“सात भाई और बहन”folk tal seven brothers and sisters:– नामक यह लोक कथा झारखंडी जनजीवन की मिट्टी से उपजी एक मार्मिक कथा है, जो भाई-बहन के रिश्ते की संवेदनशीलता, त्याग और आत्मीयता को उजागर करती है। इस कथा में एक बहन की सरलता और सात भाइयों की भावनात्मक प्रतिक्रिया के माध्यम से यह बताया गया है कि कैसे एक छोटी सी घटना—साग में बहन के खून का स्वाद—भाइयों के हृदय को छू जाती है और वे उसकी सच्चाई जानने को उत्सुक हो जाते हैं। यह कथा न केवल पारिवारिक प्रेम को दर्शाती है, बल्कि ग्रामीण जीवन की सादगी, स्त्री की भूमिका, और लोक संवेदना को भी उजागर करती है। झारखंडी परिप्रेक्ष्य में यह कथा विशेष रूप से महत्वपूर्ण है क्योंकि यह स्थानीय बोली, परिधान, खान-पान और भावनात्मक बंधनों को जीवंत करती है। यह कहानी पीढ़ियों से मौखिक परंपरा के माध्यम से चली आ रही है और आज भी बच्चों, युवाओं और बुजुर्गों के बीच समान रूप से लोकप्रिय है।
लोक कथा सात भाई और बहन |folk tal seven brothers and sisters :
किसी गाँव में सात भाई और उनकी एक बहन (seven brothers and sisters)रहती थी। उनके माता पिता जीवित नही थे।सबसे छोटा भाई और बहन अविवाहित थे । वे अत्यन्त गरीब थे । छःओं भाई और उनकी पत्नियां सबेरे उठकर काम करने के लिए निकल जाते थे और छोटा भाई गाय चराने जाता। एक दिन काम पर जाने के पहले मुनगा साग तोड़कर लाये और अपनी बहन को पकाने के लिए कह गये । सातों भाई और उनकी पत्नियां काम पर चली गईं । उन लोगों ने अपनी बहन से कह रखा था कि वे दो पहर तक लौटेंगे ।
बहन के द्वारा भोजन तैयार करना:-
छोटी बहन भोजन तैयार करने लगी । पहले उसने भात पकाया उसके बाद मुनगा साग काटने लगी । साग काटते समय वह कट गई जिससे खून बहने लगा । खून को साग से ही पोंछने लगी और साग बना दी । दोपहर को सातों भाई और उनकी पत्नियां काम से लौटीं । सभी भाइयों को एक साथ भोजन परोसी भात के साथ मुनगा का साग खाने के लिए दी । वे आनन्दपूर्वक खाने लगे । उन्हें आज मुनगा का साग बड़ा ही स्वादिष्ट खाने में लगा । इसके पहले उन्होंने मुनगा साग को इतना स्वादिष्ट कभी नहीं खाया था । उन्होंने अपनी बहन से पूछा – बहन , आज तुमने साग कैसे पकायी है जो इतना स्वादिष्ट लग रहा है । उसने उत्तर दिया कि आज साग काटते समय वह कट गई थी और उसने बहते हुए खून को साग से साफ किया था । सम्भवतः इसी कारण साग इतना स्वादिष्ट बना हो । सातों भाइयों ने कहा- बहन , तुम्हारा खून इतना स्वादिष्ट है तो तुम्हारा मांस कितना स्वादिष्ट होगा ?
बहन को मार कर भाइयों द्वारा खाना :-
अब सातों भाई विचार करने लगे कि किस प्रकार वे अपनी बहन को मार कर उसका मांस खा सके । बड़े भाई ने कहा- हमें बहन को अरहर रखवाली के लिए खेत में भेजना चाहिए । अन्य सभी भाई उसके विचार से सहमत हुए ताकि किसी भी प्रकार से अपनी बहन को मार कर उसका मांस खा सके । तुम्हारा मांस अरहर के खेत में उन लोगों ने एक मचान बना रखी थी । उसी मचान के ऊपर बैठकर वह खेत की रखवाली करती थी । एक दिन सातों भाई तीर – धनुष लेकर अपनी बहन को मारने के लिए अरहर के खेत में गए । सबसे पहले बड़े भाई ने मारने के लिए धनुष पर तीर चढ़ाया । उस समय बहन ने-
कही- मारऽबे दादा , छाती पर नांय मरबे दादा छाती पर नांय मरबे दादा ।
तब उसने तीर चलाया । परन्तु , उसे तीर नहीं लगा । इसके बाद दूसरे भाई ने मारने के लिए धनुष पर तीर चढ़ाया । उसे भी बहन ने कहा
बिंधऽबे बिंध ऽबे दादा , छाती पर नांय मरबे दादा छाती पर नांय मरबे दादा।
उसने तीर चलाया । पर वह भी नहीं मार सका । अब तीसरे भाई की बारी थी । वह बहुत ही खुश हो मारने के लिए धनुष पर तीर चढ़ाया और निशाना साधने लगा । बहन प्रत्येक की बारी में इसी प्रकार विलाप करती रही । वह भी नहीं मार सका । उसका निशाना चूक गया । इस प्रकार छः भाइयों में से कोई भी बहन को नहीं मार सके । जब छः भाइयों में से कोई नहीं मार सके तो वे वापस में विचार करने लगे कि किस प्रकार उसे मारा जाए । उन्हें लगने लगा कि उनके तकदीर में मांस खाना नहीं लिखा है ।छोटा भाई आया उसने बहन को नहीं मारना चाहा किन्तु उसके बड़े भाइयों ने मारने के लिए दबाव दिया अन्तः मारने के लिए तैयार हो गया। उस समय सबसे छोटे भाई मारने की तैयारी में लगा था । उसने धनुष पर तीर चढ़ाया तो उसकी बहन रोती हुई कहने लगी
बिंध ऽवे – बिंध ऽबे दादा , छाती पर मरबे दादा छाती पर मरबे दादा ,।
छोटे भाई ने एक तीर चलाया जो कि छोटी बहन की छाती पर जा लगा । तीर लगते ही वह धड़ाम से गिर पड़ी और मर गई । उसने अपने बड़े भाइयों से काट कर मांस तैयार करने को कहा और नदी की ओर चला गया । छः भाइयों ने काट – कूट कर मांस तैयार कर लिया और पकाने लगे । इसी बीच सबसे छोटे भाई ने मछली और केकड़ा पकड़कर ले आया और उनको पकाकर अपने खाने के लिए तैयार किया । यह बात अन्य भाइयों को मालूम नहीं थी । खाने के लिए सात पत्तल में मांस बांटा गया और सभी लोग खाने के लिए बैठ गये । जब छः भाई बहन का मांस खाते उस समय सबसे छोटा भाई मछली और केंकड़ा खाता । जब छः भाई भोजन कर उठ गये तो छोटा भाई बहन के मांस लेकर बाहर एक टिल्हा में डाल दिया । बहुत दिनों के बाद उस टिल्हे पर बांस का पेड़ उग आया ।
बासुरी बजा बजाकर भीख माँगना :-
एक दिन एक डोम आया और छोटे भाई से एक बांस मांगा । छोटे भाई ने वह बांस ढोम के हाथ बेचने से इन्कार कर दिया । जब बांस नहीं मिला तो उस डोम ने बांस के पेड़ चुपके से काट लिया और अपने घर ले गया । उस बांस से उसने एक बासुरी बनायी । बासुरी बजा बजाकर वह डोम भीख मांगने लगा । एक दिन भीख मांगते – मांगते वह बड़े भाई के घर पर पहुंचा । वहाँ पर मुरली से ध्वनि निकलने लगी कि यह तो मेरे दुश्मन का घर है । अतः तुम मधुर ध्वनि मत निकालो । इसी प्रकार वह डोम दूसरे , तीसरे , चौथे , पांचवें , छठे भाई के पास मांगने के लिए पहुँचा । प्रत्येक के वहाँ मुरली से यही ध्वनि निकलती थी कि यह मेरा दुश्मन भाई है । मुरली की इस ध्वनि को सुनकर किसी ने डोम को कुछ नहीं दिया । अन्त में वह सबसे छोटे भाई के वहाँ पहुंचा । जब वह बासुरी बजाने लगा तो उससे यह ध्वनि निकलने लगी कि यह मेरा सहोदर भाई है , यह मेरा सहोदर भाई है । तुम यहाँ पर मधुर ध्वनि निकालो । इस प्रकार की आवाज सुनकर छोटा भाई दौड़ा – दौड़ा घर से निकल पड़ा । उसने देखा कि वही डोम मुरली बजा रहा है । उसने एक पैला चावल दिया और कहा कि यह मुरली तो मेरे बांस से बनाई गयी है । तुम मुझे यह मुरली दे दो । डोम ने मुरली देने से इन्कार कर दिया । छोटे भाई ने वह मुरली डोम के हाथ से जबरदस्ती छीन ली और इसके बदले में एक बांस का पेड़ दे दिया । इस बांसुरी को छोटे भाई ने अपने घर के छप्पर के नीचे खोंस दिया । अब वह प्रतिदिन गाय चराने के लिए जाने लगा । जब दोपहर को लौटता तो भोजन पकाकर खाता । दो दिनों के बाद जब वह गाय – चारने के लिए गया तो वह बांसुरी बहन का रूप धारण उसका भोजन पका देती । उसका गोहाल साफ कर देती । स्वतः भोजन पका पाकर एवं गौशाला साफ – सुथरा देकर छोटे भाई को आश्चर्य हुआ । तीन दिनों के बाद उसे यह जानने की प्रबल इच्छा हुई कि यह सब कैसे हो रहा है ? उस दिन वह गाय – बैल को लेकर चराने गया । मगर दूसरे को जिम्मा देकर वह तुरन्त घर लौट आया और घर में छिपकर बैठ गया । कुछ देर के बाद वह मुरली उसकी बहन का रूप धारण कर काम करने लगी । सभी कार्य करनेके बाद जब वह बासुरी का रूप धारण करने जा रही थी उसी समय जगह झट से हाथ पकड़ लिया और कहा- बहन , तुम कहां जा रही हो ? तुम्हारे लिए ही मैंने इतनी तपस्या की है । अब तुम मुझे छोड़कर मत जाओ । इसी रूप में मेरे घर में रहो । अन्त में उसने अपनी छोटी बहन का विवाह करा दिया और स्वयं भी शादी करके आनन्दपूर्वक रहने लगा ।
संकलनकर्ता: डॉ. आनंद किशोर डाँगी
(झारखंडी लोक साहित्य के संवाहक, डिजिटल युग में सांस्कृतिक पुनरुत्थान के प्रेरक
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