झारखंड राज्य के कौलेश्वरी पर्वत पर बिखरा पड़ा है इतिहास
झारखंड राज्य के चतरा जिला अंतर्गत हंटरगंज प्रखंड मुख्यालय के दक्षिण पश्चिम की ओर 10 किलोमीटर दूर पर 1575 फुट की ऊंचाई वाला पहाड़ पर बिखरा पड़ा है इतिहास । यंहा हिंदू, बौद्ध , जैन धर्मों का इतिहास बिखरा पड़ । यह स्थल चतरा जिला से 25 , किलोमीटर हजारीबाग से 85 किलोमीटर ,राँची से 185 और गया से 75 किलोमीटर दूर स्थित है।सड़क मार्ग से आने वाले ग्रेडड्रंक रोड पर डोभी से घंघरी तथा दतार मुड़कर अथवा घंघरी से सीधे भी माँ कौलेश्वरी के मन्दिर(Maa kouleshwari Mandir) तक पहुंचा जा सकता है । यह पहाड़ विध्याचल पर्वतमाला की ही एक शृंखला है
“ हस्तेयोर्दण्डिनी रसेदम्बिका चङ्गलीषु च ।
नरवाछुलेश्वरी रक्षेत्कुक्षौ रक्षत्कुलेश्वरी ।। ”
(दुर्गा सप्तशती वचन स्तोत्र श्लोक संख्या -28 )

इससे यह स्पष्ट होता है कि देवी भगवती को कुलेश्वरी कहा जाता है । वास्तव में कोल्हुवा पहाड़ तीन धर्मों – हिन्दू , बौद्ध और जैन का एक अनूठा स्थल है । कोल्हुवा पहाड़ के शीर्ष पर न केवल माँ भगवती कौलेश्वरी का प्राचीन मन्दिर एवं महाभारतकालीन अनेक महत्वपूर्ण चिह्न उपलब्ध हैं , बल्कि जैन धर्म के महान तीर्थंकरों द्वारा यह पर्वत साधना स्थल के रूप में भी उजागर होता है । जैन धर्म के तीर्थंकरों की अनेक पाषाण प्रतिमाएँ जगह – जगह स्थापित हैं । इन प्रतिमाओं ऋषभनाथ जी , पार्श्वनाथ जी , मन्मथनाथ जी आदि तीर्थंकरों की प्रतिमाएँ शामिल हैं । इतिहास के अध्ययन से ज्ञात होता है कि कोल्हुवा पहाड़ को कोटिशिला के नाम से जाना जाता था । समय के साथ ही इसका नाम में कोटिशिला , कोटिशिलवा से परिवर्तन होते – होते कोल्हुवा हो गया । इसका उल्लेख डिस्ट्रिक्ट गजेटियर ऑफ . हजारीबाग 1957-290 में है।
कौलेश्वरी पर्वत पर मुख्य आकर्षण
मुख्य मन्दिर(Maa kouleshwari Mandir) :-
देवी भगवती को कुलेश्वरी का मुख्य चोटी पर स्थितहै। मन्दिर की लम्बाई साढ़े छह फुट और चौड़ाई भी साढ़े छह फुट ही है । मन्दिर की ऊँचाई साढ़े चार फुट है । मन्दिर का द्वार छोटा है । इसमें दो खिड़कियाँ हैं एवं चार ताखा हैं | द्वार पूर्व की ओर है । चौखट पत्थर का बना हुआ है तथा मन्दिर का निर्माण चौड़ी ईंटों तथा पत्थर और चूना आदि से किया गया है । माँ भगवती कौलेश्वरी (Maa kouleshwari Mandir) की प्रतिमा काले पत्थर को तराशकर बनायी गयी है । इसकी ऊँचाई ढाई फुट और चौड़ाई सवा फुट है । प्रतिमा चतुर्भुजी है । बाएं दाहिना पग महिषासुर के मस्तक पर है तथा बायां चरण पूंछ के पास है । मस्तक पर हाथों में त्रिशूल एवं शंख और दाहिने हाथों में चक्र एवं गदा हैं । मुखमण्डल गोलाकार एवं छोटा है । कानों में बाली , हाथों में कंगन और पैरों में नूपुर तथा गले में सुन्दर कंठहार है ।
यह उल्लेखनीय है कि सम्पूर्ण कौलेश्वरी प्रांगण में कौआ , शृंगाल ( सियार ) और सेवाल उपलब्ध नहीं होते ।
झील या तालाब :-
मुख्य मन्दिर से लगभग 100 फुट की दूरी पर झील है । यह 900X900 • फुट तथा 30 फुट गहरी है।यह झील आज तक कभी भी नहीं सूखी है । झील के तीन तरफ घाट हैं , कहा जाता है – सरोवर का शीतल जल औषधीय गुणों से परिपूर्ण होने के परिणामस्वरूप उदर रोगों के लिए संजीवनी है । झील का जल स्वच्छ रहता है । इस झील में लाल कमल फूल बहुतायत से उपलब्ध है । माँ कौलेश्वरी (Maa kouleshwari Mandir) को लाल कमल फूल अधिक प्रिय है ।
आकाशलोचन:-
भगवती कौलेश्वरी मन्दिर (Maa kouleshwari Mandir ) के उत्तर – पूर्व कोण में आकाशलोचन नामक एक खाई है । ऐसी मान्यता है कि खाई की गहराई अथाह है । मनोरम स्थल है जो , समतल है एवं बीच में दरार है । इस दरार को छलांग कर पार करना होता है ।एसा माना जाता है की महाभारत काल में पांचो पांडव के द्वारा अज्ञातवास के दौरान लक्ष्यागृह का निर्माण यंही कराया गया था। जंहा से पांचो पांडव एवं कुंती इस दरार से बहार निकली थी ।
अर्जुन कुआं:-
झील के किनारे एक कुआं है । जिस में तीर के निशान है इस निशान से स्वच्छ जल की धरा बहते रहता है ।
अर्जुनवाण (वाण गंगा):-
लेढो ग्राम की ओर से पहाड़ चढ़ने के मार्ग में अर्जुनवाण स्थल पड़ता है । इसी के समीप नकटी भवानी नामक स्थल है , जिसके बारे में कथाएँ प्रचलित हैं विशालकाय एक चट्टान के छिद्रों से लगातार स्वच्छ जल झरता रहता है , इसे लोग अर्जुनवाण के नाम से पुकारते हैं । अज्ञातवास के समय इसी स्थल पर अर्जुन वाणों के संधान का अभ्यास करते थे परिणामस्वरूप चट्टानों में अनेक छिद्र हो गये ।
मण्डवा – माण्डवी:-
मण्डवा – माण्डवी अर्थात् मड़वा – मड़ई ” के नाम से जाना जाता है । यहाँ 3 x 3 फुट पत्थर को तराश कर एक खोखली वेदी बनायी गयी थी। यही वह स्थल है , जहाँ राजा विराट ने बलि दी थी । इस वेदी का सम्बन्ध अर्जुन अभिमन्यु का राजा विराट की पुत्री उत्तरा के साथ विवाह की स्मृति से जुड़ा हुआ है ।एक अन्य किंवदन्ती के अनुसार मण्डवा – माण्डवी ( मड़वा – मड़ई ) का सम्बन्ध अर्जुन के पुत्र अभिमन्यु एवं राजा विराट की पुत्री उत्तरा के साथ विवाह की स्मृति से है ।
भीम भार:-
कि अज्ञातवास एक दंत कथा में यहीं दर्शनीय स्थल भीमभार के सम्बन्ध में बताया जाता है समय पाण्डवों के आवास के निर्माण के लिए भीम जब भार से पत्थर ढोकर ला रहे थे तो भार टूट गया और दो बड़ी चट्टानें वर्तमान स्थान पर गिर कर स्थिर हो गयीं ।
विशाल गुफा :-
भगवती कौलेश्वरी (Maa kouleshwari Mandir ) के मन्दिर से थोड़ी दूर पर एक विशाल गुफा है । जिसमें पद्मासनित और काले पत्थरों से निर्मित नौ सर्पछत्रों से युक्त प्रतिमा है । हिन्दुओं द्वारा यह भैरव – प्रतिमा के रूप में पूजी जाती है । जैनियों की धारणा के अनुसार यह प्रतिमा 23 वें तीर्थंकर पार्श्वनाथ की प्रतिमा होने का प्रमाण का दावा करते हैं । इस प्रकार हटवरिया ग्राम की ओर से पर्वत पर चढ़ते समय मार्ग में जिस प्रख्यात प्रतिमा के दर्शन होते हैं , उसे हिन्दू द्वारपाल तथा जैन धर्मावलम्बी पार्श्वनाथ जी की ही प्रतिमा मानते हैं ।
पाँच मूर्त्तिया :-
कुछ अन्य महत्वपूर्ण एवं दर्शनीय मूर्त्तिया है । एक ही विशाल शिलाखण्ड को तराश कर बनायी गयी पाँच मूर्त्तियों को हिन्दू पंच पाण्डव बताते हैं । जैन धर्मावलम्बी इसे पाँच जैन तीर्थंकर अभिनन्दननाथ जी , मन्मथनाथ जी , नेमीनाथ जी , महावीर स्वामीजी तथा पार्श्वनाथ जी की प्रतिमाएँ मानते हैं । पाँच नग्न प्रतिमाएँ पाँच पाण्डव से अधिक पाँच दिगम्बर तीर्थंकर की ही छवि उजागर करती हैं ।
गौतम बुद्ध की ध्यानस्थ मुद्रा में उत्कीर्ण कुछ प्रतिमाएँ हैं :-
पर्वत शिखर पर पत्थरों पर गौतम बुद्ध की ध्यानस्थ मुद्रा में उत्कीर्ण कुछ प्रतिमाएँ हैं । पत्थर को तराश कर प्रतिमाएँ उत्कीर्ण की गयी हैं , जो अत्यन्त ही मनोहारी हैं । इनकी निर्माण शैली से यह स्पष्ट होती है कि ये प्रतिमाएँ सातवीं शताब्दी की है ।ऐसी मान्यता है कि अपनी अरण्य – साधना के क्रम में गौतम बुद्ध ने इस तपोभूमि में तपस्या की थी । बौद्ध साहित्य के अनुसार यह एक बौद्ध तीर्थस्थल था । 6 ठी एवं 7 वीं शताब्दी ई . पूर्व तक यह स्थल बौद्ध तपोभूमि के ” रूप में प्रख्यात रहा था ।
पाण्डुलिपि :-
पास ही नीम के पेड़ के निकट एक पाण्डुलिपि प्राप्त हुई , जिससे भगवती कौलेश्वरी की प्रतिमा के सम्बन्ध में पूर्ण जानकारी मिली । तत्पश्चात आस – पास के गाँववालों ने मुख्य मन्दिर का निर्माण करवाया ।
चरण चिह्न:-
यहाँ एक चट्टान पर दो चरण चिह्न हैं । इन चिह्नों के सम्बन्ध में हिन्दू धर्मावलम्बियों की मान्यता है कि ये भगवान विष्णु के चरण चिह्न हैं । उनका मानना है कि भगवान विष्णु का एक पद चिह्न विष्णुपद गया में है तथा दूसरा चरण चिह्न पद यहाँ है | उनका विश्वास है कि दूसरा चरण चिह्न किसी ने किसी विशेष उद्देश्य से बगल में ही उकेर दिया है । जैन धर्मावलम्बी इसे 23 वें तीर्थंकर पार्श्वनाथ के चरण चिहून मानते हैं |
सप्तऋषि(सातघरवा):-
सप्तऋषि मुख्य मन्दिर के दक्षिण में एक छोटा तालाब है । इसके दक्षिण की ओर एक पहाड़ी है , जिसमें लगातार सात गुफाएँ हैं । इन गुफाओं को सातघरवा भी कहा जाता है । इन गुफाओं को हिन्दू धर्मावलम्बी सप्त ऋषि – कश्यप , अत्रि , भरद्वाज , गौतम , जमदग्नि , वशिष्ठ एवं विश्वमित्र की तपोभूमि मानते हैं , जबकि जैन धर्मावली इसे विभिन्न तीर्थंकरों की तपोभूमि के रूप में मान्यता देते हैं ।
चहारदीवारी:-
माँ कौलेश्वरी (Maa kouleshwari Mandir )के प्रांगण में पहाड़ की चोटी पर एक चहारदीवारी का प्रमाण मिला है जो किसी राज प्रासाद के प्राचीर होने की संभावना प्रतीत होती है ।
शिवमन्दिर :-
मण्डवा – माण्डवी से सटा एक छोटा पोखर ( तालाब ) है ,और इसी के पास एक नवनिर्मित शिवमन्दिर है ।
धर्मशाला:-
मण्डवा – माण्डवी से सटा एक छोटा पोखर ( तालाब ) है और इसी के एक नवनिर्मित शिवमन्दिर है । एसी के पश्चिम में 6 कमरें की एक धर्मशाला है ।
दस खड़ी मूर्त्तियाँ :-
आकाशलोचन के समीप एक विशाल चट्टान पर 10 खड़ी मूर्त्तियाँ उत्कीर्ण हैं जो एक ही आकार – प्रकार की हैं | हिन्दू इसे विष्णु के दशावतार – कच्छावतार , मत्स्यावतार , बाराहवतार , नरसिंहावतार , वामनावतार , परशुरामावतार , कृष्णावतार , बुद्धावतार तथा कलिअवतार बताते हैं । वहीं दूसरी ओर जैन धर्मावलम्बियों के अनुसार ये ऋषभ देव से शीतला स्वामी तक दस तीर्थंकरों श्रीऋषभनाथ , श्रीअजीतनाथ , श्रीसम्भवनाथ , श्रीअभिनन्दननाथ , श्री सुमतीनाथ , श्रीपद्म प्रभु , श्रीसुपार्श्वनाथ , श्रीचन्द्र प्रभु , श्रीपुष्पदंत एवं श्रीशीतलनाथ के प्रतिमा बताते है ।
हवनकुण्ड एवं शिवलिंग :-
हवनकुण्ड एवं शिवलिंग मुख्य मन्दिर(Maa kouleshwari Mandir) से लगभग 12 फुट उत्तर में एक हवनकुण्ड एवं शिवलिंग स्थापित है। श्वेत पत्थर से शिवलिंग का निर्माण किया गया है । हवनकुण्ड से सा हुआ एक गड्ढा है जिससे झील का पानी बाहर निकलता है।
निष्कर्ष तक कहा जा सकता है कि झारखंड का माँ कौलेश्वरी (Maa kouleshwari Mandir ) पर्यटन स्थल अपने आप में एक ऐसा अनूठा स्थल है जहां इतिहास को समेटे हुए है। हिंदुओं जैन बौद्ध धर्म के आस्था हो जीवित रखना है.तथा प्रकृति की अद्भुत कारीगरी लोगो को आकषित करती है।