झारखंड की कंवर जनजाति | Kanwar Tribe of Jharkhand : झारखंड की जनजातीय संरचना में कंवर (Kanwar) जनजाति एक नये स्वरूप में सामने आई है। लंबे समय तक चले संघर्ष के बाद भारत सरकार ने 28 जनवरी 2003 को कंवर समुदाय को अनुसूचित जनजाति की सूची में 31वें स्थान पर शामिल किया। कंवर जनजाति Kanwar Tribe मुख्य रूप से पलामू, गुमला और सिमडेगा जिलों में निवास करती है। इनकी मातृभाषा ‘कावरासी’ कही जाती है, जो झारखंड की लोकप्रिय क्षेत्रीय भाषा सादरी (नागपुरी) से मिलती-जुलती है।जनसंख्या को लेकर सटीक आंकड़े नहीं हैं, क्योंकि अनुसूचित जनजाति में शामिल होने के बाद इनकी अलग से गणना नहीं हुई। अनुमानतः इनकी संख्या झारखंड में लगभग 10,000 के आसपास है।
कंवर जनजाति की सामाजिक संरचना
गोत्र व्यवस्था और आर्याकरण : – कंवर समाज में सात प्रमुख गोत्र प्रचलित हैं, जो हिन्दू मुनियों के नामों पर आधारित हैं:
प्रह्लाद
अभीआर्य
वशिष्ठ
शुकदेव
दण्डक
पराशर
विश्वामित्र
सभी गोत्रों में बाह्य-विवाही परंपरा है। इन गोत्रों के नाम यह दर्शाते हैं कि कंवर समुदाय में आर्याकरण (हिन्दूकरण) की प्रक्रिया काफी पुराने समय से जारी है।
कंवर जनजाति Kanwar Tribe के पारिवारिक जीवन
इनका समाज पितृसत्तात्मक है, जहां संपत्ति का बंटवारा पुत्रों के बीच बराबर होता है। विवाह के बाद पति अपनी पत्नी को अपने गांव लाकर परिवार की नींव रखता है। हालांकि परंपरागत रूप से संयुक्त परिवार का चलन है, परंतु एकल परिवार की प्रवृत्ति भी बढ़ रही है।
कुटमैती और विवाह प्रक्रिया : कंवर समाज में विवाह के लिए वर पक्ष पहल करता है, जिसे स्थानीय भाषा में ‘कुटमैती’ कहा जाता है। कुटमैती के दौरान वर स्वयं वधू के घर जाता है और दोनों परिवार एक-दूसरे को परखते हैं। यदि लड़की और उसका परिवार लड़के को पसंद कर लेते हैं, तो वर पक्ष दोबारा ‘अइरसा रोटी’ लेकर आता है और उसी दिन विवाह तिथि तय होती है। दोनों पक्ष आपस में गोत्र चर्चा कर यह सुनिश्चित करते हैं कि रक्त-संबंध न हों।
वधू मूल्य और विवाह समारोह : वधू धन सामान्यतः 5 से 10 रुपये या 20 पैला धान के मूल्य के बराबर होता है। विवाह सादगीपूर्ण ढंग से होता है, लेकिन सामूहिक भोज में मांसाहार और हंडिया प्रमुखता से परोसे जाते हैं।
जन्म और मृत्यु परंपराएं : गर्भावस्था को शुभ माना जाता है। समाज की अनुभवी महिलाएं ही प्रसव कराती हैं। प्रसव के बाद पूरा परिवार अशुद्ध माना जाता है।
छठे दिन छठी मनाई जाती है। बारहवें दिन मां और शिशु स्नान कर शुद्ध होते हैं। मां को ‘कांसापानी’ (कुरथी का अर्क) दिया जाता है। छठी के दिन सामूहिक भोज और हंडिया पिलाई जाती है।
मृत्यु परंपरा : मृत व्यक्ति का दाह संस्कार या दफन दोनों प्रथाएं प्रचलित हैं। 12वें दिन शुद्धिकरण होता है और कमावन (श्राद्ध) संस्कार ब्राह्मण एवं नाई के माध्यम से कराया जाता है।
कंवर जनजाति की धार्मिक मान्यताएं
सरना स्थल और खूँट देवता : कंवर समाज का मुख्य धार्मिक स्थल सरना है, जहां ‘खूँट देवता’ की पूजा की जाती है। यह पूजा आषाढ़ माह में होती है और इसके बाद ही खेती-बाड़ी की शुरुआत होती है। पूजा में जानवरों की बलि दी जाती है, जिसे स्थानीय पुजारी ‘पाहन’ या ‘बैगा’ अर्पित करता है।
हिन्दू धर्म का प्रभाव : कंवर समाज में अब हिन्दू धर्म की परंपराओं और ब्राह्मणों की गतिविधियों का भी समावेश देखा जा रहा है। शादी, त्योहार और मृत्यु संस्कार में हिन्दू रीति-रिवाज अपनाए जा रहे हैं।
कंवर जनजाति की आर्थिक एवं शैक्षणिक स्थिति
कंवर लोग पारंपरिक रूप से कुशल कृषक हैं। कृषि पद्धति आसपास के ग्रामीण किसानों जैसी ही है। लेकिन आधुनिक समय में इनकी आर्थिक स्थिति कमजोर होती जा रही है।शैक्षणिक रूप से यह समुदाय पिछड़ा हुआ है। महिलाओं में साक्षरता दर मात्र 15% है, जो विकास के मार्ग में एक चुनौती है।
निष्कर्ष : कंवर जनजाति की विशेषताएं
कंवर जनजाति झारखंड की एक संघर्षशील और सांस्कृतिक रूप से समृद्ध समुदाय है। अनुसूचित जनजाति में शामिल होने के बाद भी इन्हें सामाजिक और आर्थिक सशक्तिकरण की आवश्यकता है। हिन्दू धर्म और पारंपरिक आदिवासी मान्यताओं का मिश्रण इनके सामाजिक जीवन में साफ झलकता है।
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