झारखंड राज्य के चतरा जिला मुख्यालय से 15 किलोमीटर दूर गिद्धौर प्रखंड के मसूरिया गांव के घने जंगलों में सबसे पुराना मानव निर्मित स्मारक मेगालिथ (Magaliths) स्थल स्थित है। इस मेगालिथ स्थल का निर्माण नवपाषाण काल से ताम्र पाषाण काल के बीच किया गया था .बाद में मानव समाज के द्वारा इस परंपरा को बनाए रखा गया है। इस स्थल में आकर्षण का मुख्य केंद्र सैकड़ों की संख्या में गड़े पत्थर, पत्थरों पर गाय बछड़े के साथ चित्र, दही मथने का बड़ा नकाशीदार पत्थर मथानिया तथा समय निर्धारण के लिए खगोलीय स्थल के अलावे विशाल बरगद का पेड़ जो लोगों को आकर्षित कर रहा है । किंतु या स्थल आज भी घने जंगलों में गुम है पर सिर्फ स्थानीय लोगों के द्वारा ही पूजा-पाठ या पर्यटन का केंद्र बना हुआ है । प्रशासन के द्वारा इस स्थल को पर्यटन केंद्र के रूप में विकसित करने का कोई पहल या प्रयास नहीं किया गया है शायद इस स्थल के बारे में प्रशासन अनभिज्ञ है । मैं इस लेख के माध्यम से इस स्थल को लोगों के सामने लाना चाह रहा हूं ताकि प्राचीन मानव इतिहास के इस स्मारक को खोजबीन की जाए और पुरातत्वविदओं के द्वारा इस स्थल के विषय में विस्तृत जानकारी लोगों तक पहुंच सके ।


मेगालिथ (Magaliths) मेगालिथ ग्रीक शब्द से लिया गया है जिसका शाब्दिक अर्थ होता है बड़ा पत्थर यह परंपरा मानव इतिहास में महापाषाण काल से प्रारंभ हुई है जो आज तक मानव समुदाय द्वारा मनुष्य की मृत्यु उपरांत उसके स्मारक के रूप में निर्माण किया जाता आ रहा है । कुछ स्थानों पर इसका निर्माण गांव के सीमांकन बिंदु के रूप में किया जाता है या खगोलीय समय निर्धारण के उद्देश्य क्या जाता है । किंतु अधिकांश मेगोलिथ स्थान मानव समुदाय अपने पूर्वजों के अवशेष को स्थापित करने के उद्देश्य इस स्थल का निर्माण किया जाता रहा है. झारखंड राज्य के कई हिस्सों में इस प्रकार के स्थल प्रागैतिहासिक काल से आधुनिक काल तक महा पाषानिक भंडार पर्यटकों को आकर्षित करता रहा है ।
पुरातत्वविदो के अनुसार भारत में मेगालिथ स्थल का निर्माण 1580 पूर्व से 500 ईसवी पूर्व माना गया है पुरातत्वविदो के अनुसार प्रायद्वीपीय भारत तथा पूर्वोत्तर भारत में लगभग 2200 महा पाषानिक स्थल पाए जा सकते हैं उनमें अधिकांश स्थल की खुदाई नहीं की गई है या खोज नहीं की गई है शायद उनमें से गिद्धौर चतरा स्थित “मंधनियाया” स्थल भी हो सकता है .
मसूरिया गांव के घने जंगलों में स्थित में मेगालिथ (Magaliths) स्थल “मंधनिया “
इस स्थान की खास बात है कि गिद्धौर प्रखंड से 5 किलोमीटर पूर्व चतरा हजारीबाग मुख्य पद से 2 किलोमीटर अंदर मसूरिया गांव के घने जंगलों में एक बड़े बरगद पेड़ के नीचे हजारों की संख्या में बड़े पत्थरों का जखीरा गड़ा हुआ है . स्थल पर भूमि के ऊपर आड़ी तिरछी बड़े पत्थर नजर आते हैं और कुछ पत्थर भूमि के नीचे दबा पड़ा है । भूस्खलन या प्राकृतिक अपरदन के कारण पत्थर भूमि के ऊपर कुछ नजर आते हैं और कुछ गिरे हुए या जमीन के नीचे दबा हुआ है । इस स्थान पर बड़े शिलालेख भी पाया गया है जिसमें कुछ लिखा गया है और यह पठनीय है । इस स्थल की एक खास विशेषता है बलुआ पत्थर से निर्मित बड़ा माथाईन जिसका शाब्दिक अर्थ होता है दही मथने का बर्तन. और एक चिकने दार ग्रेनाइट पत्थर पर गाय बछड़े का दूध पीता चित्र जो लोगों को आकर्षित करता है. स्थानीय लोगों के अनुसार इस स्थान पर आकर पूजा पाठ करके मांगी गई मन्नत पूर्ण होता है । स्थानीय लोगों का कहना है की इस स्थल पर जो भी मांगी जाती है उसकी मुराद जल्द पूरा हो जाता है जिसके कारण यहां के लोग पूजा पाठ इस स्थल पर करते हैं.
“मंधनिया ” स्थल की मुख्य विशेषताएं:-
मेगालिथ (Magaliths)स्थल-
इस स्थल पर हजारों की संख्या में बड़े-बड़े पत्थर आड़े तिरछे गड़े हुए हैं जिस के संबंध में कहा जाता है की सबसे पुराने जीवित मानव निर्मित स्मारक है. यह परंपरा मानव इतिहास में महापाषाण काल से चला आ रहा है । आज भी इन इलाकों में मनुष्य की मृत्यु होने के उपरांत श्राद्ध कर्म के 12वीं तिथि को उसकी याद में पत्थर गाड़ने की परंपरा है और उसमें उस व्यक्ति का वृतांत लिखा रहता है । किंतु इस स्थल पर जो बड़े-बड़े पत्थर गड़े हुए हैं उसमें भी उसी प्रकार की झलक दिखाई पड़ती है और कुछ पत्थरों में लेख भी उत्कीर्ण है .
मंधाइन –
इस स्थल की खास विशेषता है मंधाइन अर्थात दही मथने दूध या दही मथने के लिए जिस वास्तु का प्रयोग किया जाता है उसे मंधाइन कहा जाता है. इस स्थल पर एक बड़े आकार का बलुआ पत्थर से निर्मित वृत्ताकार मंधाइन है. शायद इसी कारण इस स्थल का नामकरण भी मनधनिया के रूप में किया जाता है.मंधाइन की खास विशेषता है बड़े गहरे आकार का पत्थर को तराश कर बनाया गया है और उसके ऊपर में नकाशी माथाइन है. स्थानीय लोगों का कहना है की मंधाइन के ऊपर से माथाइन को हटा किया जाता है तो कुछ समय के बाद वह अपने आप निर्धारित सांचे में सेट हो जाता है. इस संबंध में स्थानीय लोगों का कहना है की इस चमत्कार को देखने के लिए मंधाइन के ऊपर से माथाइन को हटा लिया जय तो कुछ समय बाद अपने निर्धारित स्थल सेट हो जाता है।

गाय बछड़े का चित्र-
इस स्थल पर एक बड़े पत्थर पर गाय बछड़े का चित्र उत्कीर्ण है बछड़ा अपनी मां का दूध पी रहा है और और इसके आगे और पीछे गाय और बैल का चित्र भी है

GIDHAOUR

शिलालेख-
स्थल पर शिलालेख भी मिले हैं एक पत्थर पर कुछ लिखा गया है यह किस लिपि में है और क्या लिखा हुआ है यह शोध का विषय है. किंतु एक अनुमान लगाया जाता है कि जिस प्रकार वर्तमान समय मृत्यु संस्कार के बाद 12 में दिन मनुष्य की याद में जो स्मारक के रूप में पत्थर गाडे जाते हैं और उस पत्थर पर मृत व्यक्ति के बारे में लिखा जाता है उसी प्रकार प्राचीन काल में भी किसी व्यक्ति की मृत्यु होने के उपरांत उसकी याद में इस स्थल पर उसके बारे में इस शिलालेख पर लिखा गया हो या इस स्थल के बारे में इस शिलालेख पर कुछ लिखा गया हो. यह शोध का विषय है.
बरगद का विशाल पेड़
इस स्थल पर एक विशाल बरगद का पेड़ है और किसी पेड़ की छाया में यह मन धनिया स्थल स्थापित है. बरगद पेड़ के संबंध में कहा जाता है यह देखा भी जा सकता है कि इसके मूल जड़ नहीं है बरगद के धनिया ही जड़ का रूप धारण कर ली है और इस स्थल पर चारों ओर से बरगद की जड़ें आपस में जुड़े हुए हैं अर्थात ऐसा दृष्टिगोचर होता है की विशाल बरगद के पेड़ इस स्थल की सुरक्षा प्रदान कर रहे हैं.

खगोलीय स्थल-
प्राचीन काल के मनुष्य के द्वारा समय निर्धारण करने के लिए इस स्थल का प्रयोग खगोलीय स्थल के रूप में भी करते थे. जिसका अनुमान यहां पर गड़े हुए पत्थरों को देखकर लगाया जा सकता है.
धार्मिक स्थल के रूप में-
यह स्थल स्थानीय लोगों के लिए एक पवित्र धार्मिक स्थल के रूप में जाना जाता है । चारों और घने जंगलों से घिरा यह स्थल है. स्थानीय लोग दीपावली के सुबह यहां बड़े धूमधाम से पूजा पाठ करते हैं । इतना ही नहीं दीपावली के दिन भी यहां दिए जलाए जाते हैं और रामनवमी के दिन भी यहां बजरंगबली की पूजा एवं द्व्जा लगाए जाते हैं. एक ऐसी मान्यता है की इस स्थल पर आकर मांगी मन्नते होता है जिस कारण इस स्थल को मन्नत स्थल भी कहते हैं. इस स्थल के संबंध में स्थानीय लोगों के द्वारा यह पता चला है महुआ के दिन में जब महुआ का फूल यहां गिरता है तो लोग उसे तब तक नहीं उठाते हैं जब तक महुआ का फूल गिरना बंद नहीं हो जाता है उसके बाद जारा महुआ को उठाने के पूर्व इस स्थल पर पूजा पाठ कर लेते हैं उसके बाद उसे घर लाते हैं.
यहां कैसे पहुंचे –
झारखंड राज्य के राजधानी रांची से 140 किलोमीटर, हजारीबाग जिला मुख्यालय से 40किलोमीटर, चतरा जिला मुख्यालय से 20 किलोमीटर तथा गिद्धौर प्रखंड मुख्यालय से 5 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है .यह स्थल चतरा हजारीबाग भाया कटकमसांडी मार्ग पर स्थित है. गिद्धौर प्रखंड मुख्यालय से हजारीबाग की ओर जाने वाली सड़क मार्ग पर 5 किलोमीटर जाने के उपरांत मुख्य सड़क से दक्षिण दिशा की ओर स्थित मसूरिया गांव के बगल में घने जंगलों के बीच यह स्थल स्थित है. मसूरिया गांव तक बड़े गाड़ी से या किसी भी वाहन से पहुंचा जा सकता है, किंतु इस स्थल तक पहुंचने के लिए मसूरिया गांव से 2 किलोमीटर अंदर जंगल की ओर पैदल जाना पड़ता है . यहां पहुंचने के लिए इस गांव के स्थानीय लोगों का सहारा लिया जा सकता है.
यह स्थल भले ही स्थानीय लोगों के लिए स्थानीय पवित्र स्थल माना जाता है किंतु इतिहास की दृष्टि में यह स्थल मेगालिथ स्थल है जो अति प्राचीन काल में निर्मित हुआ है. यहां गाड़े पत्थर यह साबित कर रहे हैं की इस स्थल पर भी पाषाण काल के लोग रहते थे और आज उसके वंशज इन क्षेत्रों में रह रहे हैं और इनका अर्थव्यवस्था प्राचीन मनुष्यों की तरह कृषि प्रधान एवं पशुपालक है. घने जंगलों में स्थित होने के कारण यहां यातायात की उचित व्यवस्था नहीं है जिस कारण यह ऐतिहासिक स्थल स्थानीय लोगों तक ही सीमित है । इस लेख के माध्यम से इस स्थल को मैं लोगों तक सामने लाने का प्रयास कर रहा हूं जो इस लेख को पढ़ रहे हैं उनसे मेरा आग्रह है की इस स्थल को अधिक से अधिक लोगों तक पहुंचाएं ताकि प्रशासन की नजर इस स्थल पर पड़े. तथा इस स्थल को एक पर्यटक स्थल के रूप में विकास हो सके.
आलेख एवं खोज :
डॉ आनंद किशोर दांगी
(क्षेत्रीय फिल्म निर्माता निर्देशक ,जनजातिय एवं क्षेत्रीय भाषा साहित्यकार ,गिधौर चतरा ,झारखण्ड)
महापाषाण काल के यह स्थल का वीडियो यंहा देख सकते है
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