the Santhal trible | झारखंड में संथाल जनजाति

संथाल ( SANTHAL )  जनजाति भारत की प्रमुख तथा प्राचीनतम जनजातियों में से एक है । जनसंख्या के आधार पर भारत में यह जनजाति दूसरे नम्बर पर है । झारखंड के इतिहास में संथाल जनजातियों का इतिहास अंग्रेजों के विरुद्ध आंदोलन  के रूप में जाना जाता है जिसमें तिलका मांझी , सिद्धू – कान्हू , चांद – भैरव आदि के नेतृत्व में अंग्रेजों और महाजनों के खिलाफ जबरदस्त विद्रोह संथाल समाज कर चुका है । इसके अतिरिक्त आजादी के पहले और आजादी के बाद भी यह समाज कई उतार – चढ़ाव झेल चुका है ।

Table of Contents

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झारखंड में संथाल ( SANTHAL ) का आगमन का यात्रा वृतांत(Arrival of Santhals in Jharkhand)

शरदचन्द्र राय के अनुसार ये लोग पहले पंजाब में रहते थे । वहीं से ये कालक्रमानुस आजमगढ़ , बुन्देलखण्ड , जयपुर , आगरा , पांचाल , कौशल , विदेह आदि का भ्रमण करते मगध से दक्षिणी बिहार ( यानी झारखण्ड ) में आये । झारखण्ड से कुछ लोग उड़ीसा , बंगाल औ आसाम ( त्रिपुरा ) में जाकर बस गये । संथाल किसी भी दिशा से आये हों किंतु वे दामोदर नदी के तटवर्ती स्थानों पर स्थायी रूप बस गये हैं । दामोदर नदी इनकी पवित्र नदी है

संथाल ( SANTHAL ) का निवास स्थान

संथाल ( SANTHAL ) का  मुख्य निवास स्थान झारखण्ड राज्य है । यह जनजाति झारखण्ड के अलावा बिहार , पश्चिम बंगाल , उड़ीसा , त्रिपुरा आदि राज्यों के साथ ही साथ पड़ोसी देश बंगाल देश में भी पायी जाती है । झारखण्ड राज्य में इसका मुख्य निवास स्थान संथाल परगना का क्षेत्र है । जिसमें दुमका , गोड्डा , पाकुर , राजमहल आदि क्षेत्रों में इनकी संख्या सबसे अधिक है । इसके अलावे झारखंड के अन्य जिलों में निवास करते हैं जैसे हजारीबाग , गिरीडीह , कोडरमा , बोकारो , धनबाद , पूर्वी तथा पश्चिमी सिंहभूम आदि ।

संथाल ( SANTHAL ) का प्रजातीय समूह

यह जनजाति प्रोटो ऑस्ट्रेलायड प्रजाति समूह की है । अर्थात संथाल साधारणतः नाटे कद के हुआ करते हैं , इनकी नाक चौड़ी और चिपटी होती है । ये बहुत परिश्रमी होते हैं ।

संथाल  की भाषा(Santhal language )

इस जनजाति की अपनी एक समृद्ध भाषा है जिसे ‘ संथाली ‘ कहा जाता है । यह भाषा विश्व की प्राचीनतम भाषा ” आस्ट्रिक ” भाषा परिवार की है । संथाल लोग गैर आदिवासी के साथ झारखण्ड की क्षेत्रीय भाषा “ खोरठा ” आसानी से बोल लेते हैं । अपनी भाषा में ये लोग अपने लिए होड़ शब्द का प्रयोग करते हैं जिसका अर्थ संथाली भाषा में ‘ मनुष्य ‘ है

संथाल  का गांव( Santhal Village)

संथाल अपने गांव को आतो कहते हैं। इनका गांव ऐसे स्थानों में होता है जहाँ कोई प्राकृतिक जलाश जैसे नदी तालाब हो । इनके गांव काफी साफ सुथरा और तरीके से व्यवस्थित होता हैं । इनके घर एक दूसरे से सटे होते हैं । मकाने को मिट्टी से बनाया जाता है ।  संथाल अपने घर को साफ – सुथरा रखने  लिए वे सबसे प्रसिद्ध भी है, घरों के दीवालों पर कलात्मक ढंग से फूलों और जानवरों के चित्र बने होते हैं जो इनकी कलात्मा रूचि और सौंदर्यप्रियता का परिचायक हैं । चित्रों में ज्यामितीय पुट भी मिलता है । घर की रंगा में काले और लाल रंग व्यवहार किया जाता है । ये रंग घर में ही तैयार करते हैं । काले की भूसी जलाकर गोबर में मिला दिया जाता है ।

संथाल ( SANTHAL ) का गांव मुख्य केंद्र स्थल

इनके गांव का  मुख्य केन्द्र स्थल है – मांझीथान , जोहरथान  होता है । उसीके घर के आस – पास एक चौकोर तथा मजबू चबूतरा होता है जिसे मांझीथान कहते हैं । यहां पर संथालों के पितर पत्थर के टुकड़ों के रूप में या सिन्दूर के टीकों के रूप में स्थापित होते हैं । कहीं – कहीं मांझीथान ऊपर से छाया भी रहत है । गांव की पंचायत बैठक यहीं हुआ करती है । इसे संथालों का सिंहासन बत्तीसी कहा जाता है जोहर थान – जोहरथान गांव से हटकर स्थित होती है ।

संथाल  का सामाजिक जीवन( Santhal Social Life )

संथाल समाज में पितृपक्षीय वंश परम्परा का प्रचलन है । पितृसत्तात्मक परिवार होने के कारण संथाल की संताने अपने पिता का गोत्र पाती है । संथाल लोग गोत्र को पारिस कहते हैं । संथाल में कुल 12 पारिस ( गोत्र ) है – हंसदा , मुरमु , किस्कु , टुडु , बासके , सोरेन , हेम्ब्रोम , मरांडी , बेसरा , चौटे , पौडिंया और बेदिया ।

संथाल  का विवाह – प्रणाली( the Santhal marriage )

संथाली भाषा में विवाह को बापला कहते हैं । संथालो में  शिवरात्रि के बाद ही विवाह किया जाता है और वैशाख माह ज्यादा शुभ होता है जिस कारण इस माह में शादी करना ज्यादा शुभ माना जाता है. सोमवार , बुधवार तथा शुक्रवार शुभ दिन माने जाते हैं ।

संथाल  का दहेज प्रथा

(Dowry System of Santhals)

वधू मूल्य , जिसे पोन कहा जाता है । पोन ( वधू मूल्य ) निर्धारित हो जाने पर विवाह की तिथि तय की जाती है । निर्धारित तिथि को वरपक्ष बारात लेकर आता है । वधू पक्ष वाले उन्हें गांव के सीमावर्ती क्षेत्र में ही दाराम दाह ( स्वागत ) करते हैं । बारात पक्ष अपने साथ भोजन का सामान लेते आते हैं और इसी सीमाना पर खाना बनाकर खाते हैं और दोपहर बाद नाचते गाते वधू के पिता के दरवाजे आते हैं ।

संथाल अर्थव्यवस्था (Economy of Santhal)

संथाल अर्थव्यवस्था का मुख्य आधार कृषि है । ये कुशल कृषक होते हैं । इनकी जमीने मुख्यतः दो तरह की होती हैं , खेत और बारी । खेतों में धान होता है तथा बारी में मकई , बाजरा , घंघरी , कुरथी , अरहर , सरसों , और सब्जियाँ होती है ।  इसमें कोदो , मडुआ , सुरगुजा आदि की खेती करते हैं । संथालों का जीवन संघर्षपूर्ण है । सुबह से शाम तक काम करना ही इनका जीवन है ।

Santhal tribe food संथाल का भोजन

संथाल जनजाति एक कृषक है जिस कारण इनके भोजन में चावल दाल मुख्य आहार है । अपने खेतों में तरह-तरह के फसलों का उत्पादन कर अपना भोजन का हिसाब बनाते हैं .

संथाल के धार्मिक प्रणाली Religious System of Santhals

संथाल के धार्मिक विश्वास  जीववाद , प्रकृतिवाद , यथार्थवाद , टोटम , टैबू , जादुई विश्वास , पूर्वज पूजा , बहुदेववाद का प्रभाव दिखाई पड़ता है ।

धार्मिक विश्वास की दृष्टि से इनकी तीन श्रेणियाँ है-

धार्मिक विश्वास की दृष्टि से इनकी तीन श्रेणियाँ है ( i ) बोंगा होड ( ii ) साफा होड और ( iii ) उम होड ।बोंगा होड सनातन संथालों को कहते हैं।साफा होड साफा होड़ सुधारवादी संथालों को कहते हैं । उम होड ईसाई संथालों को कहते हैं

संथाल का देवता देवता-

देवताओं में सबसे प्रमुख देवता चांदो ( Chando ) है । चांदो सूर्य को कहते हैं ।दूसरे महत्वपूर्ण देवताओं में ग्राम देवता का स्थान आता है । इसके तहत दो महिला और पांच पुरूष आते हैं । इनका निवास स्थान जाहेरथान है । इनमें से जाहेरा एरा ( मां देवी ) सबसे मुख्य है ।  पुरूष देवताओं में मारांगबुस दूसरा महत्वपूर्ण देवता है ।  बलि देना तथा मदिरा ढालना पूर्णतः वर्जित होता है । शराब या हँडिया की जगह फल – फूल , दूध , मिठाई , तुलसी पत्ता आदि का व्यवहार किया जाता है ।

संथाल का पर्व – त्योहार(Festival of Santhal )

पर्व – त्योहार संथालों के सभी त्योहार सामूहिक होते हैं  गांव का नायक ( पुजारी ) सबकी ओर से व्रत रखता है और पूजा अर्चना करता है ।  प्रत्येक गांव वाले अपनी – अपनी सुविधानुसार त्योहार मनाते हैं –

संथाल के त्योहारों में एरोक ( धान बुवाई के समय ) , हरियाड ( फसल खेत में लगने पर ) , जानपाड़ , करमा , सोहराय , सकरात , बाहा या सरहुल आदि प्रमुख त्योहार हैं । करमा , सोहराय , बाहा या सरहुल मुख्य त्यौहार है.

संथाल का राजनैतिक प्रणाली (Political System of Santhals)

संथाल का राजनैतिक प्रणाली  राजनीतिक व्यवस्था ‘ की छाप है । इनके बीच त्रिस्तरीय न्याय पद्धति प्रचलित है ( i ) गांव परिषद , ( ii ) पूरगना परिषद तथा ( iii ) शिकार परिषद ।  सरकारी न्याय पद्धति के अनुसार क्रमशः निम्न कोर्ट , उच्च कोर्ट तथा सुप्रीम कोर्ट कहा जा सकता है ।

गांव परिषद् : यह प्रत्येक गांव में होता है जिसके सदस्य गांव के सभी वयस्क व्यक्ति होते  हैं । परिषद के प्रमुख व्यक्ति मांझी , परमानिक , जोग मांझी , जोग परमानिक तथा गोडैत हैं । मांझी और परमानिक के पद वंशानुगत होते हैं । मांझी गांव का प्रधान होता है । परमानिक गांव का उप प्रधान है । जोग मांझी गांव का सरदार कहलाता है और ज़ोग परमानिक , सहायक ,सरदार  और सहायक सरदार के पदों का  चुनाव होता है । गोईत संदेश वाहक या दूत का काम करता है तथा बिहारी उगाहता है ।

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