किसान जनजाति भारत के प्रमुख जनजाति है जो भारत के पश्चिम बंगाल उड़ीसा झारखंड इत्यादि राज्यों में निवास करते हैं इसके अलावे भारत के पड़ोसी देश नेपाल में भी पाए जाते हैं । किसान जनजाति के पलामू, लोहरदगा, राँची जिलों सहित महुआटांड, भंडरिया, नेतरहाट, विशुनपुर, चैनपुर, पालकोट आदि क्षेत्रों में निवास करती है।
किसान जनजातियों की जनसंख्या
उड़ीसा- 331,589
पश्चिम बंगाल- 98,434
झारखंड- 37,265
नेपाल-1,739
किसान जनजाति का सामाजिक संरचना और वर्गीकरण
किसान जनजाति में गोत्र व्यवस्था प्रचलित नहीं है, लेकिन यह दो प्रमुख वर्गों में विभाजित है:
1. सिन्दुरिया किसान – विवाह संस्कार में सिन्दूर का प्रयोग करते हैं।
2. तेलिया किसान – सिन्दूर के स्थान पर तेल का उपयोग करते हैं।
यह वर्गीकरण आदिम जनजाति बिरजिया में भी पाया जाता है। दोनों वर्गों के बीच विवाह संबंध संभव हैं, लेकिन विवाह की प्रक्रिया का संचालन वर पक्ष द्वारा किया जाता है।
किसान जनजाति का धार्मिक एवं सामाजिक विश्वास
किसान जनजाति में धार्मिक अनुष्ठान बैगा और ब्राह्मण द्वारा संपन्न किए जाते हैं। हाल के वर्षों में सामाजिक अनुष्ठानों में भी ब्राह्मणों की भागीदारी बढ़ी है, जबकि 20वीं शताब्दी के प्रारंभिक वर्षों तक इनका कोई विशेष प्रभाव नहीं था। इनके समुदाय में सोखा/मति पर गहरा विश्वास देखा जाता है, जो पारंपरिक लोक-मान्यताओं का हिस्सा है।
किसान जनजाति का पंचायती व्यवस्था
जनजाति की पारंपरिक पंचायत में अनुभवी एवं वृद्ध व्यक्तियों को शामिल किया जाता है।
मुखिया (महत) – समुदाय का प्रमुख नेता होता है।
सरदार (कोतवार) – पंचायत का सहायक होता है, जो बैठकें आयोजित करता है।
पंचायत की बैठक बुलाने वाले व्यक्ति से पंचायत खर्च लिया जाता है, जो सामुदायिक निर्णयों का संचालन करने की प्रक्रिया का हिस्सा है।
किसान जनजाति का अन्य विशेषताएँ
किसान जनजाति की सांस्कृतिक विशेषताएँ झारखंड की अन्य जनजातियों से मिलती-जुलती हैं। इनका जीवनशैली, पारंपरिक ज्ञान और सामाजिक संरचना आदिवासी समाज की मूलभूत विशेषताओं को दर्शाती हैं।
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