झारखंड की विकसित जनजातियों में कोरा जनजाति kora tribe का विशेष स्थान है। कोरा जनजाति मुख्य रूप से धनबाद, बोकारो और संथाल परगना क्षेत्रों में निवास करती है। इनकी आबादी झारखंड के अलावा ओड़िशा और पश्चिम बंगाल में भी पाई जाती है। इतिहासकार रिजले के अनुसार, कोरा मूलतः मुंडा वंश के ही वंशज माने जाते हैं। वहीं संथाल परगना के कोरा समुदाय का मानना है कि उनके पूर्वज नागपुर से आए थे। कोरा (kora tribe) समाज का एक वर्ग यह भी मानता है कि उनका गोत्र ‘बरदा’ (पेड़) से जुड़ा है और वे उसी के वंशज हैं।
कोरा जनजाति के भाषा एवं उपवर्ग
कोरा जनजाति की अपनी भाषा मुंडारी है। क्षेत्रीय विविधता के अनुसार इनके कई उपवर्ग हैं:
ढालो
मोलो
सिखरिया
बदमिया
सोनरेखा
झेटिया
गुरी बाबा
इसके अतिरिक्त कोरा समुदाय में विभिन्न वहिर्विवाही गोत्र पाए जाते हैं, जैसे- आलु, बरदा, बुटका, हंसदा, कश्याली, सासा, साल, सनपु, कौरी, सम्दवार और टोपोबार।
कोरा जनजाति के आर्थिक जीवन
कोरा समुदाय का जीवन मुख्यतः खेती, मजदूरी, जंगल पर निर्भर है। इनके पास सीमित कृषि भूमि होती है, जो दो भागों में विभाजित रहती है:
टांड़ भूमि : जिसमें मडुआ, मकई, मोटा अनाज एवं धान बोया जाता है।
दोन भूमि : इसमें मुख्यतः धान की खेती होती है।
खेती के अलावा जंगल से मिलने वाले फल, कंद-मूल, साग-पात, मधु संग्रह, सखुआ पत्ते से पत्तल-दोना निर्माण, झाड़ू-रस्सी बनाना, बीड़ी पत्ता, दतवन इत्यादि इनके आय के स्रोत हैं। कोरा जनजाति पारंपरिक रूप से कुशल शिकारी मानी जाती है और आज भी रीति-रिवाज अनुसार सामूहिक शिकार करते हैं।
कोरा जनजाति के सामाजिक व्यवस्था
कोरा समाज पितृसत्तात्मक एवं पितृवंशीय है।
परिवार संरचना: एकल परिवार प्रचलित है जिसमें पति-पत्नी और अविवाहित बच्चे होते हैं।
संपत्ति उत्तराधिकार: संपत्ति पिता की मृत्यु के बाद पुत्रों में बराबर बांटी जाती है।
महिला स्थिति: विवाह उपरांत महिलाएं पति के घर जाती हैं। विधवा महिला को पुनर्विवाह तक भरण-पोषण का अधिकार प्राप्त होता है।
कोरा समाज में पारंपरिक पंचायत व्यवस्था होती है:
महतो: ग्राम प्रमुख
परमानिक: सहायक पदाधिकारी
जोगमांझी: संदेशवाहक
सभी पद वंशानुगत होते हैं।
धर्म एवं आस्था
कोरा जनजाति प्रकृति पूजक हैं। इनके धार्मिक विश्वासों में प्रकृति के सभी अंगों में देवी-देवताओं का वास माना जाता है।
कोरा जनजाति के मुख्य धार्मिक स्थल:
पिंगी
अखड़ा
बोंगा थान
अरहीथान
दादीचान
कोरा जनजाति के देवी-देवताओं में विश्वास:
कुल देवता रसोईघर में निवास करते हैं।
ग्राम देवता गांव के मध्य में स्थापित होते हैं।
वन देवता जंगल में रहते हैं।
नदी, पहाड़ आदि में भी देवताओं का वास माना जाता है।
कोरा समाज में बैगा पुजारी होता है, हालांकि पुरोहित परंपरा नहीं है। बलि प्रथा प्रचलित है, जिसमें सूअर, बकरा, कबूतर आदि चढ़ाए जाते हैं। धार्मिक आयोजनों में महिलाएं भी भाग लेती हैं।
कोरा जनजाति के पर्व-त्योहार
कोरा समुदाय के प्रमुख त्योहार:
काली माई पूजा: अषाढ़ महीने में बड़े उत्साह से मनाते हैं।
नवाखानी: भादो माह में नए अन्न की पूजा घर-घर होती है।
दशहरा एवं दुर्गा पूजा: दुर्गा माँ को सिंदूर, चावल, दूध एवं बकरे की बलि दी जाती है।
सोहराई पर्व: सामूहिक रूप से मनाया जाता है।
त्योहारों में मांस, चावल, शराब, नृत्य-संगीत विशेष भूमिका निभाते हैं। मांदर, ढोल, बाँसुरी जैसे वाद्य यंत्रों के साथ सामूहिक नाच-गान होता है।
कोरा जनजाति पर हिन्दू धर्म का प्रभाव
कोरा समुदाय ने बहुत हद तक हिन्दू देवी-देवताओं को अपनाया है। कमली दुर्गा, मनसा देवी, हनुमान जी इनकी पूजा में शामिल हैं। साथ ही, प्रेत-आत्माओं को भी शांत करने के लिए पूजा-अर्चना की जाती है।
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निष्कर्ष
कोरा जनजाति झारखंड की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत का हिस्सा है। प्राकृतिक संसाधनों पर निर्भरता, सामूहिक जीवनशैली, धर्म-परंपरा, उत्सव, और शिकार-कला इन्हें विशिष्ट बनाते हैं। बदलते समय के साथ इनके जीवन में आधुनिकता का प्रवेश हो रहा है, फिर भी इनकी सांस्कृतिक पहचान आज भी कायम है।
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