टमाटर की उन्न्त तकनीक उन्नत किस्म इत्यादि तरीके से खेती करने की विधि Tamatar ki kheti ke bare mein in hindi
टमाटर सब्जियों में सबसे ज्यादा उपयोग में लाए जाने वाला सब्जी है जिस कारण विश्व के सभी भागों में टमाटर की खेती ( tamatar ki kheti ) की जाती है। टमाटर की खेती भारत में किसानों के द्वारा अधिक की जाती है किंतु वैज्ञानिक एवं तकनीकी ज्ञान के अभाव के कारण उन्नत एवं अधिक फसल का उत्पादन नहीं ले पाते हैं। भारत के भारत के राज्यों में राजस्थान कर्नाटक बिहार झारखंड उड़ीसा उत्तर प्रदेश महाराष्ट्र मध्य प्रदेश पश्चिम बंगाल आंध्र प्रदेश जैसे राज्यों में प्रमुख रूप से टमाटर की खेती (Tomato cultivation) की जाती है। यदि टमाटर की खेती वैज्ञानिक ढंग से एवं उन्नत तकनीक उन्नत किस्म इत्यादि तरीके से उत्पादन करने पर अधिक मुनाफा और उत्पादन प्राप्त किया जा सकता है।

फोटो :- pixyabay
टमाटर के बारे में सामान्य जानकारी
- सब्जी में सबसे अधिक उपयोग टमाटर का प्रयोग किया जाता है । टमाटर की जन्मभूमि मैक्सिको है।
- टमाटर लाल हरा सफेद और नारंगी रंगों में उत्पादन किया जाता है सबसे अधिक एवं लोकप्रिय लाल रंग की प्रजाति है।
- टमाटर का वैज्ञानिक नाम सोलानूम इयकोपेर्सिकुम है।
- टमाटर में विटामिन ए और सी प्रचुर मात्रा में पाया जाता है।
- टमाटर खाने से शरीर में एसिडिटी खत्म हो जाता है।
- प्रातः काल नाश्ते में एक गिलास टमाटर के ताजे रस में थोड़ा शहद मिलाकर पीने से शारीरिक कमजोरी दूर होती है।
- टमाटर खाने से असामान्य शक्ति में वृद्धि होती है।
- टमाटर का जूस प्रतिदिन एक गिलास पीने से पीलिया अर्थात पांडु रोग जल्द ठीक हो जाता है।
- टमाटर का सूप चटनी खाने से भूख बढ़ती है।
- सुबह खाली पेट में टमाटर में काली मिर्च और नमक लगाकर खाने से पेट के कीड़े मरकर बाहर निकल जाते हैं।
टमाटर में पाए जाने वाले पोषक तत्व
प्रोटीन 1.9 ग्राम | कैलोरी 23.0 मिलीग्राम |
कैल्शियम 20.0 मिलीग्राम | चर्बी 0.1 ग्राम |
खनिज पदार्थ 0.6 ग्राम | मैग्नीशियम 15.0 मिलीग्राम |
सोडियम 45.8 मिलीग्राम | लोहा 1.8 मिलीग्राम |
विटामिन ए 32.0 आई यू | पोटेशियम 114.0 मिलीग्राम |
सल्फर 24.0 मिलीग्राम | तांबा 0.19 मलीग्राम |
राइबोफ्लेविन 0.01 मिलीग्राम | निकोटिन एसिड 0.4 मिलीग्राम |
क्लोरीन 38.0 मिलीग्राम | थायमीन 0.07 मिलीग्राम |
भूमि का चुनाव
टमाटर उत्पादन करने के लिए उपजाऊ युक्त भूमि होना आवश्यक है। वर्षा ऋतु में टमाटर उगाने के लिए ढलान युक्त भूमिका उपयोग किया जाना आवश्यक है ताकि वर्षा जल की निकासी हो सके। भूमि का पीएच मान 6 से 7 के बीच होना चाहिए।
![]() | ![]() | ![]() |
फोटो pixyabay
अर्का रक्षक:- टमाटर की सबसे उन्नत किस्म है। इस किस्म की खास विशेषता यह है कि इसमें कीड़े मकोड़े नहीं लगते हैं और इस फसल का बाजार में ज्यादा मांग है। फलों का वजन 90 से 100 ग्राम तक होता है और प्रति हेक्टर 75 से 80 टन तक किया जा सकता है। |
अर्काआभा :- इसके फसल गोल चिकने 70 से 80 ग्राम वजन के होते हैं। |
अर्का आलोक:- इसके फसल गोलाकार हल्की उभरी हुई धारियां वाले 70 से 80 ग्राम वजन के होते हैं |
अर्का सम्राट :- इसके फसल गोलाकार लाल नारंगी रंग के होते हैं फसल का वजन 90 से 110 ग्राम का होता है प्रति हेक्टर 80 से 50 टन उत्पादन किया जाता है। |
पूसा रोहिणी:- इसके फसल लालगोला चिकने होते हैं।। 60 से 70 ग्राम तक का फल लगता है। प्रति हेक्टर 41 टन से 50 टन होता है। |
अर्का अपेक्षा:- टमाटर की इस किस्म का उपयोग 100 स्केचअप इत्यादि बनाने के लिए किया जाता है। इसके फल 70 से 80 ग्राम तक के होते हैं तथा प्रति हेक्टेयर उत्पादन 800 से 900 क्विंटल होता है। |
पूसा हाइब्रिड 8:- टमाटर की इसमें किस्म का उत्पादन पंजाब उत्तर प्रदेश बिहार झारखंड के लिए उपयुक्त है। इसके फल 70 से 80 ग्राम तक होते हैं तथा आप 43 से 45 टन प्रति हेक्टेयर उत्पादन किया जा सकता है। |
नर्सरी तैयार करना या पौधे तैयार करना
टमाटर के पौधे तैयार करने के लिए :-
- बीज सामान्य – 350-400 ग्राम / हेक्टेयर , बीज संकर – 200-250 ग्राम / हेक्टेयर पर्याप्त होता है ।
- टमाटर की वर्षाकालीन फसल के लिए अप्रैल के प्रथम सप्ताह से ही पौधशाला की तैयारी प्रारंभ कर देनी चाहिए ।
- भूमि की अच्छी तरह जुताई करके 5 मी . लम्बी तथा 1 मी . चौड़ी क्यारियाँ बनायें ।
- एक हेक्टर क्षेत्र की रोपाई लिए 25-30 क्यारियों की आवश्यकता होगी । तत्पश्चात् 4-6 टोकरी अच्छी तरह सड़ी हुई गोबर की खाद प्रति क्यारी की दर से मिलायें ।
- अप्रैल माह के तृतीय सप्ताह में 15:15:15 का क्रमशः नत्रजन फॉस्फोरस और पोटाशयुक्त मिश्रण 500 ग्रा . प्रति क्यारी की दर से बुआई के एक दिन पूर्व मिला दें ।
- इंडोफिल एम . – 45 दवा का 2 ग्रा . / ली . की दर से बना घोल कयारियों की सतह पर छिड़क कर उन्हें भिंगा ( ड्रैचिंग ) कर बारीक खाद एवं मिट्टी के मिश्रण से ढंक दें एवं फुहारे से सिंचाई करें ।
टमाटर के पौधे की रोपाई
खरीफ में टमाटर की रोपाई का उचित समय मई का तीसरा सप्ताह उचित माना गया है , लेकिन झारखंड में पूरे वर्ष टमाटर की खेती होती है । रोपाई के लिए ढाल की विपरीत दिशा में लगभग 3-4 मी . आकार की क्यारियाँ( गंडारी) बनायें । क्यारियों को समतल करने के पश्चात् 1 मी . की दूरी पर 20 सें . मी . चौड़ी नालियाँ (झोरा) बनायें तथा नालियों में बाँयी ओर 30 सें . मी . दूरी पर पौधों की रोपाई करें । इस प्रकार पौधों की प्रारम्भिक अवस्था में मात्र इन नालियों में सिंचाई करना पर्याप्त होगा ।
पौधे रोपाई के बाद देख रेख –
वर्षा प्रारम्भ होने के साथ ( जून के प्रथम सप्ताह में ) पहली गुडाइ करते समय नाली को पौधों से 20 सें . मी . दाहिनी ओर स्थानान्तरित करें तथा पौधों के नीचे के भाग को मिट्टी भरकर समतल कर दें । बीस दिन पश्चात् पुनः नाली को 20 सें . मी . दाहिनी ओर स्थानान्तरित कर देना चाहिए।
खाद एवं उर्वरक
खाद एंव उर्वरक जैविक खाद की पूर्ति के लिए 20 टन / हे की दर से सड़ी हुई गोबर की खाद का प्रयोग करना चाहिए । इसके अतिरिक्त फसल में 75-100 कि.ग्रा . , फॉस्फोरस एवं पोटाश युक्त उर्वरकों की पूरी मात्रा के साथ आधी मात्रा यूरिया मिलाकर रोपाई के एक दिन पूर्व खेत मे मिला देने आवश्यक होता है। शेष यूरिया का प्रयोग फसल में दो बार क्रमशः रोपाई के 20-25 एवं 40-50 दिन पश्चात् पहली एवं दूसरी (खुदाई ) गुड़ाई के समय करना चाहिए।
सिंचाई
टमाटर लगे खेत की उचित समय पर सिंचाई करना बहुत ही आवश्यक है। स्टेक फसल ( Stake crops ) एवं गर्मी की फसल में सिंचाई 7 दिन के अन्तर पर आवश्यकतानुसार करनी चाहिये तथा जमीन की फसल(Ground crops ) एवं जाड़े की फसल के लिये सिंचाई 10 दिन के अन्तर पर आवश्यकतानुसार करनी चाहिये । कटाई , छटाई , और स्टेकिंग ( Pruning , training and staking ) : बाजार में टमाटर को शीघ्र उपलब्ध कराने के लियं पौधों की कटाई करके एक तने ( single stem ) के रूप में करके स्टेक से बाँध देते हैं। इसको सहारा देना(staking ) भी कहते हैं । इससे पौधा अधिक बढ़ता है तथा टमाटर बड़ा तथा अधिक पैदावार मिलती है। कटाई – छटाई के बहुत से तरीके हैं , परन्तु मूख्य रूप से एक तने के रूप में ( single stem training ) ही करते हैं। कटाई तथा स्टेकिंग का खर्च अधिक होने के कारण सभी उत्पादनकर्ता इसको अपना नहीं पाते।
टमाटर में लगने वाले कीड़े मकोड़े से पौधा का सरंक्षण
फलबेधक या शीर्ष छेदक : कीड़ा( पिल्लू ) फल में या शीर्ष पर पत्ती के जुड़े होने के स्थान पर छेद बनाकर घुस जाते हैं और उसे खाते । प्रभावित फल खाने लायक नहीं रहते । इस से बचाव के लिए : थियोडाइकार्ब 75 % डब्लू.पी . 1 ग्रा . / ली . या फ्लूबेन्डियमाइड 480 एस.सी. 0.25 मि.ली. प्रति लीटर पानी में घोल . कर छिड़काव करें । |
लीफ माइनर : – ये कीट बहुत छोटे होते हैं जो पत्तियों के ऊपरी सतह में टेढ़ी – मेढ़ी सुरंग बनाकर उतकों को खाते रहते हैं । रोकथाम : थायोमेथोजाम 25 % डब्लू.जी . 1 ग्राम प्रति 3 लीटर पानी में घोलकर 15 दिन के अंतराल में छिड़काव करते रहना चाहिए। |
लीफ माइनर : – ये कीट बहुत छोटे होते हैं जो पत्तियों के ऊपरी सतह में टेढ़ी – मेढ़ी सुरंग बनाकर उतकों को खाते रहते हैं । रोकथाम : थायोमेथोजाम 25 % डब्लू.जी . 1 ग्राम प्रति 3 लीटर पानी में घोलकर 15 दिन के अंतराल में छिड़काव करते रहना चाहिए। |
पत्ती फुदका : पती फुदका नाम का कीड़ा शिशु एवं वयस्क पत्तियों पर चिपककर रस चुसते हैं । अधिकता की अवस्था में पत्तियों पर छोटे – छोटे धब्बे दिखाई देते हैं । रोकथाम : बुप्रोफेन्जिन 59 % 1 मि.ली. 15 दिनों के अंतर पर दो बार 1 लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़कना चाहिए । |
पौधशाला में बिचड़ों का मरना ,मिट्टी की सतह से कुछ उपर तक सड़ जाना । रोकथाम : बीजोपचार तथा पौधशाला में क्यारियों की ब्लूकॉपर दवा की 2 से 3 ग्राम 1 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें । |
अगेती अंगमारी : आरंभ में पत्तियों तथा तनों पर काले भूरे रंग के धब्बा बनना । उग्रता की स्थिति में धब्बे का एक दूसरे से मिलकर फैलना तथा पत्तियों का पीला पड़कर गिरना फलों का ग्रसित होना । रोकथाम : इप्रोवेलीकार्ब 5-5 % प्रोपीनेब 61-25 % डब्लू पी.का 2-2.5 ग्राम प्रति लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें । |
फल विगलन : कच्चे फलों का जलसिक्त धब्बे तथा पीलापन अथवा मटमैलापन लिए धब्बे से सड़न प्रारंभ होना । रोकथाम : पौधों को खूँटी के सहारे उगाना , जल निकासी का समुचित प्रबंध तथा 5-7 दिन के अंतर पर प्रोपीनेब 70 % डब्लू.पी . के 2.5 से 3 ग्राम के घोल को प्रति लीटर पानी में मिलाकर छिड़कें । |
पौधे का किसी भी अवस्था में अचानक सूख जाना । रोकथाम : रोग प्रतिरोधी किस्में जैसे- स्वर्ण समद्धि , स्वर्णनवीन , स्वर्ण सम्पदा , स्वर्ण विजया , स्वर्ण लालिमा , अर्का आभा अर्का रक्षक और सम्राट को खेती के लिए उपयोग में लाना । |
फलों की तुड़ाई एंव पैदावार
अगस्त के प्रथम सप्ताह से फल पकने प्रारम्भ हो जाते हैं । इस मौसम में वर्षा अधिक होने तथा धूप की कमी के कारण फलों का वांछित लाल रंग नहीं आता साथ ही अधिक समय तक फलों को खेत में छोड़ने पर फलों के सड़ने की संभावना बढ़ जाती है । अतः फलों को हल्की लाल धारियाँ दिखाई देने के साथ ही तोड़ लेना उचित होता है ।इस मौसम में टमाटर की खेती करने से काफी लाभ होता है।टमाटर की मांग ज्यादा होती है और कीमत ज्यादा मिलता है।किसान उपरोक्त तकनिनी को अपना कर मोटी रकम प्राप्त कर सकते है।
आलेख :- डॉ आनंद किशोर दांगी
यह भी पढ़े
टमाटर में लगने वाले कीड़े मकोड़े है ?
फलबेधक या शीर्ष छेदक , पत्ती फुदका ,लीफ माइनर
टमाटर की उन्नत किस्में है ?
पूसा हाइब्रिड 8 , अर्का अपेक्षा , अर्का रक्षक इत्यादि
टमाटर के पौधे की रोपाई कब करनी चाहिये
खरीफ में टमाटर की रोपाई का उचित समय मई का तीसरा सप्ताह उचित माना गया है