Tribes of jharkhand | झारखंड की जनजातियां

झारखंड भारत में खनिज पदार्थों के साथ-साथ भारत में निवास करने वाले प्राचीन आदिवासियों के लिए प्रसिद्ध है। झारखंड में आदिवासियों का आगमन इतिहासकारों के अनुसार आर्य आक्रमण के कारण मैदानी भागों से भागकर जंगल पहाड़ों का सरण लिया ।इसी क्रम में कुछ आदिवासी छोटा नागपुर के पठार तथा कुछ गंगा के किनारे चलकर राजमहल की पहाड़ियों पर जा बसे। झारखंड में जनजातियों (Tribes of jharkhand) ने विभिन्न क्षेत्रों में अपना निवास स्थान बनाया असुर जनजाति नेतरहाट की पहाड़ियों में संथाल जनजाति संथाल परगना में मुंडा रांची क्षेत्रों में कॉल कोल्हान तथा चेरो पलामू इत्यादि क्षेत्रों में बसने लगे। झारखंड में निवास करने वाली जनजातियां कुछ अस्थाई होते हैं और कुछ अस्थाई अस्थाई निवास करने वाले जनजातियां कृषि कार्यों में संलग्न है और अस्थाई जनजातियां जंगल के कंदमूल खाकर अपना जीव को प्रदान करते हैं। झारखंड में जनजातियों (Tribes of jharkhand)की संख्या 32 है-

Table of Contents

असुर,

बनजारा

बड़ी बेदिया 

कंवर

बिरहोर ,

बैगा

भूमिज ,

चेरो

मुंडा ,

उराँव,

गोंड ,

गोड़ाइ ,

खड़िया

,खरवार,

खोंड ,

किसान,

कोरबा

,लोहरा ,

महली

माल पहाड़िया

बिंझिया ,

बिरजिया

परहिया ,

चीक

बड़ाईक

सौरिया पहाड़िया

हो 

करमाली

शबर ,

कोल,

कोरा

उराँव,

 

झारखंड में जनजातियों (Tribes of jharkhand) का अध्ययन का इतिहास

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folk dance

झारखंड की जनजातियों (Tribes of jharkhand) का प्रारंभिक विवरण ब्रिटिश शासकों ने दिया था। जिन में प्रमुख है डाल्टन 1882 में ,रिजले 1891 में ओमले 1906 तथा अन्य ब्रिटिश शासकों ने दीया। जनजातियों का अध्ययन में एक नया मोड़ लाने का श्रेय राय बहादुर शरद चंद्र राय को जाता है। इन्होंने झारखंड की जनजातियां पर कई शोध 1910 से 1942 तक  किए। इनका प्रथम पुस्तक  मुंडा एंड देयर कंट्री जो 1912 में प्रकाशित हुई थी उसके बाद मुंडा, उरांव जनजाति पर 1925 ईस्वी में पुस्तक  लिखे ।खड़िया जनजाति के विषय पर 1937 ईस्वी में अपने पुस्तके में उनके विषय में लिखे। राय बहादुर शरद चंद्र राय जैसे कई मानव शास्त्री सामने आए उनमें  डी एन मजूमदार एमके बॉस, चरण लाल मुखर्जी आदि महत्वपूर्ण है।

झारखंड में जनजातियों(Tribes of jharkhand) का विधिवत अध्ययन का प्रारंभ 1953 ईस्वी से शुरू हुआ जब रांची में जनजातीय कल्याण शोध संस्थान स्थापना की प्रक्रिया प्रारंभ हुई। 1954 ईस्वी में जनजाति कल्याण शोध संस्थान की स्थापना हो जाने से जनजातियों पर विधिवत अध्ययन प्रारंभ हो गया। जनजाति शोध संस्थान के द्वारा विश्व पटल पर आदिवासियों को पहचान दिलाने में इस संस्थान के द्वारा शोध के लिए तो पुस्तक काफी चर्चित रहा बिहार के आदिवासी दूसरा लैंड एंड यूपी ऑफ ट्रैवल बिहार इन दो पुस्तकों ने झारखंड की जनजातियों(Tribes of jharkhand) को उनकी सभ्यता संस्कृति भाषा का ज्ञान लोगों अन्य लोगों तक पहुंचाया

झारखंड में अनुसूचित जनजातियों (Tribes of jharkhand) का  सूचीबद्ध होने का इतिहास

झारखंड में अनुसूचित जनजातियों का श्रेणीवध होने का इतिहास काफी लंबा है। झारखंड की जनजातियां की पहली चर्चा 1872 के समय में मिलता है। 1872 में 18 जातियों को अनुसूचित श्रेणी में सूचीबद्ध किया गया।

  • 1931 ईस्वी की जनगणना में 26 जनजातियां को सूचीबद्ध किया गया। बिरिजिया, गोडायत,करमाली एवं परहरिया को शामिल किया गया
  • 1941 की जनगणना में बेगा और लोहर को सूची में सम्मिलित कर लिए जाने के बाद इसकी संख्या 29 हो गई
  • 1956 इसमें बंजारा को पुनः सूची में लाया गया तब अनुसूचित जनजातियों की संख्या 30 हो गई जो 2003 तक बना रहा है
  • 8 जून 2003 को कवर और कॉल को अनुसूचित जनजातियों की श्रेणी में रख लेने के बाद झारखंड में अनुसूचित जनजातियों की संख्या 32 हो गई है।

आदिम जनजातियों को सूचीबद्ध करने का इतिहास

झारखंड में 32 प्रकार की जनजातियों में 8 प्रकार के जनजातियां आदिम जनजातियां है। जिनका जीविका का  साधन मुख्यता आखेट है और निवास स्थान जंगल पहाड़ियों का इलाका है। इन जनजातियों को सूचीबद्ध करने के लिए कई आयोग का गठन किया गया। ढेबर आयोग ने 7 जनजातियों को आदिम जनजातियों की श्रेणी में रखा असुर,बिरहोर,खड़िया, कोरबा, माल पहाड़िया,सोर पहाड़िया, और साबर।शीलू की  दल ने ढेबर आयोग की सूची से केवल असुर और कोरबा को रखते हुए 5 नई जनजातियों को इसमें शामिल किया गया जिनमें बीरजिया चिक बढ़ई महली, और लोहरा। अनुसूचित जनजाति आयोग ने आदिम जनजातियों की सूची में 13 जनजातियों को शामिल कर लिया। स्वतंत्रता के बाद भारत सरकार ने 8 जनजातियों को आदिम जनजाति की श्रेणी में रखा जो इस प्रकार हैं असुर,विरहोर,बिरिजिया, कोरबा,माल पहाड़िया, परहिया, सोरिया पहाड़िया और सबर है।

झारखंड में जनजातियों(Tribes of jharkhand) का प्रकार
  • सरकार के द्वारा सूचीबद्ध 32 प्रकार की जनजातियां
  • धर्म के आधार पर झारखंड की 5 जनजातियों को वर्गीकृत किया गया है सरना हिंदू ईसाई मुसलमान एवं अन्य
  • अध्याय वास या जीविकोपार्जन के प्रणाली के आधार पर झारखंड में 8 प्रकार की जनजातियों को रखा गया हैशिकार संग्राहक शिकार संग्रह के साथ अस्थाई खेती अस्थाई या हल्की खेती सामान्य शिल्पकार पशु चारी वर्क लोक कलाकार मजदूरी करने वाले और नौकरी करने वाले

जनजातियों (Tribes of jharkhand) का निवास स्थान

झारखंड में निवास करने वाले अधिकांश जनजातियां झारखंड के जंगल पहाड़ एवं दुर्गम क्षेत्रों में निवास करते हैं लगभग 93% जनसंख्या ग्रामीण है जो झारखंड के विभिन्न पर्वतीय क्षेत्रों में निवास करते हैं।

जनजातीय गाँव प्रायः पहाड़ी के ऊपर ढलान पर या नीचे भी बसे होते हैं तथा मैदानी भाग में  प्रायः टॉड भूमि पर बसे होते हैं । गाँव बहुधा टोलों में बंटे होते हैं। गाँव छोटे होते हैं | गाँव की जनसंख्या कम होती है । औसतन एक गाँव में 40 से 80 परिवार रहते हैं । मुंडा , उराँव , संथाल , हो आदि के गाँव में 50 से 80 घर , संथाल के गाँव अपेक्षातया थोड़े छोटे , और खड़िया गाँव में 40-50 घर काफी हैं किन्तु पहाड़ी खड़िया के गाँव में मुश्किल से 10-12 झोपड़ियाँ पाई जाती हैं । घुमन्तु बिरहोर के अस्थायी झोपड़ियों के समूह होते हैं । अस्थायी गाँव 4-5 प्रायः जनजातीय गाँव की जनसंख्या 150 से 400 तक होती है । झारखण्ड का सबसे बड़ा जनजातीय गाँव नरमा और गुरदाड़ी है  | 

जनजातीय(Tribes of jharkhand) विवाह के प्रकार

 जनजातीय विवाह की विशेषता है कि लड़के वाले लड़की की खोज करते हैं और वधू मूल्य देते हैं । वधू – मूल्य विभिन्न जनजातियों में अलग – अलग नाम से जाना जाता है वधू – मूल्य देने की प्रथा विश्व की प्रायः सभी जनजातियों में है ।  जैसे-

विभिन्न जातियों के वधू – मूल्य इस प्रकार हैं-

‘ डाली -परहिया , किसान  , ‘गोनोंग ‘-मुंडा   ‘ पोन ‘ ( संथाल , करमाली , हो , सौरिया ) , ‘ पोटे ’ ( शबर ) , ‘ सुकदाम ‘ ( कंवर ) , ‘ हरजी ‘ ( बनजारा ) आदि ।

 जनजाजियों में कई प्रकार के विवाह होते हैं

 आयोजित विवाह ’ ,

झारखण्ड की जनजातियाँ(Tribes of jharkhand) ‘ सेवा – विवाह ‘ , ‘ अपहरण – विवाह ‘ , ‘ गोलट ‘ , ‘ राजी – खुशी , ‘ ‘ प्रेम – विवाह ‘ ‘ पलायन विवाह ‘ , ‘ ढुकू विवाह ‘ , आदि मुख्य है । पाँच – छः प्रकार के विवाह प्रायः अधिकांश जनजातियों में पाये जाते हैं । संथाल में आठ प्रकार के और बिरहोर में कम से कम दस प्रकार के विवाह होते हैं । शबर छोड़कर किसी जनजाति में बाल – विवाह की प्रथा नहीं है । किसान में ‘ परीक्षा – विवाह ‘ का एक अनोखा ढंग है जिसमें लड़का – लड़की 15 दिनों तक साथ रहकर एक दूसरे को जाँचते – परखते हैं ।

जनजातियों (Tribes of jharkhand)का देवता सर्वोच्च देवता

अधिकांश जनजातियों के सर्वोच्च देवता सूर्य है , मुडा , भूमिण असुर , आदि ‘ सिंगबोंगा ‘ , हो ‘ सिंगी ‘ , माल पहाड़िया ‘ बेरू ‘ , सबर ‘ यूडिंग सूम ‘ , महली ‘ सूरजी देवी ‘ , खोड ‘ बूरा पेनू ‘ या ‘ बेलापून ‘ तथा कुछ अन्य अलग नाम से पुकारते हैं । • उरांव सर्वोच्च देवता को ‘ धर्मेश ‘ , गोंड ‘ बूढ़ादेव ‘ , सौरिया पहाड़िया ‘ बेड़ो गोसाई , – करमाली ‘ गोराई ‘ , बिंझिया ‘ विंध्यवासिनी देवी ‘ , गोड़ाइत ‘ पुरबिया ‘ , बनजारा ‘ बनजारा देवी ’ , बधुडीपोलाठाकुर ’ , बिरहोर ‘ वीर ‘ , खड़िया ‘ गिरिंग ‘ , भूमिज ‘ गोराईठाकुर ‘ , खरवार , ‘ मुचुकरनी ‘ , खोंड ‘ बेलापून ‘ , लोहरा ‘ विश्वकर्मा ‘ , । इसके अतिरिक्त इनके यहाँ अनेक देवी – देवता हैं जिनमें ग्राम्य देवता जैसे हातु बोंगा , देस उली , चंडरी , चाल , कांदो आदि तथा गृह देवता ( ओडा बोंगा ) व पूर्वज विशेष महत्वपूर्ण हैं । जल देवता ( इकिर बोंगा ) , पहाड़ देवता ( बुरू बोंगा ) शिकार देवता ( चाँदी बोंगा ) आदि भी उल्लेखनीय हैं । पूर्वज हितैषी देवता की कोटि में होने के कारण धार्मिक विश्वास के केन्द्र बिंदु हैं । टोटेम ( जाति – चिह ) को भी पूज्य और श्रद्धा दृष्टि से देखते हैं ।

झारखंड में जनजातियों(Tribes of jharkhand) का मुख्य निवास क्षेत्र इस प्रकार हैं

झारखण्ड की जनजातियों का जाति वृतांत झारखण्ड की मुख्य जनजातियाँ एवं उनके मुख्य निवास क्षेत्र

संथालदुमका संथाल परगना क्षेत्र
उरांवगुमला
मुंडारांची
होपश्चिम सिंहभूम
खैरवारपलामू
लोहरारांची
खड़ियापश्चिम सिंहभूम तथा पूर्वी सिंहभूम
गॉडपश्चिम सिंहभूम तथा पूर्वी सिंहभूम
बेदियाहजारीबाग
शेरोंपलामू
करमालीहजारीबाग
चेक बड़ाईरांची
कोराबोकारो धनबाद
किसानपलामू
बिछियासिमडेगा
बातूनीपूर्वी सिंहभूम
बैगारांची गुमला
बिरहोरहजारीबाग बोकारो पलामू
  

 

प्रत्येक जनजातियों (Tribes of jharkhand)का सामाजिक धार्मिक आर्थिक और राजनीतिक जिसे गतिविधियों का वर्णन आगे लेखों में पढ़ सकते हैं

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भारतीय संविधान के अनुच्छेद

झारखंड में कितने जन जातियां हैं

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झारखंड में 32 प्रकार की जनजातियों में 8 प्रकार के जनजातियां आदिम जनजातियां है।

झारखंड में जनजातियों का प्रारंभिक विवरण किसने दिया

झारखंड की जनजातियों (Tribes of jharkhand) का प्रारंभिक विवरण ब्रिटिश शासकों ने दिया था

झारखंड में जनजातियों का अध्ययन किसने प्रारंभ किया

जनजातियों का अध्ययन में एक नया मोड़ लाने का श्रेय राय बहादुर शरद चंद्र राय को जाता है।

मुंडा एंड देयर कंट्री जनजातियों पर लिखी पुस्तक किसने लिखा है

राय बहादुर शरद चंद्र राय

आदिम जनजातियों का सूचीबद्ध किस आयोग ने किया

ढेबर आयोग ने 7 जनजातियों को आदिम जनजातियों की श्रेणी में रखा

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