Jharkhand Folk dance झारखंड लोक नृत्य : –झारखंड राज्य की अपनी सभ्यता ससंस्कृति है जो अन्य राज्यो से भिन्न करता है। यहाँ चलना नृत्य है बोलना गीत है अर्थात झारखंडियों में प्रत्येक चाल व्यवहार में नृत्य संगीत और गीत साथ साथ चलता है।यहाँ आर्य परिवार के सदान और अनार्य परिवार के जनजाति सदियों से साथ साथ रहते आरहे है। अपनी सभ्यता सांस्कृति की पहचान गीत संगीत नृत्य सदियों से सहेज कर अपनी परंपरा को जीवित रखे हुवे है। लोक नृत्यों में प्रयः गीतों की प्रधानता होती है।पारम्परिक लोक नृत्य कुछ धीमी, मध्यम, तीव्र गति तो कुछ माश्रित गति के होते है ।इन नृत्यों में वक्ष, बाजू, पैर ,सिर कमर आदि अंगों के थिरकन ,लोच ,झटके एवं शरीर का कंपन किसी का भी मन मोह लेती है ।
झारखंड में सदनों और आदिवासियों की प्रमुख पारम्परिक लोक नृत्य इस प्रकार है –
पईका लोक नृत्य:-

पाईका लोक नृत्य आदिवासी और सदान समाज में काफी प्रसिद्ध है।यह नृत्य युद्ध भूमि में विजय का प्रतीक है ।पारम्परिक वेश भूषा में नृतकों की मंडली नगाड़े ,ढोल, शहनाई आदि वाद्य यंत्रों की तीव्र ध्वनि में नृत्य करते है ।
छउ लोक नृत्य:-
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यह नृत्य मुखौटा तथा बिना मुखोता का पुरुष प्रधान वीर रस का नृत्य है। नृतक मुखौटा पहने चमकीले अंग वस्त्र देवी देवता के रूप धारण किए हुए वाद्य यंत्रों के ध्वनि, लय,ताल पर थिरकने लगते हैं। नृत्य पूरे विश्व में काफी प्रसिद्ध है जिस वजह से यूनेस्को द्वारा 2010 ईस्वी में विश्व विरासत सूची में शामिल कर लिया गया है।
डमकच लोक नृत्य:-
विवाह के अवसर पर आदिवासी और सदा समाज के स्त्रियों द्वारा गीत के साथ कतार वध होकर मांदर ढोल ढाक नगाड़ा शहनाई बांसुरी इत्यादि वाद्य यंत्रों के धुन पर नृत्य करते हैं।
जदूर लोक नृत्य:-
यह महिला प्रधान नित्य है किंतु कहीं-कहीं महिला पुरुष भी नृत्य करते देखे जाते हैं। इस नृत्य में नृत्यक रंगीन वस्त्र धारण कर एक दूसरे के हाथों को जोड़ कर आपस मे नृत्य करते है।इस नृत्य में नाचने एवं बजाने वाले के पैर एक साथ उठते है । सरहुल के अवसर पर नृत्य किया जाता है।
डंडइ धारा लोक नृत्य:-
पुरुष प्रधान झूमर नृत्य है, इस नृत्य में पुरुष गीता और वाद्य यंत्रों के साथ नृत्य करते हैं ।डंडइ धारा का शाब्दिक अर्थ डांड़ अर्थात कमर और धारा का अर्थ पकड़ना अर्थात कमर को पकड़ कर नृत्य करना ।यह नृत्य झारखं में काफी प्रशिद्ध है ।
मर्दानी झूमर लोक नृत्य:-
मरदानी झूमर झारखंडी समाज की जीवंतता और उत्साह का प्रतीक है। पुरुष प्रधान इस नृत्य में पौरुष की सफल अभिव्यक्ति का प्रदर्शनी हैं। इस नृत्य को विश्व स्तर पर पहुंचाने में मुकुंद नायक एवं उनके सहयोगियों का विशेष भूमिका है।
नटुआ लोक नृत्य:-
नटुवा लोक नृत्य (Folk dance) पुरुष प्रधान नृत्य है। नटुआ का शाब्दिक अर्थ नाचनेवाला होता है । इसमें पुरुष स्त्री का वस्त्र धारण कर नृत्य करते हैं। शृंगार रस और वीर रस दोनों का संगम नृत्य है। इस नृत्य में नृतक कलाबाजी का प्रदर्शन करते हुए लड़ाई के मैदान में दुश्मन के साथ किस प्रकार लड़ाई की जाती है वीरता पूर्वक नृत्य के साथ प्रदर्शनी की जाती है ।साजो सज्जा पाइका नृत्य की तह है ।
कली लोक नृत्य:-
कली लोक नृत्य (Folk dance) पुरुष प्रधान नृत्य है। इसमें पुरुष स्त्री का वेश धारण कर नृत्य करते हैं इसे नचनी खेलड़ी नाच भी कहा जाता है।इस नृत्य में नर्तकी भरपूर शृंगार की हुए रहती है ।बालो की केस सज्जा निराली माथे पर मुकुट धारण किये हुवे ,हाथो में रंगबिरंगी चुडिया ,पैरो में घुंघरू पहने ,नगाड़े ,ढाक ढोल ,मंदार के थाप पर थिरक उठती है और माहौल दमक उठता है।इस नृत्य में श्रृंगार भक्तिपरक गीतों की प्रमुखता होती है।
माठा लोक नृत्य:-
यह पुरुष प्रधान लोक नृत्य (Folk dance) है ।सोहराई पर्व के अवशर पर इसका नृत्य किया जाता है।सदान और आदिवासी दोनों में प्रशिद्ध है।फर्क सिर्फ इतना है कि सदनों में इस नृत्य में पुरुष ही भाग लेते है किंतु आदिवासियों में महिला पुरुष दोनों नृत्य करते है।
आंगनई लोक नृत्य:-
आंगनई लोक नृत्य (Folk dance) सदनों में प्रचलित महिला प्रधान लोक नृत्य है।महिलाओं द्वारा वर्षा ऋतु में मनाये जाने वाले पर्व त्यहारो के अवशर पर आंगन में किया जाता है।
घोड़ नाच लोक नृत्य:-
गुड नाइट झारखंड के साधनों में काफी प्रचलित है इस नृत्य का आयोजन विशेष मेले पर्व त्यौहार उत्सव एवं विवाह के अवसर पर क्या जाता है। यह नृत्य गीत वहीं नृत्य है। ढोल ढाक नगाड़ा मांदर इत्यादि वाद्य यंत्रों के ताल पर घोड़ा नाच का नृत्य किया जाता है। नृतक घोड़े की आकृति बांस के पतियों से बनाता है ।नृत्यक कृतिम घोड़े के फ्रेम को रंगीन कपड़े से सजा देता है तथा उसमे घुस कर अपने कंधों से लगा लेता है।नृतक राजा की तरह भड़कीले वस्त्र धारण कर नृत्य करता है। युद्ध में विजय प्राप्त किए हुए राजा की भाव भागिमा मे नृत्य किया जाता है।
रास लोक नृत्य :-
यह लोकप्रिय पुरुष प्रधान नृत्य है। श्रृंगार तथा भक्ति पूर्वक गीतों के साथ रासलीला का नृत्य किया जाता है।इस नृत्य में मुख्य नृत्यक (झुमराहा) कृष्ण का प्रतीक होता है, राधा के साथ अन्य गोपिया नृत्य करती है।
भादरिया झूमर लोक नृत्य :-
भादरिया झूमर जैसा नाम से स्पष्ट है इस नृत्य का आयोजन भादो मास में किया जाता है। यह नृत्य महिला प्रधान नृत्य है। इसमें महिलाएं दो दलों में बटकर एक दूसरे के हाथों में हाथ उलझा कर कलात्मक ढंग से नृत्य करते हैं। एक दल गीत को गाती है और दूसरा दल उस गीत को दोहराती है। किसी किसी गीत में एक दल गीत गाती है और दूसरा दल उस गीत का जवाब देती है। यह गीत प्रधान नृत्य हैं।इसमें महिलाएं कदम से कदम मिलाकर कलात्मक पद संचालन करते हुए लय ताल से कभी झुकती है कभी नृत्य की गति को तीव्र करती है तथा अखरा में चारों ओर घूम घूम कर नृत्य करती है।इस पाटकर के नृत्य करम पूजा में किया जाता है ।
लहूसा लोक नृत्य:-
यह नृत्य मुख्य रूप से करमा पर्व के अवसर पर सामूहिक रूप से महिला और पुरुषों द्वारा वाद्य यंत्रों के साथ गीत गाते हुए नृत्य की जाती है।लहूसा गीत गाये जाने के कारण इस नृत्य को लहूसा नृत्य कहा जाता है।
जापी लोक नृत्य:-
जापानीज मुंडा जनजातियों में काफी प्रसिद्ध है इस नृत्य में गायक नर्तक और वादक होते हैं। पुरुष नृतक महिलाओं की मंडली से घिरा रहता है।परुषों का एक दल ढोल ,मंदार ,नगाड़ा इत्यादि वाद्य यंत्रों को बजाता हैं। दूसरा पुरुष का दल अपने ले ताल से नाचते गाते हैं।महिलाओं की मंडली पुरुष गायक के गीतों के अंतिम कड़ी को दुहराती है ।महिला की मंडली आपस मे हाथ जुड़कर चारो ओर वृताकार घूम घूम कर नाचती है ।
दंसय लोक नृत्य:-
संथाल जनजातियों में मनाए जाने वाला दसय नृत्य संथाल जनजातियों में काफी प्रसिद्ध है। इस नृत्य का आयोजन दशहरे पर्व के अवसर पर किया जाता है। यह पुरुष प्रधान नृत्य है ,सभी पुरुष महिलाओं का वेशभूषा धारण कर नृत्य करते है । इस नृत्य में प्रमुख वाद्य यंत्र सूखे कद्दू से बनाया गया भगवान होता है इसके अलावे नृत्य के हाथों में थाली घंटी इत्यादि का प्रयोग किया जाता है। इस नृत्य के शुरुआत के प्रारंभ के संबंध में कहा जाता है कि जब जब संथाल प्रदेशों में बाहरी आक्रमणकारियों के द्वारा आदिवासी क्रांतिकारियों को बंदी बना लिया गया था तो उन्हें ढूंढने के लिए पुरुष महिलाओं का रूप धारण कर बंदी बनाए गए क्रांतिकारियों को ढूंढने के लिए टोली में नृत्य करते निकले थे।उस समय से सन्थाल जनजातियों के लोक नृत्य बन गया है ।
बाहा लोक नृत्य:-
बाहा नृत्य का आयोजन सरहुल पर्व के उपलक्ष में किया जाता है। संथाल जनजातियों में सरहुल पर्व को वहां पर के नाम से भी जाना जाता है। स्त्री और पुरुषों के द्वारा सामूहिक रूप में नृत्य का आयोजन किया ।पुरुष वर्ग के लोग वाद्ययंत्र को बजट है एवं महिला की मंडली गीत के साथ नृत्य करती है।
लांगड़े लोक नृत्य:-
लंगडी नृत्य को बाहर नित्य के नाम से भी संथाल जनजातियों में प्रसिद्ध है। दहर का अर्थ होता है सड़क अर्थात सड़कों पर किए जाने वाले नृत्य को बाहर नृत्य कहा जाता है। यह निर्णय माघ महीने में मांगूगा पर्व के अवसर पर क्या जाता है। वाद्य यंत्रों के साथ महिला पुरुष गीत गाते हुए सामूहिक रूप से नृत्य करते हैं।
दोहा लोक नृत्य:-
संथाल जनजातियों में विवाह के अवसर पर किए जाने वाले नृत्य को दोहा नृत्य कहते हैं। इस नृत्य को संथाल में दराम दा के नाम से भी जाना जाता है। इस नृत्य में पुरुष और महिलाएं वाद्य यंत्रों के साथ भाग लेते हैं और नृत्य करते हैं।
हरियो लोक नृत्य:-
हरि होरा नित्य झारखंड के जनजातियों का एक प्रमुख नृत्य है खास करके या खड़िया जनजातियों में काफी प्रचलित है। इस नृत्य का आयोजन माघ के महीने में जात्रा देखने के दौरान युवाओं के द्वारा क्या जाता है। यह निर्णय पुरुष एवं महिला सामूहिक रूप से एक दूसरे के कंधे पर हाथ रखकर एक कतार से जुड़कर नृत्य करते हैं । इस नृत्य में पुरुष और महिलाएं दौड़ते हुए तीव्र गति से नृत्य करते हैं कभी झूमते हैं तो कभी दौड़ते हैं मांदर की थाप नगाड़े की गड़गड़ाहट नृतक का पैर झूमने के लिए मजबुर हो जाता है।इतनाही नहीं इस नृत्य को देखने वाले दर्शक दर्शक भी अपने को रोक नहीं पाते हैं और नृत्य मंडली में शामिल हो कर नृत्य करने लगते है।
धूड़िआ लोक नृत्य:-
धोड्या अर्थात धूल उड़ाने वाला लोक नृत्य। यह नृत्य झारखंड के जनजातियों में काफी प्रचलित है इस नृत्य का आयोजन खेतों में बीज बोने के पश्चात मौसमी परिवर्तन के बाद जब खेतों से धूल उड़ती है तब धूल उड़ाते हुए यह लोक नृत्य किया जाता है। इस नृत्य में दो दल होते हैं एक दल की तो उठाता है और नाचना प्रारंभ कर देता है वृत्ताकार घूमते नाचते गीत के अंतिम कड़ी पर मांदर के ताल संकेत दे देता है मांदर के धूम बदलते हैं जोर से हल्ला करते हुए नृत्य करते हैं।
कदसा लोक नृत्य
कदसा का अर्थ होता है कलश अर्थात कलश माथे पर लेकर महिलाओं के द्वारा किए जाने वाले नृत्य को कदसा नृत्य कहते हैं। इस नृत्य के दौरान महिलाएं अपने सीर या कंधे पर कलश रखकर नृत्य करते हैं। इस नृत्य में पुरुष का दल मांदर नगाड़ा इत्यादि वाद्य यंत्रों को बजाते हैं और महिलाएं ठुमक ठुमक कर नृत्य करती है। इस प्रकार का नृत्य विभिन्न त्योहरों या अतिथियों के स्वागत में किया जाता है।
चाली र्बारिया लोक नृत्य:-
यह महिला प्रधान लोक नृत्य है इसमें महिलाएं कतार में खड़ी होकर आगे वाले के कंधे पर अपना एक हाथ रखकर दूसरा हाथ झूलते हुए नृत्य प्रारंभ करते हैं। गीत गाते रहती है और अपने पैरों को भी बीच-बीच में मोड़ते डुलाते हुए आगे पीछे करते हुए नृत्य करते चलते हैं।
डोयोर लोक नृत्य
झारखंड की जनजातियों में डोयोर लोक नृत्य (Folk dance) का प्रचलन देखने को मिलता है। इस नृत्य में महिला तथा पुरुष दोनों भाग लेते हैं परंतु दोनों अलग-अलग दल बनाकर नृत्य करते हैं इस नृत्य के दौरान एक दल के द्वारा नृत्य करने के बाद दूसरा दल नृत्य करता है इस नृत्य में नर्तक या नर्तकी अपने कंधे पर एक डंडा रखकर नृत्य करते हैं।
टुसू लोक नृत्य-
टुसू पर्व के अवसर पर किए जाने वाले लोक नृत्य को टू सुमित कहा जाता है इस नृत्य का आयोजन मकर संक्रांति के अवसर पर दूसरों के प्रतीक चढ़ाल को प्रवाहित करने के दौरान महिला एवं पुरुषों के द्वारा सामूहिक रूप से नृत्य की जाती है। यह निर्णय झारखंड में सदनों और आदिवासियों मे प्रचलित है।
कठोरवा लोक नृत्य:-
कठोरवा लोक नृत्य छउ नृत्य की तरह मुखौटा पहनकर नृत्य किया जाता है। इस नृत्य में पुरुष तरह-तरह के मुखोटे पहनकर मांदर नगाड़े जाल इत्यादि वाद्य यंत्रों के ताल पर नृत्य करते हैं।
आलेख :- डॉ आनन्द किशोर दाँगी
( जनजातीय एवं क्षेत्रीय भाषा विशेषज्ञ)
मर्दानी झूमर वीडियो देखा जा सकता है।
नटुआ लोक नृत्य देखा जा सकता है।