्वसाधारण को प्राप्त करने में कोई कठिनाई नहीं होती है । मगध नरेश के यह प्रश्न सुनकर सभी सामान शांत हो गए । सभी सामंतों को शांत देखकर मगध नरेश ने अपनी प्रश्न को पुनः दोहराया । तभी एक सामंत ने कहा महाराज सबसे सस्ती चीज मांस है  । जिसका समर्थन अन्य सामंतो में सिर हिला कर किया । हां महाराज यह बिल्कुल सही बात है जंगल में पशु पक्षियों की क्या कमी है धनुष बांण  लिया और मार ले तो चरण में काम कुछ मेहनत ना कुछ खर्च । महामात्य अभय कुमार गंभीर मुद्रा में विचारों की गहराइयों में डूबे हुए थे । महामात्य अभय कुमार ने महाराज के इस प्रश्न का उत्तर देने के लिए एक दिन का समय मांग लिया ।  सभा का विसर्जन कर दिया गया । अभय कुमार इन्हीं विचारों में डूबे राज्यसभा से निकल गए ।

 घनघोर काली अँधेरे रात  झिलमिला रहे हैं तारे की रौशनी में  महामात्य अकेले ही उस सामंत के घर  चले जा रहे हैं जिसने मांस को सबसे सस्ती और सुल्भ्बत्य था  ।

 अभय कुमार को गहराती रात के अँधेरे में आया देखा  सामंत ने कुमार से कहा  महामात्यवर  आप ! इतनी रात  को यंहा ?” सामंत का   मन आशंकाओं से भर गया। अभय कुमार हाँफ रहे थे। उनकी कुछ भय और चिंता-किसी महान् घटना या संकट की सूचना दे रही थी। महामंत्री ने अपने को सँभालते हुए कहा, “सामंत, मगधपति आकस्मिक भयंकर रोग के कारण मृत्यु-शय्या पर पड़े हैं। कोई उपचार, औषध काम नहीं कर रही है। वैद्यों का कहना है कि अगर किसी स्वस्थ व्यक्ति के हृदय का मांस मिल सके तो सम्राट् के प्राण बच सकते हैं, अन्यथा नहीं। सिर्फ दो तोला हृदय का मांस चाहिए,  इसके बदले में तुम्हें जितनी भी    स्वर्ण मुद्रा चाहिए, सो माँग लो। राज का हिंसा भी  मिलेगा। जो चाहोगे वही मिलेगा, सिर्फ दो तोले मांस चाहिए ! महाराज के जीवन-मरण का प्रश्न है।

सामंत  का चेहरा उड़ गया । ‘हृदय का मांस ?’ जब जीवन  ही नहीं तो यह धन,  किस काम  का ? प्राणों के साथ धन का

सौदा ? सामंत ने अभय के चरणों में सिर रख दिया और गिड़गिड़ाते हुए कहा,

“महामंत्री, कृपा करके मुझे जीवन-दान दे दीजिए। आप मेरी ओर से  मेरे प्राण के लिए  लाख स्वर्ण मुद्राएँ ले जाइए और किसी ऐसे व्यक्ति के हृदय का मांस ले ले , जो लाख स्वर्ण-मुद्राएँ लेकर देता हो, कृपया ले लीजिए।”

अभय कुमार  मुसकरा उठे। वंहा से चल दिए।  सभा में जिन-जिन सामंतों ने इस सामंत की बात का समर्थन किया था, अभय उन सबके द्वार पर गए जो जो इस सामंत के बात का सामर्आथान किया था ।

दो तोला मांस के बदले वे लोग लाखों-करोड़ों स्वर्ण मुद्राएँ देते गए और अपने प्राणों की भिक्षा माँगते गए। पर, कोई भी माँ का ऐसा लाल नहीं मिला, जो अपने हृदय का मांस देकर सम्राट् के प्राण बचाने को प्रस्तुत हो।

अन्य दिन की भाति आज  अभय कुमार प्रश्न का उत्तर देने हँसते-मुसकराते राजसभा  के लिए निकल गए ।  महामंत्री अभय कुमार प्रश्न का उत्तर देने हँसते-मुसकराते राजसभा में उपस्थित हुए। रात-ही-रात समग्र नगर में चर्चा फैल गई थी कि कल प्रातः महामंत्री अपना उत्तर प्रस्तुत करेंगे- जिस  करण आज  राजसभा में जन-समूह की भीड़ लग गई ।

महाराज की आज्ञा पाकर अभय ने अपने प्रमुख सेवक को संकेत किया। कुछ ही देर में खनखनाती करोड़ों स्वर्ण मुद्राओं का ढेर लग गया । राजा  कुछ समझ नहीं  पा रहे थे  आखिर , क्या रहस्य है।

अभय कुमार  खड़े हुए बोले । “महाराज, आपने पूछा था कि सबसे सस्ती चीज क्या है? हमारे वीर सामंतों ने उत्तर दिया था कि ‘मांस!’ मैं उन सब सामंतों के द्वार पर भटक आया, पर इन करोड़ों स्वर्ण मुद्राओं के बदले दो तोले मांस कहीं नहीं मिल सका। फिर मांस सस्ता कैसे?” अभय एक क्षण रुके, सामंतों के चेहरे  शर्म से झुके हुवे  थे। रात्रि की घटना बताते हुए अभय ने कहा, “महाराज, दो तोले मांस का यह मूल्य हो सकता है तो जिनका सारा भांस निकाला जाता है, उनके प्राणों का क्या मूल्य होगा? असंख्य स्वर्ण मुद्राएँ देकर क्या किसी के प्राण का मूल्य चुकाया जा सकता है? फिर यह कैसे कह सकते है की  मांस सस्ता है? हम अपने प्राण और अपने मांस का जो मूल्य आँकते हैं, वही मूल्य दूसरे प्राणी के प्राण और मांस का क्यों नहीं आँकते ? जीवन का मूल्य अनंत है। मनुष्य सिर्फ अपनी रस-लोलुपता और विषयांधता के वश दूसरों के जीवन के साथ खिलवाड़ करता है और उसका कुछ भी मूल्य नहीं समझता है। जब वह दूसरे के मांस को अपने मांस से तौलेगा, तभी ठीक तरह से समझ सकेगा कि वास्तव में मांस का क्या मूल्य हो सकता है!”

सभा में सन्नाटा छा गया। सामंतों की आँखें झुकी जा रही थीं।  महामंत्री के विवेक-युक्त विश्लेषण पर सब चकित थे। अभय कुमार ने सामंतों के साथ हुए रात्रिकालीन गुप्त वार्तालाप का विश्लेषण करते हुए बताया कि “एक मनुष्य ही क्या, प्राणिमात्र में जीने की इच्छा कितनी प्रबल होती है! कोई भी प्राणी अपनी मृत्यु नहीं चाहता।” फिर अपनी जिह्वा की लोलुपता के कारण मनुष्य किसी के प्राणों को कैसे मर सकता है  उन्हें सस्ता कैसे कहा  जा  सकता है !

जैन धर्म की कहानी – मांस का मूल्य का  मुख्य संदेश 

जैन धर्म की इस कहानी से हमे यह शिक्षा मिलती है की जीवन का मूल्य सभी जीवो के लिए अमूल्य है जिसका मूल्य नही लगाया जा सकता है । इस लिए अपनी स्वाद  इच्छा के लिए जीवो की हत्या नही करनी चाहिए । अहिंसा परमो धर्म ।

                                                      श्रोत -जैन धर्म की कहानी

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