kharia tribe | खड़िया जनजाति

खड़िया जनजाति (kharia tribe) – खड़िया जनजाति झारखण्ड  के अतिरिक्त उड़ीसा, छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, त्रिपुरा आदि राज्यों निवास करती है ।झारखण्ड में  गुमला, सिमडेगा, पश्चिमी सिंहभूम आदि जिलों मुख्य रूप से निवास करती है । झारखण्ड में 2001 की जनगणना के अनुसार कुल आदिवासी आबादी का लगभग  2.6 प्रतिशत खड़िया जनजाति (kharia tribe) का  है।

खड़िया जनजाति (kharia tribe) का प्रजाति –

रिजले ने  खड़िया जनजाति के  छ: उपवर्ग में बाटा  है –

1 इरेंगा खड़िया (हिल खड़िया),

2 बेलकी खड़िया,

3 दुध खड

4बेरा खड़िया,

5मुंडा खड़िया

6. उराँव खड़िया।

किन्तु खड़िया जनजाति के तीन प्रकार  के है ये वर्ग आर्थिक, सामाजिक एवं सांस्कृतिक दृष्टि से विभिन्न स्तरों पर मिलते हैं। इनमें नो पहाड़ी खाड़िया सबसे अधिक पिछड़ा और दूध खड़िया सर्वाधिक उन्नत हैं।

1  ‘पहाडी खडिया’,

2’ढेलकी खड़िया’

3’दूध खड़िया’।

ये वर्ग आर्थिक, सामाजिक एवं सांस्कृतिक दृष्टि से विभिन्न स्तरों पर मिलते हैं। इनमें नो पहाड़ी खाड़िया सबसे अधिक पिछड़ा और दूध खड़िया सर्वाधिक उन्नत हैं। जो । हो, दूध और इतकी बड़िया मिल कर एक सुसंबद्ध कबीला समुदाय बन गए हैं।

खड़िया जनजाति (kharia tribe) का भाषा

खड़िया प्रोटो आस्ट्रेलायड प्रजाति समूह की विशेषताओं से मिलते-जुलते  इनकी भाषा  है जिसे खड़िया कहा जाता है।  खड़िया (खेखारी) भाषा   विलुप्त होती भाषा है। ग्रियर्सन कहते हैं कि इनकी भाषा सबर से संबद्ध है और जुआंग एवं कोरकू से समानता पाई जाती है।

खड़िया जनजाति (kharia tribe) का सामाजिक संगठन

खड़िया के सामाजिक संगठन पितृसत्तात्मक है। पितृसत्तात्मक होने के कारण समस्त अधिकार पिता के पास होते हैं तथा उसी से वंश चलता है। इनमें एकाकी परिवार की बाहुलता है। एकाकी परिवार होने का अर्थ है विवाह के बाद नवदम्पत्ति अपना घर बनाकर रहते हैं।गोत्र की विवाह में महत्वपूर्ण भूमिका होती है। एक ही गोत्र के लड़के-लड़कियों में विवाह वर्जित है। सम गोत्र में यौन सबंध अपराध माना जाता है और इसके लिए दंड का विधान है।खाड़िया समाज कई  गोत्रों में बँटा हुआ है । ये अपने अब अपने टोटेम को श्रद्धा-सम्मान देते हैं। ये गोत्र पशु-पक्षी या वस्तु के नाम पर होते हैं

खड़िया जनजाति (kharia tribe) का गोत्र –

मुख्य गोत्र इस प्रकार हैं :-बेलकी खड़िया : 1. मुरमु (कछुआ) 2. सोरेन (पत्थर) 3. बागे/समद (हिरण) 4. बारलिहा (एक फल 5. चरहा/चररुद (पक्षी) 6. हंसदा/अइन्द/इंगडुंग (इल मछली) 7. टोपनो (पक्षी) 8. मैल या किरो (गंदगी)

दूध खड़िया में मूलतः 9 गोत्र थे, अब 31 हैं। कुछ मुख्य गोत्र है: १. डुंगडुंग (मछली) 2. कुल्लू (कछुआ) 3. बा (चावल) 4. वित्तुंग (नमक) 5. सौरेत (पत्थर) 6. टेटे/टोपो (पक्षी) 8. 7. किरो (बाघ) करकेट्टा (बटेर) 9. किड़ो (घड़ियाल) 10. कोकुल (चीता) 11. गुलगु (मछली) 12. जारु (चूहा) 13. बदेया (ट्यूबर) 14. देसा (पक्षी) 15. हेम्ब्रोम (पान)

डेलकी खड़िया के मैल और टोपनो गोत्र सामाजिक स्तर में अन्य से निम्नतर माने जाते हैं।

गोत्र की विवाह में महत्वपूर्ण भूमिका होती है। एक ही गोत्र के लड़के-लड़कियों में विवाह वर्जित है। सम गोत्र में यौन सबंध अपराध माना जाता है और इसके लिए दंड का विधान है।

खड़िया के सामाजिक संगठन में परिवार मूल इकाई है। इनमें एकाकी परिवार की बाहुलता है। खड़िया परिवार पितृसत्तात्मक होने के कारण समस्त अधिकार पिता के पास होते हैं तथा उसी से वंश चलता है। एकाकी परिवार होने का अर्थ है विवाह के बाद नवदम्पत्ति अपना घर बनाकर रहते हैं।

खड़िया जनजाति (kharia tribe) का आर्थिक स्थिति:- 

खड़िया स्थायी कृषक है जो  अन्य कृषक जनजाति के ही समान है। इनकी आर्थिक स्थिति दयनीय है। जसके कारण अधिकांस  ईट भठा तथा  आसाम के चाय बगान में काम करने के लिए चले जाते हैं। ये जनजाति जंगली खाद्य पदार्थ जड़ी बूटी एवं महुआ से शराब बनाकर बेचते भी हैं।

धार्मिक प्रणाली

खड़िया जनजाति का देवता :-

खड़िया विभिन्न प्रकार के देव-भूतों की पूजा करते हैं। देवताओं में सूर्य देवता, सबसे महत्वपूर्ण है। इन्हें बेला भगवान या ठाकुर कहते हैं। इनकी पूजा जुन में की जाती है तथा मुर्गे की बलि दी जाती है। इनका पुजारी पाहन कहलाता है। यह पद वंशागत होता है। कहीं-कहीं इन्हें बैगा या कालो भी कहते हैं। अन्य देव भूत अन्य जनजातियों के ही समान हैं। राजनैतिक प्रणाली भी अन्य जनजाति जैसी ही है

खड़िया जनजाति का पर्व तेवहार :-

खड़िया का मुख्य पर्व  ‘बा बिड’ ‘बंगारी’, ‘कादो लेटा’, ‘नयोदेम’ आदि है।

‘फागू’ शिकार:- ‘फागू’ शिकार उत्सव है जो सभी खड़िया मनाते हैं। इस अवसर पर ‘पाट’ और बोराम की पूजा करते हैं और सरना में बलि चढ़ाते हैं।

‘बा बिड –‘बा बिड बीजारोपण का पर्व है। यह सार्वजनिक त्योहारते है। इससे पाँच मुर्तियाँ (पाँच रंग की) की बलि दी जाती है।

‘बंगारी- ‘बंगारी’ धान रोपने के समय और होला पूजा फसल कटने के समय की जाती है। बंगारी पूजा में भी पांच मुर्गियाँ की बलि  चढ़ाई जाती है।

टोला पूजा :- टोला पूजा खलिहान में होती है। इसे पहाड़ी-खड़िया ‘सुन्टी पूजा’ करते हैं।

धाननुआ खिया – नया अन्न या चावल खाने के पहले ‘नयोदेम’ या ‘धाननुआ खिया’ पूजा पूर्वजों को अर्पित करने का पर्व है।

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